णीलसमीवे सीदापुव्वतडे मंदराचलीसाणे।
उत्तरकुरुम्हि जंबूथली सपंचसयतलवासा।।६३९।।
नीलसमीपे सीतापूर्वतटे मन्दराचलैशान्यां।
उत्तरकुरौ जम्बूस्थली सपञ्चशततलव्यासा।।६३९।।
णील । नीलगिरे: समीपे सीतानद्या: पूर्वतटे मन्दराचलस्यैशान्यां दिशि उत्तरकुरौ पञ्चशतयोजनतलव्यासा जम्बूवृक्षस्थल्यस्ति ।।६३९।।
अंते दलबाहल्ला मज्झे अट्ठुदय वट्ट हेममया।
मज्झे थलिस्स पीठीमुदयतियं अट्ठबारचऊ।।६४०।।
अन्ते दलवाहल्या मध्ये अष्टोदया वृत्ता हेममया।
मध्ये स्थल्या: पीठमुदयतियं अष्टद्वादशचतु:।।६४०।।
अंते । सा च पुनरन्ते दल १/२ योजनबाहल्या मध्येष्टयोजनोदया वृत्ताकारा हेममयी स्यात् ।तत्स्थलीमध्येऽष्टयोजनोदयं द्वादशयोजनभूव्यासं चतुर्योजनमुखव्यासं पीठमस्ति ।।६४०।।
तत्थलिउवरिमभागे बाहिं बाहिं पवेढिऊण ठिया।
कंचणवलयसमाणा बारंबुजवेदिया णेया।।६४१।।
तत्स्थल्युपरिमभागे बहिर्बहि: प्रवेष्ट्य स्थिता:।
काञ्चनवलयमाना: द्वादशाम्बुजवेदिका: ज्ञेया:।।६४१।।
गाथार्थ– नील कुलाचल के समीप, सीता नदी के पूर्व तट पर सुदर्शन मेरु की ईशान दिशा में उत्तरकुरुक्षेत्र में जम्बूवृक्ष की स्थली है जिसका तलव्यास पाँच सौ योजन है ।।६३९।।
गाथार्थ :- वह स्थली अन्त में आधा योजन ऊँची,बीच में आठ योजन ऊँची , गोल आकार वाली और स्वर्णमयी है। उसके बीच में आठ योजन ऊँचा , बारह योजन भूव्यास एवं चार योजन मुखव्यास वाला एक पीठ या पीठिका है।।६४०।।
गाथार्थ :-उस स्थली के उपरिम भाग में बारह बारह एक दूसरे को वेष्टित करती हुई स्वर्ण वलय सदृश आधे योजन ऊँची और ऊँचाई के आठवें भाग प्रमाण अर्थात् १/१६ योजन चौड़ी बारह अम्बुज वेदिकाएँ हैं ।।६४१।।
तत्थलि । तत्स्थल्युपरिमभागे बहिर्बहि: प्रवेष्ट्य काञ्चनवलयसमाना: अर्ध १/२ योजनोत्सेधा: उत्सेधाष्टमव्यासा: नानारत्नसज्र्ीर्णा: अम्बुजवेदिका द्वादश ज्ञेया:।।६४१।।
चउगोउरवं वेदीबाहिरदो पढमबिदियगे सुण्णं।
तदिए सुरुत्तमाणं अट्ठदि से अट्ठसयरुक्खा।।६४२।।
चतुर्गोपुरका वेदीबाह्यत: प्रथमद्वितीयके शून्यं ।
तृतीये सुरोत्तमानां अष्टदिशासु अष्टशतवृक्षा:।।६४२।।
चउ । ता १२ वेद्यश्चतुर्गोपुरयुक्ता: बाह्यवेद्या आरभ्य प्रथमद्वितीयान्तराले शून्ये तृतीयेऽन्तराले सुरोत्तमानामष्टशतवृक्षा: १०८ अष्टसु दिशासु मिलित्वा भवन्ति।।६४२।।
तुरिए पुव्वदिसाए देवीणं चारि पंचमे दु वणं।
वावी वट्टचउरस्सादी छट्ठे हवे गयणं।।६४३।।
तुर्ये पूर्वदिशि देवीनां चत्वार: पञ्चमे दु वनं।
