—शंभु छंद—
जिन गर्भागम से छह महिने, पहले सुरपति की आज्ञा से।
नगरी को सुंदर बना धनद, माँ आंगन रतन सु बरसाते।।
तिथि चैतवदी नवमी उत्तराषाढ़ा, नक्षत्र में प्रभु जन्में।
सुरगिरि पर न्हवन हुआ जिनका, उन ‘ऋषभदेव’ को आज नमें।।१।।
श्री आदि देवियाँ माता की, सेवा करती अति भक्ती से।
अति गूढ़ प्रश्न करतीं देवी, मां उत्तर देतीं युक्ती से।।
था योग प्रजेश माघ शुक्ला, दशमी ‘अजितेश्वर’ जन्म लिया।
देवों गृह बाजे बाज उठे, सुरगिरि पर सुरपति न्हवन किया।।२।।
जब प्रभु ने जन्म लिया भू पर, देवों के आसन कांप उठे।
झुक गये मुकुट सब देवों के, सुरतरु से स्वयं सुमन बरसे।।
कार्तिक पूनो मृगशिर नक्षत्र में, ‘संभवप्रभु’ ने जन्म लिया।
मेरु पर सुरगण न्हवन किया, तिथि जन्म नमत सुख प्राप्त किया।।३।।
ऐरावत हाथी पर चढ़कर, सौधर्म इंद्र यहाँ आते हैं।
शचि देवी सह जिन बालक को, मेरुगिरि पर ले जाते हैं।।
शुभ अदिति योग में माघ शुक्ल, द्वादशि को ‘अभिनंदन स्वामी’।
जन्में हैं उस तिथि को वंदूं, हो जाऊँ मैं शिवपथगामी।।४।।
सुदि चैत इकादशि चित्रा उडु१, में ‘सुमतिनाथ’ ने जन्म लिया।
सुरपति ऐरावत पर आकर, जिनका जन्मोत्सव सफल किया।।
ऐरावत गज के दंतों पर, सरवर सरवर में कमल खिले।
सब कमलदलों पर सत्ताईस, करोड़ अप्सरियाँ नृत्य करें।।५।।
कार्तिक कृष्णा तेरस में त्वष्ट्र, योग ‘पद्म प्रभु’ जन्म लिया।
शचि माता के प्रसूति गृह में, जाकर जिन शिशु का दर्श किया।।
सुरपति जिन प्रभु को गोद में लेकर, रूप देख नहिं तृप्त हुआ।
तब नेत्र हजार बना करके, प्रभु का दर्शन कर मुदित हुआ।।६।।
‘जिनवर सुपार्श्व’ ने अग्निमित्र, शुभ योग ज्येष्ठ सुदि बारस में।
जब जन्म लिया तब शांति हुई, आनंद छाया सारे जग में।।
इंद्रों ने जन्मोत्सव करके, अतिसुंदर तांडव नृत्य किया।
फिर वाराणसि में आ करके, शिशु को माता को सौंप दिया।।७।।
‘श्रीचंद्रनाथ’ जी पौषकृष्ण, ग्यारस तिथि योग शक्र शुभ में।
जन्में उस ही क्षण वाद्य सभी, स्वयमेव बजे सुरगण गृह में।।
तीर्थंकर प्रकृती का माहात्म्य, त्रिभुवन में हर्ष लहर दौड़ी।
जिनने जन्मोत्सव देख लिया, उनसे शिवतिय नाता जोड़ी।।८।।
‘श्री पुष्पदंत’ शुभ जैत्र योग, मगसिर सुदि एकम को जन्मे।
रुचकाद्रिवासिनी देवी ने, प्रभु जातकर्म किया उस क्षण में।।
इंद्राणी शिशु को गोद में ले, निज स्त्रीलिंग को छेद किया।
अतिशायी पुण्य किया संचित, मैं नमते जीवन धन्य किया।।९।।
‘शीतल जिन’ माघ कृष्ण बारस, शुभ विश्वयोग में जन्म लिया।
सुरपति ने असंख्य देवों सह, मेरु पर प्रभु का न्वहन किया।।
त्रिभुवन में शीतलता व्यापी, सुरपति ने शीतलनाथ कहा।
मैं वंदूं शीश नमा करके, होवे मन में आनंद महा।।१०।।
फाल्गुन वादि ग्यारस विष्णु योग, ‘श्रेयांसनाथ’ का जन्म हुआ।
देवों के आसन कांप उठे, इन्द्राणी को अतिहर्ष हुआ।।
इंद्रों ने असंख्य वैभव ले, जिन जन्मकल्याणक पूजा की।
मैं वंदूं जन्मकल्याणक को, मिल जावे जिनगुण सम्पत्ती।।११।।
फाल्गुन वदि चौदश तिथि योग, वारुण में सर्व उच्चग्रह में।
‘श्री वासुपूज्य’ का जन्म हुआ, सब अतिशय प्रगटे उस क्षण में।।
इंद्राणी को सौभाग्य मिला, जिनशिशु को गृह से लाने का।
मैं वंदूं जन्मकल्याणक को, मिल जावे पुण्यमयी नौका।।१२।।
‘श्री विमल’ माघ सुद चौथ तिथी, शुभ योग अहिर्बुध्न दिन में।
जन्में त्रिभुवन को धन्य किया, सुख शांति हुई सारे जग में।।
