आपकी उम्र से जुड़े हैं ये गुप्त २६ काम, जानिए ज्यादा जिएंगे या कम!
हमारे धर्म ग्रंथों में कई ऐसी बातें बताई गई हैं जो हमारे लिए किसी खजाने से कम नहीं है लेकिन ग्रंथों का अध्ययन न करने के बाद हम इन बातों से अंजान रह जाते हैं। पुरातन ग्रंथों के अनुसार मनुष्य की आयु लगभग १०० वर्ष या उससे अधिक होती थी लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य की आयु में लगातार कम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण हमारे द्वारा रोज किए जाने वाले कुछ काम हैं, जिनके कारण मनुष्यों की आयु कम होती जा रही है। महाभारत के अनुशासव पर्व में मनुष्य की आयु घटाने व बढ़ाने वाले कर्मों के बारे में विस्तार से बताया गया हैं ये बातें भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताई थी।
१. नास्तिक, क्रियाहीन, गुरु और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले तथा धर्म को न जानने वाले दुराचारी मनुष्यों की आयु कम हो जाती हैं जो मनुष्य दूसरे वर्ण (जाति या धर्म) की स्त्रियों से संपर्व रखते हैं, वे भी जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
२. क्रोधहीन, सत्य बोलने वाला, प्राणियों की हिंसा न करने वाला, सभी को एक समान रूप से देखने वाला तथा कपट नहीं करने वाले मनुष्य की आयु १०० वर्षों की होती है। प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में जागकर फिर शौच—स्नान करने के बाद प्रातरूकाल की संध्या व शाम के समय भी विधिपूर्वक संध्या करने वाले मनुष्य की आयु भी अधिक होती है।
३. जो मनुष्य तिनके तोड़ता है, नाखून चबाता है तथा हमेशा अशुद्ध व चंचल रहता है, उसकी जल्दी ही मृत्यु हो जाती है। उदय, अस्त, ग्रहण एवं दिन के समय सूर्य की ओर देखने वाला मनुष्य की मृत्यु भी अल्पायु में हो जाती है।
४. केशों को संवारना, आंखों में अंजन लगाना, दांत—मुंह धोना और देवताओं का पूजन करना—ये सभी कार्य दिन के पहले पहर में ही करना चाहिए। जो मनुष्य ये सभी कार्य समय पर नहीं करते, वे शीघ्र ही काल का शिकार हो जाते हैं।
५. मल—मूत्र की ओर देखने वाले, पैर पर पैर रखने वाले, दोनों ही पक्षों की चतुर्दशी व अष्टमी तथा अमावस्या व पूर्णिमा के दिन स्त्री समागम करने वाले मनुष्यों की मृत्यु कम उम्र में ही हो जाती है।
६. ब्राह्मण, गाय, राजा, वृद्ध, र्गिभणी स्त्री, दुर्बल और बोझ लिए हुए मनुष्य यदि सामने आ जाएं तो स्वयं पीछे हटकर उन्हें मार्ग देना चाहिए। दूसरों के पहने हुए वस्त्र व जूते नहीं पहनने चाहिए। दूसरों की निदा व चुगली नहीं करना चाहिए। किसी को व्रूरता भरी बातें न बोले। अपंग व कुरूप की हंसी नहीं उड़ाना चाहिए। जो मनुष्य इन बातों का ध्यान रखता है उसकी मृत्यु अल्पायु में नहीं होता।
७. जो मनुष्य सूर्योदय होने तक सोता है तथा ऐसा करने पर प्रायश्चित भी नहीं करता। शास्त्रों में जिन वृक्षों की दातून का उपयोग करने के लिए मना किया गया है, उनसे दातून करने वाला मनुष्य जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त होता है।
