णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
प्रश्न १ -णमोकार मंत्र को किसने बनाया ?
उत्तर -णमोकार मंत्र अनादिनिधन मंत्र है, इसे किसी ने नहीं बनाया है।
प्रश्न २ -णमोकार मंत्र में किनको नमस्कार किया गया है ?
उत्तर -पाँच परमेष्ठियों-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार किया गया है।
प्रश्न ३ -णमोकार मंत्र में कितने पद, कितने अक्षर एवं कितनी मात्राएँ हैं ?
उत्तर -णमोकार मंत्र में ५ पद, ३५ अक्षर एवं ५८ मात्राएँ हैं।
प्रश्न ४ -णमोकार मंत्र किस छंद में है ?
उत्तर -आर्या छन्द में।
प्रश्न ५ -णमोकार मंत्र से कितने अन्य मंत्रों की उत्पत्ति हुई है ?
उत्तर -८४ लाख मंत्रोें की उत्पत्ति णमोकार मंत्र से हुई है।
प्रश्न ६ -मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र किसने सुनाया था ?
उत्तर -जीवन्धर कुमार ने।
प्रश्न ७ -णमोकार मंत्र का अपमान किस राजा ने किया था ?
उत्तर -सुभौम चक्रवर्ती ने।
प्रश्न ८ -मंत्र के अपमान से उसे कौन सी गति प्राप्त हुई ?
उत्तर -नरक गति।
प्रश्न ९ -भगवान ऋषभदेव का जन्म किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर -चैत्र कृष्णा नवमी तिथि को अयोध्या नगरी में ऋषभदेव का जन्म हुआ था।
प्रश्न १० -भगवान ऋषभदेव के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर -मरुदेवी माता थीं और नाभिराय पिता थे।
प्रश्न ११ -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्र-पुत्रियाँ थीं ?
उत्तर -१०१ पुत्र और २ पुत्रियाँ थीं।
प्रश्न १२ -उनके किस पुत्र ने सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया था ?
उत्तर -अनन्तवीर्य ने।
प्रश्न १३ -भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर कौन थे ?
उत्तर -उनके पुत्र वृषभसेन ही उनके प्रथम गणधर थे।
प्रश्न १४ -भगवान ऋषभदेव ने कितने वर्ष तपस्या की थी ?
उत्तर -एक हजार वर्ष तक।
प्रश्न १५ -उनकी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी ने आर्यिका दीक्षा क्यों ली थी ?
उत्तर -अगले भव में स्त्री पर्याय को समाप्त करने हेतु तथा परम्परा से मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा से तीव्र वैराग्य भाव धारण कर उन कन्याओं ने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। आगम में कहीं ऐसा वर्णन नहीं आता है कि उनके पिता को उनके सास-ससुर के समक्ष सिर झुकाना पड़ता, इसलिए उन कन्याओं ने दीक्षा ले ली थी। तीर्थंकर तो जन्म से लेकर दीक्षा ग्रहण करने तक कभी भी सिद्धों के अतिरिक्त किसी मुनि को, माता-पिता आदि को भी नमस्कार नहीं करते हैं।
प्रश्न १६ -भगवान ऋषभदेव को प्रथम आहार कितने दिन के उपवास के बाद प्राप्त हुआ था ?
उत्तर -एक वर्ष ३९ दिनों के उपवास के पश्चात्।
प्रश्न १७ -कहाँ और किसने उन्हें प्रथम बार आहार में क्या दिया था ?
उत्तर -हस्तिनापुरी में राजा श्रेयांस ने उन्हें प्रथम बार इक्षुरस का आहार दिया था।
प्रश्न १८ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण में कितने गणधर थे ?
उत्तर -चौरासी गणधर थे।
प्रश्न १९ -उनके प्रमुख गणधर कौन थे ?
उत्तर -‘‘वृषभसेन’’ नाम के उनके पुत्र ने समवसरण में प्रथम दीक्षा लेकर प्रमुख गणधर का पद प्राप्त किया था।
प्रश्न २० -ऋषभदेव के समवसरण में प्रमुख श्रोता कौन थे ?
उत्तर -ऋषभदेव के बड़े पुत्र सम्राट् भरत ही उनके समवसरण में प्रमुख श्रोता थे।
प्रश्न २१ -ऋषभदेव के समवसरण की प्रमुख गणिनी आर्यिका माताजी का क्या नाम था ?
उत्तर -गणिनी आर्यिका ब्राह्मी माताजी, जो कि ऋषभदेव की ही पुत्री थीं।
प्रश्न २२ -क्या हुण्डावसर्पिणीकाल के दोषवश तीर्थंकर ऋषभदेव के ब्राह्मी-सुन्दरी पुत्रियाँ हुई थीं ?
उत्तर -नहीं,ऐसा कहीं दिगम्बर जैन आगम में कथन नहीं आता है। वैसे कन्या एक रत्न मानी गई है इसलिए तीर्थंकर की पत्नी को उन्हें जन्म देने में कोई विरोध नहीं है।
प्रश्न २३ -भगवान ऋषभदेव को कितने वर्ष की तपस्या के बाद केवलज्ञान प्राप्त हुआ था ?
उत्तर -एक हजार वर्ष तक तपस्या करने के बाद भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
प्रश्न २४ -भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर -फाल्गुन कृष्णा एकादशी तिथि को ‘‘पुरिमतालपुर’’ नगर के उद्यान में भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
प्रश्न २५ -भगवान ऋषभदेव के शरीर का वर्ण वैâसा था ?
उत्तर -स्वर्ण वर्ण का था।
प्रश्न २६ -उनके शरीर की अवगाहना कितनी थी ?
उत्तर -५०० धनुष अर्थात् दो हजार हाथ।
प्रश्न २७ -भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति किस तिथि में कहाँ से हुई थी ?
उत्तर -माघ कृष्णा चतुर्दशी को वैâलाश पर्वत से भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति हुई थी।
प्रश्न २८ -भगवान की दिव्यध्वनि कितनी भाषाओं में खिरती थी ?
उत्तर -सात सौ अठारह भाषाओं में।
प्रश्न २९ -इस युग के प्रथम मोक्षगामी कौन हुए हैं ?
उत्तर -भगवान ऋषभदेव के पुत्र अनन्तवीर्य।
प्रश्न ३० -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्रों ने उसी भव से दीक्षा लेकर मोक्षपद प्राप्त किया था ?
उत्तर -उनके समस्त (१०१) पुत्रों ने दीक्षा लेकर उसी भव से मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न ३१ -अयोध्या में कौन-कौन से तीर्थंकरों ने जन्म लिया है ?
उत्तर -भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ इन पाँच तीर्थंकरों ने अयोध्या में जन्म लिया है।
प्रश्न ३२ -अयोध्या में महामस्तकाभिषेक महोत्सव कब सम्पन्न हुआ है ?
उत्तर -२४ फरवरी १९९४, माघ सुदी तेरस को।
प्रश्न ३३ -अयोध्या में तीन चौबीसी मंदिर किस सन् में बना है ?
उत्तर -२३ फरवरी १९९४।
प्रश्न ३४ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण का श्रीविहार देश में किस उद्देश्य से किया गया था ?
उत्तर -जैनधर्म की प्राचीनता, पारस्परिक मैत्रीभाव का प्रचार करने एवं पर्यावरण को शुद्ध करने के उद्देश्य से ‘‘ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार’’ रथ का प्रवर्तन किया गया।
प्रश्न ३५ -पहले तीर्थंकर का नाम बताओ ?
उत्तर -तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी।
प्रश्न ३६ -अयोध्या में अन्य किन महापुरुष का जन्म हुआ था ?
उत्तर -मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का।
प्रश्न ३७ -श्री रामचन्द्र का जन्म किस दिन हुआ था ?
उत्तर -चैत्र शुक्ला नवमी तिथि को।
प्रश्न ३८ -उस तिथि को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर -उस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न ३९ -भगवान नेमिनाथ कहाँ से मोक्ष गये हैं ?
उत्तर -गिरनार पर्वत से।
प्रश्न ४० -भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर -बिहार प्रान्त के कुण्डलपुर नगर में (वर्तमान में नालन्दा जिले में है)।
प्रश्न ४१ -भगवान महावीर का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर -ईसा से ६०० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को।
प्रश्न ४२ -उनकी माता का नाम क्या था ?
उत्तर -महारानी त्रिशला देवी।
प्रश्न ४३ -उनके पिता का नाम बताओ ?
उत्तर -महाराजा सिद्धार्थ।
प्रश्न ४४ -महावीर के बाबा का नाम क्या था ?
उत्तर -महाराज सर्वार्थ।
प्रश्न ४५ -महावीर स्वामी के कितने नाम प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर -पाँच-वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान।
प्रश्न ४६ -प्रभु महावीर की वीरता की पहली परीक्षा किसने ली थी ?
उत्तर -संगम देव ने सर्प बनकर परीक्षा ली थी।
प्रश्न ४७ -भगवान महावीर ने मोक्ष कहाँ प्राप्त किया था ?
उत्तर -बिहार प्रांत की पावापुरी नगरी में।
प्रश्न ४८ -महावीर स्वामी की आयु कुल कितने वर्ष की थी ?
उत्तर -७२ वर्ष।
प्रश्न ४९ -भगवान महावीर का चिन्ह क्या है ?
उत्तर -शेर।
प्रश्न ५० -महावीर स्वामी के एक विशेष आहार के समय किसकी बेड़ियां टूटी थीं ?
उत्तर -महासती चन्दना की।
प्रश्न ५१ -चंदना का महावीर से क्या संबंध था ?
उत्तर -चन्दना महावीर स्वामी की सबसे छोटी मौसी थीं।
प्रश्न ५२ -महावीर की निर्वाण तिथि क्या है ?
उत्तर -कार्तिक कृष्णा अमावस।
प्रश्न ५३ -महावीर के नाम पर सरकारी छुट्टी कब होती है ?
उत्तर -महावीर जयन्ती को, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर भगवान के जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह छुट्टी होती है।
प्रश्न ५४ -भगवान महावीर को प्रथम आहार किसने दिया था ?
उत्तर -राजा कूल ने।
प्रश्न ५५ -भगवान महावीर स्वामी ने कितने वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी ?
उत्तर -३० वर्ष की आयु में।
प्रश्न ५६ -महावीर भगवान का विवाह हुआ था या नहीं ?
उत्तर -नहीं। वे बालब्रह्मचारी थे।
प्रश्न ५७ -भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के बाद उनकी दिव्यध्वनि कितने दिनों बाद खिरी थी ?
उत्तर -६६ दिन बाद श्रावण बदी एकम् को उनकी दिव्यध्वनि खिरी थी।
प्रश्न ५८ -माता त्रिशला किनकी पुत्री थीं ?
उत्तर -वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थीं।
प्रश्न ५९ -तीर्थंकर महावीर के समवसरण में प्रमुख गणधर एवं गणिनी कौन थीं ?
उत्तर -गौतम गणधर थे एवं चंदना गणिनी थीं।
प्रश्न ६० -गौतम गणधर को केवलज्ञान कब हुआ था ?
उत्तर -जिस दिन अर्थात् कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रात: भगवान महावीर को मोक्ष हुआ, उसी दिन सायंकाल गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ।
प्रश्न ६१ -गौतम को दीक्षा लेते ही कितने ज्ञान उत्पन्न हुए थे ?
उत्तर -४ ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्ययज्ञान।
प्रश्न ६२ -भगवान महावीर का निर्वाण कहाँ हुआ था ?
उत्तर -पावापुरी में।
प्रश्न ६३ -क्या वैशाली में महावीर का जन्म हुआ था ?
उत्तर -नहीं।
प्रश्न ६४ -राजा श्रेणिक ने महावीर स्वामी की भक्ति कितने वर्ष की ?
उत्तर -३० वर्ष तक।
प्रश्न ६५ -दीपावली पर्व क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर -क्योंकि उस दिन भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण पद प्राप्त किया था।
प्रश्न ६६ -रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ?
उत्तर -हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है।
प्रश्न ६७ -यह पर्व किसकी स्मृति से चला ?
उत्तर -सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है।
प्रश्न ६८ -वे सात सौ मुनि किस संघ के थे ?
उत्तर -श्री अकम्पनाचार्य नाम के आचार्यश्री के संघ में ७०० मुनिराज थे।
प्रश्न ६९ -उनके ऊपर अग्नि उपसर्ग किसने किया था ?
उत्तर -‘‘बलि’’ नाम के मंत्री ने छलपूर्वक राजा से वरदान के रूप में ७ दिन का राज्य मांगकर उन मुनियों को मारने के उद्देश्य से उपसर्ग किया था।
प्रश्न ७० -कौन से राजा का राज्य बलि ने मांगा था ?
उत्तर -हस्तिनापुर के राजा पद्म से उनके पूर्वकृत उपकार के बदले में राज्य मांगा था।
प्रश्न ७१ -बलि ने उन निरपराधी मुनियों पर उपसर्ग क्यों किया था ?
उत्तर -धर्म विद्वेष के कारण।
प्रश्न ७२ -उनके उपसर्ग को किसने दूर किया था ?
उत्तर -विष्णुकुमार महामुनिराज ने विक्रियाऋद्धि के प्रयोग से उस उपसर्ग को दूर किया।
प्रश्न ७३ -इसका संक्षिप्त कथानक क्या है ?
उत्तर -एक बार हस्तिनापुर के उद्यान में अकम्पनाचार्य मुनिराज ने अपने ७०० मुनियों के साथ चातुर्मास स्थापित कर लिया। वहाँ के राजा पद्म अत्यन्त धर्मप्रेमी थे किन्तु उसका मंत्री बलि बहुत ही दुष्ट तथा जिनधर्म विद्वेषी था। उसने पूर्व में कभी राजा पद्म को युद्ध में सहायता प्रदान करने के बदले में राजा के द्वारा दिये गये वरदान को धरोहर में रखा हुआ था अत: राजा को याद दिलाकर उसने ७ दिन का राज्य वरदान में मांगकर उन सात सौ मुनियों को कांटों की बाड़ में घेरकर अग्नि उपसर्ग किया जिससे प्रजा में त्राहिमाम् मच गया। पुन: विष्णुकुमार मुनिराज ने उज्जैनी नगरी से हस्तिनापुर आकर अपनी विक्रिया ऋद्धि से उनका उपसर्ग दूर किया और वात्सल्य अंग का परिचय दिया।
इसी वात्सल्य अंग के प्रतीक में यह रक्षाबंधन पर्व सारे देश में मनाया जाता हैै।
प्रश्न ७४ -रक्षाबंधन पर्व के दिन हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर -उस दिन जैन साधु-साध्वियों को आहार देकर आपस में रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहिए और उस दिन श्रेयांसनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक है सो निर्वाणलाडू भी चढ़ाना चाहिए।
प्रश्न ७५ -क्या रक्षाबंधन के दिन केवल बहनों को ही भाइयों के राखी बांधने का नियम है ?
उत्तर -ऐसा कुछ भी नहीं है, यह तो व्यवहार में प्रचलित हो गया है। उस दिन तो सभी नर-नारियों को परस्पर में रक्षासूत्र बांधकर धर्म एवं धर्मायतनों की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए, यही रक्षाबंधन पर्व का तात्पर्य है।
प्रश्न ७६ -नंदीश्वर द्वीप किस लोक में है ?
उत्तर -मध्यलोक में आठवें द्वीप का नाम नंदीश्वर द्वीप है।
प्रश्न ७७ -नंदीश्वर द्वीप में कितने चैत्यालय हैं ?
उत्तर -बावन चैत्यालय हैं।
प्रश्न ७८ -उन बावन जिनालयों की व्यवस्था किस प्रकार है ?
उत्तर -नंदीश्वर द्वीप में चारों दिशाओं में १३-१३ जिनालय होने से १३²४·५२ हो जाते हैं।
प्रश्न ७९ -नंदीश्वर द्वीप में नवदेवताओं में से कितने देवता होते हैं ?
उत्तर -वहाँ जिनचैत्य और चैत्यालय ये मात्र दो देवता रहते हैं।
प्रश्न ८० -नंदीश्वर द्वीप में चारों निकाय के देव कब-कब जाते हैं ?
उत्तर -यूँ तो देवतागण अपनी इच्छानुसार इस द्वीप के दर्शन करने प्राय: जाया करते हैं फिर भी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के आष्टान्हिका पर्व में चारों निकाय के देव नंदीश्वर द्वीप में जाकर आठों दिन तक अखण्ड पूजन करते हैं।
प्रश्न ८१ -नंदीश्वर द्वीप में जो प्रतिमाएँ विराजमान हैं वे अरहंतों की होती हैं या सिद्धोें की ?
उत्तर -वहाँ अनादिनिधन प्रतिमाएँ विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्वयंसिद्ध प्रतिमाएँ कहते हैं।
प्रश्न ८२ -नंदीश्वर द्वीप में दिन और रात कितने घंटे के होते हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर द्वीप में दिन और रात का भेद नहीं होता है।
प्रश्न ८३ -इस द्वीप का निर्माण कब और किनके द्वारा हुआ है ?
उत्तर -यह द्वीप अकृत्रिम और अनादिनिधन है इसे न किसी ने बनवाया है और न कोई नष्ट कर सकता है। हाँ, आज इसकी प्रतिकृतिरूप कृत्रिम नंदीश्वर द्वीप की रचनाएँ अनेक तीर्थों एवं नगरों में बनी हुई हैं।
प्रश्न ८४ -क्या ऋद्धिधारी मुनि भी इस द्वीप में नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर -नहीं, वहाँ ऋद्धिधारी या केवली आदि भी नहीं जा सकते हैं क्योंकि ढाई द्वीप के आगे कोई भी मनुष्य जा ही नहीं सकते हैं।
प्रश्न ८५ -तब उस द्वीप में कौन से प्राणी रहते हैं ?
उत्तर -केवल एकेन्द्रिय जलकायिक आदि पंच स्थावर जीव ही वहाँ रहते हैं तथा जघन्य भोगभूमि की व्यवस्थानुसार वहाँ भोगभूमियाँ तिर्यंच जीव रहते हैं ऐसा तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में वर्णन है।
प्रश्न ८६ -नंदीश्वर द्वीप में अंजनगिरि कितने हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में ११ अंजनगिरि हैं। जिनका रंग काला है और उन पर्वतों पर ११ चैत्यालय बने हुए हैं।
प्रश्न ८७ -नंदीश्वर द्वीप में बावड़ियाँ कितनी हैं ?
उत्तर -वहाँ एक-एक दिशा में ४-४ बावड़ियाँ हैं अत: चारों दिशा संबंधी १६ बावड़ियाँ हो जाती हैं।
प्रश्न ८८ -नंदीश्वर द्वीप में दधिमुख पर्वत कितने हैं ?
उत्तर -बावड़ियों के बीच में १६ दधिमुख पर्वत हैं, जो सफेद वर्ण के हैं और उन सभी पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हैं।
प्रश्न ८९ -नंदीश्वर द्वीप में रतिकर पर्वत कितने हैं ?
उत्तर -नंदीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में ८-८ रतिकर पर्वत होते हैं। एक-एक बावड़ियों के दो-दो कोणोें में ये रतिकर पर्वत हैं। ये पीले स्वर्ण वर्ण के होते हैं तथा सभी मंदिरों पर १-१ जिनमंदिर बने हुए हैं।
प्रश्न ९० -वहाँ पर बनी बावड़ियों के क्या नाम हैं ?
उत्तर -पूर्व दिशा की चार बावड़ियों के नाम-नंदा, नंदावती, नंदोत्तरा और नंदिघोषा। दक्षिण दिशा की ४ बावड़ियों के नाम-अरजा, विरजा, अशोका, वीतशोका। पश्चिम दिशा में विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता ये चार बावड़ी हैं और उत्तर दिशा में रम्या, रमणीया, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा ये चार बावड़ियाँ हैं।
प्रश्न ९१ -नंदीश्वर द्वीप में प्रतिमाएँ खड्गासन हैं या पद्मासन ?
उत्तर -पद्मासन प्रतिमाएँ वहाँ विराजमान रहती हैं।
प्रश्न ९२ -नंदीश्वर द्वीप की रचनाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हैं ?
उत्तर -सम्मेदशिखर में, हस्तिनापुर में, जबलपुर में, दिल्ली में और महमूदाबाद (सीतापुर-उ.प्र.) में नंदीश्वर द्वीप की रचना बनी हुई हैं।
प्रश्न ९३ -नंदीश्वर द्वीप में मनुष्य क्यों नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर -क्योंकि ढाई द्वीप की सीमा पर स्थित मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्यों का आवागमन निषिद्ध है। ढाईद्वीप तक ही मनुष्यों का जन्म होता है आगे नहीं और ढाई द्वीप में ही रहकर वे कर्मों को काटकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न ९४ -भक्तामर स्तोत्र की रचना किसने की ?
उत्तर -आचार्य श्री मानतुंग स्वामी ने।
प्रश्न ९५ -मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किन तीर्थंकर के काल में जन्म लिया था ?
उत्तर -आज से लगभग ९ लाख वर्ष पूर्व २०वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थकाल में अयोध्या में राम का जन्म हुआ था।
प्रश्न ९६ -राजा दशरथ के कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर -चार-कौशल्या, केकयी, सुमित्रा और सुप्रभा।
प्रश्न ९७ -लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता का क्या नाम था ?
उत्तर -लक्ष्मण की माता का नाम सुमित्रा और शत्रुघ्न की माता का नाम सुप्रभा था।
प्रश्न ९८ -रावण का वध किसने किया था ?
उत्तर -लक्ष्मण ने।
प्रश्न ९९ -धवला ग्रंथ की रचना किस दिन पूर्ण हुई थी ?
उत्तर -ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को, जिसे श्रुतपंचमी पर्व के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न १०० -अनादिनिधन पर्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -सोलहकारण पर्व, दशलक्षण पर्व, आष्टान्हिका पर्व।
प्रश्न १०१ -हस्तिनापुर से संबंधित कौन-कौन सी ऐतिहासिक घटनाएँ हैं ?
उत्तर -१. भगवान ऋषभदेव ने यहाँ प्रथम बार इक्षुरस आहार लिया था।
२. श्री शांति, कुंथु, अरनाथ इन तीन तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणक हुए। ३. कौरवों-पांडवों द्वारा महाभारत युद्ध होकर यहीं पर न्यायप्रिय पांडवों की विजय हुई थी। ४. रक्षाबंधन का इतिहास यहीं से प्रारंभ हुआ क्योंकि मुनि विष्णुकुमार ने यहाँ ७०० मुनियों का उपसर्ग दूर कर उनकी रक्षा की थी। ५. दर्शन प्रतिज्ञा का नियम निभाने वाली मनोवती का कथानक यहाँ से जुड़ा है। ६. रोहिणी व्रत का कथानक भी यहीं की घटना है।
प्रश्न १०२ -सती द्रौपदी ने स्वयंवर में कितने पतियों का वरण किया था ?
उत्तर -उसने केवल एक अर्जुन को ही अपना पति स्वीकार किया था, पाँचों पाँडवों को नहीं। पांडवपुराण नामक जैन महाभारत में इसका खुलासा देखें।
प्रश्न १०३ -सीता ने अग्नि परीक्षा में सफलता के पश्चात् क्या किया ?
उत्तर -अग्नि परीक्षा के बाद सीता ने अपनी दादीसास आर्यिका श्री पृथ्वीमती माताजी के पास जाकर आर्यिका दीक्षा धारण कर ली थी। जैन रामायण-पद्मपुराण में इसका रोमांचक इतिहास देखें।
प्रश्न १०४ -श्री रामचन्द्र ने मोक्ष पद कहाँ से प्राप्त किया है ?
उत्तर -महाराष्ट्र के नासिक जिले में ‘‘मांगीतुंगी’’ नामक सिद्धक्षेत्र है उसी के तुंगी पर्वत से श्रीराम ने मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न १०५ -हनुमान के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर -सती अंजना और पवनञ्जय कुमार।
प्रश्न १०६ -पांडवों को वनवास क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर -‘‘जुआ’’ नामक व्यसन में फंसने के कारण।
प्रश्न १०७ -चौबीस तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि के क्या नाम हैं ?
