एक बालिका द्वारा मंगलाचरण रूप भजन पर नृत्य करावें। (भजन-चलो कुण्डलपुर चलना है……….)
सूत्रधार- सुनो सुनो सुनो, मेरे प्यारे भाईयों, बहनों और नन्हें मुन्ने बच्चों सुनो। आज मैं आपको एक बहुत सुन्दर दृश्य दिखाने जा रहा हूँ, क्या पूछा! क्या दिखाने जा रहा हूँ, मैं आपको दिखाऊँगा नंद्यावर्त महल, जहाँ हमारे २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने जन्म लिया था। मैं आपको दिखाऊँगा, माता त्रिशला और महाराजा सिद्धार्थ के पुत्र, भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर की भव्यता को। मैं आपको ले जाऊँगा आज से २६०० वर्ष पूर्व की कुण्डलपुर नगरी में और आज के परिपेक्ष्य में परमपूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के द्वारा किये गये विकास कार्य को भी दिखाऊँगा। क्या पूछा? बन्नी को कहाँ छोड़ आया, अरे भैय्या, मैं उसे कहाँ छोडूँगा। आयी है मेरे साथ ही आयी है। होगी यहीं कहीं आप लोग इस दृश्य को देखो मै अभी उसे ढूंढ़कर लाता हूँ, यहीं कहीं बैठी कुछ खा पी रही होगी। दिनभर कुछ न कुछ खाती रहती है, जब कुछ खाने को नहीं होता तो मेरा भेजा खाती रहती है।
(कुछ श्रावक अपना सामान बांधे कहीं जाने की तैयारियाँ कर रहे हैं। कुछ श्रावक दूसरी ओर से आते हैं)।
श्रावक १- भाई जी, जय जिनेन्द्र! कहाँ जाने की तैयारियाँ हो रही हैं।
श्रावक २- कहीं नहीं भाई! बस, बच्चों की छुट्टियाँ थीं मैंने सोचा सबको सम्मेदशिखर की यात्रा करा लाऊँ।
श्रावक ३- ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा, भाई जा रहे हो तो मेरी ओर से भगवान पार्श्र्वनाथ के चरणों में एक दीपक जला देना और कुण्डलपुर जरूर जाना।
श्रावक २- भैय्या कुण्डलपुर तो मैं कई बार गया हूँ, वहाँ एक टूटी मेज और कुर्सी के अलावा कुछ नहीं मिलता। वहाँ की स्थिति जैसी १५ साल पहले थी वैसे ही आज भी है। वहाँ कोई विकास तो होता नहीं, फिर जाने का क्या फायदा। वहाँ तो भगवान के चरणों में दीपक जलाने वाला भी कोई नहीं है।
श्रावक ३- अरे भाई! क्या तुम लोगों ने सुना नहीं कि जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी भगवान महावीर की जन्मभूमि का विकास करने कुण्डलपुर पहुँच चुकी हैं।
श्रावक १- लेकिन भाई पूज्य माताजी तो राजधानी दिल्ली में थीं, कुण्डलपुर कब पहुँची?
