जैनधर्म प्रश्नोत्तरमाला-1
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
प्रश्न १ -णमोकार मंत्र को किसने बनाया ?
उत्तर –णमोकार मंत्र अनादिनिधन मंत्र है, इसे किसी ने नहीं बनाया है ।
प्रश्न २ -णमोकार मंत्र में किनको नमस्कार किया गया है ?
उत्तर -पाँच परमेष्ठियों-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार किया गया है ।
प्रश्न ३ -णमोकार मंत्र में कितने पद, कितने अक्षर एवं कितनी मात्राएँ हैं ?
उत्तर –णमोकार मंत्र में ५ पद, ३५ अक्षर एवं ५८ मात्राएँ है
प्रश्न ४ -णमोकार मंत्र किस छंद में है ?
उत्तर –आर्या छन्द में।
प्रश्न ५ -णमोकार मंत्र से कितने अन्य मंत्रों की उत्पत्ति हुई है ?
उत्तर –८४ लाख मंत्रो की उत्पत्ति णमोकार मंत्र से हुई है ।
प्रश्न ६ -मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र किसने सुनाया था ?
उत्तर –जीवन्धर कुमार ने।
प्रश्न ७ -णमोकार मंत्र का अपमान किस राजा ने किया था ?
उत्तर –सुभौम चक्रवर्ती ने।
प्रश्न ८ -मंत्र के अपमान से उसे कौन सी गति प्राप्त हुई ?
उत्तर –नरक गति।
प्रश्न ९ -भगवान ऋषभदेव का जन्म किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर –चैत्र कृष्णा नवमी तिथि को अयोध्या नगरी में ऋषभदेव का जन्म हुआ था।
प्रश्न १० -भगवान ऋषभदेव के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर –मरुदेवी माता थीं और नाभिराय पिता थे।
प्रश्न ११ -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्र-पुत्रियाँ थीं ?
उत्तर –१०१ पुत्र और २ पुत्रियाँ थीं।
प्रश्न १२ -उनके किस पुत्र ने सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया था ?
उत्तर –अनन्तवीर्य ने।
प्रश्न १३ -भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर कौन थे ?
उत्तर –उनके पुत्र वृषभसेन ही उनके प्रथम गणधर थे।
उत्तर –णमोकार मंत्र अनादिनिधन मंत्र है, इसे किसी ने नहीं बनाया है ।
प्रश्न २ -णमोकार मंत्र में किनको नमस्कार किया गया है ?
उत्तर -पाँच परमेष्ठियों-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार किया गया है ।
प्रश्न ३ -णमोकार मंत्र में कितने पद, कितने अक्षर एवं कितनी मात्राएँ हैं ?
उत्तर –णमोकार मंत्र में ५ पद, ३५ अक्षर एवं ५८ मात्राएँ है
प्रश्न ४ -णमोकार मंत्र किस छंद में है ?
उत्तर –आर्या छन्द में।
प्रश्न ५ -णमोकार मंत्र से कितने अन्य मंत्रों की उत्पत्ति हुई है ?
उत्तर –८४ लाख मंत्रो की उत्पत्ति णमोकार मंत्र से हुई है ।
प्रश्न ६ -मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र किसने सुनाया था ?
उत्तर –जीवन्धर कुमार ने।
प्रश्न ७ -णमोकार मंत्र का अपमान किस राजा ने किया था ?
उत्तर –सुभौम चक्रवर्ती ने।
प्रश्न ८ -मंत्र के अपमान से उसे कौन सी गति प्राप्त हुई ?
उत्तर –नरक गति।
प्रश्न ९ -भगवान ऋषभदेव का जन्म किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर –चैत्र कृष्णा नवमी तिथि को अयोध्या नगरी में ऋषभदेव का जन्म हुआ था।
प्रश्न १० -भगवान ऋषभदेव के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर –मरुदेवी माता थीं और नाभिराय पिता थे।
प्रश्न ११ -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्र-पुत्रियाँ थीं ?
उत्तर –१०१ पुत्र और २ पुत्रियाँ थीं।
प्रश्न १२ -उनके किस पुत्र ने सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया था ?
उत्तर –अनन्तवीर्य ने।
प्रश्न १३ -भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर कौन थे ?
उत्तर –उनके पुत्र वृषभसेन ही उनके प्रथम गणधर थे।
प्रश्न १४ -भगवान ऋषभदेव ने कितने वर्ष तपस्या की थी ?
उत्तर -एक हजार वर्ष तक।
प्रश्न १५ -उनकी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी ने आर्यिका दीक्षा क्यों ली थी ?
उत्तर –अगले भव में स्त्री पर्याय को समाप्त करने हेतु तथा परम्परा से मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा से तीव्र वैराग्य भाव धारण कर उन कन्याओं ने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। आगम में कहीं ऐसा वर्णन नहीं आता है कि उनके पिता को उनके सास-ससुर के समक्ष सिर झुकाना पड़ता, इसलिए उन कन्याओं ने दीक्षा ले ली थी। तीर्थंकर तो जन्म से लेकर दीक्षा ग्रहण करने तक कभी भी सिद्धों के अतिरिक्त किसी मुनि को, माता-पिता आदि को भी नमस्कार नहीं करते हैं।
प्रश्न १६ -भगवान ऋषभदेव को प्रथम आहार कितने दिन के उपवास के बाद प्राप्त हुआ था ?
उत्तर –एक वर्ष ३९ दिनों के उपवास के पश्चात्।
प्रश्न १७ -कहाँ और किसने उन्हें प्रथम बार आहार में क्या दिया था ?
उत्तर –हस्तिनापुरी में राजा श्रेयांस ने उन्हें प्रथम बार इक्षुरस का आहार दिया था।
प्रश्न १८ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण में कितने गणधर थे ?
उत्तर –चौरासी गणधर थे।
प्रश्न १९ -उनके प्रमुख गणधर कौन थे ?
उत्तर –‘‘वृषभसेन’’ नाम के उनके पुत्र ने समवसरण में प्रथम दीक्षा लेकर प्रमुख गणधर का पद प्राप्त किया था।
प्रश्न २० -ऋषभदेव के समवसरण में प्रमुख श्रोता कौन थे ?
उत्तर –ऋषभदेव के बड़े पुत्र सम्राट् भरत ही उनके समवसरण में प्रमुख श्रोता थे।
प्रश्न २१ -ऋषभदेव के समवसरण की प्रमुख गणिनी आर्यिका माताजी का क्या नाम था ?
उत्तर –गणिनी आर्यिका ब्राह्मी माताजी, जो कि ऋषभदेव की ही पुत्री थीं।
प्रश्न २२ -क्या हुण्डावसर्पिणीकाल के दोषवश तीर्थंकर ऋषभदेव के ब्राह्मी-सुन्दरी पुत्रियाँ हुई थीं ?
उत्तर –नहीं,ऐसा कहीं दिगम्बर जैन आगम में कथन नहीं आता है । वैसे कन्या एक रत्न मानी गई है इसलिए तीर्थंकर की पत्नी को उन्हें जन्म देने में कोई विरोध नहीं है ।
प्रश्न २३ -भगवान ऋषभदेव को कितने वर्ष की तपस्या के बाद केवलज्ञान प्राप्त हुआ था ?
उत्तर –एक हजार वर्ष तक तपस्या करने के बाद भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
प्रश्न २४ -भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर -फाल्गुन कृष्णा एकादशी तिथि को ‘‘पुरिमतालपुर’’ नगर के उध्यान में भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
उत्तर -एक हजार वर्ष तक।
प्रश्न १५ -उनकी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी ने आर्यिका दीक्षा क्यों ली थी ?
उत्तर –अगले भव में स्त्री पर्याय को समाप्त करने हेतु तथा परम्परा से मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा से तीव्र वैराग्य भाव धारण कर उन कन्याओं ने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। आगम में कहीं ऐसा वर्णन नहीं आता है कि उनके पिता को उनके सास-ससुर के समक्ष सिर झुकाना पड़ता, इसलिए उन कन्याओं ने दीक्षा ले ली थी। तीर्थंकर तो जन्म से लेकर दीक्षा ग्रहण करने तक कभी भी सिद्धों के अतिरिक्त किसी मुनि को, माता-पिता आदि को भी नमस्कार नहीं करते हैं।
प्रश्न १६ -भगवान ऋषभदेव को प्रथम आहार कितने दिन के उपवास के बाद प्राप्त हुआ था ?
उत्तर –एक वर्ष ३९ दिनों के उपवास के पश्चात्।
प्रश्न १७ -कहाँ और किसने उन्हें प्रथम बार आहार में क्या दिया था ?
उत्तर –हस्तिनापुरी में राजा श्रेयांस ने उन्हें प्रथम बार इक्षुरस का आहार दिया था।
प्रश्न १८ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण में कितने गणधर थे ?
उत्तर –चौरासी गणधर थे।
प्रश्न १९ -उनके प्रमुख गणधर कौन थे ?
उत्तर –‘‘वृषभसेन’’ नाम के उनके पुत्र ने समवसरण में प्रथम दीक्षा लेकर प्रमुख गणधर का पद प्राप्त किया था।
प्रश्न २० -ऋषभदेव के समवसरण में प्रमुख श्रोता कौन थे ?
उत्तर –ऋषभदेव के बड़े पुत्र सम्राट् भरत ही उनके समवसरण में प्रमुख श्रोता थे।
प्रश्न २१ -ऋषभदेव के समवसरण की प्रमुख गणिनी आर्यिका माताजी का क्या नाम था ?
उत्तर –गणिनी आर्यिका ब्राह्मी माताजी, जो कि ऋषभदेव की ही पुत्री थीं।
प्रश्न २२ -क्या हुण्डावसर्पिणीकाल के दोषवश तीर्थंकर ऋषभदेव के ब्राह्मी-सुन्दरी पुत्रियाँ हुई थीं ?
उत्तर –नहीं,ऐसा कहीं दिगम्बर जैन आगम में कथन नहीं आता है । वैसे कन्या एक रत्न मानी गई है इसलिए तीर्थंकर की पत्नी को उन्हें जन्म देने में कोई विरोध नहीं है ।
प्रश्न २३ -भगवान ऋषभदेव को कितने वर्ष की तपस्या के बाद केवलज्ञान प्राप्त हुआ था ?
उत्तर –एक हजार वर्ष तक तपस्या करने के बाद भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
प्रश्न २४ -भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान किस तिथि में कहाँ हुआ था ?
उत्तर -फाल्गुन कृष्णा एकादशी तिथि को ‘‘पुरिमतालपुर’’ नगर के उध्यान में भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।
प्रश्न २५ -भगवान ऋषभदेव के शरीर का वर्ण कैसा था ?
उत्तर –स्वर्ण वर्ण का था।
प्रश्न २६ -उनके शरीर की अवगाहना कितनी थी ?
उत्तर –५०० धनुष अर्थात् दो हजार हाथ।
प्रश्न २७ -भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति किस तिथि में कहाँ से हुई थी ?
उत्तर –माघ कृष्णा चतुर्दशी को वैलाश पर्वत से भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति हुई थी।
प्रश्न २८ -भगवान की दिव्यध्वनि कितनी भाषाओं में खिरती थी ?
उत्तर –सात सौ अठारह भाषाओं में।
प्रश्न २९ -इस युग के प्रथम मोक्षगामी कौन हुए हैं ?
उत्तर –भगवान ऋषभदेव के पुत्र अनन्तवीर्य।
प्रश्न ३० -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्रों ने उसी भव से दीक्षा लेकर मोक्षपद प्राप्त किया था ?
उत्तर –उनके समस्त (१०१) पुत्रों ने दीक्षा लेकर उसी भव से मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न ३१ -अयोध्या में कौन-कौन से तीर्थंकरों ने जन्म लिया है ?
उत्तर –भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ इन पाँच तीर्थंकरों ने अयोध्या में जन्म लिया है ।
प्रश्न ३२ -अयोध्या में महामस्तकाभिषेक महोत्सव कब सम्पन्न हुआ है?
उत्तर –२४ फरवरी १९९४, माघ सुदी तेरस को।
प्रश्न ३३ -अयोध्या में तीन चौबीसी मंदिर किस सन् में बना है ?
उत्तर –२३ फरवरी १९९४।
प्रश्न ३४ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण का श्रीविहार देश में किस उद्देश्य से किया गया था ?
उत्तर –जैनधर्म की प्राचीनता, पारस्परिक मैत्री भाव का प्रचार करने एवं पर्यावरण को शुद्ध करने के उद्देश्य से ‘‘ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार’’ रथ का प्रवर्तन किया गया।
प्रश्न ३५ -पहले तीर्थंकर का नाम बताओ?
उत्तर -तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी।
प्रश्न ३६ -अयोध्या में अन्य किन महापुरूष का जन्म हुआ था?
उत्तर -मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का।
उत्तर –स्वर्ण वर्ण का था।
प्रश्न २६ -उनके शरीर की अवगाहना कितनी थी ?
उत्तर –५०० धनुष अर्थात् दो हजार हाथ।
प्रश्न २७ -भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति किस तिथि में कहाँ से हुई थी ?
उत्तर –माघ कृष्णा चतुर्दशी को वैलाश पर्वत से भगवान ऋषभदेव को निर्वाणपद की प्राप्ति हुई थी।
प्रश्न २८ -भगवान की दिव्यध्वनि कितनी भाषाओं में खिरती थी ?
उत्तर –सात सौ अठारह भाषाओं में।
प्रश्न २९ -इस युग के प्रथम मोक्षगामी कौन हुए हैं ?
उत्तर –भगवान ऋषभदेव के पुत्र अनन्तवीर्य।
प्रश्न ३० -भगवान ऋषभदेव के कितने पुत्रों ने उसी भव से दीक्षा लेकर मोक्षपद प्राप्त किया था ?
उत्तर –उनके समस्त (१०१) पुत्रों ने दीक्षा लेकर उसी भव से मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न ३१ -अयोध्या में कौन-कौन से तीर्थंकरों ने जन्म लिया है ?
उत्तर –भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ इन पाँच तीर्थंकरों ने अयोध्या में जन्म लिया है ।
प्रश्न ३२ -अयोध्या में महामस्तकाभिषेक महोत्सव कब सम्पन्न हुआ है?
उत्तर –२४ फरवरी १९९४, माघ सुदी तेरस को।
प्रश्न ३३ -अयोध्या में तीन चौबीसी मंदिर किस सन् में बना है ?
उत्तर –२३ फरवरी १९९४।
प्रश्न ३४ -भगवान ऋषभदेव के समवसरण का श्रीविहार देश में किस उद्देश्य से किया गया था ?
