‘हरड़ को आयुर्वेद में गुणकारी एवं दिव्य घरेलू औषधि के रूप में माना जाता है। हरड़ को संस्कृत में ‘हरीतकी’ के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हरीत की के सात प्रकार होते हैं, जिन्हें चेतकी हरड़ , अभ्या हरड़, रोहिणी हरड़, बड़ी हरड़, काली हरड़ तथा पीली हरड़ के रूप में जाना जाता है। हरड़, बहेड़ा और आंवला के मिश्रित चूर्ण को त्रिफला कहा जाता है। इस छोटी—सी हरड़ में किन—किन बीमारियों को दूर करने की शक्ति निश्चित है, उस पर एक नजर डालते हैं। बड़ी हरड़ के छिलके, अजवाइन एवं सफेद जीरा बराबर बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह—शाम दही में मिलाकर लेते रहने से सूखी आंव तथा मरोड़ में लाभ पहुंचता है। काली हरड़ को महीन पीसकर मुंह तथा जीभ के छालों पर लगाते रहने से छालों से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन दो—चार बार लगाते रहने से हरेक प्रकार के छालों से मुक्ति मिलती है। पीली हरड़ के छिलके का चूर्ण तथा पुराना गुड़ बराबर मात्रा में लेकर गोली बनाकर रख लें। मटर के दानों के बराबर वाली इन गोलियों को दिन में दो बार सुबह—शाम पानी के साथ एक महीनें तक लेते रहने से यकृत लीवर एवं प्लीहा के रोग दूर हो जाते हैं। छोटी हरड़ के चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर सुबह —शाम खाते रहने से पांडुरोग में लाभ मिलता है। पुराने कब्ज के रोगी को नित्यप्रति भोजन के आधा घंटा बाद डेढ़—दो ग्राम की मात्रा में हरड़ का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेते रहने से फायदा होता है। एक मध्यम आकार की पीली हरड़ के दो टुकड़े छिलके सहित कांच के गिलास में इस तरह भिगो दें कि वह भीगने पर पूरी तरह फूल जाये। चौदह घण्टे भीगने के बाद हरड़ की गुल्ली को निकालकर उसके अन्दर के बीजों को निकालकर गुल्ली को खूब चबा—चबाकर खायें तथा ऊपर से हरड़ वाला पानी पी लें। एक माह तक इस विधि का सेवन लगातार करते रहने से ‘प्रोस्टेट ग्लैण्ड’ की सूजन ठीक हो जाती है। गर्मी के कारण नेत्र में जलन होती हो, नेत्र लाल हो जाते हों, नेत्र से पानी गिरता हो तो त्रिफला के जल से आंखों को धोते रहने से आराम मिलता है। सुबह खाली पेट एक चम्मच त्रिफला का क्वाथ काढ़ा पीते रहने से खून की कमी दूर हो जाती है हरड़ के काढ़े में चाशनी मिलाकर पीने से गले के रोगों में लाभ मिलता है। जिन नवजात शिशुओं के भौहें नहीं हों, हरड़ को लोहे पर घिसकर, सरसों तेल के साथ मिलाकर शिशु के भौंह वाले स्थान पर धीरे—धीरे मालिश करते रहने से धीरे—/ धीरे भौंह उगने लगते हैं । अगर सप्ताह में एक बार बच्चे को हरड़ पीसकर खिलाया जाता रहे, तो उसे जीवन में कब्ज का सामना कभी नहीं करना पड़ता है। जिन स्त्रियों को गर्भपात की बार—बार शिकायत हो, उन्हें त्रिफला चूर्ण के साथ लौह भस्म मिलाकर लेते रहना चाहिए। रात को सोते समय थोड़ा—सा त्रिफला चूर्ण दूध के साथ पीते रहने से मानसिक शक्ति बढ़ती है और शीघ्र स्खलन का भय दूर हो जाता है। छोटी पीपल और बड़ी हरड़ का छिलका समान मात्रा में लेकर पीस लें। तीन ग्राम की मात्रा में सुबह ताजे जल के साथ लेते रहने पर बैठा गला खुल जाता है। पेटदर्द होने पर हरड़ को घिसकर गुनगुने पानी के साथ लेने पर तत्काल लाभ होता है। हरड़, सेंधा नमक तथा रसौंत को पानी में पीसकर आंख के ऊपरी भाग के चारों तरफ लेप करने से आंख आना, आंखों की सूजन, व दर्द नष्ट हो जाते हैं। नित्यप्रति प्रात: काल शीतल जल के साथ तीन ग्राम की मात्रा में छोटी हरड़ का चूर्ण सेवन करते रहने से सफेद दाग मिटाने शुरू हो जाते हैं। शरीर के जिन अंगों पर दाद हो, वहां बड़ी हरड़ को सिरके के साथ घिसकर लगाने से लाभ होता है।