उत्तर -वैâलाशपर्वत, चंपापुरी, पावापुरी, गिरनार और सम्मेदशिखर पर्वत।
प्रश्न १०८ -पुराण किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुण्य पुरुषों के पवित्र चरित्र का जिन ग्रंथों में वर्णन हो, उन्हें पुराण ग्रंथ कहा जाता है।
प्रश्न १०९ -कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुद्गल के जो परमाणु आत्मा के साथ जाकर दूध और पानी के समान एकमेक हो जाते हैं उन्हें कर्म कहते हैं।
प्रश्न ११० -कर्म के मूलत: कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-द्रव्यकर्म, भावकर्म।
प्रश्न १११ -कर्मोें का बंध किनके होता है ?
उत्तर -एकेन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय तक के समस्त प्राणियों को कर्मों का बंध निरन्तर होता है।
प्रश्न ११२ -बंध किसे कहते हैं ?
उत्तर -कर्म आकर जब आत्मा के साथ गठबंधन कर लेते हैं उसी अवस्था को बंध कहते हैं।
प्रश्न ११३ -आस्रव का क्या लक्षण है ?
उत्तर -आत्मा में कर्मों का आना आस्रव कहलाता है।
प्रश्न ११४ -संवर किसे कहते हैं ?
उत्तर -आते हुए कर्मों का रुक जाना संवर कहा जाता है।
प्रश्न ११५ -निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर -आत्मा से पुराने कर्मों का फल देकर झड़ जाना, नष्ट हो जाना निर्जरा है।
प्रश्न ११६ -निर्जरा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सविपाक निर्जरा, अविपाक निर्जरा।
प्रश्न ११७ -दोनों निर्जरा की पहचान क्या है ?
उत्तर -समय से जो कर्म अपना पूरा फल देकर झड़ते हैं उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं तथा तपस्या आदि के द्वारा जो कर्म असमय में अपना फल देकर झड़ते हैं वह अविपाक निर्जरा कहलाती है।
प्रश्न ११८ -मोक्ष का क्या लक्षण है ?
उत्तर -आत्मा से कर्मों का पूर्ण रूप से अलग हो जाना, नष्ट हो जाना मोक्ष है।
प्रश्न ११९ -संसार और मोक्ष की व्यवस्था किसने बनाई है ?
उत्तर -यह प्राकृतिक व्यवस्था अनादिकाल से चली आ रही है इसे किसी ने बनाया नहीं है।
प्रश्न १२० -सम्यग्दर्शन की प्राप्ति किन प्राणियों को हो सकती है ?
उत्तर -भव्य, संज्ञी, पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक जीव ही सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न १२१ -भव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिनमें मोक्ष जाने की योग्यता विद्यमान है, उन्हें भव्य कहते हैं।
प्रश्न १२२ -भव्य जीवों की बाह्य पहचान क्या है ?
उत्तर -भव्यत्व-अभव्यत्व ये आत्मा के पारिणामिक स्वाभाविक भाव हैं। इनकी पहचान केवलज्ञानी ही कर सकते हैं।
प्रश्न १२३ -संज्ञी किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन जीवों के मन होता है, ऐसे मनसहित पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी कहलाते हैं।
प्रश्न १२४ -पर्याप्तक जीवों का क्या लक्षण है ?
उत्तर -शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करने की योग्यता प्राप्त कर लेने पर यह जीव पर्याप्तक कहलाता है।
प्रश्न १२५ -पर्याप्ति के कितने भेद हैं ?
उत्तर -छह भेद हैं-आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास, भाषा, मन।
प्रश्न १२६ -एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर -आहार, शरीर, इन्द्रिय और स्वासोच्छ्वास ये ४ पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय जीवों के होती हैं।
प्रश्न १२७ -दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर -इन जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास और भाषा ये ५ पर्याप्तियाँ होती हैं।
प्रश्न १२८ -सम्यग्दर्शन किस गति के जीवों के हो सकता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन चारों गति के सभी पंचेन्द्रिय जीवों को हो सकता है।
प्रश्न १२९ -सम्यग्दर्शन किस प्रकार होता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन बाह्य और अंतरंग दोनों निमित्तों के मिलने पर होता है।
प्रश्न १३० -बाह्य निमित्त क्या हो सकते हैं ?
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान का दर्शन, मुनियों का दर्शन, तीर्थवंदना, गुरु उपदेश, जातिस्मरण आदि बाह्य निमित्त हैं जो सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण माने हैं।
प्रश्न १३१ -अन्तरंग निमित्त कौन से हैं ?
उत्तर -आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय और क्षयोपशम अन्तरंग निमित्त है जो सम्यग्दर्शन को उत्पन्न कराने वाला है।
प्रश्न १३२ -नरकगति में सम्यग्दर्शन किन-किन कारणों से उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर -प्रथम, द्वितीय और तृतीय इन तीन नरकों में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के तीन कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव और परोपदेश। चौथे नरक से लेकर सातवें नरक तक दो कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव।
प्रश्न १३३ -नरकों में उपदेश श्रवण कौन कराता है ?
उत्तर -पूर्व जन्म का कोई मित्र देव पर्याय से, परोपकार भावना से तीन नरकों तक जाकर अपने संबंधी को उपदेश देकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न करा देते हैं, यह कथन षट्खण्डागम और पुराण ग्रंथ में आया है। जैसे-सीताजी का जीव सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र था उसने तृतीय नरक में जाकर रावण को सम्बोधित किया था।
प्रश्न १३४ -देव लोग धर्म श्रवण कराने हेतु चौथे आदि नरकों में क्यों नहीं जाते हैं ?
उत्तर -क्योंकि उनके गमन की सीमा तीसरे नरक तक ही है अत: वे आगे नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न १३५ -तिर्यंच प्राणी कितने कारणों से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर -जातिस्मरण, जिनमहिमा दर्शन और धर्मोपदेश इन तीन कारणों में से किसी कारण के मिलने पर तिर्यंच प्राणी सम्यग्दर्शन उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रश्न १३६ -तिर्यंच प्राणी जन्म लेने के कितने दिन बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त करते हैं ?
उत्तर -तिर्यंच जीव जन्म लेने के बाद ३ दिन से सात दिन तक सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। इस काल को ‘‘दिवस पृथक्त्व’’ नाम से जाना जाता है।
प्रश्न १३७ -मनुष्यगति में सम्यग्दर्शन की योग्यता कब प्राप्त होती है ?
उत्तर -मनुष्यगति में ८ वर्ष के बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता आ जाती है।
प्रश्न १३८ -मनुष्यगति में सम्यक्त्वोत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर -तीन कारण हैं-जातिस्मरण, धर्मोपदेश और जिनबिम्बदर्शन।
प्रश्न १३९ -देवगति में कितने कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर -जातिस्मरण, धर्मोपदेश, जिनबिम्बदर्शन और देवर्द्धिदर्शन, इन चार कारणों से देवों को सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है।
प्रश्न १४० -देवर्द्धिदर्शन का क्या मतलब है ?
उत्तर -नीचे स्वर्गों के देव अपने से उच्चवर्गीय देवों और इन्द्रों का वैभव देखकर उनके पूर्व पुण्य की सराहना करते हैं जिससे उन्हें भी सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है। यह देवर्द्धिदर्शन नाम का कारण भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिर्वासी देवों में तथा कल्पवासी देवों में बारह स्वर्गों तक पाया जाता है, उससे आगे नहीं।
प्रश्न १४१ -पुन: तेरहवें स्वर्ग से आगे कितने कारण हैं ?
उत्तर -तेरहवें स्वर्ग से लेकर सोलहवें स्वर्ग तक एवं नव ग्रैवेयक तक देवर्द्धिदर्शन छोड़कर तीन कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है।
प्रश्न १४२ -आगे नव अनुदिश और पाँच अनुत्तरों में कितने कारण हैं ?
उत्तर -नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में सम्यग्दृष्टि मनुष्य ही जाकर जन्म ग्रहण करते हैं पुन: वहाँ सभी देव नियम से सम्यग्दृष्टि होते हैंं।
प्रश्न १४३ -क्या क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर नरक में भी जन्म ले सकता है ?
उत्तर -जिस मनुष्य ने पहले नरक आयु का बंध कर लिया है पुन: उसे क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हुआ है वह प्रथम नरक तक जा सकता है उससे आगे नहीं। जैसे-राजा श्रेणिक का जीव।
प्रश्न १४४ -सम्यग्दृष्टि जीव कहाँ-कहाँ जन्म नहीं लेता है ?
उत्तर -प्रथम नरक के बिना छह नरकों में, भवनत्रिक में सम्यग्दृष्टि जीव जन्म नहीं लेते हैं तथा नपुंसक, स्त्री, स्थावर, विकलत्रय, तिर्यंच योनियों में भी उनका जन्म नहीं होता है।
प्रश्न १४५ -अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को जीवन में पहली बार यदि सम्यग्दर्शन होवे तो कौन सा हो सकता है ?
उत्तर -अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को पहली बार होने वाले सम्यग्दर्शन को प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं।
प्रश्न १४६ -वह प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन कितने दिनों तक रह सकता है ?
उत्तर -प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन का काल मात्र अन्तर्मुहूर्त है उसके बाद वह नियम से छूटता ही है।
प्रश्न १४७ -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का काल कितने दिन का है ?
उत्तर -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है एवं उत्कृष्ट काल छ्यासठ सागर प्रमाण है।
प्रश्न १४८ -क्षायिक सम्यग्दर्शन कितने दिन तक रह सकता है ?
उत्तर -क्षायिक सम्यग्दर्शन एक बार होने के बाद वह अनन्त काल तक भी छूटता नहीं है क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि उसी भव से या एक भव बीच का लेकर और मनुष्य जन्म धारण कर नियम से मोक्ष प्राप्त करता है।
प्रश्न १४९ -तीन चौबीसी कहाँ-कहाँ होती हैं ?
उत्तर -जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र एवं ऐरावत क्षेत्र के आर्यखंड में भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत् काल में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं, ये ही तीन चौबीसी कहलाती हैं।
प्रश्न १५० -तीर्र्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं ?
उत्तर -उनकी चौबीस संख्या ही निश्चित है। प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार ही यह संख्या चली आ रही है अत: कभी भी २३ या २५ तीर्थंकर नहीं हो सकते हैं।
प्रश्न १५१ -इन तीर्थंकरों के कितने कल्याणक होते हैं ?
उत्तर -ढाईद्वीप में पाँच भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्र की जो त्रैकालिक तीस चौबीसी हैं उनके तो नियम से पाँचों कल्याणक हुआ करते हैं। हाँ, विदेह क्षेत्रों में जो तीर्थंकर होते हैं उनमें कोई २ ,३ या ५ कल्याणक वाले भी होते हैं।
प्रश्न १५२ -जम्बूद्वीप की रचना वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हुई हैं ?
उत्तर -अभी तक जम्बूद्वीप की रचना पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से मात्र हस्तिनापुर में ही बनी है।
प्रश्न १५३ -तीन चौबीसी की ७२ प्रतिमाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ विराजमान हैं ?
उत्तर -अयोध्या में, भगवान ऋषभदेव की दीक्षाभूमि प्रयाग में वैâलाश पर्वत पर, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार) में एवं आहार जी आदि तीर्थों में तीन चौबीसी तीर्थंकरों की ७२ प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १५४ -तीर्थंकर महापुरुष कितने इन्द्रों से वंद्य होते हैं ?
उत्तर -सौ इन्द्रों से वंद्य होते हैं।
प्रश्न १५५ -सौ इन्द्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -भवणालय चालीसा, विंतरदेवाण होंति बत्तीसा।
कप्पामर चउवीसा, चंदो सूरो नरो तिरिओ।।
भवनवासियों के ४० इन्द्र, व्यंतरों के ३२, कल्पवासी देवों के
२४ इन्द्र, ज्योतिर्वासी के सूर्य-चन्द्र ये दो इन्द्र होते हैं तथा मनुष्यों में १ चक्रवर्ती और तिर्यंचों में १ सिंह इन्द्र होता है अत: ४०±३२±२४±२±१±१·१०० इन्द्र होते हैं।
प्रश्न १५६ -इस कलियुग में तीर्थंकर क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर -क्योंकि तीर्थंकर चतुर्थकाल में ही जन्म लेते हैं। उस काल में मोक्ष का दरवाजा खुला होता है, शरीर का उत्तम संहनन होता है और उत्तम संहनन वाले मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
प्रश्न १५७ -क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति आज के मानव को हो सकती है या नहीं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में ही क्षायिक सम्यक्त्व प्रगट होता है और इस कलिकाल में केवली-श्रुतकेवली हैं नहीं, अत: क्षायिक सम्यक्त्व आज का मानव नहीं प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न १५८ -तो फिर वर्तमान में कौन सा सम्यग्दर्शन प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर -उपशम और क्षयोपशम सम्यग्दर्शन आज हर व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न १५९ -ये सम्यग्दर्शन वैâसे प्राप्त किये जाते हैं ?
उत्तर -सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का श्रद्धान करने से उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है क्योंकि इन बाह्य निमित्तों से अन्तरंग आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का उपशम या क्षयोपशम होता है तभी सम्यक्त्व प्रगट होता है।
प्रश्न १६० -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक।
प्रश्न १६१ -सम्यग्दर्शन प्राप्त कराने वाली कितनी लब्धियाँ हैं ?
उत्तर -पाँच लब्धियाँ हैं-क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण।
प्रश्न १६२ -करणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में लोक-अलोक के विभाग का कथन हो, युग परिवर्तन का, कर्म प्रकृतियों का वर्णन हो, उन्हें करणानुयोग ग्रंथ कहते हैं।
प्रश्न १६३ -क्या हस्तिनापुर से जम्बूद्वीप का कोई पौराणिक संबंध जुड़ा है ?
उत्तर -हाँ, यह भी एक अनहोना संयोग ही जुड़ गया। जब इतिहास एवं पुराणों का अध्ययन किया गया तब ज्ञात हुआ कि आज से एक कोड़ाकोड़ी सागर वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव के युग में हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा था। सो ऐसा लगता है कि उनका स्वप्न ही आज उसी भूमि पर साकार हुआ है।
प्रश्न १६४ -सुमेरु पर्वत का जम्बूद्वीप से क्या संबंध है ?
उत्तर -जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में ही तो सुमेरु पर्वत बना है।
प्रश्न १६५ -यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा है ?
उत्तर -एक लाख चालिस योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है।
प्रश्न १६६ -हस्तिनापुर में यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा बनाया गया है ?
उत्तर -एक सौ एक फुट ऊँचा सुमेरु पर्वत यहाँ बनाया गया है।
प्रश्न १६७ -उसमें ऊपर तक दर्शन करने का क्या साधन है ?
उत्तर -अन्दर से सीढ़ियों के माध्यम से ऊपर तक पहुँचकर सोलहों चैत्यालय के दर्शन सुलभतया हो जाते हैं।
प्रश्न १६८ -उसमें सीढ़ियाँ कितनी बनी हुई हैं ?
उत्तर -१३६ सीढ़ियाँ हस्तिनापुर के सुमेरु पर्वत में बनाई गई हैं।
प्रश्न १६९ -हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप में क्या पूरे ७८ अकृत्रिम चैत्यालय दर्शाए गए हैं ?
उत्तर -हाँ, वहाँ सफेद संगमरमर से बने पूरे ७८ चैत्यालय बने हैं।
प्रश्न १७० -वहाँ अन्य रंग-बिरंगे चैत्यालय कितने बने हैं ?
उत्तर -जम्बूद्वीप के सभी पर्वतों पर अनेक देवभवन शास्त्र में माने हैं उन्हीं के प्रतीक में हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप में रंग-बिरंगे देवभवन बनाए गये हैं। ये देवों के गृह चैत्यालय हैं इसीलिए इन्हें सिद्धकूटों से भिन्न दर्शाया गया है। ये देवभवन १२३ हैं प्रत्येक में जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १७१ -क्या स्त्रियाँ अपने स्त्री भव से कभी मोक्ष नहीं जा सकती हैं ?
उत्तर -नहीं, दिगम्बर जैन सिद्धान्त के अनुसार स्त्रियाँ मोक्ष नहीं जा सकती हैं।
प्रश्न १७२ -क्या तीर्थंकर की माता भी उस भव से मोक्ष नहीं जाती हैं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि सिद्धान्त का नियम तो अटल होता है।
प्रश्न १७३ -स्त्रियों को कभी क्षायिक सम्यग्दर्शन हो सकता है या नहीं ?
उत्तर -नहीं। स्त्री पर्याय में क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता है।
प्रश्न १७४ -गतियाँ कितनी हैं ?
उत्तर -चार हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।
प्रश्न १७५ -इन्द्रिय किसे कहते हैं ?
उत्तर -चारों गति के जीवों को पहचानने के चिन्ह को इन्द्रिय कहते हैं।
प्रश्न १७६ -इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ?
उत्तर -इन्द्रियाँ पाँच होती हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण।
प्रश्न १७७ -चींटी, खटमल, बिच्छू कितने इन्द्रिय जीव हैं ?
उत्तर -तीन इन्द्रिय जीव हैं। इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हैं।
प्रश्न १७८ -जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -संसारी और मुक्त ये दो भेद हैं।
प्रश्न १७९ -संसारी जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-त्रस और स्थावर।
प्रश्न १८० -त्रस जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -दो इन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं।
प्रश्न १८१ -स्थावर जीवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक। इन स्थावर जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है।
प्रश्न १८२ -मुक्त जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो मनुष्य आठ कर्मों का नाशकर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर अशरीरी हो जाते हैं उन्हें मुक्त जीव कहते हैं।
प्रश्न १८३ -आठ कर्म कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय।
प्रश्न १८४ -मनुष्य के कितनी इन्द्रियाँ होती हैं ?
उत्तर -मनुष्य के पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं।
प्रश्न १८५ -प्राण के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच इन्द्रिय, तीन बल (मन, वचन, काय) आयु और स्वासोच्छ्वास ये दस प्राण होते हैं।
प्रश्न १८६ -एक इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन इन्द्रिय १, कायबल १, स्वासोच्छ्वास १, आयु १, ये ४ प्राण सभी एकेन्द्रिय जीवों के होते हैं।
प्रश्न १८७ -दो इन्द्रिय एवं तीन इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना ये २ इन्द्रियाँ, कायबल, वचनबल, स्वासोच्छ्वास और आयु, ये ६ प्राण दो इन्द्रिय जीवों के होते हैं तथा तीन इन्द्रिय जीवों के एक घ्राण इन्द्रिय बढ़ जाती है अत: उनके ७ प्राण होते हैं।
प्रश्न १८८ -चार इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना, घ्राणु, चक्षु ये ४ इन्द्रियाँ, वचन बल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये ८ प्राण चार इन्द्रिय जीवों के (मक्खी, मच्छर, भौंरा, ततैया आदि के) होते हैं।
प्रश्न १८९ -पंचेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -सबसे पहले पंचेन्द्रियों के दो भेद हैं-संज्ञी और असंज्ञी। इनमें से संज्ञी (मनसहित) जीवों के तो दसों प्राण होते हैं और असंज्ञी (मन रहित) जीवों के मनबल नामक प्राण छोड़कर शेष ९ प्राण होते हैं।
प्रश्न १९० -लोक के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक।
प्रश्न १९१ -मध्यलोक में कितने द्वीप-समुद्र हैं ?
उत्तर -असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं।
प्रश्न १९२ -प्रथमद्वीप और प्रथम समुद्र का क्या नाम है ?
उत्तर -प्रथमद्वीप का नाम जम्बूद्वीप है और प्रथम समुद्र का नाम लवण-समुद्र है।
प्रश्न १९३ -जम्बूद्वीप में कितने अकृत्रिम चैत्यालय हैं ?
उत्तर -७८ अकृत्रिम चैत्यालय जम्बूद्वीप में हैं। यथा-सुमेरु पर्वत के १६, गजदन्त पर्वतों के ४, जम्बू-शाल्मलीवृक्षों के २, वक्षार पर्वतों के १६, विजयार्ध पर्वत के ३४, कुलाचलों के ६, इस प्रकार १६ ± ४ ± २±१६ ± ३४±६·७८ चैत्यालय जम्बूद्वीप में हैं। जो हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप रचना में साक्षात् देखे जा सकते हैं।
प्रश्न १९४ -ढाईद्वीप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और आधा पुष्करद्वीप (पुष्करार्ध-द्वीप) ये ढाईद्वीप कहलाते हैं।
प्रश्न १९५ -गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर -जीवों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि के द्वारा जो परिणाम होते हैं, उन्हें गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १९६ -गुणस्थान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -१४ भेद हैं-मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशसंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली और अयोगकेवली।
प्रश्न १९७ -सम्यग्दर्शन का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान के द्वारा प्रतिपादित तत्त्व और पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न १९८ -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन के दो भेद हैं-निसर्गज और अधिगमज।
प्रश्न १९९ -निसर्गज सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो सम्यग्दर्शन परोपदेश के बिना जातिस्मरण या जिनबिम्ब दर्शन के द्वारा उत्पन्न होता है उसे निसर्गज कहते हैं।
प्रश्न २०० -अधिगमज सम्यदर्शन का क्या लक्षण है ?
उत्तर -परोपदेश के निमित्त से होने वाला सम्यग्दर्शन अधिगमज कहलाता है।
प्रश्न २०१ -पाप कितने हैं ?
उत्तर -हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पाँच पाप हैं।
प्रश्न २०२ -नरकगति किस कर्मों से प्राप्त होती है ?
उत्तर -बहुत आरंभ, परिग्रह करने से नरकायु का बंध होता है।
प्रश्न २०३ -तिर्यंच योनि वैâसे मिलती है ?
उत्तर -अधिक मायाचारी से तिर्यंच योनि प्राप्त होती है।
प्रश्न २०४ -मनुष्य पर्याय किस कर्म के उदय से मिलती है ?
उत्तर -अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह से तथा पुण्यकर्म करने से मनुष्य पर्याय मिलती है।
प्रश्न २०५ -देवयोनि की प्राप्ति किन कारणों से होती है ?
उत्तर -व्रत, नियम, संयम, दान आदि शुभ कर्मों से देवयोनि मिलती है।
प्रश्न २०६ -जन्म के कितने भेद हैं ?
उत्तर -गर्भ, सम्मूर्च्छन, उपपाद ये जन्म के ३ भेद हैं।
प्रश्न २०७ -गर्भ जन्म किन जीवों का होता है ?
उत्तर -मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का गर्भ जन्म होता है।
प्रश्न २०८ -सम्मूर्च्छन जन्म धारण करने वाले कौन से जीव हैं ?
उत्तर -एक इन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव सम्मूर्च्छन जन्म धारण करते हैं।
प्रश्न २०९ -सम्मूर्च्छन जन्म का क्या मतलब है ?
उत्तर -बाह्य पुद्गल स्कन्धों के एकत्रित होने पर जो शरीर रचना होती है उसे सम्मूर्च्छन कहते हैं। जैसे-केंचुआ, बिच्छू, खटमल, चींटी सम्मूर्च्छन जन्म वाले होते हैं। इस जन्म में माता-पिता के रजवीर्य की तथा उपपाद जन्म की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न २१० -उपपाद जन्म किस गति के जीवों का होता है ?
उत्तर -देवगति और नरकगति में देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।
प्रश्न २११ -जैन साधु देवताओं से आहार क्यों नहीं ले सकते हैं ?
उत्तर -क्योंकि देवगण मनुष्यों के समान संयम धारण करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए जैन साधु देवताओं द्वारा दिया गया आहार ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न २१२ -अकालमरण किन-किन जीवों का हो सकता है ?
उत्तर -कर्मभूमि के मनुष्य और तिर्यंचों का विष भक्षण आदि निमित्तों से अकालमरण संभव है।
प्रश्न २१३ -तत्त्व कितने हैं ?
उत्तर -जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व होते हैं।
प्रश्न २१४ -द्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर -६ भेद हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
प्रश्न २१५ -पाँच अस्तिकाय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -छह द्रव्यों में से काल द्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय कहे जाते हैं।
प्रश्न २१६ -सिद्धशिला कहाँ है ?
उत्तर -तीन लोक के अग्रभाग पर ४५ लाख योजन प्रमाण अर्द्ध चन्द्राकार सिद्धशिला है।
प्रश्न २१७ -सुमेरुपर्वत कहाँ है ?