उत्तर –जैनधर्म की प्राचीनता, पारस्परिक मैत्री भाव का प्रचार करने एवं पर्यावरण को शुद्ध करने के उद्देश्य से ‘‘ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार’’ रथ का प्रवर्तन किया गया।
प्रश्न ३५ -पहले तीर्थंकर का नाम बताओ?
उत्तर -तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी।
प्रश्न ३६ -अयोध्या में अन्य किन महापुरूष का जन्म हुआ था?
उत्तर -मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का।
प्रश्न ३७ -श्री रामचन्द्र का जन्म किस दिन हुआ था?
उत्तर -चैत्र शुक्ला नवमी तिथि को।
प्रश्न ३८ -उस तिथि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर –उस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न ३९ -भगवान नेमिनाथ कहाँ से मोक्ष गये हैं ?
उत्तर –गिरनार पर्वत से।
प्रश्न ४० -भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर –बिहार प्रान्त के कुण्डलपुर नगर में (वर्तमान में नालन्दा जिल्ले में है)।
उत्तर -चैत्र शुक्ला नवमी तिथि को।
प्रश्न ३८ -उस तिथि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर –उस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न ३९ -भगवान नेमिनाथ कहाँ से मोक्ष गये हैं ?
उत्तर –गिरनार पर्वत से।
प्रश्न ४० -भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर –बिहार प्रान्त के कुण्डलपुर नगर में (वर्तमान में नालन्दा जिल्ले में है)।
प्रश्न ४१ -भगवान महावीर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर –ईसा से ६०० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को।
प्रश्न ४२ -उनकी माता का नाम क्या था ?
उत्तर –महारानी त्रिशला देवी।
प्रश्न ४३ -उनके पिता का नाम बताओ?
उत्तर –महाराजा सिद्धार्थ।
प्रश्न ४४ -महावीर के बाबा का नाम क्या था ?
उत्तर –महाराज सर्वार्थ।
प्रश्न ४५ -महावीर स्वामी के कतने नाम प्रसिद्ध हैं?
उत्तर –पाँच-वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान।
प्रश्न ४६ -प्रभु महावीर की वीरता की पहली परीक्षा किसने ली थी?
उत्तर –संगम देव ने सर्प बनकर परीक्षा ली थी।
प्रश्न ४७ -भगवान महावीर ने मोक्ष कहाँ प्राप्त कया था ?
उत्तर –बिहार प्रांत की पावापुरी नगरी में ।
उत्तर –ईसा से ६०० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को।
प्रश्न ४२ -उनकी माता का नाम क्या था ?
उत्तर –महारानी त्रिशला देवी।
प्रश्न ४३ -उनके पिता का नाम बताओ?
उत्तर –महाराजा सिद्धार्थ।
प्रश्न ४४ -महावीर के बाबा का नाम क्या था ?
उत्तर –महाराज सर्वार्थ।
प्रश्न ४५ -महावीर स्वामी के कतने नाम प्रसिद्ध हैं?
उत्तर –पाँच-वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान।
प्रश्न ४६ -प्रभु महावीर की वीरता की पहली परीक्षा किसने ली थी?
उत्तर –संगम देव ने सर्प बनकर परीक्षा ली थी।
प्रश्न ४७ -भगवान महावीर ने मोक्ष कहाँ प्राप्त कया था ?
उत्तर –बिहार प्रांत की पावापुरी नगरी में ।
प्रश्न ४८ -महावीर स्वामी की आयु कुल कतने वर्ष की थी?
उत्तर -७२ वर्ष ।
प्रश्न ४९ -भगवान महावीर का चिन्ह क्या है?
उत्तर –शेर ।
प्रश्न ५० -महावीर स्वामी के एक विशेष आहार के समय बेड़ियां किसकी टूटी थी?
उत्तर -महासती चन्दना की।
प्रश्न ५१ -चंदना का महावीर से क्या संबंध था?
उत्तर –चन्दना महावीर स्वामी की सबसे छोटी मौसी थीं।
प्रश्न ५२ -महावीर की नर्वाण तिथि क्या है?
उत्तर –कार्तिक कृष्णा अमावस।
प्रश्न ५३ -महावीर के नाम पर सरकारी छुट्टी कब होती है?
उत्तर –महावीर जयन्ती को, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर भगवान के जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह छुट्टी होती है ।
प्रश्न ५४ -भगवान महावीर को प्रथम आहार किसने दिया था ?
उत्तर –राजा कूल ने।
प्रश्न ५५ -भगवान महावीर स्वामी ने कितने वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी ?
उत्तर –३० वर्ष की आयु में।
प्रश्न ५६ -महावीर भगवान का विवाह हुआ था या नहीं ?
उत्तर –नहीं। वे बालब्रह्मचारी थे।
प्रश्न ५७ -भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के बाद उनकी दिव्यध्वनि कितने दिनों बाद खिरी थी?
उत्तर –६६ दिन बाद श्रावण बदी एकम् को उनकी दिव्यध्वनि खिरी थी।
प्रश्न ५८ -माता त्रिशला किनकी पुत्री थीं ?
उत्तर –वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थीं।
प्रश्न ५९ -तीर्थंकर महावीर के समवसरण में प्रमुख गणधर एवं गणिनी कौन थीं ?
उत्तर -गौतम गणधर थे एवं चंदना गणिनी थीं।
प्रश्न ६० -गौतम गणधर को केवलज्ञान कब हुआ था ?
उत्तर –जिस दिन अर्थात् कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रात: भगवान महावीर को मोक्ष हुआ, उसी दिन सायंकाल गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ।
उत्तर -७२ वर्ष ।
प्रश्न ४९ -भगवान महावीर का चिन्ह क्या है?
उत्तर –शेर ।
प्रश्न ५० -महावीर स्वामी के एक विशेष आहार के समय बेड़ियां किसकी टूटी थी?
उत्तर -महासती चन्दना की।
प्रश्न ५१ -चंदना का महावीर से क्या संबंध था?
उत्तर –चन्दना महावीर स्वामी की सबसे छोटी मौसी थीं।
प्रश्न ५२ -महावीर की नर्वाण तिथि क्या है?
उत्तर –कार्तिक कृष्णा अमावस।
प्रश्न ५३ -महावीर के नाम पर सरकारी छुट्टी कब होती है?
उत्तर –महावीर जयन्ती को, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर भगवान के जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह छुट्टी होती है ।
प्रश्न ५४ -भगवान महावीर को प्रथम आहार किसने दिया था ?
उत्तर –राजा कूल ने।
प्रश्न ५५ -भगवान महावीर स्वामी ने कितने वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी ?
उत्तर –३० वर्ष की आयु में।
प्रश्न ५६ -महावीर भगवान का विवाह हुआ था या नहीं ?
उत्तर –नहीं। वे बालब्रह्मचारी थे।
प्रश्न ५७ -भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के बाद उनकी दिव्यध्वनि कितने दिनों बाद खिरी थी?
उत्तर –६६ दिन बाद श्रावण बदी एकम् को उनकी दिव्यध्वनि खिरी थी।
प्रश्न ५८ -माता त्रिशला किनकी पुत्री थीं ?
उत्तर –वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थीं।
प्रश्न ५९ -तीर्थंकर महावीर के समवसरण में प्रमुख गणधर एवं गणिनी कौन थीं ?
उत्तर -गौतम गणधर थे एवं चंदना गणिनी थीं।
प्रश्न ६० -गौतम गणधर को केवलज्ञान कब हुआ था ?
उत्तर –जिस दिन अर्थात् कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रात: भगवान महावीर को मोक्ष हुआ, उसी दिन सायंकाल गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ।
प्रश्न ६१ -गौतम को दीक्षा लेते ही कितने ज्ञान उत्पन्न हुए थे ?
उत्तर –४ ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्ययज्ञान।
प्रश्न ६२ -भगवान महावीर का निर्वाण कहाँ हुआ था ?
उत्तर –पावापुरी में।
प्रश्न ६३ -क्या वैशाली में महावीर का जन्म हुआ था ?
उत्तर –नहीं।
प्रश्न ६४ -राजा श्रेणिक ने महावीर स्वामी की भक्ति कितने वर्ष की ?
उत्तर –३० वर्ष तक।
प्रश्न ६५ -दीपावली पर्व क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर -क्योंकि उस दिन भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण पद प्राप्त किया था।
प्रश्न ६६ -रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ?
उत्तर –हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है ।
प्रश्न ६७ -यह पर्व किसकी स्मृति से चला ?
उत्तर –सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है ।
प्रश्न ६८ -वे सात सौ मुनि किस संघ के थे ?
उत्तर –श्री अकम्पनाचार्य नाम के आचार्यश्री के संघ मे ७०० मुनिराज थे।
प्रश्न ६९ -उनके ऊपर अग्नि उपसर्ग किसने किया था ?
उत्तर -‘‘बलि’’ नाम के मंत्री ने छलपूर्वक राजा से वरदान के रूप में ७ दिन का राज्य मांगकर उन मुनियों को मारने के उद्देश्य से उपसर्ग किया था।
प्रश्न ७० -कौन से राजा का राज्य बलि ने मांगा था ?
उत्तर -हस्तिनापुर के राजा पद्म से उनके पूर्वकृत उपकार के बदले में राज्य मांगा था।
उत्तर –४ ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्ययज्ञान।
प्रश्न ६२ -भगवान महावीर का निर्वाण कहाँ हुआ था ?
उत्तर –पावापुरी में।
प्रश्न ६३ -क्या वैशाली में महावीर का जन्म हुआ था ?
उत्तर –नहीं।
प्रश्न ६४ -राजा श्रेणिक ने महावीर स्वामी की भक्ति कितने वर्ष की ?
उत्तर –३० वर्ष तक।
प्रश्न ६५ -दीपावली पर्व क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर -क्योंकि उस दिन भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण पद प्राप्त किया था।
प्रश्न ६६ -रक्षाबंधन पर्व कहाँ से प्रारंभ हुआ है ?
उत्तर –हस्तिनापुर तीर्थ से इस पर्व का शुभारंभ हुआ है ।
प्रश्न ६७ -यह पर्व किसकी स्मृति से चला ?
उत्तर –सात सौ दिगम्बर महामुनियों के ऊपर हुए अग्नि उपसर्ग को दूर करने के उपलक्ष्य में यह पर्व प्रारंभ हुआ है ।
प्रश्न ६८ -वे सात सौ मुनि किस संघ के थे ?
उत्तर –श्री अकम्पनाचार्य नाम के आचार्यश्री के संघ मे ७०० मुनिराज थे।
प्रश्न ६९ -उनके ऊपर अग्नि उपसर्ग किसने किया था ?
उत्तर -‘‘बलि’’ नाम के मंत्री ने छलपूर्वक राजा से वरदान के रूप में ७ दिन का राज्य मांगकर उन मुनियों को मारने के उद्देश्य से उपसर्ग किया था।
प्रश्न ७० -कौन से राजा का राज्य बलि ने मांगा था ?
उत्तर -हस्तिनापुर के राजा पद्म से उनके पूर्वकृत उपकार के बदले में राज्य मांगा था।
प्रश्न ७१ -बलि ने उन निरपराधी मुनियों पर उपसर्ग क्यों किया था ?
उत्तर –धर्म विव्देष के कारण।
प्रश्न ७२ -उनके उपसर्ग को किसने दूर किया था ?
उत्तर –विष्णुकुमार महामुनिराज ने विक्रियाऋद्धि के प्रयोग से उस उपसर्ग को दूर किया।
प्रश्न ७३ -इसका संक्षिप्त कथानक क्या है ?
उत्तर -एक बार हस्तिनापुर के उद्यान में अकम्पनाचार्य मुनिराज ने अपने ७०० मुनियों के साथ चातुर्मास स्थापित कर लिया। वहाँ के राजा पद्म अत्यन्त धर्मप्रेमी थे किन्तु उसका मंत्री बलि बहुत ही दुष्ट तथा जिनधर्म विव्देषी था। उसने पूर्व में कभी राजा पद्म को युद्ध में सहायता प्रदान करने के बदले में राजा के व्दारा दिये गये वरदान को धरोहर में रखा हुआ था अत: राजा को याद दिलाकर उसने ७ दिन का राज्य वरदान में मांगकर उन सात सौ मुनियों को कांटों की बाड़ में घेरकर अग्नि उपसर्ग किया जिससे प्रजा में त्राहिमाम् मच गया। पुन: विष्णुकुमार मुनिराज ने उज्जैनी नगरी से हस्तिनापुर आकर अपनी विक्रिया ऋद्धि से उनका उपसर्ग दूर किया और वात्सल्य अंग का परिचय दिया। इसी वात्सल्य अंग के प्रतीक में यह रक्षाबंधन पर्व सारे देश में मनाया जाता है ।
प्रश्न ७४ -रक्षाबंधन पर्व के दिन हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर –उस दिन जैन साधु-साध्वियों को आहार देकर आपस में रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहिए और उस दिन श्रेयांसनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक है सो निर्वाणलाडू भी चढ़ाना चाहिए।
प्रश्न ७५ -क्या रक्षाबंधन के दिन केवल बहनों को ही भाइयों के राखी बांधने का नियम है ?
उत्तर –ऐसा कुछ भी नहीं है, यह तो व्यवहार में प्रचलित हो गया है । उस दिन तो सभी नर-नारियों को परस्पर में रक्षासूत्र बांधकर धर्म एवं धर्मायतनों की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए, यही रक्षाबंधन पर्व का तात्पर्य है ।
प्रश्न ७६ -नंदीश्वर द्वीप किस लोक में है ?
उत्तर –मध्यलोक में आठवें व्दीप का नाम नंदीश्वर व्दीप है ।
प्रश्न ७७ -नंदीश्वर व्दीप में कितने चैत्यालय हैं ?
उत्तर –बावन चैत्यालय हैं।
प्रश्न ७८ -उन बावन जिनालयों की व्यवस्था किस प्रकार है ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप में चारों दिशाओं में १३-१३ जिनालय होने से १३x४ = ५२ हो जाते हैं।
प्रश्न ७९ -नंदीश्वर व्दीप में नवदेवताओं में से कितने देवता होते हैं ?
उत्तर –वहाँ जिनचैत्य और चैत्यालय ये मात्र दो देवता रहते हैं।
प्रश्न ८० -नंदीश्वर व्दीप में चारों निकाय के देव कब-कब जाते हैं ?
उत्तर –यूँ तो देवतागण अपनी इच्छानुसार इस व्दीप के दर्शन करने प्राय: जाया करते हैं फिर भी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के आष्टान्हिका पर्व में चारों निकाय के देव नंदीश्वर व्दीप में जाकर आठों दिन तक अखण्ड पूजन करते हैं।
प्रश्न ८१ -नंदीश्वर व्दीप में जो प्रतिमाएँ विराजमान हैं वे अरहंतों की होती हैं या सिद्धो की ?
