अथ तेषां पर्वतानां नामादिकं गाथाद्वयेनाह—
हमवं महादिहिमवं णिसहो णीलो य रुम्मि सिहरी य। मूलोवरि समवासा मणिपासा जलणिहिं पुट्ठा।।५६५।।
हिमवान् महादिहिमवान् निषधः नीलश्च रुक्मी शिखरी च। मूलोपरि समव्यासा मणिपाश्र्वा जलनिधिं स्पृष्टाः।।५६५।।
हिमवं। हिमवान् महाहिमवान् निषधो नीलश्च रुक्मी शिखरी च, एते सर्वे मूलोपरि समानव्यासाः मणिमयपाश्र्वा जलनिधिं स्पृष्टाः।।५६५।।
दो गाथाओं द्वारा उन कुलाचलों के नामादि कहते हैं— गाथार्थ—हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरिन् ये छह कुलपर्वत मूल में व ऊपर समान व्यास-विस्तार से युक्त हैं। मणियों से खचित इनके दोनों पार्श्वभाग समुद्रों का स्पर्श करने वाले हैं ।।५६५।।
विशेषार्थ—(१) हिमवान् (२) महाहिमवान् (३) निषध (४) नील (५) रुक्मी और (६) शिखरिन् ये छह कुलाचल पर्वत हैं। दीवाल सदृश इन कुलाचलों का व्यास-चौड़ाई नीचे से ऊपर तक समान है। इन कुलाचलों के दोनों पार्श्वभाग मणिमय हैं और समुद्रों को स्पर्श करने वाले हैं । जम्बूद्वीप में कुलाचलों के दोनों पार्श्वभाग लवणसमुद्र को स्पर्श करते हैं। धातकीखण्ड में लवणोदधि और कालोदधि को स्पर्श करते हैं किन्तु पुष्करार्धद्वीप में कालोदधि और मानुषोत्तर पर्वत को स्पर्श करते हैं ।