श्रावक ४- भाई पूज्य माताजी २० फरवरी २००२ को दिल्ली से विहार करके २९ दिसम्बर २००२ को कुण्डलपुर पहुँच चुकी हैं, उनके साथ प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी, पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर महाराज, क्षुल्लिका श्री श्रद्धामती माताजी एवं कर्मठता के जीवन्त प्रतीक कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार ‘भाई जी’ हैं और आठ दिक्कन्याओं के समान आठ बालब्रह्मचारिणी बहन जी हैं। उस संघ के पावन सानिध्य में कुण्डलपुर का विकास बहुत तेजी से चल रहा है। ७ फरवरी से १२ फरवरी २००३ तक वहाँ भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होने वाली है।
श्रावक २- अगर पूज्य ज्ञानमती माताजी कुण्डलपुर में विराजमान हैं तब तो मैं उनके दर्शन करने अवश्य जाऊँगा। अभी पर्यूषण पर्व में हमारे यहाँ पूज्य माताजी द्वारा रचित इंद्रध्वज विधान हुआ था, तब से मेरी इच्छा थी कि ऐसे महान विधान को लिखने वाली पूज्य माताजी के दर्शन करूँ।
श्रावक ३- भाई! जब तुमने कुण्डलपुर जाने का मन बना ही लिया है तो मेरा एक काम करा देना, वहाँ पर मेरे नाम से यह २६०१ रुपये की राशि दान में दे देना।
श्रावक २- जरूर कर दूँगा भाई! लेकिन एक बात नहीं समझ में आयी लोग २१००, २५०० का दान तो करते हैं पर यह २६०१…..इसका मतलब नहीं समझ में आया।
श्रावक ४- अरे भाई! हमारे शासनपति भगवान महावीर का जन्म हुए २६०१वर्ष हो गये हैं। आज से २६०१ वर्ष पूर्व इस परम पावन कुण्डलपुर नगरी में माता त्रिशला ने सोलह स्वप्न देखे थे, कुबेर ने रत्न बरसाए थे और भगवान महावीर स्वामी ने जन्म लिया था। ”
श्रावक १- समझ गया। इसीलिए तुमने २६०१ रुपये की राशि दी है। तब तो लो भैय्या! मेरी ओर से भी २६०१ रुपये दान में दे देना।
श्रावक ४- भैय्या, सच कहूँ तो यह कुण्डलपुर नगरी चतुर्थ काल की अंतिम रत्नगर्भा नगरी है क्योंकि अंतिम बार इसी नगरी में कुबेर ने रत्न बरसाए थे और प्रभू महावीर इसी कुण्डलपुर में पलने में झूले थे (विचारमग्न होता है) कितना सुन्दर रहा होगा वह दृश्य ? उसके बाद से तो अभी तक किसी तीर्थंकर का जन्म हुआ नहीं है। (यहाँ पर भगवान के पालना झूलने का दृश्य दिखावें, बीच में पालना, अगल-बगल माता त्रिशला एवं राजा सिद्धार्थ बैठे हैं, इन्द्र एवं नगरवासी पालना झुला रहे हैं एक बालिका का नृत्य, पालने के गीत पर) कौन प्रभु को पलना झुलावे, कौन सुमंगल गावे, देवियाँ झुलावें, गीत सुनावें, देव सुमन हर सावें त्रिभुवन पति जी पलना झूले, माँ त्रिशला के अंगना ओ…………. पलना, पलना, पलना मेरे महावीर झूले पलना, सन्मति वीर झूलें पलना पलना, पलना, पलना ओ………पलना, पलना, पलना मेरे महावीर झूले पलना, सन्मति वीर झूलें पलना काहे को तेरो बनो रे पालनो, काहे के लागे फुदना रत्नों का पलना, मोतियन फुदना, जगमग कर रहा अंगना ललना का मुख निरख के भूले कर, सूरज चांद निकलना ओ…….. पलना, पलना, पलना, मेरे महावीर झूलें पलना
श्रावक १- वाह भाई वाह! तुमने तो साक्षात् कुण्डलपुर के महावीर के दर्शन करा दिये, भइया एक बात पूछूँ।
श्रावक ४- हाँ, हाँ क्यों नहीं, जरूर पूछो भैया, जरूर पूछो।
श्रावक १- हमने बहुत सी किताबों में पढ़ा है और बहुत लोगों के मुख से सुना है कि महावीर भगवान के पांच नाम थे। वीर, वर्धमान, अतिवीर, सन्मति और महावीर। भगवान के इतने सारे नाम किसने रखे।
श्रावक ४- अरे भैय्या! तुमने तो बड़ी अच्छी बात पूछी एक बार मैं पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के प्रवचन सुन रहा था तब उन्होंने बताया था कि भगवान का जन्म होते ही सौधर्म इन्द्र भगवान का सुमेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करने ले गया था। तब १००८ कलशों से अभिषेक के बाद उसने दो नाम रखे थे वीर और वर्धमान।
श्रावक २- लेकिन भैय्या! कुछ क्षण पूर्व जन्मे बालक का हजारों कलशों से अभिषेक कैसे हो सकता है?