वाप्य: वृत्तचतुरस्रादय: षष्ठे भवेत् गगनं ।।६४३।।
तुरिए । चतुर्थान्तराले पूर्वदिशि देवीनां चत्वारो वृक्षा:, पञ्चमे त्वन्तराले वनं तत्र वृत्तचतुरस्राद्या वाप्यश्च सन्ति । षष्ठेऽन्तराले शून्यं भवेत् ।।६४३।।
चउदिससोलसहस्सं तणुरक्खे सत्तमम्हि अट्ठमगे।
ईसाणुत्तरवादे चदुस्सहस्सं समाणाणं।।६४४।।
चतुर्दिक्षु षोडशसहस्रं तनुरक्षाणां सप्तमे अष्टमके।
ऐशान्युत्तरवातासु चतु: सहस्रं समानानाम्।।६४४।।
गाथार्थ :-वे १२ वेदियां चार चार गोपुरों (दरवाजों ) से युक्त हैं। बाह्य वेदिका की ओर से प्रारम्भ करके प्रथम और द्वितीय अन्तराल में शून्य अर्थात् परिवार वृक्षादि कुछ नहीं हैं । तीसरे अन्तराल की आठों दिशाओं में उत्कृष्ट यक्षदेवों के १०८ वृक्ष हैं।।६४२।।
गाथार्थ :-चौथे अन्तराल में पूर्व दिशा में यक्षी देवाङ्गनाओं के चार जम्बूवृक्ष हैं। पाचवें अन्तराल में वन है और उन वनों में चौकोर और गोल आकारवाली बावड़ियाँ हैं । छठे अन्तराल में किसी तरह की रचना नहीं है, वहाँ शून्य है।।६४३।।
गाथार्थ :-सातवें अन्तराल की चारों दिशाओं में (प्रत्येक दिशा में चार चार हजार ) सोलह हजार वृक्ष तनुरक्षकों के हैं तथा आठवें अन्तराल में ईशान, उत्तर और वायव्य दिशाओं में सामानिक देवों के चार हजार वृक्ष हैंं।।६४४।।
चउ । सप्तमान्तराले चतुर्दिक्षु मिलित्वा षोडशसहस्राणि १६००० अङ्गरक्षकाणां वृक्षा: अष्टमेऽन्तराले ऐशान्यामुत्तरस्यां वायव्यां च दिशि चतु: सहस्राणि सामानिकानां वृक्षा: ।।६४४।।
णवमतिए जलणजमे णेरिदि अब्भंतरत्तिपरिसाणं।
बत्तीस ताल अडदालसहस्सा पायवा कमसो।।६४५।।
नवमत्रये ज्वलनयाम्ययो: नैर्ऋत्यां अभ्यन्तरत्रिपरिषदां।
द्वात्रिंंशत् चत्वारिंशत् अष्टचत्वारिंशत् सहस्राणि पादपा: क्रमश:।।६४५।।
णवम । नवमे दशमे एकादशे चान्तराले यथासंख्यं आग्नेय्यां याम्यां नैऋत्यां च दिशि अभ्यन्तरादिपरिषत्त्रयाणां द्वात्रिंशत्सहस्राणि चत्वारिंशत्सहस्राणि अष्टचत्वारिंशत् सहस्राणि च पादपा: क्रमशो भवन्ति ।।६४५।।
सेणामहत्तराणं बारसमे पच्छिमम्हि सत्तेव।
मुक्खजुदा परिवारा पउमादो पंचयज्झहिया।।६४६।।
सेनामहत्तराणां द्वादशे पश्चिमायां सप्तैव।
मुख्ययुता: परिवारा: पद्मेभ्य: पञ्चाभ्यधिका:।।६४६।।
सेणा । द्वादशेऽन्तराले पश्चिमायां दिशि सेनामहत्तराणां सप्तैव वृक्षा: मुख्यवृक्षयुता: सर्वे परिवारवृक्षा: पद्मसरसि स्थितपद्मेभ्य: पञ्चाभ्यधिका: स्यु:। चतुर्थान्तरालस्था: चत्वारो देवीवृक्षा: मुख्य एकवृक्ष: इत्येतैरभ्यधिकत्वात् १४०१२० ।।६४६।।