उत्तर -१ लाख ४० योजन (लगभग ६० करोड़ किमी.) ऊँचा सुमेरुपर्वत अकृत्रिम जम्बूद्वीप रचना के बीचों बीच बना है जो यहाँ से
तीस करोड़ किमी. दूर है।
प्रश्न २१८ -नवदेवता कहाँ-कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर -अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये नवदेवता ढाई द्वीप में ही पाये जाते हैं, उससे आगे द्वीपों में मात्र चैत्य और चैत्यालय ये दो देवता ही रहते हैं।
प्रश्न २१९ -प्रतिमा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -प्रतिमा के ११ भेद हैं-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग प्रतिमा।
प्रश्न २२० -इन प्रतिमाओं को कौन पालन करते हैं ?
उत्तर -श्रावक-श्राविकाएँ व्रतादि स्वीकार करके इन प्रतिमाओं का पालन करते हैं।
प्रश्न २२१ -श्रावक के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक।
प्रश्न २२२ -पाक्षिक श्रावक किसे कहते हैं ?
उत्तर -संकल्पी हिंसा का त्यागी, धर्म का पक्ष रखने वाला, अभ्यास रूप से धर्म का पालन करने वाला श्रावक पाक्षिक कहलाता है।
प्रश्न २२३ -नैष्ठिक श्रावक का क्या लक्षण है ?
उत्तर -पहली प्रतिमाधारी से लेकर ११वीं प्रतिमाधारी श्रावक श्राविकाओं को एवं क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं को नैष्ठिक श्रावक कहते हैं।
प्रश्न २२४ -‘‘साधक’’ संज्ञा वाले श्रावक कौन होते हैं ?
उत्तर -समाधिमरण की साधना करने वाले ११ प्रतिमाधारी क्षुल्लक-क्षुल्लिका और १ लंगोटी मात्र धारण करने वाले ऐलक जिनका देशसंयम पूर्ण हो चुका है, वे साधक कहलाते हैं।
प्रश्न २२५ -गृहस्थ श्रावक के कितने कर्त्तव्य हैं ?
उत्तर -छ: कर्त्तव्य हैं-देवपूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान।
प्रश्न २२६ -अणुव्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाण अणुव्रत।
प्रश्न २२७ -शराब और मांस का त्याग तो ठीक है किन्तु मधु (शहद) में क्या दोष है ?
उत्तर -शहद मधुमक्खियों का उगाल है अत: शहद की १ बिन्दु मात्र के भक्षण से भी सात गांव जलाने का पाप लगता है।
प्रश्न २२८ -मंदिर में दर्शन करते समय चावल के कितने पुंज चढ़ाना चाहिए ?
उत्तर -णमोकार मंत्र पढ़ते हुए बंधी मुट्ठी से चावल के पाँच पुंज भगवान के सामने वेदी पर चढ़ाना चाहिए, जिसका नमूना इस प्रकार है-
प्रश्न २२९ -जिनवाणी के सामने क्या बोलकर कितने पुंज चढ़ाए जाते हैं ?
उत्तर -‘‘प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगरूप जिनवाणी माता को नमस्कार होवे’’ अथवा ‘‘प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नम:’’ ऐसा बोलकर सीधी लाइन में चार पुंज चढ़ाना चाहिए, जैसे-
प्रश्न २३० -क्या मुनि-आर्यिका आदि गुरुओं के दर्शन में भी ऐसा कोई नियम है ?
उत्तर -हाँ! मुनि-आर्यिका आदि रत्नत्रय के धारक महाव्रती साधु होते हैं। उनके दर्शन करते समय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र बोलकर तीन पुंज चढ़ाना चाहिए, जैसे-
प्रश्न २३१ -नमस्कार की क्या विधि है ?
उत्तर -देव, शास्त्र, गुरु के समक्ष घुटने टेककर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक जमीन पर लगाकर पंचांग नमस्कार करना चाहिए।
प्रश्न २३२ -दान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -४ भेद हैं-आहारदान, औषधिदान, शास्त्रदान, अभयदान।
प्रश्न २३३ -ये दान किसे दिये जाते हैं ?
उत्तर -ये दान सत्पात्र को दिये जाते हैं।
प्रश्न २३४ -सत्पात्र किसे कहते हैं ?
उत्तर -मुनि-आर्यिका, क्षुल्लक-क्षुल्लिका एवं देशसंयमी श्रावक सत्पात्र कहलाते हैं।
प्रश्न २३५ -दीन-दुखी जीवों को दान देना किस दान में आता है ?
उत्तर -करुणादान में आता है।
प्रश्न २३६ -मुनि-आर्यिकाओं को आहार देने में नवधाभक्ति वैâसे की जाती है ?
उत्तर -(१) हे स्वामी! या हे माताजी! नमोस्तु ३ ! अत्र तिष्ठ ३! आहार जल शुद्ध है बोलकर पड़गाहन करना, उनकी तीन प्रदक्षिणा करके शुद्धी बोलकर चौके में ले जाना, पड़गाहन नामक पहली भक्ति है। (२) चौके में उन्हें पाटे या चौकी पर बैठाना उच्चासन विराजिए नामक दूसरी भक्ति है। (३) उनके चरण धोना पादप्रक्षाल नामक तृतीय भक्ति है। (४) उनकी अष्टद्रव्य से पूजन करना अर्चना नामक चौथी भक्ति है। (५) घुटने टेक कर नमस्कार करना प्रणाम नामक पंचम भक्ति है। (६) मन शुद्धि (७) वचन शुद्धि (८) कायशुद्धि (९) आहारजल शुद्ध है, ये शुद्धियाँ बोलकर आहार देना नवधाभक्ति कहलाती है।
प्रश्न २३७ -सात व्यसन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जुआ खेलना, मांस खाना, शराब पीना, वेश्यासेवन, शिकार खेलना, चोरी करना, परस्त्रीसेवन, ये सात व्यसन होते हैं। इनका प्रत्येक श्रावक को त्याग करना चाहिए।
प्रश्न २३८ -माला में १०८ दाने क्यों जपे जाते हैं ?
उत्तर -१०८ पापों के निवारण हेतु माला में १०८ दाने जपे जाते हैं।
प्रश्न २३९ -१०८ पाप कौन से हैं ?
उत्तर -क्रोध, मान, माया, लोभ इन ४ कषायों को समरंभ, समारंभ, आरंभ इन तीन से गुणा करने पर ४²३·१२ भेद हुए। १२ को मन, वचन, काय तीन से गुणा करने पर १२²३·३६ भेद हुए, पुन: ३६ को कृत, कारित, अनुमोदना से गुणा करने पर ३६²३·१०८ प्रकार हुए। इनसे पापों का आस्रव होता है।
प्रश्न २४० -पुरुषार्थ के कितने भेद हैं ?
उत्तर -४ भेद हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
प्रश्न २४१ -हिंसा के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर -४ भेद होते हैं-संकल्पी हिंसा, आरंभी हिंसा, उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा।
प्रश्न २४२ -संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं ?
उत्तर -अभिप्रायपूर्वक दोइन्द्रिय आदि जीवों को मारना ‘‘संकल्पी हिंसा’’ कहलाती है। जैसे-चमड़े का व्यापार करना, घर में चूहामार या मच्छर नाशक दवाई डालकर उन्हें मारना आदि।
प्रश्न २४३ -इस हिंसा का त्यागी कौन होता है ?
उत्तर -सम्यग्दृष्टि अणुव्रती श्रावक संकल्पी हिंसा का त्यागी होता है।
प्रश्न २४४ -शेष तीन हिंसा क्या श्रावक के लिए क्षम्य हैं ?
उत्तर -हाँ, क्योंकि गृहस्थ क्रियाओं में आरंभी हिंसा तो होती है, खेती- व्यापार आदि में उद्योगी हिंसा संभावित है और धर्मविरोधी कार्य करने वाले से लड़ना विरोधी हिंसा है। जैसे-राम ने रावण के साथ युद्ध किया, क्षायिक सम्यग्दृष्टि भरत ने भी युद्ध किया। ये विरोधी हिंसा के कार्य हैं जिन्हें अणुव्रती श्रावक भी करते हैं।
प्रश्न २४५ -पंचसूना किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -कूटना, पीसना, चूल्हा जलाना, पानी भरना, झाड़ू लगाना ये पाँच क्रियाएँ पंचसूना कहलाती हैं। गृहस्थ श्रावक-श्राविकाएँ इन्हें करते हैं।
प्रश्न २४६ -भगवान की तीन प्रदक्षिणा क्योें लगाते हैं ?
उत्तर -जन्म, जरा, मरण इन तीन रोगों की समाप्ति हेतु तथा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीन रत्नों की प्राप्ति हेतु तीन प्रदक्षिणा लगाई जाती हैं।
प्रश्न २४७ -अष्ट द्रव्यों से पूजन क्यों की जाती है ?
उत्तर -अष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए अष्ट द्रव्य से पूजन की जाती है।
प्रश्न २४८ -वे अष्ट द्रव्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल ये अष्ट द्रव्य हैं। सबको एक में मिलाकर अर्घ्य बनता है।
प्रश्न २४९ -दो प्रतिमाधारी श्रावक को कितने व्रत पालन करने होते हैं ?
उत्तर -१२ व्रतों का पालन दो प्रतिमाधारी श्रावक करता है।
प्रश्न २५० -१२ व्रत कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षाव्रत ये १२ व्रत होते हैं।
प्रश्न २५१ -तीन गुणव्रतों के एवं चार शिक्षाव्रतों के नाम क्या हैं ?
उत्तर -दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डविरतिव्रत ये तीन गुणव्रत आत्मा के गुणों की अभिवृद्धि करने वाले हैंं। सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत मुनिव्रतों को धारण करने की शिक्षा देते हैं।
प्रश्न २५२ -वीतराग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो अठारह दोषों से रहित सर्वगुणों से सहित आप्त-भगवान होते हैं उन्हें वीतराग कहते हैं।
प्रश्न २५३ -वे अठारह दोष कौन से हैं ?
उत्तर -भूख, प्यास, बुढ़ापा, आतंक, जन्म, मरण, भय, मद, राग, द्वेष, मोह, रोग, चिन्ता, निद्रा, आश्चर्य, अरति, पसीना और खेद ये
१८ दोष होते हैं जो कि प्रत्येक संसारी जीवों में होते हैं।
प्रश्न २५४ -चरणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में साधु एवं गृहस्थों के चारित्र, क्रिया आदि का वर्णन होता है वे चरणानुयोग के ग्रंथ कहे जाते हैं।
प्रश्न २५५ -चारित्र के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सकल चारित्र और विकल चारित्र।
प्रश्न २५६ -सकलचारित्र किसे कहते हैं तथा यह किनके होता है ?
उत्तर -महाव्रतरूप पूर्ण चारित्र को सकलचारित्र कहते हैं तथा यह सकलचारित्र मुनियों के होता है।
प्रश्न २५७ -विकलचारित्र किसे कहते हैं और यह किनके होता है ?
उत्तर -अणुव्रतरूप एकदेश संयम पालन को विकलचारित्र कहते हैं और यह चारित्र गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं को, क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं एवं ऐलक को होता है।
प्रश्न २५८ -आर्यिकाओं के कौन सा चारित्र होता है ?
उत्तर -आचारसार ग्रंथों के अनुसार आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहा गया है उन्हें पुराणों में संयतिका शब्द से भी संबोधित किया गया है अत: उपचार से तो सकलचारित्र कहा जा सकता है किन्तु पंचमगुणस्थान की अपेक्षा उनके विकलचारित्र भी मान सकते हैं।
प्रश्न २५९ -श्रावक के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर -आठ मूलगुण होते हैं-मद्य, मांस, मधु ये तीन मकार तथा बड़, पीपल, पाकर, कठूमर और गूलर इन पाँच उदुम्बर फलों का त्याग अष्टमूलगुण कहलाते हैं।
प्रश्न २६० -स्वामी श्री समन्तभद्राचार्य के अनुसार श्रावकों के अष्टमूलगुण कौन से हैं ?
उत्तर -तीन मकार का त्याग और पाँच अणुव्रतों का पालन, ये ८ मूलगुण रत्नकरण्डश्रावकाचार में बताये गये हैं।
प्रश्न २६१ -पाँच अणुव्रत कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रहपरिमाण अणुव्रत ये पाँच अणुव्रत कहलाते हैं।
प्रश्न २६२ -पुरुषार्थसिद्ध्यिुपाय ग्रंथ में कौन से आठ मूलगुण बताये गये हैं ?
उत्तर -पाँच उदुम्बर फलों का त्याग एवं तीन मकारों का त्याग ये आठ मूलगुण हैं।
प्रश्न २६३ -अन्य तृतीय प्रकार का अष्टमूलगुण किसने कहाँ बताया है ?
उत्तर -१. मद्य त्याग २. मांस त्याग ३. मधु का त्याग ४. रात्रि भोजन त्याग ५. पंच उदुम्बर फलों का त्याग ६. पंचपरमेष्ठी की स्तुति ७. जीव दया पालन ८. जल छानकर पीना ये अष्टमूलगुण श्रावकों के लिए
पं. श्री आशाधर जी ने सागारधर्मामृत ग्रंथ में बताया है।
प्रश्न २६४ -अणुव्रतों का पालन करने से क्या फल मिलता है ?
उत्तर -अणुव्रतों को पालने वाले श्रावक-श्राविका नियम से स्वर्ग सुखों को प्राप्त करते हैं।
जैसे-अणुबम संसारी प्राणियों को नष्ट करने में सक्षम होता है वैसे ही अणुव्रत कर्मों को नष्ट करने में सक्षम हैं तथा परम्परा से मोक्ष प्राप्त कराने में भी समर्थ हैं।
प्रश्न २६५ -महाव्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत।
प्रश्न २६६ -इन व्रतों को महाव्रत संज्ञा क्यों है ?
उत्तर -ये व्रत चूँकि स्वयं फल को देने वाले हैं तथा इनको तीर्थंकर आदि महापुरुष धारण करते हैं इसलिए इन्हें महाव्रत की संज्ञा प्राप्त है।
प्रश्न २६७ -पाँच समितियाँ कौन सी हैं ?
उत्तर -ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण, उत्सर्ग ये पाँच समितियाँ हैं।
प्रश्न २६८ -पंचेन्द्रिय निरोध का क्या मतलब है ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पाँचों इन्द्रियों को अनुशासित कर अपने वश में रखने का नाम पंचेन्द्रिय निरोध है।
प्रश्न २६९ -षट् आवश्यक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -समता, स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग।
प्रश्न २७० -दिगम्बर मुनियों के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर -२८ मूलगुण होते हैं। यथा-५ महाव्रत, ५ समिति, ५ पंचेन्द्रिय- निरोध, ६ आवश्यक, केशलोंच, अचेलकत्व, अस्नान, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितिभोजन (खड़े होकर भोजन करना) दिन में एक बार भोजन करना ये ५±५±५±६±७·२८ मूलगुण दिगम्बर जैन मुनियों के होते हैं।
प्रश्न २७१ -इन अट्ठाईस मूलगुणों में से आर्यिकाओं के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर -आर्यिकाओं के भी मुनियों के समान ही अट्ठाईस मूलगुण होते हैं।
प्रश्न २७२ -उनके अचेलक और खड़े होकर भोजन करना ये दो मूलगुण तो हैं नहीं, अत: २६ मूलगुण ही मानना चाहिए ?
उत्तर -पूज्य माताजी के गुरु आचार्य श्री वीरसागर महाराज कहा करते थे कि नग्नता के स्थान पर एक श्वेत साड़ी पहनना और बैठकर भोजन करना ये आगम की आज्ञानुसार आर्यिकाओं के मूलगुण ही माने गये हैं अत: आर्यिकाओं के २८ मूलगुण ही होते हैं ऐसी मूलाचारानुसार आचार्यश्री शांतिसागर परम्परा की वाणी है।
प्रश्न २७३ -आर्यिका अवस्था में समाधिमरण करके किस स्वर्ग तक पद प्राप्त हो सकता है ?
उत्तर -सोलह स्वर्ग तक इन्द्र-प्रतीन्द्र देव आदि की पदवी आर्यिकाएँ समाधिमरण करके प्राप्त कर सकती हैं।
प्रश्न २७४ -द्रव्यानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में जीवादिक सप्त तत्व, नव पदार्थों का वर्णन हो, उन्हें द्रव्यानुयोगविषयक ग्रंथ कहते हैं।
प्रश्न २७५ -द्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर -द्रव्य के छह भेद हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
प्रश्न २७६ -नवपदार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप, ये ९ पदार्थ हैं।
प्रश्न २७७ -द्रव्यानुयोग का सर्वाधिक प्राचीन कौन सा ग्रंथ है ?
उत्तर -समयसार ग्रंथ जो कि आज से दो हजार वर्ष पुराना है।
प्रश्न २७८ -आर्यिकाओं को शुक्लध्यान हो सकता है या नहीं ?
उत्तर -नहीं। आर्यिकाओं को शुक्लध्यान नहीं हो सकता है।
प्रश्न २७९ -उन्हें स्वरूपाचरण चारित्र होता है या नहीं ?
उत्तर -नहीं। उन्हें स्वरूपाचरण चारित्र नहीं होता है।
प्रश्न २८० -आजकल कुछ विद्वान चतुर्थ गुणस्थान में भी स्वरूपाचरण मानते हैं तब पंचम गुणस्थानवर्ती आर्यिकाओं को स्वरूपाचरण क्यों नहीं हो सकता है ?
उत्तर -स्वरूपाचरण चारित्र दिगम्बर महामुनियों के अतिरिक्त किसी को भी नहीं हो सकता है। जैसा कि छहढाला में भी कहा है ‘‘यों है सकल संयमचरित, सुनिये स्वरूपाचरण अब। जिस होत प्रगटे आपनी निधि, मिटे पर की प्रवृत्ति सब।।’’ अर्थात् शुक्लध्यान की अवस्था में ही मुनियों को स्वरूपाचरण चारित्र होता है। आर्यिका एवं श्रावकादि को स्वरूपाचरण चारित्र कदापि नहीं हो सकता है।
प्रश्न २८१ -चतुर्थ गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टि असंयमी मनुष्यों के कोई चारित्र माना गया है या नहीं ?
उत्तर -सामान्यतया असंयत सम्यग्दृष्टि को चारित्र नहीं होता है। हाँ! चारित्रपाहुड़ ग्रंथ में सम्यक्त्वरूप सदाचरण को सम्यक्त्वाचरण चारित्र कह दिया है।
प्रश्न २८२ -आत्मा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा।
प्रश्न २८३ -बहिरात्मा का क्या लक्षण है ?
उत्तर -शरीर, पुत्र, मित्र, मकान, वैभव आदि को आत्मस्वरूप मानने वाला, उनके संयोग-वियोग में निज आत्मा को एकान्त से सुखी-दुखी अनुभव करने वाला बहिरात्मा कहलाता है।
प्रश्न २८४ -अन्तरात्मा किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो आत्मा और शरीर को तथा अन्य समस्त परवस्तुओं को आत्मा से भिन्न समझकर उनके संयोग-वियोग में आत्मा को सुखी-दु:खी अनुभव नहीं करते हैं वे अन्तरात्मा कहलाते हैं।
प्रश्न २८५ -परमात्मा कौन कहलाते हैं ?
उत्तर -कर्मों का नाश करने वाले अरहन्त और सिद्ध भगवान परमात्मा कहलाते हैं।
प्रश्न २८६ -परमात्मा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सकल परमात्मा, निकल परमात्मा।
प्रश्न २८७ -सकल परमात्मा किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -चार घातिया कर्मों का नाश करने वाले शरीर सहित अरिहंत परमेष्ठी जब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते हैं तब तक सकल परमात्मा की संज्ञा से जाने जाते हैं।
प्रश्न २८८ -निकल परमात्मा का क्या लक्षण है ?
उत्तर -आठों कर्मों का नाश करने वाले, शरीर रहित सिद्ध परमेष्ठी निकल परमात्मा कहे जाते हैं।
प्रश्न २७९ -अन्तरात्मा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-उत्तम अन्तरात्मा, मध्यम अन्तरात्मा, जघन्य अन्तरात्मा।
प्रश्न २९० -इन तीनोें की क्या पहचान है ?
उत्तर -बारहवें गुणस्थान वाले मुनिराज उत्तम अन्तरात्मा हैं। पाँचवें गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान वाले देशसंयमी एवं सकलसंयमी मध्यम अन्तरात्मा हैं तथा चतुर्थ गुणस्थानवर्ती असंयमी सम्यग्दृष्टि नर-नारी आदि जघन्य अन्तरात्मा हैं।
प्रश्न २९१ -आर्यिकाएँ कौन सी आत्मा हैं ?
उत्तर -मध्यम अन्तरात्मा की श्रेणी में आर्यिकाएँ आती हैं।
प्रश्न २९२ -नय किसे कहते हैं ?
उत्तर -वस्तु के एक-एक अंश को कहने वाला नय कहलाता है।
प्रश्न २९३ -नय के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-व्यवहारनय, निश्चयनय।
प्रश्न २९४ -व्यवहार नय के अनुसार ज्ञानमती माताजी का क्या स्वरूप है ?
उत्तर -व्यवहारनयानुसार ज्ञानमती माताजी एक महिला हैं, साध्वी हैं, गणिनी माताजी हैं।
प्रश्न २९५ -निश्चयनयानुसार उनका क्या स्वरूप है ?
उत्तर -निश्चयनय से वे शुद्ध-बुद्ध-नित्य-निरंजन-परमात्मास्वरूप भगवान आत्मा हैं।
प्रश्न २९६ -व्यवहार और निश्चयनय के कथन में इतनी भिन्नता क्यों है ?
उत्तर -क्योंकि व्यवहार नय कर्मोपाधि से सहित आत्मा का कथन करता है और निश्चयनय कर्मोपाधि से रहित शुद्ध आत्मा का कथन करता है। दोनों नयों में शक्ति और व्यक्ति का अन्तर है अर्थात् निश्चय नय अमूर्तिक आत्मा की शक्ति बताता है और व्यवहार नय व्यक्तरूप में प्रकट स्थिति का कथन करता है।
प्रश्न २९७ -व्यवहारनय से ज्ञानमती माताजी ने कौन सी शक्ति प्रगट की है ?
उत्तर -व्यवहारनय से पूज्य माताजी अपने मूलगुणों का पालन करती हैं, शिष्यों को शिक्षा देती हैं, जगह-जगह भ्रमण करके अहिंसा धर्म का उपदेश देती हैं।
प्रश्न २९८ -निश्चयनय की अपेक्षा उन्होंने अपनी आत्मशक्ति किस रूप में प्रगट की है ?
उत्तर -निश्चयनय से आत्मा अनन्त शक्तिमान है, इस बात का रहस्य जानकर ही उन्होंने उसे प्रकट करने हेतु इस दुरूह त्याग को स्वीकार किया है। समस्त व्यवहारिक क्रियाएँ करते हुए भी आत्मसिद्धि की ओर ही उनका परम लक्ष्य रहता है।
प्रश्न २९९ -निश्चयनय से ज्ञानमती माताजी के साथ गुरु-शिष्य संबंध वैâसे बनेगा ?
उत्तर -निश्चयनय से माताजी का न कोई गुरु है और न कोई शिष्य है। उनकी आत्मा ही उनका वास्तविक गुरु और वास्तविक शिष्य है।
प्रश्न ३०० -क्या पंचमकाल में निश्चयनयस्वरूप आत्मतत्त्व की प्राप्ति हो
सकती है ?
उत्तर -नहीं, पंचमकाल में निश्चयनयस्वरूप आत्मतत्त्व की श्रद्धा मात्र हो सकती है प्राप्ति नहीं।
प्रश्न ३०१ -तब इस कलिकाल में नर-नारियों को मुनि-आर्यिका के व्रत धारणकर घोर कष्ट सहने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर -कई भवों में तपस्या का अभ्यास करने वाले मनुष्य ही आत्मसिद्धिपूर्वक मोक्ष प्राप्त कर पाते हैं यही आज के युग में मुनि-आर्यिका व्रत धारण करने में हेतु है।
प्रश्न ३०२ -द्रव्यानुयोग की सार्थकता हमारे जीवन में क्या होनी चाहिए ?
