जिनशासन (आगम) में सिर्फ दो ही बातें बताई गई हैं—मार्ग और मार्ग का फल। जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं। तं सव्वजीवसरणं, णंद्दु जिणसासणं सुइरं।।
अनंत संसार—सागर को पार करने के लिए जीव जिसमें लीन होते हैं, जो सभी जीवों के लिए शरण है, ऐसा जिनशासन सदैव समृद्ध रहे। य: पश्यति आत्मानमबद्धस्पृष्टमनन्यमविशेषम्। अपदेशसूत्रमध्यं, पश्यति जिनशासनं सर्वम्।।
आत्मा को शरीर व कर्म से अतीव, अनन्य, विशेष से रहित और प्रारंभ—मध्य—अंत से रहित देखता है, वही सम्पूर्ण जिनशासन को देखता है।