श्रावक ४- भाई! तीर्थंकर भगवान जन्म से ही अनंतबल से सहित होते हैं तभी तो इतने बड़े-बड़े हजारों कलशों से अभिषेक होता है तो वह हंसते-मुस्कुराते रहते हैं। हाँ! एक बात और याद आयी।
श्रावक ३- क्या भैय्या क्या! जरा जल्दी बताओ। तुम्हारी बातों में तो बड़ा आनंद आ रहा है, ऐसा लग रहा है कि तुमने हमें २६०० साल पहले की कुण्डलपुर नगरी मेें ही पहुँचा दिया है।
श्रावक ४- भैय्या मैं तो तुम्हें वहीं बता रहा हूँ जो मैंने अपनी कुलगुरु गणिनी शिरोमणि ज्ञानमती माताजी के श्रीमुख से सुना है। पूज्य माताजी ने भगवान के २६००वें जन्मकल्याणक में सभी भक्तों को सुमेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करने की प्रेरणा दी थी।
श्रावक ३- पूज्य माताजी की तो बात ही निराली है, जैसा नाम वैसा काम। माताजी के ज्ञान का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। अच्छा यह बताओ कि महावीर स्वामी का सन्मति नाम कैसे पड़ा?
श्रावक ४- भैय्या! तुमने बड़ा ही सुन्दर प्रश्न पूछा। यह घटना भी भगवान की जन्मभूमि कुण्डलपुर से जुड़ी है। संजय और विजय नामक चारण ऋद्धिधारी मुनियों के मन में एक शंका हुई। आकाशमार्ग से गमन करते हुए उनकी दृष्टि पालने में खेलते वीरप्रभू पर पड़ी बस उनके मन की शंका दूर हो गई उनने वीरप्रभू का नाम रखा था ‘सन्मति’।
श्रावक २- तुम तो बड़ी अच्छी-अच्छी बातें बता रहे हो भाई! अच्छा एक बात और बताओ भगवान महावीर स्वामी का महावीर नाम कैसे पड़ा?
श्रावक ४- भाई! हुआ यूँ कि एक बार बचपन में महावीर स्वामी अपने देवरूपी बाल सखाओं के साथ खेल रहे थे (विचार मग्न होता है) (यहाँ पर भगवान महावीर के बालरूप को दिखावें कि वह सखाओं के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं इतने में एक विकराल सर्प आता है बच्चे डर जाते हैं परन्तु महावीर उस सर्प के मस्तक पर चढ़कर क्रीड़ा करते हैं)।
देवसखा- हे वद्र्धमान! हम यह जानना चाहते हैं संसार में अच्छा मित्र कौन है?
वर्धमान- मित्रवर! जो पाप करने से रोके, वही इस संसार में सच्चा और अच्छा मित्र है।
देवसखा- हे वीर! इस संसार में कौन अंधा है, कौन बहरा है और कौन गूँगा?