उत्तर -हम भी द्रव्यदृष्टि से अपने शुद्ध आत्मतत्त्व की श्रद्धा करते हुए व्यवहार दृष्टि से उसे प्रगट करने हेतु व्रत, नियम, संयम का यथाशक्ति पालन करें, यही मानव जीवन में द्रव्यानुयोग की सार्थकता समझना चाहिए।
प्रश्न ३०३ -द्रव्यानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिस अनुयोग के ग्रंथों में द्रव्यों का विवेचन रहता है उन्हें द्रव्यानुयोग कहते हैं। जैसे-द्रव्यसंग्रह, समयसार, नियमसार आदि।
प्रश्न ३०४ -पुद्गल का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिसमें पूरण-गलन स्वभाव पाया जाता है उसे पुद्गल कहते हैं। जैसे-शरीर, लकड़ी आदि।
प्रश्न ३०५ -आत्मा का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिसमें चैतन्य गुण पाया जाता है उस अक्षय, अविनाशी जीव द्रव्य को आत्मा कहते हैं।
प्रश्न ३०६ -जीव द्रव्य के कितने अधिकार हैं जिनसे उसकी पहचान होती है ?
उत्तर -जीव द्रव्य के नौ अधिकार हैं। जैसे-१. जीवत्व २. उपयोगमयत्व
३. अमूर्तत्व ४. कर्तृत्व ५. स्वदेहप्रमाणत्व ६. भोक्तृत्व ७. संसारित्व ८. सिद्धत्व ९. स्वाभाविक ऊर्ध्वगमनत्व।
प्रश्न ३०७ -पुद्गल के कितने गुण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्श, रस, गंध, वर्ण ये ४ गुण मुख्यरूप से पुद्गल के होते हैं।
प्रश्न ३०८ -स्पर्श के कितने भेद हैं ?
उत्तर -८ भेद हैं-हल्का, भारी, कड़ा, नरम, रूखा, चिकना, ठण्डा, गरम।
प्रश्न ३०९ -रस कितने प्रकार का है ?
उत्तर -पाँच प्रकार का है-खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला, चरपरा।
प्रश्न ३१० -गंध के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सुगंध और दुर्गन्ध।
प्रश्न ३११ -वर्ण के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-काला, सफेद, नीला, पीला, लाल।
प्रश्न ३१२ -परमाणु किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुद्गल के जिस अणु का दूसरा भाग न किया जा सके उसे परमाणु कहते हैं।
प्रश्न ३१३ -स्कन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुद्गल के दो अणुओं से लेकर संख्यात, असंख्यात अणुओं का जहाँ एकत्रीकरण हो जाता है, वही परमाणुओं का समूह स्कंध कहलाता है।
प्रश्न ३१४ -घातिया और अघातिया कर्म क्या होते हैं ?
उत्तर -जो आत्मा के गुणों का घात करते हैं वे घातिया कर्म कहलाते हैं और जो आत्मा के साथ रहते हुए भी आत्मा के गुणों को नष्ट नहीं करते हैं, वे अघातिया कर्म होते हैं।
प्रश्न ३१५ -वे कर्म कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -घातिया कर्म ४ हैं-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय।
अघातिया कर्म भी ४ हैं-वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र।
प्रश्न ३१६ -वर्तमान का मानव कितने कर्मों का नाश कर सकता है ?
उत्तर -वर्तमान का युग कलियुग कहलाता है। यहाँ का मानव पूर्णरूप से किसी कर्म का नाश नहीं कर सकता है इसीलिए आज अरिहन्त और सिद्ध ये दो परमेष्ठी नहीं हैं मात्र उनके प्रतिबिम्ब- मूर्तियाँ मंदिरों में विराजमान हैं तथा आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन परमेष्ठी प्रत्यक्ष में देखे जा रहे हैं।
प्रश्न ३१७ -ध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -चार भेद हैं-आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान।
प्रश्न ३१८ -आर्तध्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर -अपने इष्ट का वियोग एवं अनिष्ट का संयोग होने पर सतत उसी का चिंतन करते रहना आर्तध्यान कहलाता है।
प्रश्न ३१९ -आर्तध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -चार भेद हैं-इष्टवियोगज, अनिष्ट संयोगज, वेदनाजन्य और निदानज।
प्रश्न ३२० -इन चारों के लक्षण बताइए ?
उत्तर -इष्ट वस्तु का वियोग होने पर उसकी प्राप्ति का सतत प्रयास एवं चिन्तन करते हुए दुखी रहना इष्टवियोगज आर्तध्यान है। अनिष्ट का संयोग होने पर उसे दूर करने का सतत प्रयत्न एवं चिंतन करते हुए दुखी रहना अनिष्टसंयोगज आर्तध्यान है। शरीर में रोगादि के निमित्त से तीव्र वेदना होने पर शरीर की ही चिन्ता करते रहना वेदनाजन्य आर्तध्यान है। पुण्य कर्म करते हुए आगामी भव के लिए भोगों की आकांक्षा करके तज्जन्य कर्मबंध कर लेना निदानज आर्तध्यान कहलाता है।
प्रश्न ३२१ -रौद्रध्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर -क्रूर परिणामों का होना रौद्रध्यान कहलाता है।
प्रश्न ३२२ -रौद्रध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -चार भेद हैं-हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी।
प्रश्न ३२३ -चारों रौद्रध्यानों के अलग-अलग लक्षण क्या हैं ?
उत्तर -पर की हिंसा में आनन्द मानना हिंसानन्दी रौद्रध्यान है। झूठ बोलने या बुलवाने में आनन्दानुभूति होना मृषानन्दी रौद्रध्यान है। चोरी करने या करवाने में प्रसन्नता का अनुभव करना चौर्यानन्दी रौद्रध्यान है। अतिपरिग्रह का संचय करके हर्षित होना परिग्रहानन्दी रौद्रध्यान है।
प्रश्न ३२४ -आर्त-रौद्रध्यान किस गुणस्थान तक के जीवों को हो सकते हैं ?
उत्तर -आर्तध्यान पहले गुणस्थान से लेकर छठे गुणस्थान तक के जीवों के होता है तथा रौद्रध्यान पाँचवें गुणस्थान तक ही होता है, इससे ऊपर नहीं।
प्रश्न ३२५ -धर्मध्यान का क्या लक्षण है ?
उत्तर -आर्त-रौद्र दोनों ध्यानों से हटकर जिनधर्म के प्रति अनुराग भाव करके एकाग्रपरिणति होना धर्मध्यान कहलाता है।
प्रश्न ३२६ -धर्मध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -चार भेद हैं-आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय, संस्थानविचय।
प्रश्न ३२७ -चारों धर्मध्यानों के लक्षण बताएँ ?
उत्तर -सर्वज्ञ प्रणीत जैनागम को प्रमाण मानना आज्ञाविचय धर्मध्यान है। प्राणियों के मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र को दूर करके सन्मार्ग के प्रचार पर विचार करना अपायविचय धर्मध्यान है।
अष्टकर्मों के फल का विचार करना विपाकविचय धर्मध्यान है और तीन लोक के आकार का विचार करना संस्थानविचय धर्मध्यान है।
प्रश्न ३२८ -धर्मध्यान कौन से गुणस्थान तक रहता है ?
उत्तर -अप्रमत्तसंयत नामक सातवें गुणस्थानवर्ती मुनि के उत्कृष्टरूप से साक्षात् धर्मध्यान होता है तथा चतुर्थ, पंचम एवं छठे गुणस्थान वाले जीवों के भी धर्मध्यान ही होता है।
प्रश्न ३२९ -शुक्लध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -चार भेद हैं-पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवर्ति।
प्रश्न ३३० -ये शुक्लध्यान किन जीवों के होते हैं ?
उत्तर -पूर्वज्ञानधारी श्रुतकेवली मुनियों के पृथक्त्ववितर्क और एकत्व-वितर्क शुक्लध्यान होते हैं। सयोगकेवली नामक तेरहवें गुणस्थानवर्ती अरहन्त परमेष्ठियों के सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति शुक्ल-ध्यान होता है तथा अयोगकेवली के व्युपरतक्रियानिवर्ति नाम का शुक्लध्यान होता है।
प्रश्न ३३१ -ध्यान का उत्कृष्ट लक्षण किन जीवों में घटित होता है ?
उत्तर -उत्तम संहननधारी जीवों के एकाग्रचिन्तानिरोधरूप ध्यान अन्तर्मुहूर्त तक होता है।
प्रश्न ३३२ -देवदर्शन की प्रतिज्ञा में किस सती का नाम प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर -सती मनोवती ने गजमोती चढ़ाकर प्रतिदिन देवदर्शन करने की प्रतिज्ञा ली थी।
प्रश्न ३३३ -मनोवती सती को किस स्थान पर देवों द्वारा निर्मित मंदिर प्राप्त हुआ था ?
उत्तर -रतनपुरी (रौनाही) में, जो भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि है।
प्रश्न ३३४ -सती अंजना को २२ वर्ष तक पति वियोग क्यों सहना पड़ा था ?
उत्तर -क्योंकि किसी पूर्व भव में उसने रानी कनकोदरी की पर्याय में सौत की ईर्ष्या के कारण जिनेन्द्र प्रतिमा को बावड़ी में डालकर अपमान किया था।
प्रश्न ३३५ -सती चन्दना की बेड़ियाँ वैâसे कटी थीं ?
उत्तर -तीर्थंकर महावीर को आहार देने की उत्कृष्ट भावना से उनका पड़गाहन करते ही चन्दना की बेड़ियाँ टूट गईं, उसके मुंडे हुए सिर पर केश आ गये एवं उसका कोदों का भात शालिधान्य बन गया था।
प्रश्न ३३६ -किस सती के प्रभाव से काला नाग पुष्पहार बन गया था ?
उत्तर -सती सोमा के रात्रि भोजन न करने के प्रभाव से उसको मारने की इच्छा से सास के द्वारा घड़े में रखा गया नाग भी सोमा के छूने पर पुष्पहार बन गया था।
प्रश्न ३३७ -मुनि के गले में मरा हुआ सर्प किस राजा ने डाला था ?
उत्तर -राजा श्रेणिक ने।
प्रश्न ३३८ -मुनि ने अपने गले से सर्प निकालकर क्यों नहीं फेंका ?
उत्तर -क्योंकि वे भावलिंगी सच्चे मुनि थे जो कि उपसर्गों से विचलित नहीं होते थे।
प्रश्न ३३९ -पुन: उनका उपसर्ग किसने दूर किया था ?
उत्तर -रानी चेलना ने राजा श्रेणिक के साथ जाकर मुनि के गले में पड़ा हुआ सर्प निकालकर उनका उपसर्ग दूर किया था।
प्रश्न ३४० -कौन सी रानी ऐसी थी जिसे रोना ही मालूम नहीं था ?
उत्तर -हस्तिनापुर के राजा अशोक की रानी रोहिणी थी, जिसे ‘‘रोना किसे कहते हैं’’ यह ज्ञात ही नहीं था।
प्रश्न ३४१ -किस व्रत के प्रभाव से उसे ऐसा पुण्य प्राप्त हुआ था ?
उत्तर -पूर्व जन्म में उसने ‘‘रोहिणी व्रत’’ किया था उसके प्रभाव से उसे जीवन में कभी रोना नहीं पड़ा।
प्रश्न ३४२ -रोहिणी व्रत वैâसे और कब किया जाता है ?
उत्तर -प्रतिमाह में २७वें दिन एक बार आकाश में ‘‘रोहिणी’’ नामक नक्षत्र उदित होता है उसी दिन भगवान वासुपूज्य की अभिषेक-पूजन करके उपवास या एकाशन से यह व्रत सम्पन्न किया जाता है। पंचांंग से इसकी तिथि की जानकारी होती है।
प्रश्न ३४३ -कितने वर्षों तक यह व्रत करना होता है ?
उत्तर -३ वर्ष, ५ वर्ष, ७ वर्ष या ९ वर्षों तक इस व्रत को करके उद्यापन किया जाता है।
प्रश्न ३४४ -सती राजुल ने कहाँ तपस्या की थी ?
उत्तर -गिरनार पर्वत के शिरसा वन में।
प्रश्न ३४५ -आर्यिकाओं के कौन सा गुणस्थान होता है ?
उत्तर -पाँचवाँ देशविरत गुणस्थान आर्यिकाओं के होता है।
प्रश्न ३४६ -क्या वे क्षुल्लक-ऐलक के द्वारा भी पूज्य होती हैं ?
उत्तर -हाँ! क्योंकि वे उपचार से महाव्रती होती हैं।
प्रश्न ३४७ -क्या आर्यिकाएँ ११ अंग और १४ पूर्व तक ग्रंथों का अध्ययन कर सकती हैं ?
उत्तर -ग्यारह अंग तक अध्ययन कर सकती हैं पूर्वों का नहीं। जैसा कि सुलोचना आर्यिका का उदाहरण आता है-एकादशांग भृज्जाता सार्यिकापि सुलोचना।’’
प्रश्न ३४८ -सती सीता के पुत्रों को किसने विद्याध्ययन करवाया था ?
उत्तर -‘‘सिद्धार्थ’’ नाम के क्षुल्लक जी ने लव-कुश नामक उनके दोनों पुत्रों को समस्त विद्याओं में पारंगत किया था।
प्रश्न ३४९ -सीता सती का जीवन आदर्श क्यों बना ?
उत्तर -क्योंकि उसने पातिव्रत्य धर्म का पालन किया था।
प्रश्न ३५० -वैâकेयी ने पति से कितने वरदान माँगे थे ?
उत्तर -जैन रामायण के अनुसार वैâकेयी ने पति दशरथ से केवल एक ही वरदान मांगा था कि ‘‘मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी प्रदान करें।’’
प्रश्न ३५१ -क्या वैâकेयी की राम के प्रति द्वेष भावना नहीं थी ?
उत्तर -कदापि नहीं, केवल पुत्र मोह के कारण उसने भरत के लिए राज्य मांगा था, क्योंकि भरत घर छोड़कर दीक्षा लेना चाहते थे।
प्रश्न ३५२ -तब राम को वनवास क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर -अयोध्या में राम के उपस्थित रहते हुए प्रजा भरत का शासन स्वीकार नहीं करती, इसलिए राम स्वेच्छा से वन प्रस्थान कर गये थे।
प्रश्न ३५३ -राम के साथ लक्ष्मण का नाम क्यों स्मरण किया जाता है ?
उत्तर -भ्रातृप्रेम के कारण।
प्रश्न ३५४ -लक्ष्मण की पट्टरानी का क्या नाम था ?
उत्तर -विशल्या।
प्रश्न ३५५ -विशल्या किसकी कन्या थी ?
उत्तर -राजा द्रोणमेघ की कन्या थी।
प्रश्न ३५६ -विशल्या में क्या विशेषता थी ?
उत्तर -उसके स्नान किये हुए जल का स्पर्श करने वाले रोगी निरोग हो जाते थे।
प्रश्न ३५७ -उसे ऐसी शक्ति वैâसे प्राप्त हुई थी ?
उत्तर -उसने पूर्व जन्म में अनंगशरा कन्या की पर्याय में हजारों वर्षों तक जंगल में तपस्या की थी तथा अन्त में संन्यासपूर्वक मरण किया था, इसलिए उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि युद्धक्षेत्र में विशल्या के आते ही लक्ष्मण के शरीर से अमोघ शक्ति निकलकर भाग गई थी।
प्रश्न ३५८ -औषधिदान में किसका नाम प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर -वृषभसेना का।
प्रश्न ३५९ -सम्यग्दर्शन के अमूढ़दृष्टि अंग में कौन सी रानी का नाम प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर -रेवती रानी का।
प्रश्न ३६० -कोटिभट्ट श्रीपाल की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर -सती मैना सुन्दरी।
प्रश्न ३६१ -क्या स्त्रियों को केवलज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ?
उत्तर -नहीं।
प्रश्न ३६२ -रावण की माता का क्या नाम था ?
उत्तर -केकसी।
प्रश्न ३६३ -सीता का जीव मरकर कहाँ गया ?
उत्तर -बारहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ जो आज भी वहाँ स्वर्ग सुखों को भोग रहा है।
प्रश्न ३६४ -पांडवों की माता का क्या नाम था ?
उत्तर -युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माँ का नाम कुन्ती था और नकुल-सहदेव की माता का नाम माद्री था।
प्रश्न ३६५ -तीर्थंकर किसे कहते हैं ?
उत्तर -धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, पंचकल्याणक प्राप्त करने वाले महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं।
प्रश्न ३६६ -तीर्थंकर कितने होते हैं ?
उत्तर -चौबीस तीर्थंकर होते हैं।
प्रश्न ३६७ -चक्रवर्ती कितने होते हैं ?
उत्तर -बारह चक्रवर्ती होते हैं।
प्रश्न ३६८ -बलभद्र कितने होते हैं ?
उत्तर -नौ।
प्रश्न ३६९ -नारायण कितने हुए हैं ?
उत्तर -नौ।
प्रश्न ३७० -प्रतिनारायण कितने हुए हैं ?
उत्तर -नौ।
प्रश्न ३७१ -तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण ये त्रेसठ शलाका पुरुष कब पैदा होते हैं ?
उत्तर -चतुर्थकाल (सतयुग) में।
प्रश्न ३७२ -धर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो प्राणियों को उत्तम सुख में पहुँचाता है, उसे धर्म कहते हैं।
प्रश्न ३७३ -मनुष्य कितनी उम्र में साधुओं को आहार देने का अधिकारी होता है ?
उत्तर -८ वर्ष की उम्र के बाद बालक-बालिकाएँ आहारदान, पूजन और दीक्षा लेने के अधिकारी हो जाते हैं।
प्रश्न ३७४ -अकलंक-निकलंक ने विवाह क्यों नहीं किया था ?
उत्तर -अनेकान्तमयी जैनधर्म की प्रभावना करने के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया था।
प्रश्न ३७५ -निकलंक ने अपने प्राणों का बलिदान क्यों किया था ?
उत्तर -जिनधर्म की रक्षा के लिए।
प्रश्न ३७६ -तारादेवी से ६ माह तक शास्त्रार्थ किसने किया था ?
उत्तर -जैन मुनि अकलंक देव ने।
प्रश्न ३७७ -अंडा खाना शाकाहार है या माँसाहार ?
उत्तर -मांसाहार है, क्योंकि अंडा मुर्गी के पेट से ही पैदा होता है किसी वृक्ष से नहीं।
प्रश्न ३७८ -भारत सरकार अंडे के व्यापार को कृषि-खेती के नाम से प्रचारित करताr है, सो देश के साथ धोखा है या नहीं ?
उत्तर -देशवासियों के साथ यह महान विश्वासघात है। हमारी भारतीय संस्कृति अहिंसा प्रधान संस्कृति है अत: अंडे के इस दुष्प्रचार हेतु समस्त अहिंसाप्रेमियों को भारत सरकार के पास विरोध- पत्र भेजना चाहिए।
प्रश्न ३७९ -शाकाहार और मांसाहार की क्या परिभाषा है ?
उत्तर -पेड़ों से उत्पन्न हुए फल, अन्न, मेवा, सब्जी, शाकाहार कहलाते हैं। शाकाहारी वस्तुओं में खून, पीव, हड्डी, माँस नहीं होता है तथा जानवरों को मारकर उत्पन्न हुई वस्तुएँ माँसाहार कहलाती हैं। जैसे-अंडा, माँस आदि।
प्रश्न ३८० -शराब में क्या दोष है ?
उत्तर -वस्तुओं को सड़ाकर शराब बनाई जाती है अत: उसमें असंख्य जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। मादकता होने के कारण मनुष्य उसे पीकर मदोन्मत्त हो जाता है। पैसे और स्वास्थ्य की बर्बादी होती है अत: शराब का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।
प्रश्न ३८१ -ऑप्रेशन के साथ खून चढ़वाने से क्या माँसाहार का पाप लगता है ?
उत्तर -माँसाहार का पाप तो नहीं, किन्तु शाकाहार में दोष अवश्य लगता है अत: लाचारी में यदि खून चढ़वाना पड़े तो उसके बाद गुरु से प्रायश्चित्त अवश्य लेना चाहिए।
प्रश्न ३८२ -अपने खून या गुर्दे का दान देना पुण्य है या पाप ?
उत्तर -जैनशासन में खून-मांस का दान देना नहीं बताया है क्योंकि ये पाप के कारण हैं किन्तु यदि किसी की प्राणरक्षा हेतु अपना खून या गुर्दा दिया जाता है, तो परोपकार या करुणादान का पुण्य तो मिलता ही है।
प्रश्न ३८३ -नेत्र शिविर लगाना किस दान में आता है ?
उत्तर -नेत्र शिविर में आये हुए शिविरार्थियों को शराब, अंडे, मांस आदि का त्याग अवश्य कराकर शिविर में भर्ती करना चाहिए, तब करुणादान तथा औषधिदान का पुण्य प्राप्त होता है, अन्यथा पाप का बंध होता है, क्योंकि यदि नेत्र प्राप्त करके व्यक्ति पुन: मांसाहारी या व्यसनी बन जाता है तो नेत्र शिविर में लगाया गया द्रव्य निरर्थक हो जाता है।
प्रश्न ३८४ -बालकों को प्रारंभिक ज्ञान के लिए कौन सी पुस्तकें पढ़नी चाहिए ?
उत्तर -बालविकास नामक सचित्र चार भाग हैं उन्हें जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर से मंगवाकर अवश्य अध्ययन करना चाहिए। इससे बालक-बालिकाओं में प्रारंभ से ज्ञान की नींव मजबूत होती है।
प्रश्न ३८५ -ज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान।
प्रश्न ३८६ -पद्मपुराण के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर -आचार्य श्री रविषेण स्वामी।
प्रश्न ३८७ -पूजन क्यों की जाती है ?
उत्तर -पूज्य बनने के लिए।
प्रश्न ३८८ -विद्यार्थी का प्रमुख कर्त्तव्य क्या है ?
उत्तर -विद्याध्ययन करना और गुरु आज्ञा का पालन करना विद्यार्थी का प्रमुख कर्त्तव्य है।
प्रश्न ३८९ -गुरु भक्ति में कौन प्रसिद्ध हुए हैं ?
उत्तर -सम्राट चन्द्रगुप्त गुरु भक्ति में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं।
प्रश्न ३९० -चन्द्रगुप्त के गुरु का क्या नाम था ?
उत्तर -भद्रबाहु श्रुतकेवली।
प्रश्न ३९१ -क्या चन्द्रगुप्त ने भी मुनिदीक्षा धारण की थी ?
उत्तर -हाँ, चन्द्रगुप्त ने भद्रबाहु श्रुतकेवली से मुनि दीक्षा धारण की थी।
प्रश्न ३९२ -चन्द्रगुप्त ने किस प्रकार से गुरु भक्ति की थी ?
उत्तर -अपने गुरु की उन्होंने सच्चे हृदय से भक्ति की थी, जिसके प्रभाव से जंगल में भी देवताओं ने नगर बसाकर उन्हें १२ वर्षों तक आहार दिया था।
प्रश्न ३९३ -उन्होंने देवताओं से आहार वैâसे ले लिया, जब आगम में निषिद्ध है ?
उत्तर -चन्द्रगुप्त ने जानबूझकर देवताओं से आहार नहीं लिया था, क्योंकि वे मनुष्य का रूप धारण करके नवधाभक्ति से विधिपूर्वक उन्हें आहार देते थे। १२ वर्षों के बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ, तब प्रायश्चित्त लिया पुन: वे उस स्थान से चले गये।
प्रश्न ३९४ -सोते समय या मूर्च्छित अवस्था में मनुष्य जीव है या अजीव ?
उत्तर -जीव है, क्योंकि उसके श्वांस प्रक्रिया जारी रहती है।
प्रश्न ३९५ -संसार में सबसे तेज गति किसकी होती है ?
उत्तर -मन की गति सबसे तेज होती है जिसकी कोई सीमा नहीं है।
प्रश्न ३९६ -जैनधर्म सम्प्रदाय है या मात्र धर्म है ?
उत्तर -जैनधर्म केवल धर्म है न कि सम्प्रदाय।
प्रश्न ३९७ -जैनधर्म को किसने चलाया है ?