जो उनका जन्म दिवस वंदे, वे पुन: पुन: नहिं जन्म धरें।
प्रभु भक्ती से सुरपति शचि भी, बस एकहि भव लें मुक्ति वरें।।१३।।
तिथि ज्येष्ठ वदी बारस पूषा, शुभ योग उच्चग्रह सब ही थे।
‘जिनवर अनंत’ ने जन्म लिया, सुरगृह में बाजे बाजे थे।।
प्रभु सुख अनंत के भोक्ता हैं, उन भक्त अनंत सुखी होते।
मैं वंदूं जन्म दिवस प्रभु का, उन वंदत अन्तक भय खोते।।१४।।
‘श्री धर्मनाथ’ सुदि माघ त्रयोदशि, गुरू योग में जन्में थे।
इन्द्रों ने मेरु पर ले जा, अभिषेक किया था उत्सव से।।
प्रभु धर्मनाथ ने पृथ्वी पर, धर्मामृत सुखकर बरसाया।
मैं वंदूं जन्म दिवस प्रभु का, सुरगण ने अतिशय गुण गाया।।१५।।
‘श्री शांतिनाथ’ शुभ याम्य योग, वदि ज्येष्ठ चतुर्दशि के जन्में।
नरकों में भी क्षण शांति हुई, पायी शांती सबही जन ने।।
सुरपति ने प्रभु अभिषेक किया, शचि ने आभूषण पहनाये।
जो वंदें प्रभु की जन्मतिथी, वे मुक्तिरमा को अपनायें।।१६।।
बैशाख शुक्ल एकम आग्नेय, योग ‘कुंथु प्रभु’ जन्म लिया।
धनपति ने पंद्रह माह रतन, बरसा कर पृथ्वी धन्य किया।।
नगरी भी स्वर्णमयी करके, तोरण आदिक से सजा दिया।
मैं वंदूँ जन्म दिवस प्रभु का, इंद्रों ने उत्सव खूब किया।।१७।।
‘श्री अरहनाथ’ मगसिर शुक्ला, चौदश नक्षत्र पुष्य शुभ में।
जन्में दश अतिशय साथ लिये, जन्मोत्सव किया इंद्रगण ने।।
जो जन्म मरण दुख से डरते, वे प्रभु की भक्ती करते हैं।
हम वंदें शीश नमा करके, दुख दारिद संकट हरते हैं।।१८।।
मगसिर सुदि ग्यारस में अश्विनी, नक्षत्र ‘मल्लि’ ने जन्म लिया।
निजके अतिशायी पुण्य विभव, से त्रिभुवन को भी धन्य किया।।
रुचकाद्रि देवियों ने मिलकर, प्रभु जातकर्म विधिवत् कीया।
हम वंदे भक्ति भाव करके, भक्ती से ज्ञाननिधी लीया।।१९।।
‘मुनिसुव्रत जिन’ बैशाख१ वदी, बारस तिथि में उत्तम ग्रह में।
जन्में तब इंद्र इंद्राणी ने, अभिषेक किया उस ही क्षण में।।
बस अर्ध निमिष में मेरु पर, ले जाकर जन्म न्हवन कीया।
मुझ जन्म मरण दुख मिट जावे, इस हेतू शीश नमा दीया।।२०।।
‘नमिनाथ’ आषाढ़ वदी दशमी, स्वाती सु नखत में थे जन्में।
मेरु पर एक हजार आठ कलशों से न्हवन किया सुर ने।।
क्षीरोदधि से जल क्षीर सदृश, भर लाये हाथों हाथ देव।
वंदत ही रोग शोक नशते, मैं वंदूं नितप्रति करूँ सेव।।२१।।
श्रावण सुदि छठ चित्रा नक्षत्र, में ‘नेमिनाथ’ ने जन्म लिया।
मां शिवादेवि का वंदन कर, इंद्राणी ने बहुपुण्य लिया।।
मेरु पर पांडुकवन में पांडुक, शिला उपरि प्रभु न्हवन किया।
जन्माभिषेक उत्सव करके, सुरपति ने तांडव नृत्य किया।।२२।।
‘श्रीपार्श्वप्रभू’ पौष कृष्णा, ग्यारस तिथि अनिलयोग शुभ में।
जन्में त्रिभुवन में हर्ष लहर, व्यापी सुख पाया मुनियों ने।।
चारण ऋद्धी मुनिगण जाकर, जन्माभिषेक को देखे हैं।
मैं वंदूं जन्म दिवस प्रभु का, मेरे सब संकट मेटे हैं।।२३।।
‘श्रीवीर’ चैत्र शुक्ला तेरस, तिथि में वरयोग अर्यमा में।
जन्में तब त्रिशला माता की, पूजा की इंद्र इंद्राणी ने।।
जन्माभिषेक सुरशैल शिखर पर, इंद्रों ने कर सुख पाया।
मैं वंदूं जन्म दिवस प्रभु का ‘सज्ज्ञानमती’ हितु गुण गाया।।२४।।
कुरुवंश शिरोमणि शांति कुंथु, अर जिनवर जग में मान्य हुये।
मुनिसुव्रत नेमी हरिवंशी, श्री पार्श्व उग्रकुल नाथ हुये।।
महावीर नाथवंशी बाकी, इक्ष्वाकुवंश भूषण मानें।
इन वंश नमत ही वंश चले, वंदत संतान सौख्य ठाने।।२५।