श्रीमन् निर्वाणप्रभू सागर, औ महासाधु विमलप्रभु हैं।
श्रीधर सुदत्त औ अमलप्रभू, उद्धर अंगिर सन्मति प्रभु हैं।।
सिंधूजिन कुसुमांजलि शिवगण, उत्साह तथा ज्ञानेश्वर हैं।
परमेश्वर विमलेश्वर यशधर, जिनकृष्ण ज्ञानमति जिनवर हैं।।१।।
प्रभु शुद्धमति श्री भद्रनाथ, अतिक्रांत शांत प्रभु तीर्थंकर।
इस भरतक्षेत्र में भूतकाल के, चौबिस जिनवर मंगलकर।।
श्री वृषभ अजित औ संभवजिन, अभिनंदन सुमति पदमप्रभ हैं।
जिनवर सुपार्श्व श्री चंद्रप्रभू, सुविधि शीतल श्रेयान जिन हैं।।२।।
श्रीवासुपूज्य औ विमलदेव, श्रीमन् अनंत प्रभु धर्मनाथ।
शांतीश्वर कुंथु अरह मल्ली, मुनिसुव्रत नमि और नेमिनाथ।।
श्री पार्श्वनाथ जिन वर्धमान, ये वर्तमान चौबीस प्रभो।
संप्रति जिनका शासन उत्तम, जयशील रहें वे वीर प्रभो।।३।।
श्री महापद्म सुरदेव तथा, सूपार्श्व स्वयंप्रभ जिनवर हैं।
सर्वात्मभूत औ देवपुत्र, कुलपुत्र उदंक सु प्रौष्ठिल हैं।।
जयकीर्ति मुनिसुव्रत अरजिन, निष्पाप तथा निष्कषाय हैं।
श्रीविपुल सु निर्मल चित्रगुप्त, श्रीमन् समाधिगुप्ताख्य कहे।।४।।
जिनराज स्वयंभू अनिवर्तक, जयनाथ विमल औ देवपाल।
जिनदेव अनंतवीर्य होंगे, ये भावी जिनवर जगत्पाल।।
इस जंबूद्वीप सुसंबंधी, भरतार्य खंड के तीर्थंकर।
ये भूतभवद् भावी उनको, मैं नमूं सदा वे मंगलकर।।५।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थत्रैकालिकचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।