उत्तर -जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। इसे न किसी ने चलाया है और न कोई इसे नष्ट कर सकता है।
प्रश्न ३९८ -जैन किसे कहते हैं ?
उत्तर -कर्म शत्रुओं को जीतने वाले महापुरुष जिन कहलाते हैं उन जिन के उपासक भक्त जैन कहलाते हैं। इस व्याख्या के अनुसार प्रत्येक प्राणी जैनधर्म को धारण करने का अधिकारी हो सकता है।
प्रश्न ३९९ -बारह भावनाओं के नाम बताओ ?
उत्तर -१. अनित्य २. अशरण ३. संसार ४. एकत्व ५. अन्यत्व ६. अशुचि ७. आश्रव ८. संवर ९. निर्जरा १०. लोक ११. बोधिदुर्लभ १२. धर्म।
प्रश्न ४०० -अनित्य भावना का क्या लक्षण है ?
उत्तर -संसार के समस्त पदार्थ इन्द्रधनुष, बिजली अथवा जल के बबूले के समान शीघ्र नष्ट होने वाले हैं, ऐसा विचार करना अनित्य भावना है।
प्रश्न ४०१ -संसार भावना का स्वरूप बताओ ?
उत्तर -इन चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करता हुआ जीव पिता से पुत्र, पुत्र से पिता, स्वामी से दास, दास से स्वामी हो जाता है और तो क्या, स्वयं अपना भी पुत्र हो जाता है, इत्यादि संसार के दु:खमय स्वरूप का विचार करना, संसार भावना है।
प्रश्न ४०२ -संसार कितने प्रकार का है ?
उत्तर -पाँच प्रकार का है-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव।
प्रश्न ४०३ -श्रावकाचार आज कितने छप चुके हैं ?
उत्तर -३६ श्रावकाचार छप चुके हैं।
प्रश्न ४०४ -तीन हवन कुण्डों के नाम बताओ ?
उत्तर -१. तीर्थंकर कुण्ड २. गणधर कुण्ड ३. केवली कुण्ड।
प्रश्न ४०५ -त्रिकोण कुण्ड में किनके शरीर का संस्कार इन्द्र करते हैं ?
उत्तर -गणधर के शरीर का संस्कार करते हैं।
प्रश्न ४०६ -प्रतिक्रमण का क्या लक्षण है ?
उत्तर -प्रतिक्रमण का लक्षण पिछले दोषों की आलोचना करना है।
प्रश्न ४०७ -प्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर -भविष्य के दोषों का त्याग करना प्रत्याख्यान है।
प्रश्न ४०८ -सप्तभंगी किसे कहते हैं ?
उत्तर -‘‘प्रश्नवशाद् एकस्मिन् वस्तुनि अविरोधेन विधिप्रतिषेध कल्पना सप्तभंगी।’’ अर्थात् प्रश्न के निमित्त से एक ही वस्तु में अविरोधरूप विधि और प्रतिषेध की कल्पना सप्तभंगी है।
प्रश्न ४०९ -सप्तभंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -१. स्यादस्ति २. स्यान्नास्ति ३. स्यादस्तिनास्ति ४. स्यादवक्तव्य
५. स्यादस्ति अवक्तव्य ६. स्यान्नास्ति अवक्तव्य ७. स्यादस्ति-नास्ति अवक्तव्य।
प्रश्न ४१० -स्याद्वाद जैन शासन की क्या विशेषता है ?
उत्तर -स्याद्वाद जैन शासन में अनेकांत मत को माना है। एकांत मत को स्वीकार नहीं किया है।
प्रश्न ४११ -सप्तभंग कहाँ घटित होता है ?
उत्तर -प्रत्येक वस्तु में सप्तभंगी घटित हो सकती है।
प्रश्न ४१२ -जैनधर्म के ऊपर सातों भंग घटित करें ?
उत्तर -१. जैनधर्म नित्य, शाश्वत है।
२. जैनधर्म परमत की अपेक्षा-नास्ति रूप है।
३. जैनधर्म क्रमानुसार स्वसत्ता से अस्ति है और परसत्ता से नास्ति भी है।
४. जैनधर्म युगपत् एक साथ अस्ति-नास्ति रूप नहीं कहा जा सकता है।
५. जैनधर्म अपने रूप है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है।
६. जैनधर्म पररूप से नास्ति है और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है।
७. जैनधर्म स्व की अपेक्षा अस्ति, पर की अपेक्षा नास्ति और युगपत् की अपेक्षा अवक्तव्य है।
प्रश्न ४१३ -ईर्यापथ शुद्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर -चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ईर्यापथ शुद्धि है।
प्रश्न ४१४ -एक बार णमोकार मंत्र में कितने श्वासोच्छ्वास होना चाहिए ?
उत्तर -तीन स्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ४१५ -तीन अग्नि के क्या नाम हैं ?
उत्तर -१. गार्हपत्य २.आह्वनीय ३. दक्षिणाग्नि।
प्रश्न ४१६ -रामचंद्र और बाहुबली कौन-कौन से केवली हैं ?
उत्तर -सामान्य केवली।
प्रश्न ४१७ -श्रावकों को दिन में कितनी बार पूजन करने का विधान है ?
उत्तर -तीन बार पूजन करने का विधान है।
प्रश्न ४१८ -सर्वतोभद्र पूजन कौन करते हैं ?
उत्तर -‘महामंडलीक राजा’ सर्वतोभद्र पूजन करते हैं।
प्रश्न ४१९ -चौदह जीवसमास कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -एकेन्द्रिय के दो भेद-बादर, सूक्ष्म। विकलेन्द्रिय के तीन भेद-दो इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय। पंचेन्द्रिय के दो भेद-संज्ञी-असंज्ञी, इन सातों को पर्याप्त-अपर्याप्त से गुणा करने पर ७²२·१४ जीवसमास होते हैं।
प्रश्न ४२० -५७ जीवसमास वैâसे होते हैं ?
उत्तर -पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्यनिगोद, इतर निगोद। इन छह के बादर और सूक्ष्म से १२ भेद हुए। प्रत्येक वनस्पति के २ भेद सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित। त्रस के ५ भेद-ये सब मिला देने पर १२±२±५·१९ भेद हुए। इनमें पर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ५७ जीवसमास हुए।
प्रश्न ४२१ -९८ जीवसमास वैâसे होते हैं ?
उत्तर -उक्त ५७ भेद में से पंचेन्द्रिय संबंधी ६ निकालने से ५१ बचे। कर्मभूमि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के गर्भज-सम्मूर्च्छन ये २ भेद हैं। गर्भज के जलचर, थलचर, नभचर ये ३ भेद हैं इनमें संज्ञी-असंज्ञी से २ भेद, तो ३²२·६ हुए पुन: इनके पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त दो भेद करने से ६²२·१२ भेद हुए। पंचेन्द्रिय सम्मूर्च्छन के जलचर, थलचर, नभचर। इनके संज्ञी-असंज्ञी दो भेद, ३²२·६ हुए। इन ६ को पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त इन ३ से गुणा करने पर ६²३·१८ हुए। इस प्रकार कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के १२±१८·३० भेद हुए।
भोगभूमि तिर्यंच के स्थलचर, नभचर २ भेद, इनके पर्याप्त-निर्वृत्यपर्याप्त २ से गुणा करने पर ४ हुए। पुन: आर्यखंड में मनुष्यों के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त ये ३ भेद होते हैं। म्लेच्छ खंड में लब्ध्यपर्याप्त नहीं होते हैं। इसी प्रकार भोगभूमि, कुभोगभूमि के मनुष्यों में भी २ भेद होते हैं। देव और नारकियों के भी ये दो ही भेद होते हैं। इस तरह सब मिलकर ५१±३०±४±३±२±२±२±२±२·९८ जीवसमास हुए।
प्रश्न ४२२ -प्राण कितने होते हैं ?
उत्तर -प्राण दस होते हैं-५ इन्द्रिय, ३ बल, आयु, श्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ४२३ -पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -८ प्राण हैं।
प्रश्न ४२४ -अधर्म द्रव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जो जीव और पुद्गल को ठहराने में समर्थ हो, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं।
प्रश्न ४२५ -कालद्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर -२ भेद हैं-व्यवहार काल और निश्चयकाल।
प्रश्न ४२६ -ग्यारह प्रतिमा कौन धारण करते हैं ?
उत्तर -क्षुल्लक, क्षुल्लिका और ऐलक।
प्रश्न ४२७ -आचार्य के ३६ मूलगुण के नाम क्या हैं ?
उत्तर -१२ तप, १० धर्म, ५ आचार, ६ आवश्यक, ३ गुप्ति ये आचार्यों के ३६ मूलगुण हैं।
प्रश्न ४२८ -सम्यग्दर्शन का क्या स्वरूप है ?
उत्तर -‘‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं’’ सात तत्त्व एवं नौ पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। सच्चे देव, सच्चे शास्त्र एवं सच्चे गुरु पर श्रद्धान करना भी सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न ४२९ -सम्यग्दर्शन किसको होता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन भव्य, पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय, संज्ञी जीव को ही होता है।
प्रश्न ४३० -सम्यग्दर्शन कब और वैâसे होता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन काल लब्धि के आने पर अन्तरंग और बहिरंग निमित्त के मिलने पर होता है।
प्रश्न ४३१ -नरकगति में उत्पन्न होने के कितनी देर बाद सम्यग्दर्शन प्रगट हो सकता है ?
उत्तर -अन्तर्मुहूर्त के बाद।
प्रश्न ४३२ -तिर्यंचगति में कब सम्यग्दर्शन हो सकता है ?
उत्तर -३ दिन के बाद सात दिन के अंदर दिवस पृथक्त्व में ही त्िार्यंच सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न ४३३ -मनुष्यगति में कितने कारणों से सम्यग्दर्शन होता है ?
उत्तर -३ कारणों से-जातिस्मरण, जिनबिम्ब दर्शन, धर्मोपदेश।
प्रश्न ४३४ -भव्य जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो नियम से एक न एक दिन मोक्ष अवश्य जायेगा, उसे भव्य जीव कहते हैं।
प्रश्न ४३५ -लब्ध्यपर्याप्तक किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिसकी पर्याप्तियाँ नियम से पूर्ण हुए बिना ही मरण हो जावे, उसे लब्ध्यपर्याप्तक कहते हैं।
प्रश्न ४३६ -निर्वृत्यपर्याप्तक किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिसकी शरीर पर्याप्ति अभी पूर्ण नहीं हुई है किन्तु नियम से पूर्ण होने वाली है उसकी उस अपूर्ण अवस्था का नाम निर्वृत्यपर्याप्तक है।
प्रश्न ४३७ -भूत नैगमनय से भगवान महावीर स्वामी क्या हैं ?
उत्तर -सभी की तरह से संसारी प्राणी।
प्रश्न ४३८ -भावी नैगमनय की अपेक्षा ज्ञानमती माताजी क्या हैं ?
उत्तर -सिद्धपरमात्मा।
प्रश्न ४३९ -‘अर्पितानर्पित सिद्धे:’ इस सूत्र का अर्थ बताओ ?
उत्तर -मुख्यता तथा गौणता से अनेक धर्म वाली वस्तु का कथन होता है।
प्रश्न ४४० -अणुव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर -हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का एकदेश त्याग अणुव्रत है।
प्रश्न ४४१ -महाव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर -हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का पूर्णरूपेण त्याग महाव्रत है।
प्रश्न ४४२ -णमोकार मंत्र के कितने व्रत किये जाते हैं ?
उत्तर -३५ व्रत। पंचमी के ५, सप्तमी के ७, नवमी के ९, चौदस के १४ इस प्रकार मिलाकर ३५ व्रत किये जाते हैं।
प्रश्न ४४३ -ज्ञान पचीसी व्रत वैâसे किया जाता है ?
उत्तर -ग्यारस के ११ और चौदस के १४ व्रत एकाशन या उपवास से किए जाते हैं। इसमें ग्यारह अंग के ११ व्रत एवं चौदह पूर्व के १४ व्रत मिलाकर २५ व्रत हैं।
प्रश्न ४४४ -व्रत क्यों किये जाते हैं ?
उत्तर -‘वरं व्रतै: पदं देवं, नाव्रतैर्वतनारकम्’ आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी ने इष्टोपदेश में कहा है कि व्रत करके देवगति पाना उत्तम है, अव्रती रहकर नरक जाना नहीं। वास्तव में देखा जाये तो कर्मों की निर्जरा के लिए तप किये जाते हैं।
प्रश्न ४४५ -महाभारत का युद्ध आज से कितने वर्ष पूर्व हुआ था ?
उत्तर -८६५०० वर्ष पूर्व।
प्रश्न ४४६ -जैनधर्म के अनुसार गणेश किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -द्वादशगण के ईश-स्वामी को गणेश कहते हैं।
प्रश्न ४४७ -अरिहंत भगवान कितने दोषों से रहित होते हैं ?
उत्तर -१८ दोषों से। उनके नाम इस प्रकार हैं-
जन्म, जरा, तिरखा, क्षुधा, विस्मय आरत खेद,
रोग शोक, मद, मोह, भय, चिन्ता, निद्रा, स्वेद।
राग, द्वेष, अरु, मरण जुत ये अष्टादश दोष,
नाहिं होत अरिहंत के, सो छवि लायक मोष।।
प्रश्न ४४८ -धर्म का लक्षण क्या है ?
उत्तर -जो प्राणियों को संसाररूपी दु:ख से निकालकर उत्तम सुख में पहुँचा दे, वह धर्म है और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र भी धर्म है।
प्रश्न ४४९ -भगवान किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुण्य के पूर्ण फल को प्राप्त करने वाले भगवान कहलाते हैं।
प्रश्न ४५० -लक्ष्मी के कितने भेद हैं ?
उत्तर -२ भेद हैं-अन्तरंग और बहिरंग।
प्रश्न ४५१ -उत्कृष्ट लक्ष्मी किन्हें प्राप्त होती है ?
उत्तर -तीर्थंकर भगवान को।
प्रश्न ४५२ -भगवान के अपूर्व सुंदर शरीर की रचना किसने की थी ?
उत्तर -नामकर्म ने।
प्रश्न ४५३ -सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण वैâसे पड़ते हैं ?
उत्तर -जब सूर्य को केतु तथा चन्द्र को राहु के विमान ढक देते हैं तब सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण पड़ते हैं।
प्रश्न ४५४ -तीर्थंकर माता के द्वारा स्वप्न में निर्धूम अग्नि देखने का क्या फल बताया गया था ?
उत्तर -निर्धूम अग्नि देखने का फल है कि तीर्थंकर कर्मरूपी ईंधन को जलाने वाले होंगे।
प्रश्न ४५५ -तीर्थंकर शिशु का जन्माभिषेक सुमेरु की कौन सी दिशा वाली शिला पर हुआ था ?
उत्तर -ईशान दिशा की पांडुक शिला पर।
प्रश्न ४५६ -पूजा कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर -पूजा पाँच प्रकार की होती है-१. नित्यमह २. आष्टान्हिक ३. ऐन्द्रध्वज ४. कल्पद्रुम ५. सर्वतोभद्र।
प्रश्न ४५७ -कौन सी पूजन की जयमाला में चारों गति के दु:खों का वर्णन
आता है ?
उत्तर -आदिनाथ भगवान की पुरानी वाली पूजा में।
प्रश्न ४५८ -तिर्यंचगति किस कर्म के उदय से मिलती है ?
उत्तर -तिर्यंचगति नाम कर्म के उदय से तिर्यंच गति मिलती है।
प्रश्न ४५९ -सिद्ध परमेष्ठी सिद्धशिला के बाहर अलोकाकाश में क्यों नहीं
जाते हैं ?
उत्तर -अलोकाकाश में धर्मद्रव्य का अभाव है अत: सिद्ध परमेष्ठी वहाँ नहीं जा सकते।
प्रश्न ४६० -सीता ने रावण के यहाँ रहकर कितने दिन उपवास किया था ?
उत्तर -११ उपवास लगातार।
प्रश्न ४६१ -पुन: उसने किसके यहाँ का भोजन लिया था ?
उत्तर -विभीषण के यहाँ।
प्रश्न ४६२ -सीता ने पूर्व जन्म में क्या पाप किया था जो उसे झूठा दोष लगाकर जंगल में निकाला गया ?
उत्तर -पूर्वजन्म में वेदवती कन्या की पर्याय में उसने एक भाई-बहन को झूठा आरोप लगाया था।
प्रश्न ४६३ -प्रातिहार्य कितने होते हैं ?
उत्तर -आठ।
प्रश्न ४६४ -८ प्रातिहार्य के नाम बताओ ?
उत्तर -१. सिंहासन २. छत्रत्रय ३. भामंडल ४. चामर ५. अशोक वृक्ष
६. दुंदुभि बाजे ७. पुष्पवृष्टि ८. दिव्यध्वनि।
प्रश्न ४६५ -सम्यग्दर्शन के कितने अंग हैं ?
उत्तर -८ अंग हैं-नि:शंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य, प्रभावना।
प्रश्न ४६६ -उपगूहन अंग का क्या लक्षण है ?
उत्तर -मोक्षमार्ग स्वयं शुद्ध है। मूढ़, अज्ञानी या असमर्थजनों के निमित्त से कभी इसमें कुछ दोष लग जाने से निंदा हो जाती है सो जैसे बने, वैसे माता के समान उनके दोषों को ढक देना उपगूहन अंग है।
प्रश्न ४६७ -षड्दर्शन के नाम बताओ ?
उत्तर -य्ाोगदर्शन, मीमांसक, चार्वाक, बौद्ध, वेदान्त, सांख्य।
प्रश्न ४६८ -अणुव्रती मरकर कौन सी गति प्राप्त करता है ?
उत्तर -नियम से देवगति प्राप्त करता है।
प्रश्न ४६९ -जैनदर्शन की क्या विशेषता है ?
उत्तर -कर्मों को जीतने वाले जिन को ही इसमें स्वीकार किया गया है।
प्रश्न ४७० -उच्च या नीच कुल में जन्म किस कर्म से होता है ?
उत्तर -‘उच्चैर्नीचैश्च’ उच्च गोत्र और नीच गोत्र कर्म के उदय से उच्च या नीच कुल में जन्म होता है।
प्रश्न ४७१ -ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से कौन सा गुण प्रगट होता है ?
उत्तर -अनन्त ज्ञान गुण।
प्रश्न ४७२ -निद्रा में कौन से कर्म का बंध होता है ?
उत्तर -दर्शनावरण कर्म का।
प्रश्न ४७३ -ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए क्या-क्या सेवन नहीं करना चाहिए ?
उत्तर -गरिष्ठ भोजन, अश्लील कथाएँ, कुशीलों की संगति, अश्लील चित्रदर्शन।
प्रश्न ४७४ -सोलह कारण भावनाओं के नाम बताओ ?
उत्तर -१. दर्शनविशुद्धि २. विनयसम्पन्नता ३. शीलव्रतेष्वनतिचार ४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ५. संवेग ६. शक्तितस्त्याग ७. शक्तितस्तप ८. साधुसमाधि ९. वैयावृत्यकरण १०. अर्हद्भक्ति ११. आचार्यभक्ति १२. बहुश्रुतभक्ति १३. प्रवचनभक्ति १४. आवश्यक अपरिहाणि १५. मार्गप्रभावना १६. प्रवचन वत्सलत्व।
प्रश्न ४७५ -उत्तम भोगभूमियाँ मनुष्य की आयु कितनी होती है ?
उत्तर -३ पल्य।
प्रश्न ४७६ -जघन्य भोगभूमि कहाँ होती है ?
उत्तर -हरि और रम्यव्â क्षेत्र में।
प्रश्न ४७७ -द्रव्य संग्रह की रचना किन आचार्य ने की है ?
उत्तर -सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य श्री नेमिचन्द्र जी ने।
प्रश्न ४७८ -ध्यान का विशेष वर्णन कौन से ग्रंथ में है ?
उत्तर -ज्ञानार्णव ग्रंथ में है।
प्रश्न ४७९ -षट्खण्डागम ग्रंथ का लेखन किस गाँव में हुआ था ?
उत्तर -अंकलेश्वर (गुजरात) में।
प्रश्न ४८० -षट्खण्डागम की रचना किसने की ?
उत्तर -श्री पुष्पदंत-भूतबली ने।
प्रश्न ४८१ -षट्खण्डागम की हिन्दी टीका किसने लिखी ?
उत्तर -श्री वीरसेनाचार्य ने।
प्रश्न ४८२ -अधोलोक में किनके चैत्यालय की पूजा होती है ?
उत्तर -भवनवासी और व्यंतरदेवों के देवभवनों की।
प्रश्न ४८३ -‘उपयोगो लक्षणम्’ सूत्र का अर्थ बताओ ?
उत्तर -जीव का लक्षण उपयोग है। चैतन्य के होने पर ही होने वाले परिणामों को उपयोग कहते हैं।
प्रश्न ४८४ -‘मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च’ सूत्र का क्या अर्थ है ?
उत्तर -मति, श्रुत, अवधिज्ञान विपरीत अर्थात् कुमति, कुश्रुत, कुअवधि भी होते हैं।
प्रश्न ४८५ -कौन से देव ऐसे हैं जो तीर्थंकर के किसी कल्याणक में नहीं आते हैं ?
उत्तर -सोलह स्वर्ग से ऊपर के कोई भी देव नहीं आते हैं।
प्रश्न ४८६ -विक्रम सं. का नया वर्ष किस तिथि से शुरू होता है ?
उत्तर -चैत्र सुदी एकम् से।
प्रश्न ४८७ -क्षायिक सम्यग्दर्शन का क्या लक्षण है ?
उत्तर -दर्शनमोह की मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व तथा अनंतानुबंधी चतुष्क इन सात प्रकृतियों के सर्वथा क्षय को क्षायिक सम्यग्दर्शन कहते हैं।
प्रश्न ४८८ -देवगति में सम्यक्त्व उत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर -४ कारण-जातिस्मरण, जिनमहिमादर्शन, धर्मोपदेश, देवर्द्धिदर्शन।
प्रश्न ४८९ -अष्ट प्रातिहार्य किनके होते हैं ?
उत्तर -तीर्थंकर के।
प्रश्न ४९० -अष्ट मंगल द्रव्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -झारी, कलश, दर्पण, स्वस्तिक, चंवर, पंखा, सिंहासन, छत्र।
प्रश्न ४९१ -श्रीकृष्ण भविष्य के कौन से तीर्थंकर होंगे ?
उत्तर -१६वें तीर्थंकर होंगे।
प्रश्न ४९२ -महादेवरुद्र कौन से तीर्थंकर बनेंगे ?
उत्तर -२४वें तीर्थंकर होंगे।
प्रश्न ४९३ -सुमेरु पर्वत में कितने अकृत्रिम चैत्यालय हैं ?
उत्तर -१६ अकृत्रिम चैत्यालय।
प्रश्न ४९४ -जम्बूद्वीप में कितने चैत्यालय हैं ?
उत्तर -७८ अकृत्रिम चैत्यालय हैं।
प्रश्न ४९५ -तीर्थंकर किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -‘तीर्थं करोति इति तीर्थंकर:।’ तीर्थ को चलाने वाले तीर्थंकर हैंं।
प्रश्न ४९६ -तीर्थंकर कितने होते हैं ?
उत्तर -२४ ही होते हैं।
प्रश्न ४९७ -तीर्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर -‘तीर्यते येन संसार सागर: सो तीर्थ:’ जिनके द्वारा संसार- सागर को पार किया जाये, उसे तीर्थ कहते हैं।
प्रश्न ४९८ -भाव तीर्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र रत्नत्रयरूप परिणत हुई आत्मा भाव तीर्थ है।
प्रश्न ४९९ -द्रव्य तीर्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर -जहाँ-जहाँ भगवान के पंचकल्याणक हुए हैं एवं जहाँ पर अनेक चमत्कार हुए हैं वह द्रव्य तीर्थ है।
प्रश्न ५०० -द्रव्य तीर्थ के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-चेतन द्रव्य तीर्थ, अचेतन द्रव्य तीर्थ।
प्रश्न ५०१ -चेतन द्रव्य तीर्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर -वर्तमान में चलते-फिरते साधु जैसे आचार्य, उपाध्याय, साधु चेतन द्रव्यतीर्थ हैंं।
प्रश्न ५०२ -अचेतन द्रव्य तीर्थ क्या हैं ?
