१. हिमवान् आदि छह कुलाचल के क्रमशः — हमवान-शिखरी पर्वत के ११ + ११ महाहिमवान-रुक्मी के ८ + ८ निषध-नील के ९ + ९ ये २२ + १६ + १८ = ५६ हैं।
२. विदेह क्षेत्र के ३२ विजयार्ध एवं भरत-ऐरावत के २ ऐसे ३४ विजयार्ध पर्वत के ९-९ कूट ऐसे ३४ ² ९ = ३०६ हैं।
३. सोलह वक्षार पर्वत के ४ – ४ ऐसे १६ ² ४ = ६४ हैं।
४. चार गजदंत के क्रमशः—९ + ७ + ९ + ७ ऐसे = ३२ हैं।
५. सुमेरुपर्वत के नंदनवन व सौमनसवन में ९ + ९ ऐसे = १८ हैं।
६. गंगा-सिंधु आदि चौदह नदियों के १४ कूट हैं जिन पर गंगा आदि देवियों के महल की छत पर जटाजूट सहित अकृत्रिम जिनप्रतिमायें हैं उन पर ही ये गंगा आदि नदियाँ अभिषेक करते हुये जैसी गिरती हैं। ऐसे गंगा आदि १४ नदियों के · १४ हैं।
७. हिमवान आदि छह पर्वतों के ऊपर पद्म, महापद्म आदि छह सरोवरों में १३ – १३ कूट हैं। ऐसे ६ ² १३ = ७८ हैं।
८. हिमवान आदि छह पर्वतों के ऊपर पद्म, महापद्म आदि छह सरोवरों में १३ – १३ कूट हैं। ऐसे ६ ² १३ · ७८ हैं। ये सब कुल मिलाकर ५६ + ३०६ + ६४ + ३२ + १८ + १४ + ७८ · ५६८ कूट होते हैं।
विशेष—इनमें से छह कुलाचलों के एक-एक सिद्धकूट, चार गजदंत के एक-एक सिद्धकूट, सोलह वक्षार के एक-एक सिद्धकूट और चौंतीस विजयार्ध के एक-एक सिद्धकूट ऐसे—६ + ४ + १६ + ३४ = ६० ऐसे सिद्धकूटों पर जंबूद्वीप के ७८ जिनमंदिर में से ६० जिनमंदिर हैं। शेष सभी कूटों पर देवभवनों में जिनमंदिर हैं। उनकी गणना व्यंतर देवों के मंदिरों में होती है। इन्हीं ६० जिनमंदिरों में सुमेरु के १६ एवं जंबूवृक्ष-शाल्मलीवृक्ष के २ मिलाने से ७८ अकृत्रिम जिनमंदिर जंबूद्वीप के होते हैं।