गणिनी आर्यिकाश्री की पवित्र जन्मभूमि टिकैतनगर का परिचय
लेखिका-ब्र. कु. इन्दू जैन
(संघस्थ-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी)
इस संसार में भूमियाँ तो अनेक हैं लेकिन पवित्र वहीं की माटी कही जाती है जहाँ पर किसी महापुरुष का जन्म होता है। न जाने कितने ही लोग इस संसार में आते और चले जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति अपने जीवन को परहित में लगा देता है, अपने सम्पूर्ण जीवन को आदर्शमयी बना देता है और संसार में कुछ विशेष कर जाता है ‘‘महापुरुष’’ वही कहलाता है और ऐसे इन महान व्यक्तियों के कार्य कलापों से वहाँ की भूमि भी आदर्शमयी, पूज्यनीय और पवित्र बन जाती है।
ऐसे सौभाग्य भी विरली ही भूमियों को मिलते हैं।
भारतवर्ष की इस पावन वसुन्धरा को सदैव से यह गौरव प्राप्त होता रहा है कि वहाँ के हर प्रदेश, हर ग्राम की माटी ने वीर पुरुषों को जन्म देकर उसकी कीर्तिपताका को दिग्दिगन्त व्यापी बनाया है।
जहाँ पुरुषों की महानता की बात आती है, वहीं इस क्षेत्र में महिलाएँ भी पीछे नहीं रही हैं। चाहे युद्ध का क्षेत्र हो, राजनीति का क्षेत्र हो, या फिर धर्म का क्षेत्र हो, महिलाओं ने अपने देश का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने में अपने कदम पीछे नहीं हटाये हैं।
इसी भारत भूमि (शस्यश्यामला भूमि) की गोद में खेलता प्रदेश ‘उत्तरप्रदेश’ है, वहाँ अयोध्या के निकटवर्ती इलाके को अवध प्रांत के नाम से जाना जाता है। इसी अवध के बाराबंकी जिले के पास एक ग्राम है ‘‘टिकैतनगर’’, जहाँ की पवित्र माटी में जन्मी एक छोटी सी बाला ने अपने कार्यों के द्वारा विश्व में एक ऐसा इतिहास बनाया है कि छोटे से ग्राम का नाम आज सम्पूर्ण विश्व में फैल गया है।
इस युग की प्रथम क्वांरी कन्या, चारित्रचन्द्रिका, युगप्रवर्तिका, आर्यिकाशिरोमणि १०५ श्री ज्ञानमती माताजी जिनका कि नाम आज कौन नहींr जानता। आज बच्चे-बच्चे के मुँह पर जिनका नाम है, ऐसी उन पूज्यनीय माता ज्ञानमती जी के जन्मस्थान ‘‘टिकैतनगर’’ का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है- अवध के हर दिल अजीज नवाब आसिपुद्दौला के बारे में एक जनश्रुति प्रचलित है ‘‘जिनको न दे मौला, उसको देआसिपुद्दौला’’।
उनका शासनकाल अट्ठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध माना जाता है, जिनके शासनकाल में अनेक ऐतिहासिक सुविख्यात इमारतों का निर्माण किया गया, जिसमें लखनऊ का इमामबाड़ा आज भी उन नवाब की वास्तुकलाविद् स्मृति को अपने अंचल में संजोये हुए है। नवाब के मंत्री थे ‘‘झाऊलाल’’ जिन्हें कि जनता ‘‘राजा दहीगाँव’’ कहकर संबोधित करती थी, यह एक सुयोग प्रशासक थे।
नवाब आसिपुद्दौला के आलावजीर थे ‘‘राजा टिकैतराय’’, जो कि नवाब की आज्ञानुसार अनेक कूपों, बावड़ियों, पुलों, राजपथों का निर्माण कराया करते थे। प्रजा भी उन्हें खूब मान-सम्मान देती थी। आप सब कहीं भी जाकर देखिए, जहाँ कि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करने लगता है और उसका नाम होने लगता है, वहीं कुछ न कुछ ईष्र्यालु लोग उसके नाम को सहन नहीं कर पाते हैं। ठीक यही उन ‘‘राजा टिकैतराय’’ के साथ हुआ।