वर्धमान- हे सखा! जो दिन-रात पापादि कार्य करता है वह अंधा, जो धर्म की बातों को न सुने वह बहरा और जो हित-मित-प्रिय-मधुर वचन नहीं बोले वह गूँगा होता है। (बालक वर्धमान की देव बालकों के साथ चर्चा चल रही है पुन: वे मित्रों के साथ बगीचे में खेलने चले जाते हैं तभी एक देव भयानक विकराल सर्प का रूप रखकर फुकारते हुए वहाँ पर पहुँचता है, जिसे देखकर सारे बच्चे बचाओ, बचाओ करते हुए भागकर इधर-उधर जाकर छिप जाते हैं लेकिन बालक वद्र्धमान वहीं तटस्थ मुस्कराते रहते हैं)।
देव बालक १-वर्धमान ! जल्दी आओ, भाग आओ इधर, नहीं तो यह सर्प तुम्हें डस लेगा।
देव बालक २-वर्धमान! तुम आ क्यों नहीं रहे हो, यह बहुत ही विषधर सर्प है यह तो तुम्हें पूरा ही निगल जाएगा। जल्दी आओ वर्धमान, इधर आओ।
देवबालक ३-हे प्रभू! अब क्या होगा! वद्र्धमान तो वहीं खड़े हैं, हट ही नहीं रहे और यह विकराल सर्प तो उन्हीं की ओर बढ़ता चला जा रहा है।
देवबालक ४-समझ में नहीं आता क्या करूँ? अगर वर्धमान को कुछ हो गया तो हम माता त्रिशला को क्या जवाब देंगे? सखाओं, देखो देखो! सर्प तो वर्धमान के बिल्कुल पास आ गया अब क्या होगा? (बालक वर्धमान अपने सखाओं की बातों को अनसुना करके मुस्कराते हुए निर्भीक खड़े रहते हैं और सर्प के ऊपर चढ़कर क्रीड़ा करने लगते हैं। यह देख सारे देव बालक वद्र्धमान की जय-जयकार करने लगते हैं और वह सर्प देव के रूप में आकर बालक वद्र्धमान के चरणों में गिर जाता है)।
संगमदेव- त्राहि माम् प्रभो त्राहि माम्! मुझे क्षमा कर दो, प्रभो मुझे क्षमा कर दो। मैं संगम नाम का देव हूँ। मैं आपकी शक्ति की परीक्षा करने के लिए आया था। मैं नासमझ था लेकिन अब मैं समझ गया हूँ आप अनंत बलशाली हैं आप वीर ही नहीं महावीर हैं। आज से मैं आपको ‘महावीर’ के नाम से अलंकृत करता हूँ। (सभी महावीर की जय-जयकार करते हैं) (चारों श्रावक फिर एकत्र होते हैं)
श्रावक ४- तो भैय्या! इस प्रकार संगम देव ने वीरप्रभू का महावीर नाम रखा था।
श्रावक १-वाह भाई वाह! तुम तो पूज्य माताजी के साथ रहकर बड़े ज्ञानी हो गये अच्छा ये बताओ। एकाएक माता जी के मन में कुण्डलपुर का विकास करने की बात कैसे आ गई?
श्रावक ४- अरे भाई! बहता हुआ जल और साधु की प्रवृत्ति एक जैसी होती है। पूज्य माताजी के मन में विचार आया कि भगवान की जन्मभूमि का विकास होना चाहिए तथा वहाँ मंदिरों के साथ-साथ उनके जन्मस्थल का प्रतीक नंद्यावर्त महल बनना चाहिए बस, चल दीं पूज्य माताजी।
श्रावक २- लेकिन कुण्डलपुर तो बिहार के नालंदा जिले में है सुना है वहाँ की स्थिति अच्छी नहीं है। क्या माताजी को बिहार जाते डर नहीं लगा।
श्रावक ४- अरे भाई! पूज्य माताजी जैन साध्वी हैं और वे साधु-साध्वी सिर्क कर्मों से डरते हैं और किसी से नहीं। समझे। फिर जहाँ माताजी के चरण पड़ जाते हैं वहाँ सब ओर सुभिक्ष और मंगल ही होता हैं।
श्रावक ३- भाई! अभी तुमने बताया कि माताजी नंद्यावर्त महल बनवाने जा रही हैं यह भला नंद्यावर्त महल क्या है?