उत्तर -अयोध्या, सम्मेदशिखर, गिरनार जी, पावापुरी, वैâलाशपर्वत, महावीर जी, तिजारा जी आदि क्षेत्र अचेतन द्रव्य तीर्थ हैं।
प्रश्न ५०३ -शरीर के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच-औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्माण।
प्रश्न ५०४ -मोक्ष की शाश्वत परम्परा कहाँ चलती है ?
उत्तर -विदेह क्षेत्र में।
प्रश्न ५०५ -जम्बूद्वीप में अकृत्रिम वृक्ष कितने हैं ?
उत्तर -२-जम्बू, शाल्मलि वृक्ष।
प्रश्न ५०६ -जम्बूद्वीप के किस कोने में हम सभी रहते हैं, उसका क्या नाम है ?
उत्तर -जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में हम सभी रहते हैं।
प्रश्न ५०७ -यहाँ से कितनी दूरी पर सुमेरु पर्वत है ?
उत्तर -२० करोड़ मील।
प्रश्न ५०८ -वहाँ के वृक्ष वनस्पतिकायिक हैं या पृथ्वीकायिक हैं ?
उत्तर -पृथ्वीकायिक हैं। किन्तु हवा चलने से पत्तियाँ हिलती हैं।
प्रश्न ५०९ -सुमेरु पर्वत की वंदना आज कौन कर सकते हैं ?
उत्तर -देव एवं विद्याधर मनुष्य।
प्रश्न ५१० -जम्बूद्वीप में कितनी कर्मभूमियाँ हैं ?
उत्तर -चौंतीस।
प्रश्न ५११ -तीर्थंकरों की शाश्वत जन्मभूमि और शाश्वत निर्वाणभूमि बताओ ?
उत्तर -शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या और शाश्वत निर्वाणभूमि श्री सम्मेद-शिखर जी है।
प्रश्न ५१२ -अष्टद्रव्य किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिनका प्रयोग जैन पूजा उपासना में किया जाता है, वे अष्टद्रव्य कहलाते हैं, जो संकल्पों के प्रतीक हैं।
प्रश्न ५१३ -व्यसन किसे कहते हैं ?
उत्तर -कुत्सित मार्ग की प्रवर्तना, व्यसन कहलाती है।
प्रश्न ५१४ -रत्नत्रय किसे कहते हैं ?
उत्तर -मोक्षमार्ग के तीन रत्न सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र रत्नत्रय कहलाते हैं।
प्रश्न ५१५ -कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर -जीवन के साथ जुड़ने वाला पुद्गल स्कंध कर्म कहलाता है।
प्रश्न ५१६ -समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर -यत्नाचारपूर्वक प्रवृत्ति, समिति कहलाती है।
प्रश्न ५१७ -साधुओं के केशलोंच का उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य समय
कितना है ?
उत्तर -उत्कृष्ट-दो माह, मध्यम-तीन माह, जघन्य-चार माह।
प्रश्न ५१८ -द्रव्य किसे कहते हैं ?
उत्तर -गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं।
प्रश्न ५१९ -तत्त्व किसे कहते हैं ?
उत्तर -वस्तु का स्वभाव तत्त्व कहलाता है।
प्रश्न ५२० -लेश्या किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है, उसको लेश्या कहते हैं।
प्रश्न ५२१ -अणुव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर -श्रावक दशा में पाँच पापों का स्थूलरूप से एकदेश त्याग अणुव्रत कहलाता है।
प्रश्न ५२२ -अनेकांत की परिभाषा क्या है ?
उत्तर -वस्तु में विद्यमान अनन्त गुणों को देखना अनेकांत कहलाता है।
प्रश्न ५२३ -स्याद्वाद क्या चीज है ?
उत्तर -अनेकांतमयी वस्तु का कथन करने की पद्धति का नाम स्याद्वाद है।
प्रश्न ५२४ -अनुप्रेक्षा (बारह भावना) का मतलब क्या है ?
उत्तर -संसार आदि की असारता का चिन्तन अनुप्रेक्षा कहलाती है।
प्रश्न ५२५ -दिगम्बर जैन साधु के तीन उपकरण कौन से हैं ?
उत्तर -शास्त्र, पीछी और कमण्डलु।
प्रश्न ५२६ -मुनि-आर्यिका के आहार के लिए श्रावक जो नवधाभक्ति करते हैं, वे कौन सी हैं ?
उत्तर -नवधाभक्ति-१. पड़गाहन २. उच्चासन ३. पाद प्रक्षालन ४. पूजन ५. नमस्कार ६. मनशुद्धि ७. वचनशुद्धि ८. कायशुद्धि ९. आहार- जल शुद्धि।
प्रश्न ५२७ -समवसरण किसे कहते हैं ?
उत्तर -तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा को समवसरण कहते हैं।
प्रश्न ५२८ -तीर्थंकर की यह धर्मसभा कब बनती है ?
उत्तर -जब उन्हें तपस्या के पश्चात् केवलज्ञान प्रगट होता है, तब समवसरण की रचना होती है।
प्रश्न ५२९ -इस समवसरण रचना का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर -सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर समवसरण की रचना करता है।
प्रश्न ५३० -समवसरण धरती पर बनता है या आकाश में ?
उत्तर -धरती से बीस हजार हाथ की ऊँचाई पर आकाश में अधर समवसरण की रचना बनती है।
प्रश्न ५३१ -उस ऊँचाई तक मनुष्य वैâसे पहुँचते हैं ?
उत्तर -पृथ्वी से लेकर समवसरण तक १-१ हाथ की बीस हजार सीढ़ियाँ होती हैं जिन्हें प्रत्येक प्राणी अन्तर्मुहूर्त में चढ़कर समवसरण में पहुँचते हैं और भगवान की दिव्यध्वनि का पान करते हैं।
प्रश्न ५३२ -समवसरण की सभा किस आकार में बनती है ?
उत्तर -समवसरण गोलाकार बनता है।
प्रश्न ५३३ -समवसरण में कितनी भूमियाँ होती हैं ?
उत्तर -समवसरण में आठ भूमियाँ होती हैं।
प्रश्न ५३४ -उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर -उन आठ भूमियों के नाम इस प्रकार हैं-१. चैत्यप्रासाद भूमि
२. खातिका भूमि ३. लताभूमि ४. उपवनभूमि ५. ध्वजाभूमि
६. कल्पवृक्षभूमि ७. भवनभूमि ८. श्रीमण्डपभूमि।
प्रश्न ५३५ -इन आठ भूमियों में तीर्थंकर भगवान कहाँ विराजमान रहते हैं ?
उत्तर -समवसरण में जो आठवीं श्रीमण्डपभूमि है उसके बीचोंबीच तीन कटनी से सहित गंधकुटी में तीर्थंकर भगवान विराजमान होते हैं।
प्रश्न ५३६ -बारह सभाएँ उस समवसरण में कहाँ लगती हैं ?
उत्तर -उसी आठवीं श्रीमण्डपभूमि के अंदर गंधकुटी के बाहर चारों ओर गोलाकार में ही बारह सभाएँ लगती हैं।
प्रश्न ५३७ -समवसरण की बारह सभाओं का क्रम किस प्रकार रहता है ?
उत्तर -बारह सभाओं का क्रम इस प्रकार रहता है-१. गणधर मुनि २. कल्पवासिनी देवी ३. आर्यिका और श्राविका ४. ज्योतिषी देवी ५. व्यन्तर देवी ६. भवनवासिनी देवी ७. भवनवासी देव ८. व्यन्तर देव ९. ज्योतिषीदेव १०. कल्पवासी देव ११. चक्रवर्ती आदि मनुष्य १२. सिंहादि तिर्यंच प्राणी। इन बारह कोठों में असंख्यातों भव्यजीव बैठकर धर्मोपदेश सुनकर अपना कल्याण करते हैं।
प्रश्न ५३८ -सभी तीर्थंकरों के समवसरणों की व्यवस्था एक समान ही रहती है या कुछ भिन्नता रहती है ?
उत्तर -समवसरण रचना की व्यवस्था तो सबकी एक समान ही रहती है उसमें कोई अन्तर नहीं होता है। केवल तीर्थंकर की अवगाहना के अनुसार उनके समवसरण बड़े-छोटे अवश्य होते हैं। जैसे-भगवान ऋषभदेव की अवगाहना ५०० धनुष की थी अत: उनका समवसरण १२ योजन (९६ मील) का था और भगवान महावीर की अवगाहना ७ हाथ की थी अत: उनका समवसरण १ योजन (८ मील) में बना था।
प्रश्न ५३९ -समवसरण का वास्तविक अर्थ क्या है ?
उत्तर -समस्त प्राणियों को शरण प्रदान करने वाला समवसरण कहलाता है।
प्रश्न ५४० -समवसरण की मुख्य विशेषता क्या होती है ?
उत्तर -समवसरण में जन्मजात विरोधी प्राणी भी मैत्रीभाव धारण कर आपसी प्रेम का परिचय प्रदान करते हैं। जैसे-शेर और गाय एक घाट पर पानी पीते हैं, सर्प-नेवला भी एक-दूसरे को कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं।
प्रश्न ५४१ -समवसरण में मानस्तंभ कहाँ होते हैं ?
उत्तर -समवसरण के प्रवेश द्वार पर ही चारों दिशा में एक-एक मानस्तंभ होते हैं।
प्रश्न ५४२ -मानस्तंभ का क्या अर्थ है ?
उत्तर -जहाँ पहुँचते ही मनुष्य का मान गलित होकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो जाता है उन्हें मानस्तंभ कहते हैं। जैसे इन्द्रभूति गौतम का वहाँ पहुँचते ही मान गलित हुआ एवं उन्होंने तुरंत जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर गणधर का पद प्राप्त कर लिया था।
प्रश्न ५४३ -समवसरण में विराजमान अर्हन्त भगवान के कितने प्रातिहार्य होते हैं ?
उत्तर -अर्हन्त भगवान के आठ प्रातिहार्य होते हैं-१. अशोक वृक्ष २. सिंहासन ३. तीन छत्र ४. भामंडल ५. दिव्यध्वनि ६. पुष्पवृष्टि ७. चौंसठ चंवर ८. दुुंदुभि बाजे।
प्रश्न ५४४ -केवलज्ञानी भगवान कितने अतिशयों से समन्वित होते हैं ?
उत्तर -भगवान केवलज्ञान होने पर दश अतिशय से समन्वित हो जाते हैं, वे इस प्रकार हैं-१. सौ योजन तक सुभिक्षता २. आकाश में गमन
३. एक मुख होकर भी चार मुख दिखना ४. हिंसा न होना
५. उपसर्ग नहीं होना ६. आहार नहीं लेना ७. नख-केश नहीं बढ़ना ८. नेत्र नहीं झपकना ९. समस्त विद्याओं में ईश्वरपना १०. शरीर की परछाईं नहीं पड़ना।
प्रश्न ५४५ -आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने कितने ग्रंथों की रचना की थी ?
उत्तर -८४ पाहुड़ग्रंथों की रचना आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने की थी।
प्रश्न ५४६ -वर्तमान में उनके द्वारा रचित कितने ग्रंथ उपलब्ध हैं ?
उत्तर -१० ग्रंथ उपलब्ध हैं-समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, मूलाचार, रयणसार, कुरलकाव्य, दशभक्ति, द्वादशानुप्रेक्षा, पंचास्तिकाय, षट्प्राभृत्।
प्रश्न ५४७ -आचार्यश्री कुन्दकुन्द स्वामी ने द्रव्यानुयोग के कौन-कौन से ग्रंथ लिखे हैं ?
उत्तर -समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड़।
प्रश्न ५४८ -मूलाचार ग्रंथ किसने बनाया और इसका हिन्दी अनुवाद किसने किया है ?
उत्तर -मूलाचार ग्रंथ आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने बनाया और इसका हिन्दी अनुवाद युग प्रवर्तिका गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने किया है।
प्रश्न ५४९ -श्रावक के दो प्रमुख कर्त्तव्य किस ग्रंथ में किसने बताये हैं ?
उत्तर -‘रयणसार’ ग्रंथ में आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने ‘‘दाणं पूया मुक्खो’’ दान और पूजा ये दो प्रमुख कर्त्तव्य श्रावक के बताये हैं।
प्रश्न ५५० -अष्टसहस्री ग्रंथ की रचना किसने की है ?
उत्तर -लगभग १००० वर्ष पूर्व आचार्य श्री विद्यानंदि स्वामी ने संस्कृत में अष्टसहस्री ग्रंथ रचा और उसका हिन्दी अनुवाद सन् १९६९-१९७० में पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने किया है।
प्रश्न ५५१ -बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य कौन थे ?
उत्तर -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज।
प्रश्न ५५२ -इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर -आचार्यश्री का जन्म ईसवी सन् १८७२ में आषाढ़ कृष्णा षष्ठी के दिन बेलगाँव जिले के ‘येळगुळ’ (ननिहाल) ग्राम में हुआ था एवं भोज ग्राम उनका पैतृक स्थान था।
प्रश्न ५५३ -आचार्यश्री के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर -माता का नाम ‘सत्यवती’ एवं पिता का नाम ‘भीमगौंडा पाटिल’ था।
प्रश्न ५५४ -आचार्यश्री के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर -इनका बचपन का नाम ‘सातगौंडा पाटिल’ था।
प्रश्न ५५५ -आचार्यश्री के कितने भाई थे ? उनके नाम बताइए।
उत्तर -तीन भाई थे-१. देवगौंडा पाटिल २. आदगौंडा पाटिल ३. कुमगौंडा पाटिल
प्रश्न ५५६ -आचार्यश्री की बहनें कितनी थीं ?
उत्तर -एक बहन थी-कृष्णाबाई।
प्रश्न ५५७ -आचार्य शांतिसागर जी महाराज का बाल्यजीवन वैâसा था ?
उत्तर -वे बचपन से ही वैरागी प्रकृति के थे। खेलकूद में समय न बिताकर वे हमेशा शास्त्र-स्वाध्याय एवं आत्मचिंतन में लीन रहते थे।
प्रश्न ५५८ -आचार्यश्री का विवाह कितने वर्ष की उम्र में हुआ ?
उत्तर -९ वर्ष की उम्र में।
प्रश्न ५५९ -इनका वैवाहिक जीवन वैâसा था ?
उत्तर -विवाह के छह माह बाद कन्या का मरण हो गया और उन्होंने पुन: विवाह नहीं किया।
प्रश्न ५६० -आचार्यश्री के वैराग्य परिणाम कब से थे ?
उत्तर -छोटी अवस्था से ही उनके त्याग के भाव थे। १७-१८ वर्ष की अवस्था में ही उनकी निर्ग्रन्थ मुनिदीक्षा लेने की भावना बन गई थी।
प्रश्न ५६१ -पुन: उन्होंने कितनी उम्र में दीक्षा धारण की ?
उत्तर -४२ वर्ष की उम्र में।
प्रश्न ५६२ -किस कारण से वे उस समय मुनि नहीं बन सके ?
उत्तर -उनके पिता भीमगौंडा की इच्छा थी कि ‘जब तक मैं जीवित हूँ तब तक तुम यहीं घर में रहकर धर्मसाधना करो’ अत: उन्होंने उस समय दीक्षा नहीं ग्रहण की।
प्रश्न ५६३ -उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा किस सन् में व किनसे ग्रहण की ?
उत्तर -मुनि श्री देवेन्द्रकीर्ति महाराज से सन् १९१४ में ज्येष्ठ कृ. १३ को क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।
प्रश्न ५६४ -क्षुल्लक दीक्षा के बाद प्रथम चातुर्मास कहाँ हुआ ?
उत्तर -कागल ग्राम (महा.) में उनका प्रथम चातुर्मास हुआ।
प्रश्न ५६५ -क्षुल्लक सातगौंडा ने ऐलक दीक्षा कब और कहाँ ली ?
उत्तर -सन् १९१७ में गिरनार सिद्धक्षेत्र पर स्वयं भगवान के चरण सान्निध्य में ऐलक दीक्षा ली।
प्रश्न ५६६ -मुनिदीक्षा कब और कहाँ धारण की ?
उत्तर -फाल्गुन शु.१४, सन् १९२० में यरनाल (जिला-बेलगांव) कर्नाटक में मुनिदीक्षा धारण की।
प्रश्न ५६७ -मुनिदीक्षा गुरु का नाम बताइए ?
उत्तर -मुनिश्री देवेन्द्रकीर्ति जी महाराज ही उनके मुनिदीक्षा के गुरु थे।
प्रश्न ५६८ -मुनिदीक्षा होने पर इनका क्या नाम रखा गया ?
उत्तर -‘मुनिश्री शांतिसागर जी महाराज’।
प्रश्न ५६९ -मुनि शांतिसागर जी महाराज को आचार्यपद कब, कहाँ और किनके द्वारा प्रदान किया गया ?
उत्तर -सन् १९२४ में, समडोली (महा.) में चतुर्विध संघ के द्वारा उन्हें आचार्यपद प्रदान किया गया।
प्रश्न ५७० -इन्होंने सर्वप्रथम किनको दीक्षा प्रदान की ?
उत्तर -ब्र. हीरालाल को सर्वप्रथम दीक्षा देकर उनको ‘‘क्षुल्लक वीरसागर’’ नाम प्रदान किया।
प्रश्न ५७१ -आचार्यश्री से दीक्षित शिष्यों के नाम बताइए ?
उत्तर -श्री वीरसागर जी, श्री चन्द्रसागर जी, श्री नेमिसागर जी, श्री कुंथुसागर जी, श्री पायसागर जी, श्री नमिसागर जी आदि १५ मुनिदीक्षा प्रदान की थीं।
प्रश्न ५७२ -आचार्यश्री को ‘चारित्रचक्रवर्ती’ पद कब प्रदान किया गया ?
उत्तर -सन् १९३७ में गजपंथा सिद्धक्षेत्र (महा.) पर उन्हें ‘‘चारित्रचक्रवर्ती’’ पद प्रदान किया गया।
प्रश्न ५७३ -आचार्यश्री ने दीक्षित जीवन में कितने चातुर्मास किए ?
उत्तर -आचार्यश्री ने क्षुल्लक दीक्षा में ४, ऐलक अवस्था में ३ तथा मुनि अवस्था में ३५, ऐसे ४२ चातुर्मास अपने दीक्षित जीवन में सम्पन्न किए।
प्रश्न ५७४ -आचार्यश्री का समाधिमरण कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर -भादों शुक्ला दूज, सन् १९५५ में कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र पर उनका सुन्दर समाधिमरण हुआ।
प्रश्न ५७५ -पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने आचार्यश्री के कब और कितनी बार दर्शन किए हैं ?
उत्तर -तीन बार दर्शन किए हैं-१. नीरा (महा.) में सन् १९५४ में,
२. बारामती (महा.) में सन् १९५५ में, ३. कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र (महा.) में सन् १९५५ में सल्लेखना के समय।
प्रश्न ५७६ -आचार्यश्री का मुख्य संदेश क्या था ?
उत्तर -‘‘बाबा नो, भिऊ नका, संयम धारण करा’ अर्थात् भाई! डरो नहीं, संयम धारण करो।
प्रश्न ५७७ -आचार्यश्री के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताइए ?
उत्तर -अनेकों महत्वपूर्ण कार्य आचार्यश्री ने अपने जीवन में किए, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने धवलाग्रंथों को ताम्रपट्ट पर उत्कीर्ण करवाया।
प्रश्न ५७८ -आचार्यश्री के विशेष गुणों का उल्लेख कीजिए ?
उत्तर -सहनशीलता, वैराग्य, मितवाणी, परोपकार, करुणा, जिनभक्ति, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की दृढ़ता, दूरदर्शिता आदि उनके विशेष गुण थे।
प्रश्न ५७९ -आचार्यश्री ने दक्षिण भारत से उत्तर भारत के लिए प्रथम बार विहार कब किया था ?
उत्तर -सन् १९२७ की मगसिर कृ. एकम् को।
प्रश्न ५८० -आचार्यश्री से संबंधित कौन सा कार्यक्रम मनाया जा चुका है ?
उत्तर -‘‘प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर वर्ष’’।
प्रश्न ५८१ -इसका उद्घाटन कब, कहाँ और किनके सान्निध्य में हुआ ?
उत्तर -ज्येष्ठ कृ. १४, दिनाँक ११ जून २०१० को जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में पूज्य ज्ञानमती माताजी ससंघ के सान्निध्य में हुआ।
प्रश्न ५८२ -यह कार्यक्रम किनकी मंगल प्रेरणा से मनाया गया था ?
उत्तर -पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से।
प्रश्न ५८३ -यह कार्यक्रम कब तक मनाया गया ?
उत्तर -३१ मई २०११, ज्येष्ठ कृ. १४ तक।
प्रश्न ५८४ -इस वर्ष में जैन समाज ने क्या किया ?
उत्तर -आचार्यश्री से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन-जैसे-पूजन, चालीसा, संगोष्ठी, भाषण प्रतियोगिता, प्रश्नमंच, नाटक आदि।
प्रश्न ५८५ -आचार्यश्री ने अंतिम विहार कहाँ से किया ?
उत्तर -बारामती से कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र के लिए उन्होंने अंतिम बार विहार किया।
प्रश्न ५८६ -उन्होंने अपना आचार्यपद किनको प्रदान किया था ?
उत्तर -अपने प्रथम शिष्य श्री वीरसागर मुनिराज को उन्होंने अपना आचार्यपद प्रदान किया।
प्रश्न ५८७ -आचार्यश्री ने अंतिम उपदेश कब और कहाँ पर दिया था ?
उत्तर -कुंथलगिरि तीर्थ पर उन्होंने ८ सितम्बर १९५५ को अपना अंतिम उपदेश दिया था।
प्रश्न ५८८ -कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र किनकी निर्वाणभूमि है ?
उत्तर -कुलभूषण और देशभूषण मुनियों की।
प्रश्न ५८९ -आचार्यश्री ने मुनि अवस्था में कितने उपवास किए थे ?
उत्तर -मुनि अवस्था के ३५ वर्षों में आचार्यश्री ने ९६०२ दिन उपवास
में बिताए।
प्रश्न ५९० -आचार्यश्री पर आए उपसर्गों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए ?
उत्तर -आचार्यश्री के ऊपर पाँच बार सर्प ने उपसर्ग किया परन्तु वे विचलित नहीं हुए तथा एक बार चीटियाँ आचार्यश्री के शरीर पर चढ़कर काटती रहीं, पूरा शरीर लाल हो जाने पर भी वे अचल रहे।
प्रश्न ५९१ -आचार्यश्री ने जल का परित्याग कब किया था ?
उत्तर -४ सितम्बर १९५५ को उन्होंने जल का यावज्जीवन परित्याग कर दिया था।
प्रश्न ५९२ -ऐसा कहा जाता है कि आचार्यश्री के ऊपर मनुष्यकृत उपसर्ग भी
हुए थे ?
उत्तर -हाँ! एक बार राजाखेड़ा शहर में ५०० अजैन भाईयों ने मिलकर आक्रमण कर दिया पुन: स्थानीय समाज, पुलिस एवं आचार्यश्री के पुण्यप्रभाव से उपसर्ग निवारण हो गया।
प्रश्न ५९३ -आचार्यश्री की प्रेरणा से स्थापित संस्था का नाम क्या था ?
उत्तर -परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती १०८ श्री आचार्यवर्य शांतिसागर दिगम्बर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्था।
प्रश्न ५९४ -इस संस्था की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर -वीर निर्वाण संवत् २४७०-७१ में।
प्रश्न ५९५ -आचार्यश्री को शिखर जी की यात्रा कराने वाले संघपति का क्या
नाम था?
उत्तर -बम्बई निवासी श्रीमान् सेठ पूनमचंद जी घासीलाल।
प्रश्न ५९६ -यह सम्मेदशिखर यात्रा उन्होंने किस सन् में की थी ?
उत्तर -ईसवी सन् १९२७ में।
प्रश्न ५९७ -दीक्षागुरु श्री देवेन्द्रकीर्ति जी महाराज की समाधि कितनी उम्र में हुई?
उत्तर -१०५ वर्ष की उम्र में।
प्रश्न ५९८ -संघपति द्वारा आचार्यश्री को सम्मेदशिखर की यात्रा कराने में क्या विशेष कारण था ?