उत्तर –वहाँ अनादिनिधन प्रतिमाएँ विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्वयंसिद्ध प्रतिमाएँ कहते हैं।
प्रश्न ८२ -नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात कितने घंटे के होते हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात का भेद नहीं होता है ।
प्रश्न ८३ -इस व्दीप का निर्माण कब और किनके ध्वारा हुआ है ?
उत्तर –यह द्वीप अकृत्रिम और अनादिनिधन है इसे न किसी ने बनवाया है और न कोई नष्ट कर सकता है । हाँ, आज इसकी प्रतिकृतिरूप कृत्रिम नंदीश्वर व्दीप की रचनाएँ अनेक तीर्थों एवं नगरों में बनी हुई हैं।
प्रश्न ८४ -क्या ऋद्धिधारी मुनि भी इस व्दीप में नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर –नहीं, वहाँ ऋद्धिधारी या केवली आदि भी नहीं जा सकते हैं क्योंकि ढाई व्दीप के आगे कोई भी मनुष्य जा ही नहीं सकते हैं।
प्रश्न ८५ -तब उस व्दीप में कौन से प्राणी रहते हैं ?
उत्तर –केवल एकेन्द्रिय जलकायिक आदि पंच स्थावर जीव ही वहाँ रहते हैं तथा जघन्य भोगभूमि की व्यवस्थानुसार वहाँ भोगभूमियाँ तिर्यंच जीव रहते हैं ऐसा तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में वर्णन है ।
प्रश्न ८६ -नंदीश्वर व्दीप में अंजनगिरि कितने हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में १-१ अंजनगिरि हैं। जिनका रंग काला है और उन पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हुए हैं।
प्रश्न ८७ -नंदीश्वर व्दीप में बावड़ियाँ कितनी हैं ?
उत्तर –वहाँ एक-एक दिशा में ४-४ बावड़ियाँ हैं अत: चारों दिशा संबंधी १६ बावड़ियाँ हो जाती हैं।
प्रश्न ८८ -नंदीश्वर व्दीप में दधिमुख पर्वत कितने हैं ?
उत्तर –बावड़ियों के बीच में १६ दधिमुख पर्वत हैं, जो सफेद वर्ण के हैं और उन सभी पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हैं।
प्रश्न ८९ -नंदीश्वर व्दीप में रतिकर पर्वत कितने हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में ८-८ रतिकर पर्वत होते हैं। एक-एक बावड़ियों के दो-दो कोणो में ये रतिकर पर्वत हैं। ये पीले स्वर्ण वर्ण के होते हैं तथा सभी मंदिरों पर १-१ जिनमंदिर बने हुए हैं।
प्रश्न ९० -वहाँ पर बनी बावड़ियों के क्या नाम हैं ?
उत्तर –पूर्व दिशा की चार बावड़ियों के नाम-नंदा, नंदावती, नंदोत्तरा और नंदिघोषा। दक्षिण दिशा की ४ बावड़ियों के नाम-अरजा, विरजा, अशोका, वीतशोका। पश्चिम दिशा में विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता ये चार बावड़ी हैं और उत्तर दिशा में रम्या, रमणीया, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा ये चार बावड़ियाँ हैं।
उत्तर –धर्म विव्देष के कारण।
प्रश्न ७२ -उनके उपसर्ग को किसने दूर किया था ?
उत्तर –विष्णुकुमार महामुनिराज ने विक्रियाऋद्धि के प्रयोग से उस उपसर्ग को दूर किया।
प्रश्न ७३ -इसका संक्षिप्त कथानक क्या है ?
उत्तर -एक बार हस्तिनापुर के उद्यान में अकम्पनाचार्य मुनिराज ने अपने ७०० मुनियों के साथ चातुर्मास स्थापित कर लिया। वहाँ के राजा पद्म अत्यन्त धर्मप्रेमी थे किन्तु उसका मंत्री बलि बहुत ही दुष्ट तथा जिनधर्म विव्देषी था। उसने पूर्व में कभी राजा पद्म को युद्ध में सहायता प्रदान करने के बदले में राजा के व्दारा दिये गये वरदान को धरोहर में रखा हुआ था अत: राजा को याद दिलाकर उसने ७ दिन का राज्य वरदान में मांगकर उन सात सौ मुनियों को कांटों की बाड़ में घेरकर अग्नि उपसर्ग किया जिससे प्रजा में त्राहिमाम् मच गया। पुन: विष्णुकुमार मुनिराज ने उज्जैनी नगरी से हस्तिनापुर आकर अपनी विक्रिया ऋद्धि से उनका उपसर्ग दूर किया और वात्सल्य अंग का परिचय दिया। इसी वात्सल्य अंग के प्रतीक में यह रक्षाबंधन पर्व सारे देश में मनाया जाता है ।
प्रश्न ७४ -रक्षाबंधन पर्व के दिन हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर –उस दिन जैन साधु-साध्वियों को आहार देकर आपस में रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहिए और उस दिन श्रेयांसनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक है सो निर्वाणलाडू भी चढ़ाना चाहिए।
प्रश्न ७५ -क्या रक्षाबंधन के दिन केवल बहनों को ही भाइयों के राखी बांधने का नियम है ?
उत्तर –ऐसा कुछ भी नहीं है, यह तो व्यवहार में प्रचलित हो गया है । उस दिन तो सभी नर-नारियों को परस्पर में रक्षासूत्र बांधकर धर्म एवं धर्मायतनों की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए, यही रक्षाबंधन पर्व का तात्पर्य है ।
प्रश्न ७६ -नंदीश्वर द्वीप किस लोक में है ?
उत्तर –मध्यलोक में आठवें व्दीप का नाम नंदीश्वर व्दीप है ।
प्रश्न ७७ -नंदीश्वर व्दीप में कितने चैत्यालय हैं ?
उत्तर –बावन चैत्यालय हैं।
प्रश्न ७८ -उन बावन जिनालयों की व्यवस्था किस प्रकार है ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप में चारों दिशाओं में १३-१३ जिनालय होने से १३x४ = ५२ हो जाते हैं।
प्रश्न ७९ -नंदीश्वर व्दीप में नवदेवताओं में से कितने देवता होते हैं ?
उत्तर –वहाँ जिनचैत्य और चैत्यालय ये मात्र दो देवता रहते हैं।
प्रश्न ८० -नंदीश्वर व्दीप में चारों निकाय के देव कब-कब जाते हैं ?
उत्तर –यूँ तो देवतागण अपनी इच्छानुसार इस व्दीप के दर्शन करने प्राय: जाया करते हैं फिर भी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के आष्टान्हिका पर्व में चारों निकाय के देव नंदीश्वर व्दीप में जाकर आठों दिन तक अखण्ड पूजन करते हैं।
प्रश्न ८१ -नंदीश्वर व्दीप में जो प्रतिमाएँ विराजमान हैं वे अरहंतों की होती हैं या सिद्धो की ?
उत्तर –वहाँ अनादिनिधन प्रतिमाएँ विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्वयंसिद्ध प्रतिमाएँ कहते हैं।
प्रश्न ८२ -नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात कितने घंटे के होते हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप में दिन और रात का भेद नहीं होता है ।
प्रश्न ८३ -इस व्दीप का निर्माण कब और किनके ध्वारा हुआ है ?
उत्तर –यह द्वीप अकृत्रिम और अनादिनिधन है इसे न किसी ने बनवाया है और न कोई नष्ट कर सकता है । हाँ, आज इसकी प्रतिकृतिरूप कृत्रिम नंदीश्वर व्दीप की रचनाएँ अनेक तीर्थों एवं नगरों में बनी हुई हैं।
प्रश्न ८४ -क्या ऋद्धिधारी मुनि भी इस व्दीप में नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर –नहीं, वहाँ ऋद्धिधारी या केवली आदि भी नहीं जा सकते हैं क्योंकि ढाई व्दीप के आगे कोई भी मनुष्य जा ही नहीं सकते हैं।
प्रश्न ८५ -तब उस व्दीप में कौन से प्राणी रहते हैं ?
उत्तर –केवल एकेन्द्रिय जलकायिक आदि पंच स्थावर जीव ही वहाँ रहते हैं तथा जघन्य भोगभूमि की व्यवस्थानुसार वहाँ भोगभूमियाँ तिर्यंच जीव रहते हैं ऐसा तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में वर्णन है ।
प्रश्न ८६ -नंदीश्वर व्दीप में अंजनगिरि कितने हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में १-१ अंजनगिरि हैं। जिनका रंग काला है और उन पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हुए हैं।
प्रश्न ८७ -नंदीश्वर व्दीप में बावड़ियाँ कितनी हैं ?
उत्तर –वहाँ एक-एक दिशा में ४-४ बावड़ियाँ हैं अत: चारों दिशा संबंधी १६ बावड़ियाँ हो जाती हैं।
प्रश्न ८८ -नंदीश्वर व्दीप में दधिमुख पर्वत कितने हैं ?
उत्तर –बावड़ियों के बीच में १६ दधिमुख पर्वत हैं, जो सफेद वर्ण के हैं और उन सभी पर्वतों पर १-१ चैत्यालय बने हैं।
प्रश्न ८९ -नंदीश्वर व्दीप में रतिकर पर्वत कितने हैं ?
उत्तर –नंदीश्वर व्दीप की चारों दिशाओं में ८-८ रतिकर पर्वत होते हैं। एक-एक बावड़ियों के दो-दो कोणो में ये रतिकर पर्वत हैं। ये पीले स्वर्ण वर्ण के होते हैं तथा सभी मंदिरों पर १-१ जिनमंदिर बने हुए हैं।
प्रश्न ९० -वहाँ पर बनी बावड़ियों के क्या नाम हैं ?
उत्तर –पूर्व दिशा की चार बावड़ियों के नाम-नंदा, नंदावती, नंदोत्तरा और नंदिघोषा। दक्षिण दिशा की ४ बावड़ियों के नाम-अरजा, विरजा, अशोका, वीतशोका। पश्चिम दिशा में विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता ये चार बावड़ी हैं और उत्तर दिशा में रम्या, रमणीया, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा ये चार बावड़ियाँ हैं।
प्रश्न ९१ -नंदीश्वर द्वीप में प्रतिमाएँ खड्गासन हैं या पद्मासन ?
उत्तर –पद्मासन प्रतिमाएँ वहाँ विराजमान रहती हैं।
प्रश्न ९२ -नंदीश्वर द्वीप की रचनाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हैं ?
उत्तर –सम्मेदशिखर में, हस्तिनापुर में, जबलपुर में, दिल्ली में और महमूदाबाद (सीतापुर-उ.प्र.) में नंदीश्वर द्वीप की रचना बनी हुई हैं।
प्रश्न ९३ -नंदीश्वर द्वीप में मनुष्य क्यों नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर –क्योंकि ढ़ाई द्वीप की सीमा पर स्थित मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्यों का आवागमन निषिद्ध है । ढाईद्वीप तक ही मनुष्यों का जन्म होता है आगे नहीं और ढ़ाई द्वीप में ही रहकर वे कर्मों को काटकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न ९४ -भक्तामर स्तोत्र की रचना किसने की ?
उत्तर –आचार्य श्री मानतुंग स्वामी ने।
प्रश्न ९५ -मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किन तीर्थंकर के काल में जन्म लिया था?
उत्तर –आज से लगभग ९ लाख वर्ष पूर्व २०वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थकाल में अयोध्या में राम का जन्म हुआ था।
प्रश्न ९६ -राजा दशरथ के कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर –चार-कौशल्या, केकयी, सुमित्रा और सुप्रभा।
प्रश्न ९७ -लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता का क्या नाम था ?
उत्तर –लक्ष्मण की माता का नाम सुमित्रा और शत्रुघ्न की माता का नाम सुप्रभा था।
प्रश्न ९८ -रावण का वध किसने किया था ?
उत्तर –लक्ष्मण ने।
प्रश्न ९९ -धवला ग्रंथ की रचना किस दिन पूर्ण हुई थी ?
उत्तर –ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को, जिसे श्रुतपंचमी पर्व के रूप में जाना जाता है ।
प्रश्न १०० -अनादिनिधन पर्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर –सोलहकारण पर्व, दशलक्षण पर्व, आष्टान्हिका पर्व।
प्रश्न १०१ -हस्तिनापुर से संबंधित कौन-कौन सी ऐतिहासिक घटनाएँ हैं ?
उत्तर –१. भगवान ऋषभदेव ने यहाँ प्रथम बार इक्षुरस का आहार लिया था। २. शांति, कुंथु, अरहनाथ इन तीन तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणक हुए। ३. कौरवों-पांडवों व्दारा महाभारत युद्ध होकर यहीं पर न्यायप्रिय पांडवों की विजय हुई थी। ४. रक्षाबंधन का इतिहास यहीं से प्रारंभ हुआ क्योंकि मुनि विष्णुकुमार ने यहाँ ७०० मुनियों का उपसर्ग दूर कर उनकी रक्षा की थी। ५. दर्शन प्रतिज्ञा का नियम निभाने वाली मनोवती का कथानक यहाँ से जुड़ा है । ६. रोहिणी व्रत का कथानक भी यहीं की घटना है ।
प्रश्न १०२ -सती द्रौपदी ने स्वयंवर में कितने पतियों का वरण किया था ?
उत्तर –उसने केवल एक अर्जुन को ही अपना पति स्वीकार किया था, पाँचों पाँडवों को नहीं। पांडवपुराण नामक जैन महाभारत में इसका खुलासा देखें।
प्रश्न १०३ -सीता ने अग्नि परीक्षा में सफलता के पश्चात् क्या किया ?
उत्तर –अग्नि परीक्षा के बाद सीता ने अपनी दादीसास आर्यिका श्री पृथ्वीमती माताजी के पास जाकर आर्यिका दीक्षा धारण कर ली थी। जैन रामायण-पद्मपुराण में इसका रोमांचक इतिहास देखें।
प्रश्न १०४ -श्री रामचन्द्र ने मोक्ष पद कहाँ से प्राप्त किया है ?
उत्तर –महाराष्ट्र के नासिक जिले में ‘‘मांगीतुंगी’’ नामक सिद्धक्षेत्र है उसी के तुंगी पर्वत से श्रीराम ने मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न १०५ -हनुमान के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर –सती अंजना और पवनञ्जय कुमार।
प्रश्न १०६ -पांडवों को वनवास क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर –‘‘जुआ’’ नामक व्यसन में फसने के कारण।
प्रश्न १०७ -चौबीस तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि के क्या नाम हैं ?
उत्तर-कैैलाशपर्वत, चंपापुरी, पावापुरी, गिरनार और सम्मेदशिखर पर्वत।
प्रश्न १०८ -पुराण किसे कहते हैं ?
