ग्राम कैलोद करताल इन्दौर जिले की इन्दौर तहसील में स्थित है। २२०—३८० अक्षांस व ७५०—५२० पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित हैं, समुद्र की सतह से ऊँचाई २३४५ फीट है। इस ग्राम के पूर्व बस्ती जूना कैलोद करताल है। कहा जाता है यहाँ पहले कैलोद करताल गाँव था जो बिलावली तालाब के निर्माण के निर्माण के बाद इस स्थान से स्थानन्तरित कर दिया गया। यह तेजाजी नगर (खंडवा रोड़) से आधा कि.मी. दूरी पर व बिलावली तालाब की बाहरी सीमा पर स्थित है। यहाँ स्थित टीले पर मुगल—मराठा कालीन मृदभाण्ड, गन्ने का रस निकालने का कोल्हू अनुमान मन्दिर है जिसमें हनुमान की प्रतिज्ञा दो शिवलिंग युक्त जलाधारी एवं नन्दी प्रतिमा है। मंदिर के समाने मराठा कालीन जैन मन्दिर है, यहाँ खण्डहरों से प्राप्त प्रतिमाएँ हनुमान मन्दिर के बायें पाश्र्व मेंं, हनुमान मन्दिर के पास पीपल के वृक्ष के नीचे एवं सती के चबूतरे के पीछे रखी हैं जिनमेंसे जैन प्रतिमाओं का विवरण निम्न प्रकार है—
आदिनाथ प्रतिमा पादपीठ
यह प्रतिमा हनुमान मंदिर के वायें पाश्र्व में रखी है। तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा के पादपीठ पर विपरीत दिशा में मुख किये दोनों ओर सिंह एवं गजों का अंकन है। मध्य में चक्र का आलेख है। पादपीठ के नीचे के भाग में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का ध्वज लांछन नन्दी (वृषभ) का अंकन है। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित ८५ ²४४²३६ सें.मी. आकार की प्रतिमा लगभग १२ वीं शती ईस्वी की हैं।
तीर्थंकर
यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के पास पीपल वृक्ष के नीचे रखी है। लांछन मुद्रा में बैठे तीर्थंकर सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्ण चाप, अलंकृत प्रभामंडप एवं श्रीवत्स से अलंकृत है। वितान में मालाधारी विद्यााधर अंकित हैं, विद्याधर केश, कुण्डल, दोवली हार व वलय आदि आभूषण धारण किये हुए हैं। पादपीठ पर दोनों ओर चंवरधारी खड़े हैं जो एक हाथ में चंवर एवं एक हाथ में कटयावलम्बित है। चंवरधारी करण्ड मुकुट, कुण्डल, दोवलीहार, यज्ञोपवीत, वलय, व मेखला धारणा किये हैं। बलुआ पत्थर पर निर्मित ७१²४६²३३ मी. आकार की प्रतिमा लगभग १२ वीं शती ई.की प्रतीत होती है।
तीर्थंकर
यह प्रतिमा सती के चबूतरे के पीछे रखी है। लांछन विहीन तीर्थंकर पद्मासन में हुर्इं प्रतिमा दो खण्डों में है। तीर्थंकर के सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्ण चाप, वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। वितान में मकर तोरण का अंकन है। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित ५६²२५²२६ से.मी.आकार की प्रतिमा लगभग १४ वीं शती ई. की प्रतीत होती हैै।
तीर्थंकर का उध्र्वभाग—यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के पास पीतल के पेड़ के नीचे रखी है। तीर्थंकर प्रतिमा के उध्र्वभाग में तीर्थंकर का कमर से ऊपर का भाग है। तीर्थंकर के सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप एव श्रीवत्स का अंकन है। वितान में कीर्तिमुख एवं मकर तोरण का अंकन सुन्दर है, बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित ५५²३५²२५ से.मी. आकार की प्रतिमा लगभग १३ वीं शती ई. की है।
जैन प्रतिमा वितान— यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के पास पीपल के वृक्ष के नीचे रखी है। जैन प्रतिमा वितान है। जिसमें त्रिछत्र, दुन्दुभिक अंकित हैं दोनों और पदमासन की ध्यानस्थ मुद्रा में दो—दो जिन प्रतिमा अंकित है। जो मुकुट, कुण्डल, आदि आभूषण से अलंकृत हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित ५१ ² ४२ ² २७ से.मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग १३ वीं शती ई.की प्रतीत होती है।
जैन प्रतिमा वितान— यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के सामने रखी है। जैन प्रतिमा का वितान त्रिछत्र, दुन्दुभिक अंकित हैं। दायें ओर गजारोही अभिषेक करते हुए प्रदर्शित हैं। दुन्दुभिक व अश् वारोही केश, कुण्डल, हार व बलय आदि से अलंकृत हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित ५१² ४२ ² २७ से.मी.आकार की यह प्रतिमा लगभग १३ वीं शती ई. की प्रतीत होती है।
गोमुख यक्ष— == यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के सामने रखी है। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के शासन यक्ष गोमुख बैठे हुए हैं। गोमुख की बांयी भुजा अभय मुद्रा में बायीं भुजा के मोदक जैसी गोल वस्तु है। गोमुखी यक्ष करण्ड मुकुट, हार यज्ञापवीत, मेखला व नूपर धारण किये हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित २९²४६²२३ से. मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग १३ वीं शती ई. की प्रतीत होती है। उपरोक्त प्रतिमाओं के विवरण से स्पष्ट होता है कि यद्यपि से प्रतिमा कम संख्या में हैं तथापि परमार कालीन क्षेत्रीय मूर्तिकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
सिंग्रहाध्यक्ष— केन्द्रीय संग्रहालय ए.बी. रोड़, इन्दौर—४५२००१