उत्तर -एक बार आचार्यश्री ने उन्हें अणुव्रत दिए, जिसमें परिग्रह परिमाण में उन्होंने १ लाख रुपये का प्रमाण किया, बाद में रुपये बहुत बढ़ गए, तब वे आचार्यश्री के पास गए तब संघ के एक महाराज जी की प्रेरणा से उन्होंने आचार्यसंघ को सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की यात्रा कराई।
प्रश्न ५९९ -बचपन में सातगौंडा किन ग्रंथों का वाचन करते थे ?
उत्तर -आत्मानुशासन और समयसार इन दो ग्रंथों का वाचन वे प्रारंभ से ही करते थे।
प्रश्न ६०० -माता सत्यवती को पुत्र सातगौंडा को जन्म देने से पूर्व क्या दोहला हुआ था ?
उत्तर -उन्हें यह दोहला हुआ था कि मैं एक सहस्र दल वाले एक सौ आठ कमलों से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करूँ।
प्रश्न ६०१ -पुन: उनका दोहला पूर्ण हो पाया था कि नहीं ?
उत्तर -कोल्हापुर के समीप के तालाब से विशेष प्रबंध द्वारा कमल लाकर उनका दोहला पूर्ण कराया गया था।
प्रश्न ६०२ -आचार्यश्री की करुणा का कोई दृष्टान्त बताइए ?
उत्तर -महाराज के खेत में ढेर सारे पक्षी आकर अनाज खा लेते थे, वे उन्हें भगाने की बजाए उनके लिए पानी भी रख देते थे कि अनाज खाकर ये पक्षी पानी भी पी लेवें।
प्रश्न ६०३ -सुना जाता है कि आचार्यश्री ने गृहस्थावस्था में कपड़े का व्यापार भी किया था ?
उत्तर -वे बहुत ही अरुचिपूर्वक व्यापार करते थे। ग्राहक दुकान पर आता, तब वे उससे कहते-भैया! जो कपड़ा पसंद हो, अपने आप नापकर फाड़ लो, पैसे गुल्लक में डाल दो और यदि उधार करना हो, तो कापी में लिख दो।
प्रश्न ६०४ -माता सत्यवती का गृहस्थ जीवन वैâसा था ?
उत्तर -वे बड़ी बुद्धिमती, धर्मपरायण, सर्वप्रिय, पतिसेवातत्पर तथा पुण्यशीला थीं।
प्रश्न ६०५ -आचार्यश्री के ऊपर सर्प द्वारा उपसर्ग सर्वप्रथम किस स्थान पर
हुआ था ?
उत्तर -कोन्नूर की गूफा में।
प्रश्न ६०६ -क्या सर्प द्वारा उपसर्ग और भी कहीं हुआ था ?
उत्तर -हाँ! शेड़वाल और कोगनोली में भी सर्प द्वारा उपसर्ग हुआ था।
प्रश्न ६०७ -प्रारंभ में आचार्यश्री की शारीरिक शक्ति किस प्रकार थी ?
उत्तर -वे असाधारण शक्ति के धारक थे। चावल के लगभग चार मन के बोरों को वे सहज ही उठा लेते थे। वे बैल के स्थान पर स्वयं लगकर अपने हाथों से वुँâए से मोठ द्वारा पानी खींच लेते थे। वे दोनों पैरों को जोड़कर १२ हाथ लम्बी जगह को लांघ जाते थे।
प्रश्न ६०८ -क्या महाराज जी के भाई ने भी दीक्षा ली थी ?
उत्तर -हाँ! उनके एक बड़े भाई देवगोंडा ने भी मुनिदीक्षा धारण करके ‘‘वर्धमानसागर’’ नाम प्राप्त किया।
प्रश्न ६०९ -आचार्यश्री का पुण्यचरित्र किस ग्रंथ में प्रकाशित है ?
उत्तर -‘‘चारित्रचक्रवर्ती’’ ग्रंथ में।
प्रश्न ६१० -इस ग्रंथ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर -धर्मदिवाकर पं. सुमेरुचंद दिवाकर (सिवनी-म.प्र.)
प्रश्न ६११ -कुंंभोज में भगवान बाहुबली की प्रतिमा किनकी प्रेरणा से स्थापित
की गईं ?
उत्तर -चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज की प्रेरणा से।
प्रश्न ६१२ -यह बाहुबली भगवान की प्रतिमा कितने फुट ऊँची है ?
उत्तर -१८ फुट उत्तुंग है।
प्रश्न ६१३ -आचार्यश्री की समाधि कितने वर्ष की उम्र में हुई थी ?
उत्तर -९३ वर्ष की उम्र में।
प्रश्न ६१४ -आचार्यश्री ने किस मरण से शरीर का त्याग किया था ?
उत्तर -आचार्यश्री ने इंगिनीमरणपूर्वक शरीर का त्याग किया था।
प्रश्न ६१५ -इंगिनीमरण किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिस संन्यास में अपने द्वारा अपने पर किए गए उपकार की अपेक्षा तो रहती है परन्तु दूसरों के द्वारा अपने पर किए गए वैयावृत्य आदि उपकार की किंचित् भी अपेक्षा नहीं रहती, उसे इंगिनीमरण कहते हैं।
प्रश्न ६१६ -इंगिनीमरण किन-किन आसनों में सधता है ?
उत्तर -कायोत्सर्ग से खड़े होकर, बैठकर अथवा लेटकर एक करवट पर पड़े हुए वे मुनिराज स्वयं ही अपने शरीर की क्रिया करते हैं।
प्रश्न ६१७ -आचार्यश्री को अंतिम बादाम का पानी आहार में देने का श्रेय किनको प्राप्त हुआ था ?
उत्तर -बारामती के गुरुभक्त सेठ चंदूलाल जी सर्राफ को।
प्रश्न ६१८ -आचार्यश्री की समाधि के समय में और क्या विशेष बातें हुई थीं ?
उत्तर -समाधि के तीन दिन पूर्व से आचार्यश्री के मल-मूत्र-पसीना-भूख-प्यास-रोग-शोक-पीड़ा-क्रंदन-कराह-आक्रोश-खीझ-निराशा-आशा-नींद-प्रमाद-प्रसन्नता-खेद-क्लेश कुछ भी नहीं था, उन्होंने न किसी से सेवा ली और न स्वयं ही स्वयं की सेवा की।
प्रश्न ६१९ -बीसवीं सदी की प्रथम बालब्रह्मचारिणी आर्यिका कौन सी हैं ?
उत्तर -गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी।
प्रश्न ६२० -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर -उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले में ‘‘टिवैâतनगर’’ नामक गाँव में ज्ञानमती माताजी का जन्म हुआ था।
प्रश्न ६२१ -किस सन् में कौन सी तिथि को इनका जन्म हुआ ?
उत्तर -२२ अक्टूबर सन् १९३४ को शरदपूर्णिमा-आश्विन शुक्ला पूर्णिमा के दिन।
प्रश्न ६२२ -इनका जन्म नाम क्या था ?
उत्तर -कु. मैना।
प्रश्न ६२३ -इनकी जाति एवं गोत्र का क्या नाम था ?
उत्तर -अग्रवाल दिगम्बर जैन जाति एवं गोयल गोत्रीय परिवार में इनका जन्म हुआ था।
प्रश्न ६२४ -इनके माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर -माता का नाम मोहिनी देवी तथा पिता का नाम छोटेलाल था।
प्रश्न ६२५ -इनके भाई कितने हैं ?
उत्तर -चार भाई हैं-वैâलाशचंद, स्व. प्रकाशचंद, सुभाषचंद एवं कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जी (पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी)।
प्रश्न ६२६ -इनकी बहनें कितनी हैं ?
उत्तर -८ बहनें हैं-सौ. शांति देवी, सौ. श्रीमती देवी, ब्र. मनोवती (स्व. आर्यिका अभयमती), कुमुदनी देवी, सौ. मालती देवी, सौ. कामनी देवी, ब्र. माधुरी (आर्यिका चन्दनामती), सौ. त्रिशला जैन।
प्रश्न ६२७ -ज्ञानमती माताजी को वैराग्य वैâसे हुआ ?
उत्तर -‘पद्मनंदि पंचविंशतिका’ ग्रंथ के स्वाध्याय से इन्हें वैराग्य हुआ था।
प्रश्न ६२८ -इन्हें ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कराने में कौन सा वâारण प्रमुख रहा ?
उत्तर -एक बार अकलंक-निकलंक नाटक देखकर इन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्यव्रत लेने का संकल्प किया।
प्रश्न ६२९ -इनका विवाह हुआ था या क्वांरी अवस्था में वैराग्य हो गया था ?
उत्तर -क्वांरी अवस्था में ही इन्हें संसार से वैराग्य हो गया था।
प्रश्न ६३० -ब्रह्मचर्य व्रत इन्होंने कहाँ और किन गुरु से लिया था ?
उत्तर -सन् १९५२ की शरदपूर्णिमा को बाराबंकी में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से सप्तमप्रतिमारूप ब्रह्मचर्य व्रत कु. मैना ने ग्रहण किया था।
प्रश्न ६३१ -इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा कहाँ और किनसे ली थी ?
उत्तर -श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र पर सन् १९५३ में चैत्र कृ. एकम् को आचार्य श्री देशभूषण जी ने इन्हें क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान की थी।
प्रश्न ६३२ -क्षुल्लिका अवस्था में इनका क्या नाम था ?
उत्तर -क्षुल्लिका वीरमती माताजी।
प्रश्न ६३३ -क्षुल्लिका अवस्था में ये कितने दिन रही हैं ?
उत्तर -३ वर्ष ३१ दिन तक ये क्षुल्लिका रही हैं।
प्रश्न ६३४ -वे तीन चातुर्मास इन्होंने कहाँ-कहाँ किये थे ?
उत्तर -प्रथम टिवैâतनगर में, द्वितीय जयपुर में और तृतीय म्हसवड़
(महाराष्ट्र) में।
प्रश्न ६३५ -पुन: इन्होंने आर्यिका दीक्षा किनसे ग्रहण की ?
उत्तर -चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से इन्होंने आर्यिका दीक्षा ली थी।
प्रश्न ६३६ -कहाँ और किस तिथि में आर्यिका दीक्षा हुई ?
उत्तर -माधोराजपुरा (राज.) में सन् १९५६ में वैशाख कृष्णा दूज को आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज ने इन्हें आर्यिका दीक्षा देकर ज्ञानमती नाम से अलंकृत किया।
प्रश्न ६३७ -आर्यिका दीक्षा के बाद इनके ६१ चातुर्मास कहाँ-कहाँ हुए हैं ?
उत्तर -१. जयपुर (खानिया) २. जयपुर (खानिया) ३. ब्यावर (राज.) ४. अजमेर (राज.) ५. सुजानगढ़ (राज.) ६. सीकर (राज.)
७. लाडनू (राज.) ८. कलकत्ता (प. बंगाल) ९. हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) १०. श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) ११. सोलापुर (महा.) १२. सनावद (म.प्र.) १३. प्रतापगढ़ (राज.) १४. जयपुर (राज.) १५. टोंक (राज.) १६. अजमेर (राज.) १७. पहाड़ी धीरज (दिल्ली) १८. नजफगढ़ (दिल्ली) १९. कूचा सेठ (दिल्ली) २०. हस्तिनापुर (उ.प्र.) २१. खतौली (उ.प्र.) २२. हस्तिनापुर (उ.प्र.)
२३. हस्तिनापुर (उ.प्र.) २४. मोरीगेट-दिल्ली २५. कूचासेठ-दिल्ली २६. जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (उ.प्र.) २७. दिल्ली २८ से ३५ नं. तक अर्थात् सन् १९८३ से १९९० तक ८ चातुर्मास हस्तिनापुर में पुन: ३६. सरधना (उ.प्र.) ३७. हस्तिनापुर (उ.प्र.) ३८. अयोध्या (उ.प्र.) ३९. टिवैâतनगर (उ.प्र.) ४०. जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (उ.प्र.)
४१. मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र (महा.) ४२. लालमंदिर-दिल्ली
४३. जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (उ.प्र.) ४४. कनॉट प्लेस-दिल्ली
४५. प्रीतविहार-दिल्ली ४६. अशोक विहार-दिल्ली ४७. प्रयाग-इलाहाबाद (उ.प्र.) ४८. भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार ४९. कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार ५० से ५९ तक अर्थात् सन् २००५ से २०१४ तक जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर (उ.प्र.) ६०,६१ अर्थात् सन् २०१५-२०१६ का चातुर्मास मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर ऋषभगिरि उद्यान में।
प्रश्न ६३८ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम दर्शन इन्होंने कब और कहाँ किए थे ?
उत्तर -सन् १९५४ के दिसम्बर महीने में नीरा (महा.) में।
प्रश्न ६३९ -क्या इन्होंने आचार्य श्री शांतिसागर जी की सल्लेखना भी देखी है ?
उत्तर -हाँ, सन् १९५५ में एक माह कुंथलगिरि रुककर क्षुल्लिकावस्था में आचार्यश्री की प्रत्यक्ष सल्लेखना तो देखी ही है, साथ ही उनके श्रीमुख से अनेक अनुभव वाक्य भी प्राप्त किए हैं।
प्रश्न ६४० -श्री ज्ञानमती माताजी ने प्रथमानुयोग से संबंधित कौन-कौन सी पुस्तकें लिखी हैं ?
उत्तर -प्रतिज्ञा, परीक्षा, संस्कार, उपकार, जीवनदान, प्रभावना, सती अंजना, भक्ति, भगवान नेमिनाथ, भगवान ऋषभदेव, आदिब्रह्मा, कामदेव-बाहुबली, योगचक्रेश्वर बाहुबली, बाहुबली नाटक, पुरुदेव नाटक, रोहिणी नाटक, एकांकी, जैन बालभारती, नारी आलोक, चौबीस तीर्थंकर, आटे का मुर्गा आदि।
प्रश्न ६४१ -साहित्य सृजन में इनकी सबसे पहली कृति कौन सी है ?
उत्तर -सन् १९५५ में म्हसवड़ (महा.) चातुर्मास में सबसे पहले जिनसहस्रनाममंत्र नाम की पुस्तक लिखी, वह इसी नाम से आज भी प्रकाशित है।
प्रश्न ६४२ -अयोध्या के महामस्तकाभिषेक महोत्सव की योजना माताजी के मस्तिष्क में कब आई ?
उत्तर -२३ अक्टूबर १९९२ धनतेरस को जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में ध्यान करते हुए ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक की अन्तर्प्रेरणा प्राप्त हुई थी।
प्रश्न ६४३ -पुन: हस्तिनापुर से अयोध्या की ओर इन्होंने कब विहार किया ?
उत्तर -११ फरवरी १९९३, फाल्गुन कृ. पंचमी को पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने संघ सहित अयोध्या की ओर मंगल विहार किया।
प्रश्न ६४४ -माताजी अयोध्या कब पहुँची थीं ?
उत्तर -१६ जून १९९३, आषाढ़ वदी ११ को वे अयोध्या पहुँचीं और जीवन में प्रथम बार भगवान श्री ऋषभदेव के दर्शन किये।
प्रश्न ६४५ -अयोध्या में अब तक कौन-कौन से साधुओं के चातुर्मास हुए हैं ?
उत्तर -इस शताब्दी में तो आज तक किसी साधु संघ का चातुर्मास अयोध्या के इतिहास में उल्लिखित नहीं है। सन् १९९३ में प्रथम बार पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी का ससंघ चातुर्मास हुआ है।
प्रश्न ६४६ -उनके सान्निध्य में अयोध्या की पावन वसुन्धरा पर कौन-कौन से नव निर्माण हुए हैं ?
उत्तर -तीन चौबीसी मंदिर, समवसरण मंदिर, अनन्तनाथ टोंक पर १९ तीर्थंकर चरण, सप्तऋषि और ब्राह्मी-सुन्दरी के चरण चिन्ह, रायगंज मंदिर परिसर में बीस फ्लैट, आचार्य श्री शांतिसागर जी एवं देशभूषण महाराज की चरण छतरी, क्षेत्रपाल, पद्मावती, गोमुख यक्षेन्द्र, चक्रेश्वरी देवी की वेदी, ५० से अधिक शिलालेख (अयोध्या के इतिहास से संबंधित), भरत-बाहुबली के चरण, पांडुकशिला स्थल पर शांति, कुंथु, अरनाथ तीर्थंकर के चरण आदि नव निर्माण हुए हैं।
इसके अतिरिक्त पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा से श्री ऋषभदेव की टोंक पर ऋषभदेव मन्दिर, श्री अजितनाथ की टोंक पर अजितनाथ का मन्दिर,श्री अभिनंदननाथ की टोंक पर अभिनंदननाथ का मंदिर, श्री सुमतिनाथ की टोंक पर सुमतिनाथ का मंदिर, अनंतनाथ की टोंक पर अनंतनाथ का मंदिर एवं श्री भरतबाहुबलि की टोंक पर भीr मंदिर का निर्माण हुआ है और उनमें विशाल मूर्तियाँ विराजमान होकर पंचकल्याणक हो चुके हैं।
प्रश्न ६४७ -पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के इस प्रथमानुयोगमयी जीवन पक्ष से क्या निष्कर्ष निकलता है ?
उत्तर -जीवन में दृढ़ संकल्पी होकर अपने लक्ष्य को पूर्ण करना, संघर्षों को झेलकर जीवन को कुन्दन सा चमकाना, न्याय का पक्ष एवं अन्याय से दूर रहना, सत्य को अपनाकर आत्मविश्वास-पूर्वक उस पर अडिग रहना, यह पूज्य ज्ञानमती माताजी के आदर्श जीवन का प्रथमानुयोगमयी ग्रंथ पठनीय एवं अनुकरणीय है।
प्रश्न ६४८ -ज्ञानमती माताजी का अवस्थान किस लोक और किस गति में है ?
उत्तर -मध्यलोक में मनुष्यगति में ज्ञानमती माताजी का अवस्थान है।
प्रश्न ६४९ -किस द्वीप और क्षेत्र में माताजी ने जन्म लिया है ?
उत्तर -जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में, भारत देश के उत्तरप्रदेश में, बाराबंकी जिले में इनका जन्म हुआ है।
प्रश्न ६५० -माताजी के कितनी पर्याप्ति एवं इन्द्रियाँ हैं ?
उत्तर -आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास, भाषा और मन ये छहों पर्याप्तियाँ एवं पाँचों इन्द्रियाँ जिस प्रकार समस्त मनुष्यों में होती हैं उसी प्रकार ज्ञानमती माताजी के भी छहों पर्याप्तियाँ एवं पाँचों इन्द्रियाँ हैं।
प्रश्न ६५१ -माताजी के कितने ज्ञान हैं ?
उत्तर -पंचमकाल के स्त्री-पुरुषों को मति और श्रुत ये दो ज्ञान होते हैं।
प्रश्न ६५२ -इनके प्राण कितने हैं ?
उत्तर -दशों प्राण हैं।
प्रश्न ६५३ -पूज्य माताजी ने करणानुयोग से संबंधित कौन-कौन सी पुस्तकें लिखी हैं ?
उत्तर -त्रिलोक भास्कर और जम्बूद्वीप ये पुस्तकें लिखी हैं तथा गोम्मटसार जीवकांडसार, गोम्मटसार कर्मकांडसार का संकलन किया है।
प्रश्न ६५४ -माताजी के मन में जम्बूद्वीप रचना का ध्यान कब और कहाँ आया ?
उत्तर -सन् १९६५ में जब ये अपने आर्यिका संघ सहित कर्नाटक प्रान्त के श्रवणबेलगोला तीर्थ पर चातुर्मास कर रही थीं, तब एक दिन भगवान बाहुबली के चरण सान्निध्य में ध्यान करते हुए जम्बूद्वीप रचना का दर्शन हुआ था।
प्रश्न ६५५ -यह जम्बूद्वीप रचना माताजी की कल्पना है या इसका शास्त्रीय प्रमाण भी है ?
उत्तर -माताजी कभी भी कल्पनाओं या स्वप्नों को महत्व नहीं देती हैं।
उनके ध्यान में स्वयमेव यह रचना दृष्टिगोचर हुई तब उन्होंने ग्रंथों में उसकी खोज की और फलस्वरूप तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों में इस रचना का ज्यों का त्यों वर्णन पाकर बहुत प्रसन्न हुई अत: सारांश यह है कि जम्बूद्वीप कोई काल्पनिक रचना नहीं है यह करणानुयोग ग्रंथों में वर्णित भूमंडल की रचना है।
प्रश्न ६५६ -बाहुबली के चरणों में प्राप्त जम्बूद्वीप का निर्माण उत्तरप्रदेश में क्यों हुआ ?
उत्तर -यह तो संयोग की बात है। जहाँ की धरती पर उसके निर्माण का योग था, उधर ही माताजी के कदम मुड़ गए और हस्तिनापुर में उसका निर्माण हो गया।
प्रश्न ६५७ -ज्ञानमती माताजी का कौन सा गुणस्थान है ?
उत्तर -पाँचवाँ गुणस्थान है।
प्रश्न ६५८ -गुणस्थानों को पहचानने का थर्मामीटर क्या है ?
उत्तर -अन्तरंग की पहचान तो केवलीगम्य ही है किन्तु महाव्रत, अणुव्रत आदि धारण करने से बाह्यरूप से गुणस्थान पहचाने जाते हैं।
प्रश्न ६५९ -पूज्य ज्ञानमती माताजी का पंचम गुणस्थान किस अपेक्षा से है ?
उत्तर -आगम में आर्यिकाओं का पंचम गुणस्थान ही माना गया है क्योंकि वे उपचार से महाव्रती होती हैं तथा स्त्रियाँ पाँचवें गुणस्थान से आगे की अवस्था कभी भी प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
प्रश्न ६६० -ज्ञानमती माताजी का कौन सा सम्यग्दर्शन है ?
उत्तर -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन है।
प्रश्न ६६१ -हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप के निर्माण में ज्ञानमती माताजी का प्रमुख लक्ष्य क्या रहा ?
उत्तर -संसार को जैन भूगोल का ज्ञान कराना तथा पृथ्वी पर हम कहाँ निवास करते हैं इस बात का बोध करवाना इनका प्रमुख लक्ष्य रहा है।
प्रश्न ६६२ -जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन इन्होंने क्यों करवाया था ?
उत्तर -अहिंसा धर्म का व्यापक प्रचार, जम्बूद्वीप का प्रचार तथा हस्तिनापुर में निर्मित होने वाले जम्बूद्वीप के प्रति जन-जन की अपनत्व भावनाएँ जोड़ने हेतु इन्होंने ४ जून १९८२ को दिल्ली से प्रधानमंत्री इन्दिरा- गांधी द्वारा ज्ञानज्योति का प्रवर्तन कराया था, जो कि अपने लक्ष्य में पूर्ण सफल सिद्ध हुई है।
प्रश्न ६६३ -उस ज्ञानज्योति की अखण्ड स्थापना कहाँ और कब हुई है ?
उत्तर -हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना के ठीक सामने २८ अप्रैल १९८५ को तत्कालीन केन्द्रीय रक्षामंत्री पी.वी. नरिंसहाराव ने ज्ञानज्योति की अखंड स्थापना की थी।
प्रश्न ६६४ -ज्ञानमती माताजी को इतने विशाल ज्ञान की प्राप्ति वैâसे हुई ?
उत्तर -पूर्वजन्म के संस्कारवश एवं ज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम ही निमित्त मानना पड़ेगा तथा इस भव में जिनभक्ति और अभीक्ष्ण स्वाध्याय भी कारण है।
प्रश्न ६६५ -माताजी के इस करणानुयोगमयी जीवन से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर -कर्मों की विचित्रता जानकर उनसे छूटने का सतत प्रयत्न करें, यही शिक्षा मिलती है।
प्रश्न ६६६ -पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने कितने वर्ष की उम्र में अणुव्रत धारण किये थे ?
उत्तर -यूँ तो आठ वर्ष की उम्र के बाद ही इन्हें पूर्व जन्म के संस्कार- वश बोध प्राप्त हो गया था, जिसके फलस्वरूप इन्होंने अपने घर में अनेक कुरीतियों को समाप्त किया था फिर भी विधिवत् गुरु के पादमूल में सन् १९५२ की शरदपूर्णिमा को सप्तमप्रतिमा के व्रत लेकर अणुव्रती श्राविका की श्रेणी प्राप्त की थी।
प्रश्न ६६७ -पूज्य ज्ञानमती माताजी तो गणिनी आर्यिका हैं अत: उनके कितने मूलगुण हैं ?