उत्तर –पुण्य पुरुषों के पवित्र चरित्र का जिन ग्रंथों में वर्णन हो, उन्हें पुराण ग्रंथ कहा जाता है ।
प्रश्न १०९ -कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर –पुद्गल के जो परमाणु आत्मा के साथ जाकर दूध और पानी के समान एकमेक हो जाते हैं उन्हें कर्म कहते हैं।
प्रश्न ११० -कर्म के मूलत: कितने भेद हैं ?
उत्तर –दो भेद हैं-द्रव्यकर्म, भावकर्म।
प्रश्न १११ -कर्मो का बंध किनके होता है ?
उत्तर -एकेन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय तक के समस्त प्राणियों को कर्मों का बंध निरन्तर होता है ।
प्रश्न ११२ -बंध किसे कहते हैं ?
उत्तर –कर्म आकर जब आत्मा के साथ गठबंधन कर लेते हैं उसी अवस्था को बंध कहते हैं।
प्रश्न ११३ -आस्रव का क्या लक्षण है ?
उत्तर –आत्मा में कर्मों का आना आस्रव कहलाता है ।
प्रश्न ११४ -संवर किसे कहते हैं ?
उत्तर –आते हुए कर्मों का रुक जाना संवर कहा जाता है ।
प्रश्न ११५ -निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर –आत्मा से पुराने कर्मों का फल देकर झड़ जाना, नष्ट हो जाना निर्जरा है ।
प्रश्न ११६ -निर्जरा के कितने भेद हैं ?
उत्तर –दो भेद हैं-सविपाक निर्जरा, अविपाक निर्जरा।
प्रश्न ११७ -दोनों निर्जरा की पहचान क्या है ?
उत्तर -समय से जो कर्म अपना पूरा फल देकर झड़ते हैं उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं तथा तपस्या आदि के ध्वारा जो कर्म असमय में अपना फल देकर झड़ते हैं वह अविपाक निर्जरा कहलाती है ।
प्रश्न ११८ -मोक्ष का क्या लक्षण है ?
उत्तर –आत्मा से कर्मों का पूर्ण रूप से अलग हो जाना, नष्ट हो जाना मोक्ष है ।
प्रश्न ११९ -संसार और मोक्ष की व्यवस्था किसने बनाई है ?
उत्तर –यह प्राकृतिक व्यवस्था अनादिकाल से चली आ रही है इसे किसी ने बनाया नहीं है ।
प्रश्न १२० -सम्यग्दर्शन की प्राप्ति किन प्राणियों को हो सकती है ?
उत्तर –भव्य, संज्ञी, पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक जीव ही सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न १२१ -भव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर –जिनमें मोक्ष जाने की योग्यता विध्यमान है, उन्हें भव्य कहते हैं।
प्रश्न १२२ -भव्य जीवों की बाह्य पहचान क्या है ?
उत्तर -भव्यत्व-अभव्यत्व ये आत्मा के पारिणामिक स्वाभाविक भाव हैं। इनकी पहचान केवलज्ञानी ही कर सकते हैं।
प्रश्न १२३ -संज्ञी किसे कहते हैं ?
उत्तर –जिन जीवों के मन होता है, ऐसे मनसहित पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी कहलाते हैं।
प्रश्न १२४ -पर्याप्तक जीवों का क्या लक्षण है ?
उत्तर –शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करने की योग्यता प्राप्त कर लेने पर यह जीव पर्याप्तक कहलाता है ।
प्रश्न १२५ -पर्याप्ति के कितने भेद हैं ?
उत्तर -छह भेद हैं-आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास, भाषा, मन।
प्रश्न १२६ -एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर –आहार, शरीर, इन्द्रिय और स्वासोच्छ्वास ये ४ पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय जीवों के होती हैं।
प्रश्न १२७ -दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर -इन जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास और भाषा ये ५ पर्याप्तियाँ होती हैं।
प्रश्न १२८ -सम्यग्दर्शन किस गति के जीवों के हो सकता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन चारों गति के सभी पंचेन्द्रिय जीवों को हो सकता है ।
प्रश्न १२९ -सम्यग्दर्शन किस प्रकार होता है ?
उत्तर –सम्यग्दर्शन बाह्य और अंतरंग दोनों निमित्तों के मिलने पर होता है ।
प्रश्न १३० -बाह्य निमित्त क्या हो सकते हैं ?
उत्तर –जिनेन्द्र भगवान का दर्शन, मुनियों का दर्शन, तीर्थवंदना, गुरु उपदेश, जातिस्मरण आदि बाह्य निमित्त हैं जो सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण माने हैं।
प्रश्न १३१ -अन्तरंग निमित्त कौन से हैं ?
उत्तर –आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय और क्षयोपशम अन्तरंग निमित्त है जो सम्यग्दर्शन को उत्पन्न कराने वाला है ।
प्रश्न १३२ -नरकगति में सम्यग्दर्शन किन-किन कारणों से उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर –प्रथम,व्दितीय और तृतीय इन तीन नरकों में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के तीन कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव और परोपदेश। चौथे नरक से लेकर सातवें नरक तक दो कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव।
प्रश्न १३३ -नरकों में उपदेश श्रवण कौन कराता है ?
उत्तर –पूर्व जन्म का कोई मित्र देव पर्याय से, परोपकार भावना से तीन नरकों तक जाकर अपने संबंधी को उपदेश देकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न करा देते हैं, यह कथन षट्खण्डागम और पुराण ग्रंथ में आया है । जैसे-सीताजी का जीव सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र था उसने तृतीय नरक में जाकर रावण को सम्बोधित किया था।
प्रश्न १३४ -देव लोग धर्म श्रवण कराने हेतु चौथे आदि नरकों में क्यों नहीं जाते हैं ?
उत्तर –क्योंकि उनके गमन की सीमा तीसरे नरक तक ही है अत: वे आगे नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न १३५ -तिर्यंच प्राणी कितने कारणों से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर –जातिस्मरण, जिनमहिमा दर्शन और धर्मोपदेश इन तीन कारणों में से किसी कारण के मिलने पर तिर्यंच प्राणी सम्यग्दर्शन उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रश्न १३६ -तिर्यंच प्राणी जन्म लेने के कितने दिन बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त करते हैं ?
उत्तर –तिर्यंच जीव जन्म लेने के बाद ३ दिन से सात दिन तक सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। इस काल को ‘‘दिवस पृथक्त्व’’ नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न १३७ -मनुष्यगति में सम्यग्दर्शन की योग्यता कब प्राप्त होती है ?
उत्तर –मनुष्यगति में ८ वर्ष के बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता आ जाती है ।
प्रश्न १३८ -मनुष्यगति में सम्यक्त्वोत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर -तीन कारण हैं-जातिस्मरण, धर्मोपदेश और जिनबिम्ब दर्शन।
प्रश्न १३९ -देवगति में कितने कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर –जातिस्मरण, धर्मोपदेश, जिनबिम्ब दर्शन और देवधिॅदशॅन इन चार कारणों से देवों को सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ।
प्रश्न १४० -देवर्धिदर्शन का क्या मतलब है ?
उत्तर –नीचे स्वर्गों के देव अपने से उच्चवर्गीय देवों और इन्द्रों का वैभव देखकर उनके पूर्व पुण्य की सराहना करते हैं जिससे उन्हें भी सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है । यह देवर्द्धिदर्शन नाम का कारण भवनवासी, व्यंतरवासी, ज्योतिर्वासी देवों में तथा कल्पवासी देवों में बारह स्वर्गों तक पाया जाता है, उससे आगे नहीं।
प्रश्न १४१ -पुन: तेरहवें स्वर्ग से आगे कितने कारण हैं ?
उत्तर –तेरहवें स्वर्ग से लेकर सोलहवें स्वर्ग तक एवं नव ग्रैवेयक तक देवर्धिदर्शन छोड़कर तीन कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है ।
प्रश्न १४२ -आगे नव अनुदिश और पाँच अनुत्तरों में कितने कारण हैं ?
उत्तर –नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में सम्यग्दृष्टि मनुष्य ही जाकर जन्म ग्रहण करते हैं पुन: वहाँ सभी देव नियम से सम्यग्दृष्टि होते हैं।
प्रश्न १४३ -क्या क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर नरक में भी जन्म ले सकता है ?
उत्तर –जिस मनुष्य ने पहले नरक आयु का बंध कर लिया है पुन: उसे क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हुआ है वह प्रथम नरक तक जा सकता है उससे आगे नहीं। जैसे-राजा श्रेणिक का जीव।
प्रश्न १४४ -सम्यग्दृष्टि जीव कहाँ-कहाँ जन्म नहीं लेता है ?
उत्तर –प्रथम नरक के बिना छह नरकों में, भवनत्रिक में सम्यग्दृष्टि जीव जन्म नहीं लेते हैं तथा नपुंसक, स्त्री, स्थावर, विकलत्रय, तिर्यंच योनियों में भी उनका जन्म नहीं होता है ।
प्रश्न १४५ -अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को जीवन में पहली बार यदि सम्यग्दर्शन होवे तो कौन सा हो सकता है ?
उत्तर –अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को पहली बार होने वाले सम्यग्दर्शन को प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं।
प्रश्न १४६ -वह प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन कितने दिनों तक रह सकता है ?
उत्तर -प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन का काल मात्र अन्तर्मुहूर्त है उसके बाद वह नियम से छूटता ही है ।
प्रश्न १४७ -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का काल कितने दिन का है ?
उत्तर -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है एवं उत्कृष्ट काल छ्यासठ सागर प्रमाण है ।
प्रश्न १४८ -क्षायिक सम्यग्दर्शन कितने दिन तक रह सकता है ?
उत्तर -क्षायिक सम्यग्दर्शन एक बार होने के बाद वह अनन्त काल तक भी छूटता नहीं है क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि उसी भव से या एक भव बीच का लेकर और मनुष्य जन्म धारण कर नियम से मोक्ष प्राप्त करता है ।
प्रश्न १४९ -तीन चौबीसी कहाँ-कहाँ होती हैं ?
उत्तर -जम्बूव्दीप के भरतक्षेत्र के आर्यखंड में भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत् काल में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं, ये ही तीन चौबीसी कहलाती हैं।
==प्रश्न १५० -तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं ?
== उत्तर -उनकी चौबीस संख्या ही निश्चित है । प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार ही यह संख्या चली आ रही है अत: कभी भी २३ या २५ तीर्थंकर नहीं हो सकते हैं।
प्रश्न १५१ -इन तीर्थंकरों के कितने कल्याणक होते हैं ?
उत्तर -ढाईव्दीप में पाँच भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्र की जो त्रैकालिक तीस चौबीसी है उनके तो नियम से पाँचों कल्याणक हुआ करते हैं। हाँ, विदेह क्षेत्रों में जो तीर्थंकर होते हैं उनमें कोई २ ,३ या ५ कल्याणक वाले भी होते हैं।
प्रश्न १५२ -जम्बूव्दीप की रचना वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हुई हैं ?
उत्तर -अभी तक जम्बूव्दीप की रचना पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से मात्र हस्तिनापुर में ही बनी है ।
प्रश्न १५३ -तीन चौबीसी की ७२ प्रतिमाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ विराजमान हैं ?
उत्तर -अयोध्या में, भगवान ऋषभदेव की दीक्षाभूमि प्रयाग में कैलाश पर्वत पर, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार) में एवं आहार जी आदि तीर्थों में तीन चौबीसी तीर्थंकरों की ७२ प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १५४ -तीर्थंकर महापुरुष कितने इन्द्रों से वंध्य होते हैं ?
उत्तर -सौ इन्द्रों से वंध्य होते हैं।
प्रश्न १५५ -सौ इन्द्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -भवणालय चालीसा, विंतरदेवाण होंति बत्तीसा। कप्पामर चउवीसा, चंदो सूरो नरो तिरिओ।। भवनवासियों के ४० इन्द्र, व्यंतरों के ३२, कल्पवासी देवों के २४ इन्द्र, ज्योतिर्वासी के सूर्य-चन्द्र ये दो इन्द्र होते हैं तथा मनुष्यों में १ चक्रवर्ती और तिर्यंचों में १ सिंह इन्द्र होता है अत: ४०+३२ +२४+१+१=१०० इन्द्र होते हैं।
प्रश्न १५६ -इस कलियुग में तीर्थंकर क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर -क्योंकि तीर्थंकर चतुर्थकाल में ही जन्म लेते हैं। उस काल में मोक्ष का दरवाजा खुला होता है, शरीर का उत्तम संहनन होता है और उत्तम संहनन वाले मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।
प्रश्न १५७ -क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति आज के मानव को हो सकती है या नहीं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में ही क्षायिक सम्यक्त्व प्रगट होता है और इस कलिकाल में केवली-श्रुतकेवली हैं नहीं, अत: क्षायिक सम्यक्त्व आज का मानव नहीं प्राप्त कर सकता है ।
प्रश्न १५८ -तो फिर वर्तमान में कौन सा सम्यग्दर्शन प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर -उपशम और क्षयोपशम सम्यग्दर्शन आज हर व्यक्ति प्राप्त कर सकता है ।
प्रश्न १५९ -ये सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त किये जाते हैं ?
उत्तर -सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का श्रद्धान करने से उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है क्योंकि इन बाह्य निमित्तों से अन्तरंग आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का उपशम या क्षयोपशम होता है तभी सम्यक्त्व प्रगट होता है । ==प्रश्न १६० -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -तीन भेद हैं-औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक।
प्रश्न १६१ -सम्यग्दर्शन प्राप्त कराने वाली कितनी लब्धियाँ हैं ?
उत्तर -पाँच लब्धियाँ हैं-क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण।
प्रश्न १६२ -करणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में लोक-अलोक के विभाग का कथन हो, युग परिवर्तन का, कर्म प्रकृतियों का वर्णन हो, उन्हें करणानुयोग ग्रंथ कहते हैं।
प्रश्न १६३ -क्या हस्तिनापुर से जम्बूव्दीप का कोई पौराणिक संबंध जुड़ा है ?
उत्तर -हाँ, यह भी एक अनहोना संयोग ही जुड़ गया। जब इतिहास एवं पुराणों का अध्ययन किया गया तब ज्ञात हुआ कि आज से एक कोड़ाकोड़ी सागर वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव के युग में हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा था। सो ऐसा लगता है कि उनका स्वप्न ही आज उसी भूमि पर साकार हुआ है ।
प्रश्न १६४ -सुमेरु पर्वत का जम्बूव्दीप से क्या संबंध है ?
उत्तर -जम्बूव्दीप के बीचोंबीच में ही तो सुमेरु पर्वत बना है ।
प्रश्न १६५ -यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा है ?
उत्तर -एक लाख चालिस योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है ।
प्रश्न १६६ -हस्तिनापुर में यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा बनाया गया है ?