विशेषार्थ :-सातवें अन्तराल में चारों दिशाओं के मिलाकर कुल सोलह हजार वृक्ष उन्हीं उपर्युक्त यक्षों के अङ्गरक्षक देवों के वृक्ष हैं।
गाथार्थ :-नवमत्रये अर्थात् नौवें, दसवें और ग्यारहवें अन्तराल में आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य दिशाओं में अभ्यन्तर, मध्यम और बाह्य पारिषद देवों के क्रमश: बत्तीस हजार, चालीस हजार और अड़तालीस हजार जम्बूवृक्ष हैं।।६४५।।
विशेषार्थ :-नवम अन्तराल की आग्नेय दिशा में अभ्यन्तर पारिषद देवों के ३२००० वृक्ष, दसवें अन्तराल की दक्षिण दिशा में मध्यम पारिषद देवों के चालीस हजार वृक्ष और ग्यारहवें अन्तराल की वायव्य दिशा में बाह्य पारिषद देवों के ४८००० जम्बूवृक्ष हैं।
गाथार्थ :-बारहवें अन्तराल की पश्चिम दिशा में सेना महत्तरों के सात वृक्ष हैं। एक मुख्य वृक्ष सहित सर्व परिवार वृक्षों का प्रमाण पद्म के परिवार पद्मों के प्रमाण से पाँच अधिक हैं।।६४६।।
दलगाढवासमरगय जोयणदुगतुंग सुत्थिरक्खंधो।
पीठिय उवरिं जंबू वज्जदलडवासदीह चउसाहा।।६४७।।
दलगाढव्यासमरकत: योजनद्विकतुङ्ग: सुस्थिरस्कन्ध:।
पीठादुपरि जम्बू वङ्कादलाष्टव्यासदीर्घा: चतु: शाखा:।।६४७।।
दल। अर्ध योजनगाधस्तद्व्यासो मरकतमय: पीठादुपरि योजनद्वयोत्तुङ्ग: सुस्थिरस्कन्धो जम्बूवृक्षोऽस्ति । स्कन्धादुपरि वङ्कामय्योर्धयोजनव्यासा अष्टयोजनदीर्घाश्चतस्र:शाखा: सन्ति ।।६४७।।
णाणारयणुवसाहा पवालसुमणा मुदिंगसरिसफला।
पुढविमया दसतुंगा मज्झेग्गे छच्चदुव्वासा।।६४८।।
नानारत्नोपशाख: प्रवालसुमना: मृदङ्गसदृशफल:।
पृथ्वीमय: दशतुङ्ग: मध्येग्रे षट्चतुर्व्यास:।।६४८।।
णाणा। स च वृक्षो नानारत्नमयोपशाख: प्रवालवर्णसुमना: मृदङ्गसदृशफल: पृथ्वीमय: दशयोजनतुङ्गो मध्येग्रे यथासंख्यं षट् ६ चतु ४ र्योजनव्यास: स्यात् ।।६४८।।
विशेषार्थ :-बारहवें अन्तराल में पश्चिम दिशा में सेना महत्तरोें के सात ही जम्बूवृक्ष हैं । इस प्रकार एक मुख्य जम्बूवृक्ष से युक्त सम्पूर्ण परिवार जम्बूवृक्षों का प्रमाण पद्मद्रह में स्थित श्रीदेवी के पद्म परिवारों के प्रमाण से पाँच अधिक हैंै। यहाँ चौथे अन्तराल में चार अग्रदेवांगनाओं के चार और एक मुख्य जम्बूवृक्ष इस प्रकार पाँच अधिक हैं। इस प्रकार-१ ± १०८ ±४ ±१६००० ±४००० ±३२००० ±४०००० ± ४८००० ± ७ ·१,४०,१२० अर्थात् सम्पूर्ण जम्बूवृक्षों का प्रमाण एक लाख चालीस हजार एक सौ बीस है।