उत्तर -जैसे मुनिसंघ के प्रमुख संचालक आचार्य होते हैं और आचार्य के ३६ मूलगुण माने गये हैं, उसी प्रकार आर्यिका संघ की प्रमुख संचालिका गणिनी होती हैं अत: उनके भी ३६ मूलगुण ही मानना चाहिए।
प्रश्न ६६८ -इन्द्रध्वज विधान की रचना ज्ञानमती माताजी ने किस सन् में कहाँ की थी ?
उत्तर -सन् १९७६ में खतौली (उ.प्र.) में इन्द्रध्वज विधान की रचना
की थी।
प्रश्न ६६९ -इन्द्रध्वज विधान कितने दिनों में लिखकर पूर्ण हुआ था ?
उत्तर -श्रावणवदी सप्तमी से इन्द्रध्वज विधान का लेखन पूज्य माताजी ने प्रारंभ किया था तथा कार्तिक कृष्णा अमावस को पूर्ण किया था। इस प्रकार कुल ९९ दिनों में इन्द्रध्वज विधान का लेखन पूर्ण हुआ था।
प्रश्न ६७० -इन्द्रध्वज विधान में कुल कितनी पूजाएँ एवं जयमाला हैं ?
उत्तर -इस विधान में ५० पूजाएँ हैं और ५१ जयमालाएँ हैं।
प्रश्न ६७१ -इन्द्रध्वज विधान में कहाँ के चैत्यालयों की पूजन होती हैं ?
उत्तर -मध्यलोक के ४५८ अकृत्रिम चैत्यालयों की।
प्रश्न ६७२ -इस विधान में कितने अर्घ्य और पूर्णार्घ्य हैं ?
उत्तर -४५८ अर्घ्य और ६७ पूर्णार्घ्य हैं।
प्रश्न ६७३ -कल्पद्रुम मंडल विधान की रचना ज्ञानमती माताजी ने किस ग्रंथ के आधार से की है ?
उत्तर -इस विधान का नाम शास्त्रोें में आता था, किन्तु अभी तक यह विधान देश के किसी ग्रंथालय में देखने में नहीं आया था। पूज्य माताजी ने अपने मस्तिष्क से ही तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रंथों का आधार लेकर समवसरण से संबंधित पूजाओं को रचकर यह अपनी एक मौलिक कृति बनाई है।
प्रश्न ६७४ -इस कल्पद्रुम विधान को उन्होंने कहाँ और किस सन् में लिखा है ?
उत्तर -सन् १९८६ में हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप स्थल पर चातुर्मास काल मेंं।
प्रश्न ६७५ -कल्पद्रुम विधान में कितनी पूजा, जयमाला हैं तथा कुल अर्घ्य- पूर्णार्घ्य कितने हैं ?
उत्तर -इसमें २४ पूजाएँ हैं २५ जयमाला हैं तथा २४२४ अर्घ्य एवं ७२ पूर्णार्घ्य हैंं।
प्रश्न ६७६ -इस विधान में कितने छंदों का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर -४५ छंदों का प्रयोग इस विधान में किया गया है।
प्रश्न ६७७ -इस कल्पद्रुम विधान को माताजी ने कितने दिन में लिखकर पूरा किया था ?
उत्तर -९ जुलाई १९८६ आषाढ़ शुक्ला द्वितीया को पूज्य माताजी ने प्रात: ५.४५ मिनट पर इसका लेखन प्रारंभ किया तथा १७ अक्टूबर १९८६ शरदपूर्णिमा को प्रात: ६.१० बजे पूर्ण किया, अत: कुल
१०१ दिन में यह विधान लिखा गया है।
प्रश्न ६७८ -इस विधान में चार दान बाँटने का नियम क्यों है ?
उत्तर -क्योंकि चक्रवर्तीगण चतुर्थकाल में इस विधान को करते हुए किमिच्छक दान बाँटते हैं किन्तु पंचमकाल में न चक्रवर्ती हैं और न किमिच्छक दान बंट सकता है इसीलिए स्थापना निक्षेप से चक्रवर्ती बनकर मनुष्य को यह विधान करते हुए शक्ति अनुसार चार दान बाँटने का नियम बताया गया है।
प्रश्न ६७९ -सर्वतोभद्र विधान में कहाँ के चैत्यालयों की कितनी पूजाएँ हैं ?
उत्तर -इसमें तीनों लोकों के नवदेवतासंबंधी समस्त पूजाएँ हैं, कुछ भी नहीं बचे हैं तथा इस विधान में कुल १०१ पूजाएँ हैं।
प्रश्न ६८० -इस विधान का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर -वृहद् तीनलोक विधान।
प्रश्न ६८१ -इसमें कुल कितने अर्घ्य एवं पूर्णार्घ्य हैं ?
उत्तर -सर्वतोभद्र विधान में कुल १८११ अर्घ्य हैं तथा १९० पूर्णार्घ्य हैं।
प्रश्न ६८२ -इसकी रचना किनने, कब और कहाँ की थी ?
उत्तर -इस सर्वतोभद्र विधान की रचना पूज्य ज्ञानमती माताजी ने सन् १९८७ में हस्तिनापुर में की थी।
प्रश्न ६८३ -इसका सर्वतोभद्र नाम क्यों रखा गया है ?
उत्तर -यह महायज्ञ सब तरफ से और सब प्रकार से भद्र अर्थात् कल्याणकारी है तथा पूजकों को सर्वसुख संपत्ति देने वाला है इसलिए इसका नाम सर्वतोभद्र सार्थक है।
प्रश्न ६८४ -आचार्यश्री कुन्दकुन्दस्वामी द्वारा रचित मूलाचार ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद ज्ञानमती माताजी ने कब किया है और वह ग्रंथ कहाँ से प्रकाशित हुआ है ?
उत्तर -सन् १९७६ में मूलाचार का अनुवाद किया है और वह भारतीय ज्ञानपीठ संस्था से प्रकाशित हुआ है।
प्रश्न ६८५ -क्या पूज्य माताजी ने कन्नड़ भाषा में भी रचनाएँ की हैं ?
उत्तर -हाँ! सन् १९६५ में माताजी ने कन्नड़ की बारह भावना, बाहुबली स्तुति और भद्रबाहु स्तुति रची थीं जिसमें से बारह भावना कर्नाटक प्रान्त में खूब प्रचलित है।
प्रश्न ६८६ -पूज्य माताजी द्वारा रचित तीन लोक विधान में कितनी पूजा, अर्घ्य आदि हैं ?
उत्तर -तीन लोक विधान में ६४ पूजाएँ हैं, ८४४ अर्घ्य तथा १४० पूर्णार्घ्य हैं, ६४ जयमाला एवं त्रैलोक्य चूड़ामणि नाम की १ बड़ी जयमाला है।
प्रश्न ६८७ -पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने द्रव्यानुयोगसंबंधी किन-किन ग्रंथों की रचना की है ?
उत्तर -(१) समयसार की हिन्दी टीका (२) नियमसार की संस्कृत टाrका (३) नियमसार पद्यावली (४) नियमसार पद्मप्रभमलधारी देव की संस्कृत टीका का हिन्दी अनुवाद।
प्रश्न ६८८ -वर्तमान शताब्दी में ग्रंथ रचना का शुभारंभ किसने किया है ?
उत्तर -गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न ६८९ -उनके द्वारा नियमसार पर रचित संस्कृत टीका का क्या नाम है ?
उत्तर -आचार्यश्री कुन्दकुन्दस्वामी द्वारा रचित नियमसार ग्रंथ पर रचित संस्कृत टीका का नाम है ‘स्याद्वादचन्द्रिका’। इस संस्कृत टीका की सरल एवं रोचक हिन्दी टीका भी पूज्य ज्ञानमती माताजी ने लिखी है।
प्रश्न ६९० -कन्नड़ भाषा में बारह भावना किसने लिखी है ?
उत्तर -आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न ६९१ -यह समवसरण श्रीविहार किनकी प्रेरणा से हुआ ?
उत्तर -परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से हुआ।
प्रश्न ६९२ -समवसरण श्रीविहार का शुभारंभ किस तिथि को कहाँ से हुआ ?
उत्तर -चैत्र कृष्णा नवमी, ऋषभजयंती के शुभ दिन २२ मार्च १९९८, रविवार को राजधानी दिल्ली के लालकिला मैदान से समवसरण श्रीविहार का शुभारंभ हुआ।
प्रश्न ६९३ -समवसरण का सारे देश में भारत भ्रमण हेतु प्रवर्तन किनके करकमलों से हुआ ?
उत्तर -भारत के लोकप्रिय (तत्कालीन) प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पूज्य माताजी से आशीर्वाद प्राप्त कर दिल्ली से भारत भ्रमण हेतु समवसरण श्रीविहार रथ का प्रवर्तन किया।
प्रश्न ६९४ -बालविकास के चारों भाग किसने लिखे हैं ?
उत्तर -आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न ६९५ -तीर्थंकर के जन्म की क्या विशेषता है?
उत्तर -जिनके जन्म से १५ महीने पहले तक रत्नों की वर्षा होती है।
प्रश्न ६९६ -सुमेरू पर्वत की महिमा क्या है ?
उत्तर -इस पर जन्मजात तीर्थंकर बालक का इन्द्रों द्वारा जन्माभिषेक किया जाता है इसलिए इसकी महिमा विशेष है।
प्रश्न ६९७ -जन्माभिषेक क्या है ?
उत्तर -जन्मजात तीर्थंकर बालक का १००८ कलशों से अभिषेक करना (स्नान कराना) जन्माभिषेक कहलाता है।
प्रश्न ६९८ -वर्तमान में ऐसा सुमेरू पर्वत बड़े रूप में कहाँ बना है ?
उत्तर -हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना के बीच में १०१ फुट ऊँचा सुमेरू पर्वत बना है।
प्रश्न ६९९ -धर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो उत्तम सुख को प्राप्त करावे वह धर्म है।
प्रश्न ७०० -जैन धर्म की स्थापना किसने की ?
उत्तर -किसी ने नहीं, क्योंकि वह शाश्वत धर्म है।
प्रश्न ७०१ -व्यसन किसे कहते हैं ?
उत्तर -बुरी आदत को व्यसन कहते हैं।
प्रश्न ७०२ -व्यसन कितने होते हैं ?
उत्तर -सात।
प्रश्न ७०३ -रावण को किस व्यसन के कारण नरक जाना पड़ा ?
उत्तर -परस्त्री सेवन की भावनामात्र से, क्योंकि उसने सीता का हरण किया था उससे बलात्कार नहीं किया था।
प्रश्न ७०४ -शराब पीने से क्या हानि होती है ?
उत्तर -पैसा, स्वास्थ्य एवं परिवार की बर्बादी होती है। इस लोक में निंदा एवं अगले भव में नरक के दुख भोगना पड़ता है।
प्रश्न ७०५ -शिकार खेलना बुरा क्यों है ?
उत्तर -इससे निरपराध जीवों की हिंसा होती है और इनकी हिंसा से नरक में जाना पड़ता है।
प्रश्न ७०६ -सातों व्यसनों में कौन सा व्यसन अच्छा है ?
उत्तर -कोई भी नहीं।
प्रश्न ७०७ -सत्य बोलने में कौन सा राजा लोकव्यवहार में प्रसिद्ध हुआ है ?
उत्तर -राजा हरिश्चन्द्र।
प्रश्न ७०८ -श्री रामचन्द्र जी की प्रसिद्धि क्यों हुई ?
उत्तर -पिता की आज्ञापालन करने के कारण।
प्रश्न ७०९ -पाप किसे कहते हैं ?
उत्तर -बुरे कार्यों को करना पाप कहलाता है।
प्रश्न ७१० -िंहसा किसे कहते हैं ?
उत्तर -किसी भी छोटे-बड़े प्राणी को मारना िंहसा है।
प्रश्न ७११ -झूठ किसे कहते हैं ?
उत्तर -अपनी देखी सुनी बात को गलत रूप में बताना झूठ है।
प्रश्न ७१२ -चोरी किसे कहते हैं ?
उत्तर -किसी की गिरी, पड़ी या भूली चीजों को उससे पूछे बिना उठा लेना चोरी है।
प्रश्न ७१३ -कुशील किसे कहते हैं ?
उत्तर -पुरुषों के द्वारा किसी महिला को बुरी नजर से देखना और महिलाओं के द्वारा किसी पुरुष के प्रति बुरी दृष्टि रखना कुशील पाप है।
प्रश्न ७१४ -परिग्रह किसे कहते हैं ?
उत्तर -आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करने को परिग्रह कहते हैं।
प्रश्न ७१५ -पापों का त्याग कौन कर सकते हैं ?
उत्तर -मनुष्य एवं पशु भी पापों का त्याग कर सकते हैं।
प्रश्न ७१६ -अणुव्रतों का पालन कौन करते हैं ?
उत्तर -गृहस्थ स्त्री-पुरुष अणुव्रतों का पालन करते हैं।
प्रश्न ७१७ -बच्चों का सबसे बड़ा क्या कर्त्तव्य है ?
उत्तर -माता-पिता, गुरू, मित्र, भाई-बहन और परिवार के प्रति विनय करना, उद्दण्डता नहीं करना।
प्रश्न ७१८ -माता-पिता के प्रति आपके क्या कर्तव्य हैं ?
उत्तर -उनकी आज्ञा का पालन करना।
प्रश्न ७१९ -गुरू के प्रति विद्यार्थी के क्या कर्तव्य हैं ?
उत्तर -गुरू की विनय करना, उनकी आज्ञा का पालन करना और उनकी गलती नहीं देखना।
प्रश्न ७२० -भगवान किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो कर्मों से छूटकर फिर कभी संसार में जन्म न लें उन्हें भगवान कहते हैं।
प्रश्न ७२१ -इंसान की क्या पहचान है ?
उत्तर -जो अपने समान दूसरों को भी समझकर किसी को कष्ट न दे उसे इंसान कहते हैं।
प्रश्न ७२२ -शाकाहारी वस्तुओं की उत्पत्ति वैâसे होती है ?
उत्तर -पेड़ों से और खेती द्वारा उत्पन्न वस्तु शाकाहारी होती है। जैसे-अनाज, फल, मेवा, सब्जी।
प्रश्न ७२३ -मांसाहारी चीजें कहाँ से उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर -जीवों के पेट से पैदा होने वाले अंडे और जीवों के हड्डी, खून, मांस आदि से बनने वाली चीजेंं मांसाहारी होती हंै।
प्रश्न ७२४ -मत्स्य पालन केन्द्र धर्म है या अधर्म ?
उत्तर -अधर्म है वäयोंकि इसमें मछलियों को मारने के लिए पाला जाता है अत: यह मत्स्यमारण है।
प्रश्न ७२५ -भारतीय संस्कृति की जड़ क्या है ?
उत्तर -अिंहसा और स्त्रियों का पातिव्रत्यधर्म।
प्रश्न ७२६ -आरंभी हिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर -खाना पकाने, पानी भरने, कपड़ा धोने आदि कार्यों में आरंभी हिंसा होती है।
प्रश्न ७२७ -उद्योगी हिंसा किस-किस कार्य में होती है ?
उत्तर -व्यापार, खेती आदि में उद्योगी हिंसा होती है।
प्रश्न ७२८ -विरोधी हिंसा का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर -अपने परिवार, समाज, देश तथा सत्य की रक्षा हेतु विरोधियों से लड़ना विरोधी हिंसा है। जैसे रामचन्द्रजी ने नारी अत्याचार के विरोध में रावण के साथ युद्ध किया था।
प्रश्न ७२९ -इन चारों हिंसाओं में गृहस्थ किससे बच सकते हैं ?
उत्तर -संकल्पी हिंसा से, क्योंकि यह सर्वथा त्याज्य है एवं शेष तीन का त्याग गृहस्थ जीवन में असंभव है।
प्रश्न ७३० -युुद्ध में होने वाली हिंसा का क्या नाम है ?
उत्तर -अपनी देशरक्षा के लिए किये जाने वाले युद्ध में होने वाली हिंसा का नाम है-विरोधी हिंसा।
प्रश्न ७३१ -देश रक्षा में मरने वाले सैनिक के मरण का नाम क्या है ?
उत्तर -वीरमरण।
प्रश्न ७३२ -हमारे देश का नाम किस राजा के नाम पर पड़ा है ?
उत्तर -भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है।
प्रश्न ७३३ -जैन धर्म का मूलमंत्र क्या है ?
उत्तर -णमोकार मंत्र-णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
प्रश्न ७३४ -णमोकार मंत्र का क्या मतलब है ?
उत्तर -इसमें पांच प्रकार के महापुरूषों को नमस्कार किया गया है, इसलिए इसे पंच-नमस्कार मंत्र भी कहते हैं।
प्रश्न ७३५ -वे पांच महापुरुष कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर -अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु। ये पाँचपरमेष्ठी होते है।
प्रश्न ७३६ -परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो परम अर्थात् मनुष्यों में सबसे अधिक पूज्य पद में स्थित होते हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न ७३७ -वर्तमान में जैन धर्म के कितने भेद हंै ?
उत्तर -दो भेद हंै-१- दिगम्बर धर्म २- श्वेतांबर धर्म।
प्रश्न ७३८ -जैन साधु के वर्तमान में कितने भेद हंै ?
उत्तर -दो भेद हंै-दिगम्बर जैन साधु और श्वेताम्बर जैन साधु।
प्रश्न ७३९ -दिगम्बर जैन साधुओं की क्या पहचान है ?
उत्तर -वे नग्न होते हैं, उनके हाथ में मोरपंख की पिच्छी और लकड़ी का कमंडलु होता है।
प्रश्न ७४० -इन साधुओं को क्या कहा जाता है ?
उत्तर -मुनि महाराज जी।
प्रश्न ७४१ -दिगम्बर साधु पूरे नग्न क्योें रहते हैं ?
उत्तर -क्योंकि उनका मन पूर्ण शुद्ध-पवित्र होता है, बच्चे के समान वे निर्विकारी होते हंै।
प्रश्न ७४२ -दिगम्बर जैन धर्म में साध्वियों की क्या पहचान है ?
उत्तर -दिगम्बर जैन साध्वी एक सफेद साड़ी पहनती हैं और उनके हाथ में भी मोरपंख की पिच्छी एवं लकड़ी का कमण्डलु होता है। इन्हें आर्यिका माताजी के नाम से जातना जाता है।
प्रश्न ७४३ -इन साध्वियों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर -आर्यिका माताजी।
प्रश्न ७४४ -ये साधु-साध्वी मोरपंख की पिच्छी क्यों रखते हैं ?
उत्तर -यह इनकी पहचान है क्योंकि उठते, बैठते, सोते आदि सभी समय ये मोरपंख की पिच्छी से स्थान को परिमार्जित कर (जीव जन्तु बचाकर) बैठते हंै ताकि कोई छोटा सा भी जीव मरने न पावे।
प्रश्न ७४५ -साधु-साध्वी कमंडलु क्यों साथ रखते हैं ?
उत्तर -इसमें शरीर शुद्धि के लिए गरम जल रखते हैं।
प्रश्न ७४६ -उस जल का जैन साधु-साध्वी क्या प्रयोग करते हैं ?
उत्तर -दीर्घशंका, लघुशंका आदि जाने में शुद्धि के लिए उस जल का प्रयोग करते हैं, उसे वे कभी भी पीते नहीं हंै।
प्रश्न ७४७ -जैन धर्म के मूल सिद्धान्त क्या हैं ?
उत्तर -अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त ये जैन धर्म के मूल सिद्धान्त हैं।
प्रश्न ७४८ -भारतीय मुद्रा पर कौन सी सूक्ति लिखी होती है ?
उत्तर -सत्यमेव जयते।
प्रश्न ७४९ -जैनधर्म के प्रसिद्ध पांच तीर्थों के नाम बताओ ?
उत्तर -अयोध्या, सम्मेदशिखर, हस्तिनापुर, कुण्डलपुर, पावापुर।
प्रश्न ७५० -हस्तिनापुर का नाम विशेष प्रसिद्ध किस कारण से हुआ ?
उत्तर -कौरव-पांडव की राजधानी के कारण।
प्रश्न ७५१ -हस्तिनापुर में विशेष दर्शनीय स्थल क्या है ?
उत्तर -जम्बूद्वीप रचना।
प्रश्न ७५२ -जम्बूद्वीप क्या है ?
उत्तर -जैन भूगोल का ज्ञान कराने वाला पृथ्वी का स्वरूप जम्बूद्वीप है।
प्रश्न ७५३ -जम्बूद्वीप की रचना किसकी प्रेरणा से बनी है ?
उत्तर -जैन साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख (आचार्या) श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से।
प्रश्न ७५४ -पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने कितने शास्त्र लिखे हैं ?
उत्तर -चार सौ (४००)।
प्रश्न ७५५ -गति किसे कहते हैं ?
उत्तर -एक जन्म से दूसरे जन्म को धारण करने का नाम गति है।
प्रश्न ७५६ -गतियाँ कितनी होती हैं ?
उत्तर -चार-नरकगति, तिर्यंचगति, (पशुगति) मनुष्यगति, देवगति।
प्रश्न ७५७ -वैâसे कर्म करने से देवगति मिलती है ?
उत्तर -दूसरों का उपकार करने से, सदाचार का पालन करने से तथा भगवान की उपासना से देवगति मिलती है।
प्रश्न ७५८ -नरकगति में कौन से दुख होते हैं ?
उत्तर -संसार के सारे दुख नरक में होते हैं। जैसे—मार-काट, अग्नि में पकाना, आरे से चीरना आदि।
प्रश्न ७५९ -कौन से जीवों को मरकर नरक में जाना पड़ता है ?
उत्तर -हिंसा करने वाले, शराब पीने वाले, जुआ खेलने आदि पाप करने वाले लोग मरकर नरक में जाते हैं।
प्रश्न ७६० -किन कर्मों से पशु पर्याय मिलती है ?
उत्तर -दूसरों के साथ विश्वासघात करने से, ठगने से पशु पर्याय में जाना पड़ता है।
प्रश्न ७६१ -गुरू की विनय करने से क्या लाभ है ?
उत्तर -इस जन्म में खूब विद्या प्राप्त होती है और अगले जन्म में मनुष्य या देव जैसी अच्छी योनि में जन्म होता है।
प्रश्न ७६२ -सच्चे जैन श्रावक (गृहस्थ) की मुख्य पहचान क्या है ?
उत्तर -पानी छानकर पीना, रात्रि में भोजन नहीं करना और प्रतिदिन भगवान के दर्शन करना।
प्रश्न ७६३ -जैन साधु-साध्वी हमेशा पैदल विहार क्यों करते हैं ?
उत्तर -अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए और अपने उपदेशोंं से जनकल्याण करने हेतु वे सदैव पैदल विहार करते हैं।
प्रश्न ७६४ -दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की मुख्य तीन पहचान क्या हैं ?
उत्तर -करपात्र में दिन में एक बार भोजन लेना, केशलोंच करना (अपने हाथों से अपने सिर, दाढ़ी, मूछ के बाल उखाड़ना) पैदल विहार करना।
प्रश्न ७६५ -कषाय किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन भावों से आत्मा कसी जाती है अर्थात् आत्मा को दुख मिलता है उसे कषाय कहते हैं।
प्रश्न ७६६ -कषाय कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर -चार क्रोध, मान, माया, लोभ।
प्रश्न ७६७ -इनमें सबसे ज्यादा बुरी कौन सी कषाय है ?
उत्तर -क्रोध कषाय, क्योंकि क्रोध में आकर लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
प्रश्न ७६८ -समस्त अनर्थों का मूल कौन सी कषाय है ?
उत्तर -लोभ। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है।
प्रश्न ७६९ -सामान्य रूप से सभी मनुष्यों में कितनी कषाय होती है ?
उत्तर -चारों कषाय सामान्य रूप से सभी में पाई जाती है।
प्रश्न ७७० -पूर्णरूप से कषाय रहित कौन होते हैं ?
उत्तर -भगवान, जिन्होंने सभी कर्मों को जीत लिया है।