धातकीखण्ड द्वीप में विदेह क्षेत्र का मध्य विस्तार आठ लाख, पाँच हजार, एक सौ चौरानवे योजन है। पूर्व धातकीखण्ड व पश्चिम धातकीखण्ड में क्रम से विजयमेरु व अचलमेरु पर्वत हैं। ये मेरु तलभाग में दशहजार योजन विस्तृत है। इसके चारों तरफ भद्रसाल वन है। अत: दोनों तरफ अनुमानत: तीन-तीन लाख योजन विस्तृत देवकुरु-उत्तरकुरु भोगभूमि हैं।
इन्हीं में उत्तरकुरु में धातकीवृक्ष व देवकुरु में शाल्मलीवृक्ष हैं। वहाँ पर बहुत ही विस्तृत-अधिक जगह है। वहाँ पर इन वृक्षों के परिवारवृक्ष जम्बूद्वीप के जम्बूवृक्ष से दूने-दूने हैं। उन सभी में जिनमंदिर-जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सबको कोटि-कोटि नमन।
इस पुष्करार्धद्वीप में विदेह क्षेत्र का विस्तार चौंतीस लाख योजन से अधिक है। पूर्व-पुष्करार्ध व पश्चिम पुष्करार्ध में क्रमश: मंदरमेरु व विद्युन्माली मेरु हैं। उनके चारों तरफ भद्रसाल वन हैं। मेरु के उत्तर-दक्षिण में उत्तरकुरु व देवकुरु भोगभूमियाँ हैं। इनमें ही पुष्करवृक्ष व शाल्मली वृक्ष हैं। इनके परिवार वृक्ष भी धातकीखण्ड की अपेक्षा दूने-दूने हैं। इन सभी में जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सबको कोटि-कोटि नमन।