कायोत्सर्गे स्थिता चित्ते कृत्वा पञ्च नमस्कृतिम्।
तत्क्षणादेव संजाता वन्हिशान्ति: जगद्धिता२।।२०।।
अर्थ-लाटदेश के गलगोद्रह नाम के शहर में जिनदत्त सेठ था। उनकी स्त्री जिनदत्ता थी। इनके जिनमती नाम की एक लड़की थी। जिनमती का विवाह रुद्रदत्त के साथ हुआ। बहुत समय बीत गया, एक दिन दुष्ट भीलों ने शहर के किसी हिस्से में आग लगा दी। काफी लोगों ने अग्निशांति के लिए प्रार्थना की लेकिन आग जलती रही। अब धर्मवत्सला जिनमती की बारी आई उसने बड़ी भक्ति से पंचपरमेष्ठियों के चरण-कमलों को अपने हृदय में विराजमान किया, अर्घ्य चढ़ाया और कायोत्सर्ग ध्यान द्वारा पंचनमस्कार मंत्र का चिंतवन करने लगी। इसकी अचल श्रद्धा और भक्ति देखकर शासन देवी प्रसन्न हुई। उसने तब उसी समय आकर उस भयंकर आग को बुझा दिया।