अपार करुणाकरो जीवन्धरो बहुप्रयत्नैरपि प्रत्युज्जीवयितुमशक्नुवान: परलोकसमर्थापनपरतन्त्रं पञ्चमंत्र-मुपादिक्षत्।
जीवन्धरो बहुप्रयत्नैरपि प्रत्युज्जीवयितुमशक्रुवान :।
परलोकसमर्थापनपरतन्त्रं पञ्चमंत्र मुपादिक्षत्।।
श्रवसा परमं मन्त्रं मनसा हन्त मा स्पृशन्।
कुक्कुरो विजहौ प्राणान्दुःखलेशविवर्जितः।।१२।।
चंद्रोदयाह्वयगिरौ विमलोपपाद-
शय्यातले रुचिरवैक्रियिकाख्यदेहे।
स्रग्वी सदंशुकधरो नवयौवनश्रीः
प्रादुर्बभूव स सुदर्शननामयक्षः।।१३।।
अर्थ–अपार दया के सागर जीवंधर स्वामी बहुत प्रयत्न करने पर भी जब उस कुत्ते को जीवित रखने के लिए समर्थ नहीं हो सके तब उन्होंने उसे परलोक की प्राप्ति कराने में समर्थ पञ्च नमस्कार मंत्र का उपदेश दिया।
वह कुत्ता यद्यपि उस मंत्र का कान से ही स्पर्श कर सका था, मन से नहीं, तो भी उसका कुछ क्लेश कम हो गया और मंत्र सुनते–सुनते ही उसने प्राण छोड़ दिए।।१२।।
इसी मध्यलोक में एक चंद्रोदय नाम का पर्वत है। वहाँ निर्मल उपपाद शय्या पर सुंदर वैक्रियिक शरीर लेकर वह कुत्ता सुदर्शन नाम का यक्ष उत्पन्न हुआ। जन्म से ही उसके शरीर पर मालाएँ पड़ी थीं, वह उत्तम वस्त्र को धारण करने वाला था और नवयौवन की लक्ष्मी से उसका शरीर समुद्भासित था।।१३।।