तर्ज-जरा सामने तो……….
जय जय बोलो अभयमति मात की, जय जय हो इनके तप और त्याग की।
धर्मसागर व ज्ञानमति मात से, दीक्षा ले जो हुई विख्यात जी।।टेक.।।
छोटेलाल पिता एवं माता मोहिनि से जन्म लिया।
बचपन में ही त्याग भाव से अपना जीवन धन्य किया।।
ब्रह्मचर्य की महिमा अपार थी, क्वांरी कन्या ने किया गृहत्याग भी।
जय जय बोलो अभयमति मात की, जय जय हो इनके तप और त्याग की।।१।।
पक्षी पिंजरे से बाहर आकर स्वतंत्र उड़ता जैसे।
कन्या मनोवती वैसे ही निकल पड़ीं गृह पिजरे से।।
कोई शक्ती चली ना राग की, जीत होती सदा वैराग की।
जय जय बोलो अभयमति मात की, जय जय हो इनके तप और त्याग की।।२।।
मृत्यु महोत्सव के अवसर पर, श्रद्धांजली समर्पित है।
शब्दमाल ‘‘चन्दनामती’’, कर रही चरण में अर्पित है।।
मेरा वन्दन करो स्वीकार जी, पाओ शीघ्र मुक्ति का द्वार भी।।
जय जय बोलो अभयमति मात की, जय जय हो इनके तप और त्याग की।।३।।