८. मैले दर्पण में मुंह देखने वाला, र्गिभणी स्त्री के साथ समागम करने वाला तथा उत्तर और पश्चिम की ओर सिरहाना करके सोने वाला, टूटी व ढ़ीली खाट पर सोने वाला, अंधेरे में पड़ी शय्या पर सोने वाला मनुष्य शीघ्र ही यमराज के दर्शन करता है।
९. उत्तर दिशा की ओर मुंह करके मल—मूत्र त्याग करना चाहिए। दातून किए बिना देवताओं की पूजा नहीं करना चाहिए। कभी भी नंगा होकर अथवा रात के समय न नहाएं। नास्तिक मनुष्यों के साथ नहीं रहना चाहिए। स्नान किए बिना चंदन न लगाएं। नहाने के बाद गीले वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। रजस्वला स्त्री के साथ बातचीत न करें। इन बातों का ध्यान रखने वाला मनुष्य १०० वर्षों तक सुख भोगता है।
१०. बोए हुए खेत में, गांव के आस—पास तथा पानी में मल—मूत्र त्याग करने वाला, परोसे हुए अन्न की िंनदा करने वाला, भोजन से पूर्व आचमन नहीं करने वाला तथा भोजन करते समय बोलने वाले मनुष्य की आयु कम हो जाती है।
११. भूसा, भस्म, बाल और मुर्दे की खोपड़ी पर कभी न बैठें। दूसरे के नहाए हुए जल का किसी भी रूप में उपयोग न करें। भोजन बैठकर ही करे। खड़े होकर पेशाब न करें। राख तथा गोशाला में भी मूत्र—त्याग न करें। भीगे पैर भोजन तो करें लेकिन सोए नहीं। उक्त सभी बातों का ध्यान में रखने वाला मनुष्य सौ वर्षों तक जीवन धारण करता है।
१२. अपवित्र अवस्था में सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्र की ओर देखने वाला, वृद्धों के आने पर खड़े होकर प्रणाम नहीं करने वाला, फूटी हुई कांसे की थाली का उपयोग करने वाला, एक ही वस्त्र पहनकर भोजन करने वाला, नंगे बदन नहाने और सोने वाला तथा अपवित्र अवस्था में सोने वाला मनुष्य की आयु जल्दी ही समाप्त हो जाती है।
१३. सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्शन नहीं करना चाहिए। जूठे मुंह पढ़ना—पढ़ाना कदापि उचित नहीं है और यदि दुर्गंध वाली हवा चले तो ऐसे में मन में भी स्वाध्याय का चितन नहीं करना चाहिए—ऐसा करने से आयु का नाश होता है।
१४. जो मनुष्य जूठे मुंह उठकर दौड़ता व स्वाध्याय करता है, यमराज उसकी आयु नष्ट कर देते हैं और उसकी संतानों को भी उससे छीन लेते हैं। जो सूर्य, अग्नि, गौ तथा ब्राह्मणों की ओर मुंह करके तथा बीच रास्ते में मूत्र त्याग करते हैं, उन सभी की आयु कम हो जाती है।
१५. गुरु के साथ कभी हठ नहीं करना चाहिए। यदि गुरु अप्रसन्न हों तो उन्हें हर तरह से मान देकर मनाकर प्रसन्न करने की चेष्ठा करनी चाहिए। गुरु प्रतिकूल बर्ताव करते हों तो भी उनके प्रति अच्छा ही बर्ताव करना उचित है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि गुरु की निंदा मनुष्यों की आयु नष्ट कर देती है।
१६. लंबी आयु चाहने वाले मनुष्य को घर से दूर जाकर पेशाब करना चाहिए, दूर ही पैर धोना चाहिए तथा जूठन भी घर से दूर ही फैकना चाहिए। लाल पूâलों की माला नहीं, सफेद फूलों की माला धारण करनी चाहिए लेकिन कमल और कुवलय लाल हों तो भी उन्हें धारण करने में कोई हर्ज नहीं है।
१७. जो मनुष्य पर्वों के दिन ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता, किसी अन्य के साथ एक ही बर्तन में भोजन करता है, जिसको रजस्वला स्त्री ने छू दिया हो तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, ऐसा अन्न खाता है, उसकी उम्र अधिक नहीं होती।