श्रावक ४- अरे भैय्या! कुण्डलपुर की धरती पर जिस महल में भगवान महावीर ने जन्म लिया था उस महल का नाम नंद्यावर्त महल था और उसमें भगवान शांतिनाथ का चैत्यालय भी बना है। इसके अलावा वहाँ माताजी की प्रेरणा से कई विशाल-विशाल मदिर भी बन रहे हैं।
श्रावक १- अच्छा कौन-कौन से मंदिर बनेंगे कुण्डलपुर में।
श्रावक ४- कुण्डलपुर में माताजी की प्रेरणा से १०८फुट ऊँचा भगवान महावीर का मंदिर, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव मंदिर, त्रिकाल चौबीसी मंदिर और भव्य कीर्तिस्तंभ का निर्माण हो रहा है।
श्रावक २- इतने विशाल और इतने सारे मंदिर। इतने तो अपने शहर में भी नहीं है। फिर इन मंदिरों को बनाने में तो बहुत पैसा लगेगा।
श्रावक ४- भाई! माताजी की प्रेरणा है कि भगवान महावीर का जन्म हुए २६०० वर्ष हुए हैं, इसलिए हर श्रावक प्रभू के जन्म के एक-एक वर्ष में सिर्फ एक-एक रूपया दान निकाले उसी से तीर्थ का विकास होगा।
श्रावक ३- २६००-२६०० रुपये में यह निर्माण कैसे पूर्ण हो पाएगा। इतनी महंगाई है कैसे हो पायेगा, यह सब।
श्रावक ४- भाई! बूँद-बूँद से सागर बनता है फिर माताजी का कहना है कि प्रत्येक दिगम्बर जैन व्यक्ति को इस तीर्थ से जोड़ना है। भक्त होंगे तो स्वयं ही मंदिरों का निर्माण करा देेंगे।
श्रावक १- पूज्य माताजी कितना अच्छा सोचती हैं। भगवान महावीर उनके मनोरथ को अवश्य पूर्ण करेंगे। एक बात और बताओ, तुमने भगवान महावीर के चार नामों के विषय में बताया लेकिन उनका एक नाम अतिवीर भी है वह कैसे पड़ा?
श्रावक ४- यह भी एक बहुत रोचक घटना है। एक बार भगवान महावीर के ऊपर उपसर्ग हुआ था उज्जयिनी नगरी में….।
श्रावक २- महावीर स्वामी पर उपसर्ग हुआ था, ये तो मैंने कभी सुना नहीं, पार्श्वनाथ भगवान पर तो सुना था कि कमठ ने उपसर्ग किया था। पर महावीर भगवान पर किसने उपसर्ग किया?
श्रावक ४- भाई! भगवान महावीर पर स्थाणु नाम के एक रुद्र ने उपसर्ग किया था। भगवान महावीर ने दीक्षा के बाद अनेकों स्थानों पर विहार किया। एक बार विहार करते-करते वह उज्जयिनी नगरी पहुँचे। महावीर के संदेशों की गूूूँज पूरी वसुधा पर गुंजायमान हो रही थी, लोग भगवान महावीर के अनुयायी बनते जा रहे थे, यह बात उस स्थाणु रुद्र के कानों में भी पहुँचती है (विचार मग्न हो जाता है) (यहाँ पर रुद्र और रुद्राणी को दिखावें उनमें वार्तालाप होता है)
रुद्र- (विचार मग्न चिन्तित अवस्था में बैठा है)
रुद्राणी- स्वामी!स्वामी! क्या बात है स्वामी आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं?
रुद्र- हाँ देवी! मेरी चिन्ता का कारण है एक नग्न योगी, महावीर नाम है उसका।
रुद्राणी- स्वामी! एक नग्न योगी आपकी चिंता का कारण है, यह बात कुछ समझ में नहीं आयी।
रुद्र- देवी! इस नग्न योगी महावीर की ख्याति पूरे ब्रह्मांड में फैल रही है लोग जो अभी तक मेरी पूजा करते थे अब उस नग्न योगी को पूजने लगे हैं, अगर ऐसा होता रहा तो मेरा क्या होगा?
रुद्राणी- फिर तो आपने इसका कोई उपाय भी सोचा होगा स्वामी। आपने क्या सोचा है?
