जीवदया पर लिखे गए इस उपन्यास में मृगसेन धीवर द्वारा ली गयी छोटी सी प्रतिज्ञा उसे अगले भव में पांच बार जीवनरक्षा में सहकारी होती है | यह उपन्यास इस घटना को बहुत ही सरल भाषा में प्रदर्शित करता है | इस पुस्तक पर श्रीमती राजरानी जैन , मोरीगेट – दिल्ली ने अँग्रेजी अनुवाद किया है , जिसका प्रथम संस्करण वीर निर्वाण संवत २५१० , १६ मार्च १९८४ में छप चुका है |