उत्तर -एक सौ एक फुट ऊँचा सुमेरु पर्वत यहाँ बनाया गया है ।
प्रश्न १६७ -उसमें ऊपर तक दर्शन करने का क्या साधन है ?
उत्तर -अन्दर से सीढ़ियों के माध्यम से ऊपर तक पहुँचकर सोलहों चैत्यालय के दर्शन सुलभतया हो जाते हैं।
प्रश्न १६८ -उसमें सीढ़ियाँ कितनी बनी हुई हैं ?
उत्तर -१३६ सीढ़ियाँ हस्तिनापुर के सुमेरु पर्वत में बनाई गई हैं।
प्रश्न १६९ -हस्तिनापुर के जम्बूव्दीप में क्या पूरे ७८ अकृत्रिम चैत्यालय दर्शाए गए हैं ?
उत्तर -हाँ, वहाँ सपेद संगमरमर से बने पूरे ७८ चैत्यालय बने हैं।
==प्रश्न १७० -वहाँ अन्य रंग-बिरंगे चैत्यालय कितने बने हैं ?
== उत्तर -जम्बूव्दीप के सभी पर्वतों पर अनेक देवभवन शास्त्र में माने हैं उन्हीं के प्रतीक मे हस्तिनापुर के जम्बूव्दीप में रंग-बिरंगे देवभवन बनाए गये हैं। ये देवों के गृह चैत्यालय हैं इसीलिए इन्हें सिद्धकूटों से भिन्न दर्शाया गया है । ये देवभवन १२३ हैं प्रत्येक में जिन- प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १७१ -क्या स्त्रियाँ अपने स्त्री भव से कभी मोक्ष नहीं जा सकती हैं ?
उत्तर -नहीं, दिगम्बर जैन सिद्धान्त के अनुसार स्त्रियाँ मोक्ष नहीं जा सकती हैं।
प्रश्न १७२ -क्या तीर्थंकर की माता भी उस भव से मोक्ष नहीं जाती हैं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि सिद्धान्त का नियम तो अटल होता है ।
प्रश्न १७३ -स्त्रियों को कभी क्षायिक सम्यग्दर्शन हो सकता है या नहीं ?
उत्तर – नहीं।
प्रश्न १७४ -गतियाँ कितनी हैं ?
उत्तर – चार हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।
प्रश्न १७५ -इन्द्रिय किसे कहते हैं ?
उत्तर – चारों गति के जीवों को पहचानने के चिन्ह को इन्द्रिय कहते हैं।
प्रश्न १७६ -इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ?
उत्तर – इन्द्रियाँ पाँच होती हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण।
प्रश्न १७७ -चींटी, खटमल, बिच्छू कितने इन्द्रिय जीव हैं ?
उत्तर -तीन इन्द्रिय जीव हैं। इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हैं।
प्रश्न १७८ -जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -संसारी और मुक्त ये दो भेद हैं।
प्रश्न १७९ -संसारी जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-त्रस और स्थावर।
==प्रश्न १८० -त्रस जीव किन्हें कहते हैं ?
== उत्तर -दो इन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं।
प्रश्न १८१ -स्थावर जीवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक। इन स्थावर जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है ।
प्रश्न १८२ -मुक्त जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो मनुष्य आठ कर्मों का नाशकर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर अशरीरी हो जाते हैं उन्हें मुक्त जीव कहते हैं।
प्रश्न १८३ -आठ कर्म कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय।
प्रश्न १८४ -मनुष्य के कितनी इन्द्रियाँ होती हैं ?
उत्तर -मनुष्य के पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं।
प्रश्न १८५ -प्राण के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच इन्द्रिय, तीन बल (मन, वचन, काय) आयु और स्वासोच्छ्वास ये दस प्राण होते हैं।
प्रश्न १८६ -एक इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन इन्द्रिय १, कायबल १, स्वासोच्छ्वास १, आयु १ ये ४ प्राण सभी एकेन्द्रिय जीवों के होते हैं।
प्रश्न १८७ -दो इन्द्रिय एवं तीन इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना ये २ इन्द्रियाँ, कायबल, वचनबल, स्वासोच्छ्वास और आयु ये ६ प्राण दो इन्द्रिय जीवों के होते हैं तथा तीन इन्द्रिय जीवों के एक घ्राण इन्द्रिय बढ़ जाती है अत: उनके ७ प्राण होते हैं।
प्रश्न १८८ -चार इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना, घ्राणु, चक्षु ये ४ इन्द्रियाँ, वचन बल, कायबल, आयु और स्वासोच्छ्वास ये ८ प्राण चार इन्द्रिय जीवों के (मक्खी, मच्छर, भौंरा, ततैया आदि के) होते हैं।
प्रश्न १८९ -पंचेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -सबसे पहले पंचेन्द्रियों के दो भेद हैं-संज्ञी और असंज्ञी। इनमें से संज्ञी (मनसहित) जीवों के तो दसों प्राण होते हैं और असंज्ञी (मन रहित) जीवों के मनबल नामक प्राण छोड़कर शेष ९ प्राण होते हैं।
==प्रश्न १९० -लोक के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -तीन भेद हैं-ऊध्र्वॅलोक, मध्यलोक और अधोलोक।
प्रश्न १९१ -मध्यलोक में कितने व्दीप-समुद्र हैं ?
उत्तर -असंख्यात व्दीप-समुद्र हैं।
प्रश्न १९२ -प्रथमद्वीप और प्रथम समुद्र का क्या नाम है ?
उत्तर -प्रथमव्दीप का नाम जम्बूव्दीप है और प्रथम समुद्र का नाम लवण-समुद्र है ।
प्रश्न १९३ -जम्बूद्वीप में कितने अकृत्रिम चैत्यालय हैं ?
उत्तर -७८ अकृत्रिम चैत्यालय जम्बूव्दीप में हैं। यथा-सुमेरु पर्वत के १६, गजदन्त पर्वतों के ४, जम्बू-शाल्मलीवृक्षों के २, वक्षार पर्वतों के १६, विजयार्ध पर्वत के ३४, कुलाचलों के ६ इस प्रकार १६ + ४ +२+१६ + ३४ +६ =·७८ चैत्यालय जम्बूद्वीप में हैं। जो हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप रचना में साक्षात् देखे जा सकते हैं।
प्रश्न १९४ -ढाईद्वीप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और आधा पुष्करद्वीप (पुष्करार्ध-द्वीप) ये ढाईद्वीप कहलाते हैं।
प्रश्न १९५ -गुणस्थान किसे कहते हैं ?</font >
उत्तर -जीवों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि के ध्वारा जो परिणाम होते हैं, उन्हें गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १९६ -गुणस्थान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -१४ भेद हैं-मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशसंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्ति-करण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली और अयोगकेवली।
प्रश्न १९७ -सम्यग्दर्शन का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान के ध्वारा प्रतिपादित तत्त्व और पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ।
प्रश्न १९८ -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन के दो भेद हैं-निसर्गज और अधिगमज।
प्रश्न १९९ -निसर्गज सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो सम्यग्दर्शन परोपदेश के बिना जातिस्मरण या जिनबिम्ब दर्शन के ध्वारा उत्पन्न होता है उसे निसर्गज कहते हैं।
==प्रश्न २०० -अधिगमज सम्यदर्शन का क्या लक्षण है ?
== उत्तर -परोपदेश के निमित्त से होने वाला सम्यग्दर्शन अधिगमज कहलाता है ।
प्रश्न 2o1-पाप कितने होते है उत्तर -हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पाँच पाप हैं।
प्रश्न २०२ -नरकगति किस कर्मों से प्राप्त होती है ?
उत्तर -बहुत आरंभ और बहुत परिग्रह करने से नरकायु का बंध होता है ।
प्रश्न २०३ -तिर्यंच योनि कैसे मिलती है ?
उत्तर -अधिक मायाचारी से तिर्यंच योनि प्राप्त होती है ।
प्रश्न २०४ -मनुष्य पर्याय किस कर्म के उदय से मिलती है ?
उत्तर -अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह से तथा पुण्यकर्म करने से मनुष्य पर्याय मिलती है ।
प्रश्न २०५ -देवयोनि की प्राप्ति किन कारणों से होती है ?
उत्तर -व्रत, नियम, संयम, दान आदि शुभ कर्मों से देवयोनि मिलती है ।
प्रश्न २०६ -जन्म के कितने भेद हैं ?
उत्तर -गर्भ, सम्मूच्र्छॅन, उपपाद ये जन्म के ३ भेद हैं।
प्रश्न २०७ -गर्भ जन्म किन जीवों का होता है ?
उत्तर -मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का गर्भ जन्म होता है ।
प्रश्न २०८ -सम्मूच्र्छॅन जन्म धारण करने वाले कौन से जीव हैं ?
उत्तर -एक इन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव सम्मूच्र्छॅन जन्म धारण करते हैं।
प्रश्न २०९ -सम्मूच्र्छॅन जन्म का क्या मतलब है ?
उत्तर -बाह्य पुद्गल स्कन्धों के एकत्रित होने पर जो शरीर रचना होती है उसे सम्मूच्र्छॅन कहते हैं। जैसे-केचुआ, बिच्छू, खटमल, चींटी सम्मूच्र्छॅन जन्म वाले होते हैं। इस जन्म में माता-पिता के रजवीर्य की तथा उपपाद जन्म की आवश्यकता नहीं होती है ।
==प्रश्न २१० -उपपाद जन्म किस गति के जीवों का होता है ?
== उत्तर -देवगति और नरकगति में देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है ।
प्रश्न २११ -जैन साधु देवताओं से आहार क्यों नहीं ले सकते हैं ?
उत्तर -क्योंकि देवगण मनुष्यों के समान संयम धारण करने में असमर्थ होते हैं इसलिए जैन साधु देवताओं द्वारा दिया गया आहार ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न २१२ -अकालमरण किन-किन जीवों का हो सकता है ?
उत्तर -कर्मभूमि के मनुष्य और तिर्यंचों का विष भक्षण आदि निमित्तों से अकालमरण संभव है ।
प्रश्न २१३ -तत्त्व कितने हैं ?
उत्तर -जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व होते हैं।
प्रश्न २१४ -द्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर -६ भेद हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
प्रश्न २१५ -पाँच अस्तिकाय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -छह द्रव्यों में से काल द्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय कहे जाते हैं।
प्रश्न २१६ -सिद्धशिला कहाँ है ?
उत्तर -तीन लोक के अग्रभाग पर ४५ लाख योजन प्रमाण अघॅ चन्द्राकार सिद्धशिला है ।
प्रश्न २१७ -सुमेरुपर्वत कहाँ है ?
उत्तर -१ लाख ४० योजन (लगभग ६० करोड़ किमी.) ऊँचा सुमेरुपर्वत अकृत्रिम जम्बूद्वीप रचना के बीचों बीच बना है जो यहाँ से तीस करोड़ किमी. दूर है ।
प्रश्न २१८ -नवदेवता कहाँ-कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर -अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये नवदेवता ढाईव्दीप में ही पाये जाते हैं, उससे आगे व्दीपों में मात्र चैत्य और चैत्यालय ये दो देवता ही रहते हैं।
प्रश्न २१९ -प्रतिमा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -प्रतिमा के ११ भेद हैं-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग प्रतिमा।
==प्रश्न २२० -इन प्रतिमाओं को कौन पालन करते हैं ?</font >
== उत्तर -श्रावक-श्राविकाएँ व्रतादि स्वीकार करके इन प्रतिमाओं का पालन करते हैं।
प्रश्न २२१ -श्रावक के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक।
प्रश्न २२२ -पाक्षिक श्रावक किसे कहते हैं ?
उत्तर -संकल्पी हिंसा का त्यागी, धर्म का पक्ष रखने वाला, अभ्यास रूप से धर्म का पालन करने वाला श्रावक पाक्षिक कहलाता है ।
प्रश्न २२३ -नैष्ठिक श्रावक का क्या लक्षण है ?
उत्तर -पहली प्रतिमाधारी से लेकर ११वीं प्रतिमाधारी श्रावक श्राविकाओं को एवं क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं को नैष्ठिक श्रावक कहते हैं।
प्रश्न २२४ -‘‘साधक’’ संज्ञा वाले श्रावक कौन होते हैं ?
उत्तर -समाधिमरण की साधना करने वाले ११ प्रतिमाधारी क्षुल्लक-क्षुल्लिका और १ लंगोटी मात्र धारण करने वाले ऐलक जिनका देशसंयम पूर्ण हो चुका है, वे साधक कहलाते हैं।
प्रश्न २२५ -गृहस्थ श्रावक के कितने कतॅव्य हैं ?
उत्तर -छ: कतॅव्य हैं-देवपूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान।
प्रश्न २२६ -अणुव्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाण अणुव्रत।
प्रश्न २२७ -शराब और मांस का त्याग तो ठीक है किन्तु मधु (शहद) में क्या दोष है ?
उत्तर -शहद मधुमक्खियों का उगाल है अत: शहद की १ बिन्दु मात्र के भक्षण से भी सात गांव जलाने का पाप लगता है ।
प्रश्न २२८ -मंदिर में दर्शन करते समय चावल के कितने पुंज चढ़ाना चाहिए ?
उत्तर -णमोकार मंत्र पढ़ते हुए बंधी मुट्ठी से चावल के पाँच पुंज भगवान के सामने वेदी पर चढ़ाना चाहिए, जिसका नमूना इस प्रकार है-
प्रश्न २२९ -जिनवाणी के सामने क्या बोलकर कितने पुंज चढ़ाए जाते हैं ?
उत्तर -‘‘प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगरूप जिनवाणी माता को नमस्कार होवे’’ अथवा ‘‘प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नम:’’ ऐसा बोलकर सीधी लाइन में चार पुंज चढ़ाना चाहिए”
==प्रश्न २३० -क्या मुनि-आर्यिका आदि गुरुओं के दर्शन में भी ऐसा कोई नियम है ?
== उत्तर -हाँ! मुनि-आर्यिका आदि रत्नत्रय के धारक महाव्रती साधु होते हैं। उनके दर्शन करते समय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र बोलकर तीन पुंज चढ़ाना चाहिए” प्रश्न २३१ -नमस्कार की क्या विधि है ?
उत्तर -देव, शास्त्र, गुरु के समक्ष घुटने टेककर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक जमीन पर लगाकर पंचांग नमस्कार करना चाहिए। < प्रश्न २३२ -दान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -४ भेद हैं-आहारदान, औषधिदान, शास्त्रदान, अभयदान।
प्रश्न २३३ -ये दान किसे दिये जाते हैं ?
उत्तर -ये दान सत्पात्र को दिये जाते हैं।
प्रश्न २३४ -सत्पात्र किसे कहते हैं ?