रुद्र- एक ही रास्ता है देवी! मुझे उस योगी की योग साधना को नष्ट करना होगा, मैं……….मैं उसकी तपस्या को भंग कर दूँगा।
रुद्राणी- स्वामी! अगर आपकी इच्छा हो तो हमें एक बार चलकर देखना चाहिए कि वह कौन सा योगी है, जिसने आपको चिन्तित कर दिया।
रुद्र- अवश्य प्रिये अवश्य! हम अभी चलकर उस योगी की साधना को देखते हैं। आओ चलें (रूद्र जाता है और ध्यान में बैठे महावीर को देखकर जोरदार अट्टहास करता है)
रुद्र- हा, हा, हा, हा, ये, ये है महावीर तुझे ही लोग वीर महावीर और वद्र्धमान कहते हैं। देखो वैâसा ढोंग रचाये बैठा है। हा, हा, हा, हा, विद्यादेवियों, कहाँ हो, प्रकट हो, प्रकट हो विद्यादेवियों प्रकट हो।
विधादेवियाँ-हम उपस्थित हैं स्वामी, हमें आज्ञा करें।
रुद्र- विधादेवियों! तुमने अनेकों बार अपने रूप कौशल से बड़े-बड़े ऋषि मुनियों की तपस्या भंग की है। आज तुम्हें इस योगी को तपस्या को भंग करना है। अपने रूप और नृत्य कौशल से इस योगी की तपस्या को भंग करो। भंग कर दो इसकी तपस्या को भंग कर दो। (विद्यादेवियाँ नाना प्रकार के नृत्य करके महावीर की तपस्या भंग करने का प्रयास करती हैं परन्तु वह सफल नहीं हो पातीं और स्तंभित हो जाती हैं यह देखकर रुद्र क्रोधित हो जाता है)
रुद्र- यह क्या विद्यादेवियाँ इस योगी को विचलित नहीं कर सकीं कोई बात नही। मैं इसके ऊपर पाषाण की वर्षा कराऊँगा। इतने पत्थर बरसाऊँगा कि यह उसके नीचे ही दब जाएगा। विद्यादेवी कहाँ हो, प्रकट हो विद्यादेवों प्रकट हो।
विद्यादेव- हम उपस्थित है स्वामी आज्ञा करें।
रुद्र- विद्यादेवों! तुम्हें इस तपस्वी की तपस्या को भंग करना है इसके ऊपर पत्थरों की वर्षा करो और तब तक करते रहो जब तक इसकी तपस्या भंग न हो जाए, भंग कर दो इसकी तपस्या को, भंग कर दो।
विद्यादेव- जो आज्ञा स्वामी। (विद्यादेव अट्टहास करते हुए महावीर पर पत्थरों की वर्षा करते हैं परन्तु अपने उपक्रम में सफल नहीं होते हैं और महावीर के तप के प्रभाव से स्वयं स्वंभित हो जाते हैं यह देखकर रुद्र का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच जाता है)
रुद्र- ये क्या हो रहा है, क्या हो रहा है यह। मेरा हर वार असफल हो जाता है। नहीं छोडूँगा मैं तुम्हें नहीं छोडूँगा, देखता हूँ। तू मेरे वारों से कब तक बचेगा। विद्यादेवों कहाँ हो, कहाँ हो विद्यादेवों प्रकट हो, प्रकट हो विद्यादेवों प्रकट हो।
विद्यादेव- हम उपस्थित हैं स्वामी। आज्ञा करें।
रुद्र- विद्यादेवों! इस तपस्वी के ऊपर जल और ओलों की वृष्टि करो। इतना जल बरसाओ कि यह उसी में डूब जाए। आलों के वार से इसे समाप्त कर दो। समाप्त कर दो इसे।
विद्यादेव- जैसी आपकी आज्ञा स्वामी। (विद्यादेव भयंकर अट्टहास करते हुए महावीर पर जल की वृष्टि करते हैं परन्तु महायोगी, महामुनि महावीर पर कोई फर्वक नहीं पड़ता जल की एक भी बूंद महावीर को स्पर्श नहीं कर पाती है अपितु विद्यादेव स्वयंमेव स्तंभित हो जाते हैं। यह देखकर रुद्र अचंभित रह जाता है)।