कुछ विद्वेषी लोग उनकी प्रसिद्धि भी बर्दाश्त नहीं कर पाये और नवाब साहब के कान भरने शुरू कर दिये। उन्होंने कहा कि ये सिर्पâ हिन्दू कुएँ, पुल वगैरह बनवाते हैं, मुसलमान इससे उपेक्षित हैं अत: इन्हें रोक दिया जाये। नवाब साहब ने तुरंत निर्माण कार्य बंद करवा दिया। राजा साहब वस्तुस्थिति को समझकर शांत रह गये। कुछ दिन बाद एक बार नवाब साहब अपने परिवारजनों के साथ रियासतभ्रमण हेतु निकले।
आगे बढ़ते समय मार्ग में एक गहरे चौड़े नाले ने जब उनके बढ़ते कदम रोक लिए तब नवाब साहब को अपनी भूल का एहसास हुआ, उन्होंने अपनी भूल का परिमार्जन किया और राजा टिकैतराय को बे-रोकटोक निर्माण कराते रहने का आदेश दिया। फलस्वरूप राजा साहब ने अनेक कार्य किये। उदाहरणस्वरूप लखनऊ में टिकैतराय का तालाब, लखनऊ के पास टिकैतगंज और बाराबंकी जनपद में टिकैतनगर का निर्माण जो कि उनकी कीर्तिपताका को आज फहरा रहे हैं।
वैसे उन्होंने अपना सम्पूर्ण ध्यान इसी टिकैतनगर पर केन्द्रित किया था। इसकी रचना भी उन्होंने बड़ी कुशलतापूर्वक करवाई थी। नगर के चारों ओर तीन हाथ चौड़ी लखौड़ी ईटों की बाउन्ड्रीवाल की चूने से जुड़ाई करवाई थी।
मुख्य चौक सुन्दर, पक्का राजपथ, चारों दिशाओं में एक-एक उपचौक, आगे चारों ओर मुख्य मार्गों के प्रवेशद्वारों पर एक-एक बुलंद दरवाजा, दो छोटे दरवाजे, जिनमें लकड़ी के मजबूत किवाड़, बाहर कांटों से उभरे लगे, ऊपर नौबतखाना, ऊँची बुर्जियाँ, वंकंगूरे, ताखे बनाए गऐ थे। रात्रि में किवाड़ बंद कर दिये जाते थे।
बाउण्ड्रीवाल से लगे हुए चारों ओर निर्मल जल से भरे हुए गहरे सरोवर, जिनमें कमल, कोकाबेली खिले, पक्षी कलरव करते रहते थे। जिनके भग्नावशेष आज भी सुरक्षित हैं।
नगर को चार बार्डों में विभक्त किया गया था
जिसमें प्रामुख है-सरावगी वार्ड। उस समय राजा टिकैतराय ने नगर के अन्दर केवल वैश्य वर्ण को ससम्मान बसाया था। गाँव के चारों ओर तत्कालीन शूद्रों को बसाया गया था। टिकैतनगर से ही एक किलोमीटर की दूरी पर ‘‘कस्बा’’ ग्राम है, जहाँ पर लखनऊ के इमामबाड़ा में बनी एशिया की सबसे बड़ी बिना एक इंच लोहा के, सीमेंट और बीच में खम्भों के बगैर लम्बी-चौड़ी छत के साथ प्रसिद्ध भूलभुलैया की अनुकृति के समान छोटी भूलभुलैया बनाई।
साथ ही एक पक्के सरोवर का निर्माण भी कराया, जिसमें कुओं से जल भरवाया गया था। राजा टिकैतराय को यह स्थान परम प्रिय था। वह जब-जब टिकैतनगर आते थे, अपना अधिकांश समय वहीं पर व्यतीत करते थे। महाभारत काल में भी पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास का अधिकांश समय टिकैतनगर के समीप ही बिताया है।
कहा जाता है कि कुन्तेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर किन्तूर में बनाया है तथा धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा रोपित नन्दनवन से लाया गया पारिजात वृक्ष आज सम्पूर्ण विश्व में अकेला, अद्वितीय, विशाल, प्राचीनतम पेड़ है, जो कि समीप के ग्राम वरौलिया में लगा हुआ है। जहाँ कि सम्पूर्ण देश-विदेशों से अनेकानेक वनस्पति विज्ञानी सदैव आते रहे हैं। पर्यटन हेतु यात्री भी वहाँ आते रहते हैं। टाउन एरिया कमेटी टिकैतनगर ग्राम में ही है।