गाथार्थ :-अर्ध योजन गहरी और एक कोश चौड़ी जड़ से युक्त तथा पीठ से दो योजन ऊँचे मरकत मणिमय, सदृढ़ स्कन्ध से सहित जम्बूवृक्ष है। अपने स्कन्ध से ऊपर वङ्कामय अर्ध योजन चौड़ी और आठ योजन लम्बी उसकी चार शाखाएँ हैं।।६४७।।
विशेषार्थ :-पीठ के बहुमध्य भाग में पाद पीठ सहित मुख्य जम्बूवृक्ष है, जिसका मरकत मणिमय सुदृढ़ स्कन्ध पीठ से दो योजन ऊँचा, एक कोस चौड़ा और अर्ध योजन अवगाह (नींव) सहित है। स्कन्ध से ऊपर वङ्कामय अर्ध योजन चौड़ी और आठ योजन लम्बी उसकी चार शाखाएँ हैं।
उत्तरकुलगिरिसाहे जिणगेहो सेससाहतिदयम्हि।
आदरअणादराणां जक्खकुलुत्थाणमावासा।।६४९।।
उत्तरकुरुगिरिशाखायां जिनगेह: शेषशाखात्रितये।
आदरानादरयो: यक्षकुलोत्थयोरावासा:।।६४९।।
उत्तर । तस्य जम्बूवृक्षस्योत्तरकुलगिरिरदिग्भागस्थशाखायां जिनगेहोऽस्ति।शेषे शाखात्रये यक्षकुलोद्भवयो: आदरानादरयोरावासा: सन्ति ।।६४९।।
अथ परिवारवृक्षाणां प्रमाणां तेषां सस्वामिकत्वं चाह –
जंबूतरुदलमाणा जंबूरुक्खस्स कहिदपरिवारा।
आदरअणादराणं परिवारावासभूदा ते।।६५०।।
जम्बूतरुदलमाना जम्बूवृक्षस्य कथितपरिवारा:।
आदरानादरयो: परिवारावासभूतास्ते।।६५०।।
जंबू । जम्बूवृक्षपरिवारा जम्बूवृक्षप्रमाणार्धप्रमाणा: ते चादरानादरयो: परिवारावासभूता: ।।६५०।।
गाथार्थ :-वह जम्बूवृक्ष नाना प्रकार की रत्नमयी उपशाखाओं से युक्त, प्रवाल (मूँगा) सदृश वर्ण वाले पुष्प और मृदङ्ग सदृश फल से संयुक्त पृथ्वीकायमय है (वनस्पतिकाय नहीं) उसकी सम्पूर्ण ऊंचाई दस योजन है। मध्य भाग की इसकी चौड़ाई ६ योजन और अग्र भाग की चौड़ाई चार योजन प्रमाण है।।६४८।।
गाथार्थ :-उस जम्बूवृक्ष की जो शाखा उत्तर कुरुगत नील कुलाचल की ओर गई है, उस पर जिनमन्दिर है। अवशेष तीन शाखाओं पर यक्षकुलोत्पन्न आदर-अनादर नामक देवों के आवास हैं।।६४९।।
परिवारवृक्षों का प्रमाण और उनका स्वामित्व कहते हैं –
गाथार्थ :-जम्बूवृक्ष का जो प्रमाण कहा गया है, उसका अर्धप्रमाण परिवारजम्बूवृक्षों का कहा गया है। ये सभी परिवार जम्बूवृक्ष आदर-अनादर देवों के परिवारों के आवास स्वरूप हैं।।६५०।।
विशेषार्थ :– परिवार जम्बूवृक्षों का प्रमाण मुख्य जम्बूवृक्ष के प्रमाण का आधा है तथा परिवार जम्बूवृक्षों की जो शाखाएँ हैं उन पर आदर-अनादर यक्ष परिवारों के आवास बने हुए हैं।