रुद्र – यह क्या मेरा यह वार भी खाली चला गया। नहीं, नहीं यह कोई साधारण मानव नहीं है यह महामानव हैं, इस युग के नायक हैं (महावीर के चरणों मे गिरता है) त्राहि माम् प्रभो! त्राहि माम्, मुझे क्षमा कर दें प्रभु मुझे क्षमा कर दे। आज से मैं आपको महति महावीर के नाम से अलंकृत करता हूँ। (भगवान के चरणों में नमस्कार करके तीन परिक्रमा देता है)। नमो नम: नमो नम: महावीर स्वामी नमो नम:। नमो नम:, नमो नम:, महावीर स्वामी नमो नम: पुन: ताण्डव नृत्य करके भगवान को नमस्कार करके अपनी भार्या के साथ वापस चला जाता है पुन: श्रावकों की चर्चा प्रारंभ होती है।
श्रावक ४- तो समझे भैय्या! इस प्रकार से भगवान महावीर का नाम अतिवीर पड़ा।
श्रावक ३- समझ गया भैय्या समझ गया ऐसे महावीर प्रभू की जन्मभूमि का विकास होना तो बहुत ही आवश्यक था। हम आधी रोटी खाएंगे लेकिन भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर का विकास जरूर कराएंगे।
श्रावक १- हाँ भैय्या! मेरी घरवाली कह रही थी कि मेरे पास इतने जेवर हैं एक हार काम पहनेंगे लेकिन अपने महावीर की जन्मभूमि के विकास में जरूर सहभागी बनेंगे।
श्रावक २ भाई मैं तो कहता हूँ कि ऐसे वीर प्रभू की जन्मभूमि इस वसुधा का शृंगार है, सबसे बड़ा तीर्थ है इस वीरभूमि की माटी को अपने मस्तक पर चढ़ाये बिना हमारी तीर्थ यात्रा अपूर्ण है। हमें इस वीर भूमि के विकास के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना चाहिए।
श्रावक ४- आप सब बिल्कुल ठीक कह रहे हैं भाई! पूज्य माताजी ने अभी तक बहुत से तीर्थों का विकास कराया है उन सारे विकास कार्यों को तराजू के एक पलड़े पर रखें और कुण्डलपुर विकास को दूसरे पलड़े पर तो कुण्डलपुर विकास का पलड़ा भारी होगा। क्योंकि माता जी ने यह कोई नया तीर्थ नहीं बनाया बल्कि उपेक्षित पड़े तीर्थ का विकास कराया है।
श्रावक २- तो बन्धुओं! मैं तो यात्रा पर जा ही रहा हूँ आप लोग भी मेरे साथ चलो। आप सबके साथ रहने से यात्रा का आनंद बहुत बढ़ जाएगा।
श्रावक १- हाँ हाँ क्यों नहीं, फिर कुण्डलपुर के साथ महावीर स्वामी की दिव्यदेशना भूमि राजगृही और निर्वाणभूमि पावापुररूपी तीर्थ त्रिवेणी के दर्शन भी हो जाएंगे।
श्रावक ३- ठीक है भाई तो अब हम सब एक साथ तीर्थयात्रा पर चलेंगे। हम लोग अभी घर जाकर अपनी तैयारियाँ करके आते हैं। (सभी चले जाते हैं पुन: अपने-अपने हाथों में बैग, अटैची आदि लेकर आते हैं मंच का एक-दो चक्कर लगाते हैं)।
श्रावक १- ये क्या? क्या यह वही कुण्डलपुर है। इस नगरी का तो रूपक ही बदल गया।
श्रावक २- हाँ भाई! अब लगता है कि वास्तव में यह भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर है। देखो तो कितने भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ है। मन करता है कि बस देखते ही रहें।
श्रावक ३- और यह नंद्यावर्त महल कितना सुंदर है लगता है जैसे साक्षात् वही महल है जैसा महाराजा सिद्धार्थ का रहा होगा।
श्रावक ४ भाई सचमुच! ऐसे पावन तीर्थ की वंदना करके तो मेरा मनमयूर नाच उठा है (माटी मस्तक पर लगाता है) जय हो प्रभू महावीर आपकी जय हो, कुण्डलपुर तीर्थक्षेत्र की जय हो। (सभी एक साथ मिलकर नृत्य करते हैं) । इति शुभम् ।