महाधिकारा श्चत्वार:, श्रुतस्कंधस्य वर्णिता:। तेषामाद्योनुयोगोडयं: सतां सच्चरिताश्रय:।।२।।९८।।
द्वितीय: करणादि: स्यादनुयोग: सयत्रवै। त्रैलोक्यक्षेत्र संख्यानं कुल पत्रेधिरोपितम् ।।९९।।
चरणादि स्तृतीय:, स्यादनुयोगो जिनोदित: यत्रचर्या विधानस्य, पराशुद्धि रुदाहृता।।१००।।
तुर्यो द्रव्यानुयोगस्तु, द्रव्याणां यत्र निर्णय:। प्रमाणनय निक्षेपैं: सदाद्यैश्च किमादिभि:।।१०१।
मूलाचार के समय अधिकार में कहा है धीरो वइरग्गपरो थोवं पिय
सिक्खिउण सिज्झंदि णय सिज्झदि बेरग्ग विहीणों पडिदूण सत्थाई।।३।।