आज दिगम्बर जैन अग्रवाल समाज के लगभग १०० परिवार यहाँ बसे हुए हैं, जिनमें प्रत्येक में धार्मिक भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। यहाँ दो विशाल जिनमंदिर जी हैं, पाँच गृहचैत्यालय हैं। मुख्यमंदिर में मूलनायक सातिशय पाश्र्वप्रभु की, कृष्णवर्णी नेमिनाथ भगवान की, बाहुबली भगवान के साथ ही साथ शताधिक जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं।
साथ ही सन् २००५ में उसी नगरी की जन्मीं सम्पूर्ण विश्व का गौरव पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के संघ सानिध्य में ‘अतिशयकारी भगवान महावीर मंदिर’ का सुन्दर निर्माण हुआ है, जिसके शिखर की कलात्मकता अद्वितीय और नयनाभिराम है।
इस ग्राम का गौरव है कि इसकी
भूमि को अनेक तपस्वियों की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। इसी पवित्र भूमि को सम्पूर्ण विश्व में आलोकित करने वाली परमपूज्य गणिनी आर्यिकाशिरोमणि १०५ श्री ज्ञानमती माताजी, आर्यिका श्री १०५ रत्नमती माताजी, आर्यिका श्री १०५ अभयमती माताजी, आर्यिका श्री १०५ चन्दनामती माताजी, आर्यिका श्री १०५ सिद्धमती माताजी, क्षुल्लिका श्री १०५ विवेकमती माताजी, क्षुल्लिका श्री १०५ श्रद्धामती माताजी आदि साधुओं ने यहाँ की कीर्ति अमर की है। आज भी यहाँ से त्यागीवृंद निकल रहे हैं,
जिसमें आज से १२ वर्ष पूर्व पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा प्राप्त कर त्यागमार्ग में निकली उन्हीं के गृहास्थावस्था के भ्राता स्व. श्री प्रकाशचंद जी की सुपुत्री कु. इन्दु जैन एवं वहीं के श्रावक श्री कोमलचंद जैन की सुपुत्री कु. अलका जैन पूज्य माताजी के संघ में रहते हुए गुरु सेवा-वैयावृत्ति के साथ धार्मिक अध्ययन व धर्मप्रभावना के कार्यों में सतत संलग्न हैं और न जाने कितने त्यागी इसी टिकैतनगर से निकलेंगे।
यहाँ की समाज अत्यन्त उदार है। प्राय: अनेक तीर्थक्षेत्रों संस्थाओं के प्रतिनिधि आर्थिक सहायता हेतु यहाँ आते रहते हैं। समाज उदारतापूर्वक उन्हें भरपूर सहयोग प्रदान करती है। प्रतिदिन शताधिक नर-नारी, युवा, वृद्ध, बाल-गोपाल जिनेन्द्र देव की अभिषेक-पूजन व्रत आदिक करते रहते हैं।
श्री १०८ आचार्य देशभूषण जी महाराज ससंघ, श्री १०८ मुनि सुबलसागर जी ससंघ, श्री १०८ आचार्य विमलसागर जी महाराज ससंघ, भट्टारक श्री देवेन्द्र कीर्ति जी नागौर, परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी, आचार्य सिद्धान्तसागर महाराज एवं अनेक मुनि, आर्यिकाओं के यहाँ सुखद चातुर्मास सानंद सम्पन्न हुए हैं।
यहाँ बराबर श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान, इन्द्रध्वज विधान, शांतिविधान, ऋषिमण्डल विधान, कल्पद्रुम महामण्डल विधान आदि अत्यन्त धर्म प्रभावनापूर्वक होते रहते हैं। धर्म की अच्छी जागृति है। ऐसी पावन नगरी टिकैतनगर की भूमि को वंदन-नमन।