जिनेश्वर के वचन रसायन औषधि रूप हैं,ये महान भाग्य से मिलते हैं “इनको कर्णयुगलरूपी अंजुलियों से पीने वाला कौन
भव्य विषय रूप विष की तीव्र प्यास को दूर करके अजर तथा अमर पदवी को नहीं प्राप्त करता है”वर्धमान चरित
अर्थ- आप्त, आगम तथा तत्वों का श्रद्धान करने से सम्यक्त्व होता है ” सम्पूर्ण दोषों से विमुक्त तथा सम्पूर्ण गुण रूप आप्त होता है ” राग, द्वेष, मोह, क्षुधा, तृष्णा, जरा, मृत्यु आदि अष्टादश दोष रहित भगवान आप्त हैं ” नियमसार-कुंदकुंद स्वामी कृत
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