१८. अधिक उम्र चाहने वाले मनुष्य को पीपल, बड़ और गूलर के फल का तथा सन के साग का सेवन नहीं करना चाहिए। हाथ में नमक लेकर नहीं चाटना चाहिए। रात को दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए। सावधानी के साथ केवल सुबह और शाम के समय ही भोजन करना चाहिए, बीच में कुछ ही खाना उचित नहीं है। शत्रु के श्राद्ध में कभी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
१९. बूढ़े परिवार के सदस्य और गरीब मित्र को अपने घर में आश्रय देना चाहिए। परेवा, तोता और मैना आदि पक्षियों को घर में रहना मंगलकारी होता हैं उल्लू, गिद्ध और जंगली कपोत यदि घर में आ जाए तो तुरंत उसकी शांति करवानी चाहिए। क्योंकि ये अमंगलकारी होते हैं। महात्माओं की निदा करने से भी मनुष्य की आयु कम होती है।
२०. जो मनुष्य शाम के समय सोता है, पढ़ता है और भोजन करता है। रात के समय श्राद्ध करता है, नहाता है व सत्तू खाता है, भोजन के बाद बाल संवारता है। रात के समय खूब डटकर भोजन करता है, पक्षियों से हिंसा करता है। ऐसा मनुष्य अधिक उम्र तक जीवित नहीं रहता।
२१. जो कन्या किसी अंग से हीन हो अथवा अधिक अंग वाली हो, जिसका गोत्र अपगने ही समान हो तथा जो नाना के कुल में उत्पन्न हुई हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए। जिसके कुल का पता न हो, जो नीच कुल में पैदा हुई हो, जिसके शरीर का रंग पीला हो तथा जो कुष्ठ रोग वाली हो, उसके साथ विवाह करने से आयु कम होती है।
२२. पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके हजामत बनवाना चाहिए। हजामत बनवाकर बिना नहाए रहना भी आयु का हानि करने वाला है। किसी से ईष्र्या नहीं करना चाहिए। ईष्र्या करने से आयु का नाश होता है। बिना बुलाए कहीं जाना उचित नहीं है किन्तु यज्ञ देखने के लिए बिना निमंत्रण के भी जाने से कोई हर्ज नहीं हैं जहाँ अपना आदर न होता हो वहां जाने से आयु का नाश हो जाता हैं
२३. जो मनुष्य अपवित्र मनुष्यों को देखता व स्पर्श करता है, कुमारी कन्या, कुलटा या वेश्या से समागम करता है, पत्नी के साथ दिन में तथा रजस्वला अवस्था में समागम करता है, उसे शीघ्र ही यमदूत अपने साथ ले जाते हैं।
२४. भोजन करके हाथ—मुंह धोए बिना मनुष्य अपवित्र रहता है, ऐसी अवस्था में अग्नि, गौ तथा ब्राह्मण का स्पर्श करने वाले को शीघ्र ही यमदूत ले जाते हैं।
२५. पलंग पर कभी तिरछा नहीं सोना चाहिए, सदैव सीधा ही सोना चाहिए। नास्तिक मनुष्यों के साथ काम पडने पर भी नहीं जाना चाहिए। आसन को पैर से खींचकर नहीं बैठना चाहिए। स्नान किए बिना चंदन नहीं लगाना चाहिए। बार—बार मस्तक पर पानी नहीं डालना चाहिए। जो भी मनुष्य ये काम करता है, यमराज उसकी आयु छीन लेते हैं।
२६. निषिद्ध समय में कभी अध्ययन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से ज्ञान व आयु का नाश हो जाता है। मल और मूत्र का त्याग दिन में उत्तराभिमुख और रात में दक्षिणामुख होकर करने से आयु का नाश नहीं होता।