उत्तर -मुनि-आर्यिका, क्षुल्लक-क्षुल्लिका एवं देशसंयमी श्रावक सत्पात्र कहलाते हैं।
प्रश्न २३५ -दीन-दुखी जीवों को दान देना किस दान में आता है ?
उत्तर -करुणादान में आता है ।
प्रश्न २३६ -मुनि-आर्यिकाओं को आहार देने में नवधाभक्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर -(१) हे स्वामी! या हे माताजी! नमोस्तु ३ ! अत्र तिष्ठ ३! आहार जल शुद्ध है बोलकर पड़गाहन करना, उनकी तीन प्रदक्षिणा करके शुद्धी बोलकर चौके में ले जाना, पड़गाहन नामक पहली भक्ति है । (२) चौके में उन्हें पाटे या चौकी पर बैठाना उच्चासन विराजिए नामक दूसरी भक्ति है । (३) उनके चरण धोना पादप्रक्षाल नामक तृतीय भक्ति है । (४) उनकी अष्टद्रव्य से पूजन करना अर्चना नामक चौथी भक्ति है । (५) घुटने टेक कर नमस्कार करना प्रणाम नामक पंचम भक्ति है । (६) मन शुद्धि (७) वचन शुद्धि (८) कायशुद्धि (९) आहारजल शुद्ध है, ये शुद्धियाँ बोलकर आहार देना नवधाभक्ति कहलाती है ।
प्रश्न २३७ -सात व्यसन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जुआ खेलना, मांस खाना, शराब पीना, वेश्यासेवन, शिकार खेलना, चोरी करना, परस्त्रीसेवन, ये सात व्यसन होते हैं। इनका प्रत्येक श्रावक को त्याग करना चाहिए।
प्रश्न २३८ -माला में १०८ दाने क्यों जपे जाते हैं ?
उत्तर -१०८ पापों के निवारण हेतु माला में १०८ दाने जपे जाते हैं।
प्रश्न २३९ -१०८ पाप कौन से हैं ?
उत्तर -क्रोध, मान, माया, लोभ इन ४ कषायों को समरंभ, समारंभ, आरंभ इन तीन से गुणा करने पर ४x३=·१२ भेद हुए। १२ को मन, वचन, काय तीन से गुणा करने पर १२x३=·३६ भेद हुए पुन: ३६ को कृत, कारित, अनुमोदना से गुणा करने पर ३६x३=·१०८ प्रकार हुए। इनसे पापों का आस्रव होता है ।
==प्रश्न २४० -पुरुषार्थ के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -४ भेद हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। प्रश्न २४१ -हिंसा के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर -४ भेद होते हैं-संकल्पीहिंसा, आरंभी हिंसा, उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा।
प्रश्न २४२ -संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं ?
उत्तर -अभिप्रायपूर्वक दोइन्द्रिय आदि जीवों को मारना ‘‘संकल्पी हिंसा’’ कहलाती है । जैसे-चमड़े का व्यापार करना, घर में चूहामार या मच्छर नाशक दवाई डालकर उन्हें मारना आदि।
प्रश्न २४३ -इस हिंसा का त्यागी कौन होता है ?
उत्तर -सम्यग्दृष्टि अणुव्रती श्रावक संकल्पी हिंसा का त्यागी होता है ।
प्रश्न २४४ -शेष तीन हिंसा क्या श्रावक के लिए क्षम्य हैं ?
उत्तर -हाँ, क्योंकि गृहस्थ क्रियाओं में आरंभी हिंसा तो होती है, खेती- व्यापार आदि में उद्योगी हिंसा संभावित है और धर्मविरोधी कार्य करने वाले से लड़ना विरोधी हिंसा है । जैसे-राम ने रावण के साथ युद्ध किया, क्षायिक सम्यग्दृष्टि भरत ने भी युद्ध किया। ये विरोधी हिंसा के कार्य हैं जिन्हें अणुव्रती श्रावक भी करते हैं।
प्रश्न २४५ -पंचसूना किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -कूटना, पीसना, चूल्हा जलाना, पानी भरना, झाड़ू लगाना ये पाँच क्रियाएँ पंचसूना कहलाती हैं। गृहस्थ श्रावक-श्राविकाएँ इन्हें करते हैं।
प्रश्न २४६ -भगवान की तीन प्रदक्षिणा क्यो लगाते हैं ?
उत्तर -जन्म, जरा, मरण इन तीन रोगों की समाप्ति हेतु तथा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीन रत्नों की प्राप्ति हेतु तीन प्रदक्षिणा लगाई जाती हैं।
प्रश्न २४७ -अष्ट द्रव्यों से पूजन क्यों की जाती है ?
उत्तर -अष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए अष्ट द्रव्य से पूजन की जाती है ।
प्रश्न २४८ -वे अष्ट द्रव्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल ये अष्ट द्रव्य हैं। सबको एक में मिलाकर अघ्र्य बनता है ।
प्रश्न २४९ -दो प्रतिमाधारी श्रावक को कितने व्रत पालन करने होते हैं ?
उत्तर -१२ व्रतों का पालन दो प्रतिमाधारी श्रावक करता है ।
==प्रश्न २५० -१२ व्रत कौन-कौन से हैं ? == उत्तर -५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षाव्रत ये १२ व्रत होते हैं।
प्रश्न २५१ -तीन गुणव्रतों के एवं चार शिक्षाव्रतों के नाम क्या हैं ?
उत्तर -दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डविरतिव्रत ये तीन गुणव्रत आत्मा के गुणों की अभिवृद्धि करने वाले हैं। सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत मुनिव्रतों को धारण करने की शिक्षा देते हैं।
प्रश्न २५२ -वीतराग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो अठारह दोषों से रहित सर्वगुणों से सहित आप्त-भगवान होते हैं उन्हें वीतराग कहते हैं।
प्रश्न २५३ -वे अठारह दोष कौन से हैं ?
उत्तर -भूख, प्यास, बुढ़ापा, आतंक, जन्म, मरण, भय, मद, राग,देष , मोह, रोग, चिन्ता, निद्रा, आश्चर्य, अरति, पसीना और खेद ये १८ दोष होते हैं जो कि प्रत्येक संसारी जीवों में होते हैं।
प्रश्न २५४ -चरणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में साधु एवं गृहस्थों के चारित्र, क्रिया आदि का वर्णन होता है वे चरणानुयोग के ग्रंथ कहे जाते हैं।
प्रश्न २५५ -चारित्र के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सकल चारित्र और विकल चारित्र।
प्रश्न २५६ -सकलचारित्र किसे कहते हैं तथा यह किनके होता है ?
उत्तर -महाव्रतरूप पूर्ण चारित्र को सकलचारित्र कहते हैं तथा यह सकलचारित्र मुनियों के होता है ।
प्रश्न २५७ -विकलचारित्र किसे कहते हैं और यह किनके होता है ?
उत्तर -अणुव्रतरूप एकदेश संयम पालन को विकलचारित्र कहते हैं और यह चारित्र गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं को क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं एवं ऐलक को होता है ।
प्रश्न २५८ -आर्यिकाओं के कौन सा चारित्र होता है ?
उत्तर -आचारसार ग्रंथों के अनुसार आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहा गया है उन्हें पुराणों में संयतिका शब्द से भी संबोधित किया गया है अत: उपचार से तो सकलचारित्र कहा जा सकता है किन्तु पंचमगुणस्थान की अपेक्षा उनके विकलचारित्र भी मान सकते हैं।
प्रश्न २५९ -श्रावक के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर -आठ मूलगुण होते हैं-मध, मांस, मधु ये तीन मकार तथा बड़, पीपल, पाकर, कठूमर और गूलर इन पाँच उदुम्बर फलों का त्याग अष्टमूलगुण कहलाते हैं।
उत्तर –पद्मासन प्रतिमाएँ वहाँ विराजमान रहती हैं।
प्रश्न ९२ -नंदीश्वर द्वीप की रचनाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हैं ?
उत्तर –सम्मेदशिखर में, हस्तिनापुर में, जबलपुर में, दिल्ली में और महमूदाबाद (सीतापुर-उ.प्र.) में नंदीश्वर द्वीप की रचना बनी हुई हैं।
प्रश्न ९३ -नंदीश्वर द्वीप में मनुष्य क्यों नहीं जा सकते हैं ?
उत्तर –क्योंकि ढ़ाई द्वीप की सीमा पर स्थित मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्यों का आवागमन निषिद्ध है । ढाईद्वीप तक ही मनुष्यों का जन्म होता है आगे नहीं और ढ़ाई द्वीप में ही रहकर वे कर्मों को काटकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न ९४ -भक्तामर स्तोत्र की रचना किसने की ?
उत्तर –आचार्य श्री मानतुंग स्वामी ने।
प्रश्न ९५ -मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने किन तीर्थंकर के काल में जन्म लिया था?
उत्तर –आज से लगभग ९ लाख वर्ष पूर्व २०वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थकाल में अयोध्या में राम का जन्म हुआ था।
प्रश्न ९६ -राजा दशरथ के कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर –चार-कौशल्या, केकयी, सुमित्रा और सुप्रभा।
प्रश्न ९७ -लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता का क्या नाम था ?
उत्तर –लक्ष्मण की माता का नाम सुमित्रा और शत्रुघ्न की माता का नाम सुप्रभा था।
प्रश्न ९८ -रावण का वध किसने किया था ?
उत्तर –लक्ष्मण ने।
प्रश्न ९९ -धवला ग्रंथ की रचना किस दिन पूर्ण हुई थी ?
उत्तर –ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को, जिसे श्रुतपंचमी पर्व के रूप में जाना जाता है ।
प्रश्न १०० -अनादिनिधन पर्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर –सोलहकारण पर्व, दशलक्षण पर्व, आष्टान्हिका पर्व।
प्रश्न १०१ -हस्तिनापुर से संबंधित कौन-कौन सी ऐतिहासिक घटनाएँ हैं ?
उत्तर –१. भगवान ऋषभदेव ने यहाँ प्रथम बार इक्षुरस का आहार लिया था। २. शांति, कुंथु, अरहनाथ इन तीन तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणक हुए। ३. कौरवों-पांडवों व्दारा महाभारत युद्ध होकर यहीं पर न्यायप्रिय पांडवों की विजय हुई थी। ४. रक्षाबंधन का इतिहास यहीं से प्रारंभ हुआ क्योंकि मुनि विष्णुकुमार ने यहाँ ७०० मुनियों का उपसर्ग दूर कर उनकी रक्षा की थी। ५. दर्शन प्रतिज्ञा का नियम निभाने वाली मनोवती का कथानक यहाँ से जुड़ा है । ६. रोहिणी व्रत का कथानक भी यहीं की घटना है ।
प्रश्न १०२ -सती द्रौपदी ने स्वयंवर में कितने पतियों का वरण किया था ?
उत्तर –उसने केवल एक अर्जुन को ही अपना पति स्वीकार किया था, पाँचों पाँडवों को नहीं। पांडवपुराण नामक जैन महाभारत में इसका खुलासा देखें।
प्रश्न १०३ -सीता ने अग्नि परीक्षा में सफलता के पश्चात् क्या किया ?
उत्तर –अग्नि परीक्षा के बाद सीता ने अपनी दादीसास आर्यिका श्री पृथ्वीमती माताजी के पास जाकर आर्यिका दीक्षा धारण कर ली थी। जैन रामायण-पद्मपुराण में इसका रोमांचक इतिहास देखें।
प्रश्न १०४ -श्री रामचन्द्र ने मोक्ष पद कहाँ से प्राप्त किया है ?
उत्तर –महाराष्ट्र के नासिक जिले में ‘‘मांगीतुंगी’’ नामक सिद्धक्षेत्र है उसी के तुंगी पर्वत से श्रीराम ने मोक्ष प्राप्त किया था।
प्रश्न १०५ -हनुमान के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर –सती अंजना और पवनञ्जय कुमार।
प्रश्न १०६ -पांडवों को वनवास क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर –‘‘जुआ’’ नामक व्यसन में फसने के कारण।
प्रश्न १०७ -चौबीस तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि के क्या नाम हैं ?
उत्तर-कैैलाशपर्वत, चंपापुरी, पावापुरी, गिरनार और सम्मेदशिखर पर्वत।
प्रश्न १०८ -पुराण किसे कहते हैं ?
उत्तर –पुण्य पुरुषों के पवित्र चरित्र का जिन ग्रंथों में वर्णन हो, उन्हें पुराण ग्रंथ कहा जाता है ।
प्रश्न १०९ -कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर –पुद्गल के जो परमाणु आत्मा के साथ जाकर दूध और पानी के समान एकमेक हो जाते हैं उन्हें कर्म कहते हैं।
प्रश्न ११० -कर्म के मूलत: कितने भेद हैं ?
उत्तर –दो भेद हैं-द्रव्यकर्म, भावकर्म।
प्रश्न १११ -कर्मो का बंध किनके होता है ?
उत्तर -एकेन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय तक के समस्त प्राणियों को कर्मों का बंध निरन्तर होता है ।
प्रश्न ११२ -बंध किसे कहते हैं ?
उत्तर –कर्म आकर जब आत्मा के साथ गठबंधन कर लेते हैं उसी अवस्था को बंध कहते हैं।
प्रश्न ११३ -आस्रव का क्या लक्षण है ?
उत्तर –आत्मा में कर्मों का आना आस्रव कहलाता है ।
प्रश्न ११४ -संवर किसे कहते हैं ?
उत्तर –आते हुए कर्मों का रुक जाना संवर कहा जाता है ।
प्रश्न ११५ -निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर –आत्मा से पुराने कर्मों का फल देकर झड़ जाना, नष्ट हो जाना निर्जरा है ।
प्रश्न ११६ -निर्जरा के कितने भेद हैं ?
उत्तर –दो भेद हैं-सविपाक निर्जरा, अविपाक निर्जरा।
प्रश्न ११७ -दोनों निर्जरा की पहचान क्या है ?
उत्तर -समय से जो कर्म अपना पूरा फल देकर झड़ते हैं उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं तथा तपस्या आदि के ध्वारा जो कर्म असमय में अपना फल देकर झड़ते हैं वह अविपाक निर्जरा कहलाती है ।
प्रश्न ११८ -मोक्ष का क्या लक्षण है ?
उत्तर –आत्मा से कर्मों का पूर्ण रूप से अलग हो जाना, नष्ट हो जाना मोक्ष है ।
प्रश्न ११९ -संसार और मोक्ष की व्यवस्था किसने बनाई है ?
उत्तर –यह प्राकृतिक व्यवस्था अनादिकाल से चली आ रही है इसे किसी ने बनाया नहीं है ।
प्रश्न १२० -सम्यग्दर्शन की प्राप्ति किन प्राणियों को हो सकती है ?
उत्तर –भव्य, संज्ञी, पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक जीव ही सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न १२१ -भव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर –जिनमें मोक्ष जाने की योग्यता विध्यमान है, उन्हें भव्य कहते हैं।
प्रश्न १२२ -भव्य जीवों की बाह्य पहचान क्या है ?
उत्तर -भव्यत्व-अभव्यत्व ये आत्मा के पारिणामिक स्वाभाविक भाव हैं। इनकी पहचान केवलज्ञानी ही कर सकते हैं।
प्रश्न १२३ -संज्ञी किसे कहते हैं ?
उत्तर –जिन जीवों के मन होता है, ऐसे मनसहित पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी कहलाते हैं।
प्रश्न १२४ -पर्याप्तक जीवों का क्या लक्षण है ?
उत्तर –शरीर के योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करने की योग्यता प्राप्त कर लेने पर यह जीव पर्याप्तक कहलाता है ।
प्रश्न १२५ -पर्याप्ति के कितने भेद हैं ?
उत्तर -छह भेद हैं-आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास, भाषा, मन।
प्रश्न १२६ -एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर –आहार, शरीर, इन्द्रिय और स्वासोच्छ्वास ये ४ पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय जीवों के होती हैं।
प्रश्न १२७ -दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
उत्तर -इन जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय, स्वासोच्छ्वास और भाषा ये ५ पर्याप्तियाँ होती हैं।
प्रश्न १२८ -सम्यग्दर्शन किस गति के जीवों के हो सकता है ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन चारों गति के सभी पंचेन्द्रिय जीवों को हो सकता है ।
प्रश्न १२९ -सम्यग्दर्शन किस प्रकार होता है ?
उत्तर –सम्यग्दर्शन बाह्य और अंतरंग दोनों निमित्तों के मिलने पर होता है ।
प्रश्न १३० -बाह्य निमित्त क्या हो सकते हैं ?
उत्तर –जिनेन्द्र भगवान का दर्शन, मुनियों का दर्शन, तीर्थवंदना, गुरु उपदेश, जातिस्मरण आदि बाह्य निमित्त हैं जो सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण माने हैं।
प्रश्न १३१ -अन्तरंग निमित्त कौन से हैं ?
उत्तर –आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय और क्षयोपशम अन्तरंग निमित्त है जो सम्यग्दर्शन को उत्पन्न कराने वाला है ।
प्रश्न १३२ -नरकगति में सम्यग्दर्शन किन-किन कारणों से उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर –प्रथम,व्दितीय और तृतीय इन तीन नरकों में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के तीन कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव और परोपदेश। चौथे नरक से लेकर सातवें नरक तक दो कारण हैं-जातिस्मरण, वेदनानुभव।
प्रश्न १३३ -नरकों में उपदेश श्रवण कौन कराता है ?
उत्तर –पूर्व जन्म का कोई मित्र देव पर्याय से, परोपकार भावना से तीन नरकों तक जाकर अपने संबंधी को उपदेश देकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न करा देते हैं, यह कथन षट्खण्डागम और पुराण ग्रंथ में आया है । जैसे-सीताजी का जीव सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र था उसने तृतीय नरक में जाकर रावण को सम्बोधित किया था।
प्रश्न १३४ -देव लोग धर्म श्रवण कराने हेतु चौथे आदि नरकों में क्यों नहीं जाते हैं ?
उत्तर –क्योंकि उनके गमन की सीमा तीसरे नरक तक ही है अत: वे आगे नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न १३५ -तिर्यंच प्राणी कितने कारणों से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर –जातिस्मरण, जिनमहिमा दर्शन और धर्मोपदेश इन तीन कारणों में से किसी कारण के मिलने पर तिर्यंच प्राणी सम्यग्दर्शन उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रश्न १३६ -तिर्यंच प्राणी जन्म लेने के कितने दिन बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त करते हैं ?
उत्तर –तिर्यंच जीव जन्म लेने के बाद ३ दिन से सात दिन तक सम्यग्दर्शन की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। इस काल को ‘‘दिवस पृथक्त्व’’ नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न १३७ -मनुष्यगति में सम्यग्दर्शन की योग्यता कब प्राप्त होती है ?
उत्तर –मनुष्यगति में ८ वर्ष के बाद सम्यग्दर्शन की योग्यता आ जाती है ।
प्रश्न १३८ -मनुष्यगति में सम्यक्त्वोत्पत्ति के कितने कारण हैं ?
उत्तर -तीन कारण हैं-जातिस्मरण, धर्मोपदेश और जिनबिम्ब दर्शन।
प्रश्न १३९ -देवगति में कितने कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ?
उत्तर –जातिस्मरण, धर्मोपदेश, जिनबिम्ब दर्शन और देवधिॅदशॅन इन चार कारणों से देवों को सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है ।
प्रश्न १४० -देवर्धिदर्शन का क्या मतलब है ?
उत्तर –नीचे स्वर्गों के देव अपने से उच्चवर्गीय देवों और इन्द्रों का वैभव देखकर उनके पूर्व पुण्य की सराहना करते हैं जिससे उन्हें भी सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है । यह देवर्द्धिदर्शन नाम का कारण भवनवासी, व्यंतरवासी, ज्योतिर्वासी देवों में तथा कल्पवासी देवों में बारह स्वर्गों तक पाया जाता है, उससे आगे नहीं।
प्रश्न १४१ -पुन: तेरहवें स्वर्ग से आगे कितने कारण हैं ?
उत्तर –तेरहवें स्वर्ग से लेकर सोलहवें स्वर्ग तक एवं नव ग्रैवेयक तक देवर्धिदर्शन छोड़कर तीन कारणों से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है ।
प्रश्न १४२ -आगे नव अनुदिश और पाँच अनुत्तरों में कितने कारण हैं ?
उत्तर –नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में सम्यग्दृष्टि मनुष्य ही जाकर जन्म ग्रहण करते हैं पुन: वहाँ सभी देव नियम से सम्यग्दृष्टि होते हैं।
प्रश्न १४३ -क्या क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर नरक में भी जन्म ले सकता है ?
उत्तर –जिस मनुष्य ने पहले नरक आयु का बंध कर लिया है पुन: उसे क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हुआ है वह प्रथम नरक तक जा सकता है उससे आगे नहीं। जैसे-राजा श्रेणिक का जीव।
प्रश्न १४४ -सम्यग्दृष्टि जीव कहाँ-कहाँ जन्म नहीं लेता है ?
उत्तर –प्रथम नरक के बिना छह नरकों में, भवनत्रिक में सम्यग्दृष्टि जीव जन्म नहीं लेते हैं तथा नपुंसक, स्त्री, स्थावर, विकलत्रय, तिर्यंच योनियों में भी उनका जन्म नहीं होता है ।
प्रश्न १४५ -अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को जीवन में पहली बार यदि सम्यग्दर्शन होवे तो कौन सा हो सकता है ?
उत्तर –अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को पहली बार होने वाले सम्यग्दर्शन को प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं।
प्रश्न १४६ -वह प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन कितने दिनों तक रह सकता है ?
उत्तर -प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन का काल मात्र अन्तर्मुहूर्त है उसके बाद वह नियम से छूटता ही है ।
प्रश्न १४७ -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का काल कितने दिन का है ?
उत्तर -क्षयोपशम सम्यग्दर्शन का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है एवं उत्कृष्ट काल छ्यासठ सागर प्रमाण है ।
प्रश्न १४८ -क्षायिक सम्यग्दर्शन कितने दिन तक रह सकता है ?
उत्तर -क्षायिक सम्यग्दर्शन एक बार होने के बाद वह अनन्त काल तक भी छूटता नहीं है क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि उसी भव से या एक भव बीच का लेकर और मनुष्य जन्म धारण कर नियम से मोक्ष प्राप्त करता है ।
प्रश्न १४९ -तीन चौबीसी कहाँ-कहाँ होती हैं ?
उत्तर -जम्बूव्दीप के भरतक्षेत्र के आर्यखंड में भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत् काल में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं, ये ही तीन चौबीसी कहलाती हैं।
==प्रश्न १५० -तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं ?
== उत्तर -उनकी चौबीस संख्या ही निश्चित है । प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार ही यह संख्या चली आ रही है अत: कभी भी २३ या २५ तीर्थंकर नहीं हो सकते हैं।
प्रश्न १५१ -इन तीर्थंकरों के कितने कल्याणक होते हैं ?
उत्तर -ढाईव्दीप में पाँच भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्र की जो त्रैकालिक तीस चौबीसी है उनके तो नियम से पाँचों कल्याणक हुआ करते हैं। हाँ, विदेह क्षेत्रों में जो तीर्थंकर होते हैं उनमें कोई २ ,३ या ५ कल्याणक वाले भी होते हैं।
प्रश्न १५२ -जम्बूव्दीप की रचना वर्तमान में कहाँ-कहाँ बनी हुई हैं ?
उत्तर -अभी तक जम्बूव्दीप की रचना पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से मात्र हस्तिनापुर में ही बनी है ।
प्रश्न १५३ -तीन चौबीसी की ७२ प्रतिमाएँ वर्तमान में कहाँ-कहाँ विराजमान हैं ?
उत्तर -अयोध्या में, भगवान ऋषभदेव की दीक्षाभूमि प्रयाग में कैलाश पर्वत पर, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार) में एवं आहार जी आदि तीर्थों में तीन चौबीसी तीर्थंकरों की ७२ प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १५४ -तीर्थंकर महापुरुष कितने इन्द्रों से वंध्य होते हैं ?
उत्तर -सौ इन्द्रों से वंध्य होते हैं।
प्रश्न १५५ -सौ इन्द्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -भवणालय चालीसा, विंतरदेवाण होंति बत्तीसा। कप्पामर चउवीसा, चंदो सूरो नरो तिरिओ।। भवनवासियों के ४० इन्द्र, व्यंतरों के ३२, कल्पवासी देवों के २४ इन्द्र, ज्योतिर्वासी के सूर्य-चन्द्र ये दो इन्द्र होते हैं तथा मनुष्यों में १ चक्रवर्ती और तिर्यंचों में १ सिंह इन्द्र होता है अत: ४०+३२ +२४+१+१=१०० इन्द्र होते हैं।
प्रश्न १५६ -इस कलियुग में तीर्थंकर क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर -क्योंकि तीर्थंकर चतुर्थकाल में ही जन्म लेते हैं। उस काल में मोक्ष का दरवाजा खुला होता है, शरीर का उत्तम संहनन होता है और उत्तम संहनन वाले मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।
प्रश्न १५७ -क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति आज के मानव को हो सकती है या नहीं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में ही क्षायिक सम्यक्त्व प्रगट होता है और इस कलिकाल में केवली-श्रुतकेवली हैं नहीं, अत: क्षायिक सम्यक्त्व आज का मानव नहीं प्राप्त कर सकता है ।
प्रश्न १५८ -तो फिर वर्तमान में कौन सा सम्यग्दर्शन प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर -उपशम और क्षयोपशम सम्यग्दर्शन आज हर व्यक्ति प्राप्त कर सकता है ।
प्रश्न १५९ -ये सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त किये जाते हैं ?
उत्तर -सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का श्रद्धान करने से उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है क्योंकि इन बाह्य निमित्तों से अन्तरंग आत्मा में दर्शन मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का उपशम या क्षयोपशम होता है तभी सम्यक्त्व प्रगट होता है । ==प्रश्न १६० -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -तीन भेद हैं-औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक।
प्रश्न १६१ -सम्यग्दर्शन प्राप्त कराने वाली कितनी लब्धियाँ हैं ?
उत्तर -पाँच लब्धियाँ हैं-क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण।
प्रश्न १६२ -करणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में लोक-अलोक के विभाग का कथन हो, युग परिवर्तन का, कर्म प्रकृतियों का वर्णन हो, उन्हें करणानुयोग ग्रंथ कहते हैं।
प्रश्न १६३ -क्या हस्तिनापुर से जम्बूव्दीप का कोई पौराणिक संबंध जुड़ा है ?
उत्तर -हाँ, यह भी एक अनहोना संयोग ही जुड़ गया। जब इतिहास एवं पुराणों का अध्ययन किया गया तब ज्ञात हुआ कि आज से एक कोड़ाकोड़ी सागर वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव के युग में हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा था। सो ऐसा लगता है कि उनका स्वप्न ही आज उसी भूमि पर साकार हुआ है ।
प्रश्न १६४ -सुमेरु पर्वत का जम्बूव्दीप से क्या संबंध है ?
उत्तर -जम्बूव्दीप के बीचोंबीच में ही तो सुमेरु पर्वत बना है ।
प्रश्न १६५ -यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा है ?
उत्तर -एक लाख चालिस योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है ।
प्रश्न १६६ -हस्तिनापुर में यह सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा बनाया गया है ?
उत्तर -एक सौ एक फुट ऊँचा सुमेरु पर्वत यहाँ बनाया गया है ।
प्रश्न १६७ -उसमें ऊपर तक दर्शन करने का क्या साधन है ?
उत्तर -अन्दर से सीढ़ियों के माध्यम से ऊपर तक पहुँचकर सोलहों चैत्यालय के दर्शन सुलभतया हो जाते हैं।
प्रश्न १६८ -उसमें सीढ़ियाँ कितनी बनी हुई हैं ?
उत्तर -१३६ सीढ़ियाँ हस्तिनापुर के सुमेरु पर्वत में बनाई गई हैं।
प्रश्न १६९ -हस्तिनापुर के जम्बूव्दीप में क्या पूरे ७८ अकृत्रिम चैत्यालय दर्शाए गए हैं ?
उत्तर -हाँ, वहाँ सपेद संगमरमर से बने पूरे ७८ चैत्यालय बने हैं।
==प्रश्न १७० -वहाँ अन्य रंग-बिरंगे चैत्यालय कितने बने हैं ?
== उत्तर -जम्बूव्दीप के सभी पर्वतों पर अनेक देवभवन शास्त्र में माने हैं उन्हीं के प्रतीक मे हस्तिनापुर के जम्बूव्दीप में रंग-बिरंगे देवभवन बनाए गये हैं। ये देवों के गृह चैत्यालय हैं इसीलिए इन्हें सिद्धकूटों से भिन्न दर्शाया गया है । ये देवभवन १२३ हैं प्रत्येक में जिन- प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
प्रश्न १७१ -क्या स्त्रियाँ अपने स्त्री भव से कभी मोक्ष नहीं जा सकती हैं ?
उत्तर -नहीं, दिगम्बर जैन सिद्धान्त के अनुसार स्त्रियाँ मोक्ष नहीं जा सकती हैं।
प्रश्न १७२ -क्या तीर्थंकर की माता भी उस भव से मोक्ष नहीं जाती हैं ?
उत्तर -नहीं, क्योंकि सिद्धान्त का नियम तो अटल होता है ।
प्रश्न १७३ -स्त्रियों को कभी क्षायिक सम्यग्दर्शन हो सकता है या नहीं ?
उत्तर – नहीं।
प्रश्न १७४ -गतियाँ कितनी हैं ?
उत्तर – चार हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।
प्रश्न १७५ -इन्द्रिय किसे कहते हैं ?
उत्तर – चारों गति के जीवों को पहचानने के चिन्ह को इन्द्रिय कहते हैं।
प्रश्न १७६ -इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ?
उत्तर – इन्द्रियाँ पाँच होती हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण।
प्रश्न १७७ -चींटी, खटमल, बिच्छू कितने इन्द्रिय जीव हैं ?
उत्तर -तीन इन्द्रिय जीव हैं। इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हैं।
प्रश्न १७८ -जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -संसारी और मुक्त ये दो भेद हैं।
प्रश्न १७९ -संसारी जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-त्रस और स्थावर।
==प्रश्न १८० -त्रस जीव किन्हें कहते हैं ?
== उत्तर -दो इन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं।
प्रश्न १८१ -स्थावर जीवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक। इन स्थावर जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है ।
प्रश्न १८२ -मुक्त जीव किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो मनुष्य आठ कर्मों का नाशकर सिद्ध अवस्था प्राप्त कर अशरीरी हो जाते हैं उन्हें मुक्त जीव कहते हैं।
प्रश्न १८३ -आठ कर्म कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय।
प्रश्न १८४ -मनुष्य के कितनी इन्द्रियाँ होती हैं ?
उत्तर -मनुष्य के पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं।
प्रश्न १८५ -प्राण के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच इन्द्रिय, तीन बल (मन, वचन, काय) आयु और स्वासोच्छ्वास ये दस प्राण होते हैं।
प्रश्न १८६ -एक इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन इन्द्रिय १, कायबल १, स्वासोच्छ्वास १, आयु १ ये ४ प्राण सभी एकेन्द्रिय जीवों के होते हैं।
प्रश्न १८७ -दो इन्द्रिय एवं तीन इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना ये २ इन्द्रियाँ, कायबल, वचनबल, स्वासोच्छ्वास और आयु ये ६ प्राण दो इन्द्रिय जीवों के होते हैं तथा तीन इन्द्रिय जीवों के एक घ्राण इन्द्रिय बढ़ जाती है अत: उनके ७ प्राण होते हैं।
प्रश्न १८८ -चार इन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -स्पर्शन, रसना, घ्राणु, चक्षु ये ४ इन्द्रियाँ, वचन बल, कायबल, आयु और स्वासोच्छ्वास ये ८ प्राण चार इन्द्रिय जीवों के (मक्खी, मच्छर, भौंरा, ततैया आदि के) होते हैं।
प्रश्न १८९ -पंचेन्द्रिय जीवों के कितने प्राण हैं ?
उत्तर -सबसे पहले पंचेन्द्रियों के दो भेद हैं-संज्ञी और असंज्ञी। इनमें से संज्ञी (मनसहित) जीवों के तो दसों प्राण होते हैं और असंज्ञी (मन रहित) जीवों के मनबल नामक प्राण छोड़कर शेष ९ प्राण होते हैं।
==प्रश्न १९० -लोक के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -तीन भेद हैं-ऊध्र्वॅलोक, मध्यलोक और अधोलोक।
प्रश्न १९१ -मध्यलोक में कितने व्दीप-समुद्र हैं ?
उत्तर -असंख्यात व्दीप-समुद्र हैं।
प्रश्न १९२ -प्रथमद्वीप और प्रथम समुद्र का क्या नाम है ?
उत्तर -प्रथमव्दीप का नाम जम्बूव्दीप है और प्रथम समुद्र का नाम लवण-समुद्र है ।
प्रश्न १९३ -जम्बूद्वीप में कितने अकृत्रिम चैत्यालय हैं ?
उत्तर -७८ अकृत्रिम चैत्यालय जम्बूव्दीप में हैं। यथा-सुमेरु पर्वत के १६, गजदन्त पर्वतों के ४, जम्बू-शाल्मलीवृक्षों के २, वक्षार पर्वतों के १६, विजयार्ध पर्वत के ३४, कुलाचलों के ६ इस प्रकार १६ + ४ +२+१६ + ३४ +६ =·७८ चैत्यालय जम्बूद्वीप में हैं। जो हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप रचना में साक्षात् देखे जा सकते हैं।
प्रश्न १९४ -ढाईद्वीप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और आधा पुष्करद्वीप (पुष्करार्ध-द्वीप) ये ढाईद्वीप कहलाते हैं।
प्रश्न १९५ -गुणस्थान किसे कहते हैं ?</font >
उत्तर -जीवों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि के ध्वारा जो परिणाम होते हैं, उन्हें गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १९६ -गुणस्थान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -१४ भेद हैं-मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशसंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्ति-करण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली और अयोगकेवली।
प्रश्न १९७ -सम्यग्दर्शन का क्या लक्षण है ?
उत्तर -जिनेन्द्र भगवान के ध्वारा प्रतिपादित तत्त्व और पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ।
प्रश्न १९८ -सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?
उत्तर -सम्यग्दर्शन के दो भेद हैं-निसर्गज और अधिगमज।
प्रश्न १९९ -निसर्गज सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो सम्यग्दर्शन परोपदेश के बिना जातिस्मरण या जिनबिम्ब दर्शन के ध्वारा उत्पन्न होता है उसे निसर्गज कहते हैं।
==प्रश्न २०० -अधिगमज सम्यदर्शन का क्या लक्षण है ?
== उत्तर -परोपदेश के निमित्त से होने वाला सम्यग्दर्शन अधिगमज कहलाता है ।
प्रश्न 2o1-पाप कितने होते है उत्तर -हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पाँच पाप हैं।
प्रश्न २०२ -नरकगति किस कर्मों से प्राप्त होती है ?
उत्तर -बहुत आरंभ और बहुत परिग्रह करने से नरकायु का बंध होता है ।
प्रश्न २०३ -तिर्यंच योनि कैसे मिलती है ?
उत्तर -अधिक मायाचारी से तिर्यंच योनि प्राप्त होती है ।
प्रश्न २०४ -मनुष्य पर्याय किस कर्म के उदय से मिलती है ?
उत्तर -अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह से तथा पुण्यकर्म करने से मनुष्य पर्याय मिलती है ।
प्रश्न २०५ -देवयोनि की प्राप्ति किन कारणों से होती है ?
उत्तर -व्रत, नियम, संयम, दान आदि शुभ कर्मों से देवयोनि मिलती है ।
प्रश्न २०६ -जन्म के कितने भेद हैं ?
उत्तर -गर्भ, सम्मूच्र्छॅन, उपपाद ये जन्म के ३ भेद हैं।
प्रश्न २०७ -गर्भ जन्म किन जीवों का होता है ?
उत्तर -मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का गर्भ जन्म होता है ।
प्रश्न २०८ -सम्मूच्र्छॅन जन्म धारण करने वाले कौन से जीव हैं ?
उत्तर -एक इन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव सम्मूच्र्छॅन जन्म धारण करते हैं।
प्रश्न २०९ -सम्मूच्र्छॅन जन्म का क्या मतलब है ?
उत्तर -बाह्य पुद्गल स्कन्धों के एकत्रित होने पर जो शरीर रचना होती है उसे सम्मूच्र्छॅन कहते हैं। जैसे-केचुआ, बिच्छू, खटमल, चींटी सम्मूच्र्छॅन जन्म वाले होते हैं। इस जन्म में माता-पिता के रजवीर्य की तथा उपपाद जन्म की आवश्यकता नहीं होती है ।
==प्रश्न २१० -उपपाद जन्म किस गति के जीवों का होता है ?
== उत्तर -देवगति और नरकगति में देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है ।
प्रश्न २११ -जैन साधु देवताओं से आहार क्यों नहीं ले सकते हैं ?
उत्तर -क्योंकि देवगण मनुष्यों के समान संयम धारण करने में असमर्थ होते हैं इसलिए जैन साधु देवताओं द्वारा दिया गया आहार ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न २१२ -अकालमरण किन-किन जीवों का हो सकता है ?
उत्तर -कर्मभूमि के मनुष्य और तिर्यंचों का विष भक्षण आदि निमित्तों से अकालमरण संभव है ।
प्रश्न २१३ -तत्त्व कितने हैं ?
उत्तर -जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व होते हैं।
प्रश्न २१४ -द्रव्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर -६ भेद हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
प्रश्न २१५ -पाँच अस्तिकाय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -छह द्रव्यों में से काल द्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय कहे जाते हैं।
प्रश्न २१६ -सिद्धशिला कहाँ है ?
उत्तर -तीन लोक के अग्रभाग पर ४५ लाख योजन प्रमाण अघॅ चन्द्राकार सिद्धशिला है ।
प्रश्न २१७ -सुमेरुपर्वत कहाँ है ?
उत्तर -१ लाख ४० योजन (लगभग ६० करोड़ किमी.) ऊँचा सुमेरुपर्वत अकृत्रिम जम्बूद्वीप रचना के बीचों बीच बना है जो यहाँ से तीस करोड़ किमी. दूर है ।
प्रश्न २१८ -नवदेवता कहाँ-कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर -अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये नवदेवता ढाईव्दीप में ही पाये जाते हैं, उससे आगे व्दीपों में मात्र चैत्य और चैत्यालय ये दो देवता ही रहते हैं।
प्रश्न २१९ -प्रतिमा के कितने भेद हैं ?
उत्तर -प्रतिमा के ११ भेद हैं-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग प्रतिमा।
==प्रश्न २२० -इन प्रतिमाओं को कौन पालन करते हैं ?</font >
== उत्तर -श्रावक-श्राविकाएँ व्रतादि स्वीकार करके इन प्रतिमाओं का पालन करते हैं।
प्रश्न २२१ -श्रावक के कितने भेद हैं ?
उत्तर -तीन भेद हैं-पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक।
प्रश्न २२२ -पाक्षिक श्रावक किसे कहते हैं ?
उत्तर -संकल्पी हिंसा का त्यागी, धर्म का पक्ष रखने वाला, अभ्यास रूप से धर्म का पालन करने वाला श्रावक पाक्षिक कहलाता है ।
प्रश्न २२३ -नैष्ठिक श्रावक का क्या लक्षण है ?
उत्तर -पहली प्रतिमाधारी से लेकर ११वीं प्रतिमाधारी श्रावक श्राविकाओं को एवं क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं को नैष्ठिक श्रावक कहते हैं।
प्रश्न २२४ -‘‘साधक’’ संज्ञा वाले श्रावक कौन होते हैं ?
उत्तर -समाधिमरण की साधना करने वाले ११ प्रतिमाधारी क्षुल्लक-क्षुल्लिका और १ लंगोटी मात्र धारण करने वाले ऐलक जिनका देशसंयम पूर्ण हो चुका है, वे साधक कहलाते हैं।
प्रश्न २२५ -गृहस्थ श्रावक के कितने कतॅव्य हैं ?
उत्तर -छ: कतॅव्य हैं-देवपूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान।
प्रश्न २२६ -अणुव्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर -पाँच भेद हैं-अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाण अणुव्रत।
प्रश्न २२७ -शराब और मांस का त्याग तो ठीक है किन्तु मधु (शहद) में क्या दोष है ?
उत्तर -शहद मधुमक्खियों का उगाल है अत: शहद की १ बिन्दु मात्र के भक्षण से भी सात गांव जलाने का पाप लगता है ।
प्रश्न २२८ -मंदिर में दर्शन करते समय चावल के कितने पुंज चढ़ाना चाहिए ?
उत्तर -णमोकार मंत्र पढ़ते हुए बंधी मुट्ठी से चावल के पाँच पुंज भगवान के सामने वेदी पर चढ़ाना चाहिए, जिसका नमूना इस प्रकार है-
प्रश्न २२९ -जिनवाणी के सामने क्या बोलकर कितने पुंज चढ़ाए जाते हैं ?
उत्तर -‘‘प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगरूप जिनवाणी माता को नमस्कार होवे’’ अथवा ‘‘प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नम:’’ ऐसा बोलकर सीधी लाइन में चार पुंज चढ़ाना चाहिए”
==प्रश्न २३० -क्या मुनि-आर्यिका आदि गुरुओं के दर्शन में भी ऐसा कोई नियम है ?
== उत्तर -हाँ! मुनि-आर्यिका आदि रत्नत्रय के धारक महाव्रती साधु होते हैं। उनके दर्शन करते समय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र बोलकर तीन पुंज चढ़ाना चाहिए” प्रश्न २३१ -नमस्कार की क्या विधि है ?
उत्तर -देव, शास्त्र, गुरु के समक्ष घुटने टेककर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक जमीन पर लगाकर पंचांग नमस्कार करना चाहिए। < प्रश्न २३२ -दान के कितने भेद हैं ?
उत्तर -४ भेद हैं-आहारदान, औषधिदान, शास्त्रदान, अभयदान।
प्रश्न २३३ -ये दान किसे दिये जाते हैं ?
उत्तर -ये दान सत्पात्र को दिये जाते हैं।
प्रश्न २३४ -सत्पात्र किसे कहते हैं ?
उत्तर -मुनि-आर्यिका, क्षुल्लक-क्षुल्लिका एवं देशसंयमी श्रावक सत्पात्र कहलाते हैं।
प्रश्न २३५ -दीन-दुखी जीवों को दान देना किस दान में आता है ?
उत्तर -करुणादान में आता है ।
प्रश्न २३६ -मुनि-आर्यिकाओं को आहार देने में नवधाभक्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर -(१) हे स्वामी! या हे माताजी! नमोस्तु ३ ! अत्र तिष्ठ ३! आहार जल शुद्ध है बोलकर पड़गाहन करना, उनकी तीन प्रदक्षिणा करके शुद्धी बोलकर चौके में ले जाना, पड़गाहन नामक पहली भक्ति है । (२) चौके में उन्हें पाटे या चौकी पर बैठाना उच्चासन विराजिए नामक दूसरी भक्ति है । (३) उनके चरण धोना पादप्रक्षाल नामक तृतीय भक्ति है । (४) उनकी अष्टद्रव्य से पूजन करना अर्चना नामक चौथी भक्ति है । (५) घुटने टेक कर नमस्कार करना प्रणाम नामक पंचम भक्ति है । (६) मन शुद्धि (७) वचन शुद्धि (८) कायशुद्धि (९) आहारजल शुद्ध है, ये शुद्धियाँ बोलकर आहार देना नवधाभक्ति कहलाती है ।
प्रश्न २३७ -सात व्यसन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जुआ खेलना, मांस खाना, शराब पीना, वेश्यासेवन, शिकार खेलना, चोरी करना, परस्त्रीसेवन, ये सात व्यसन होते हैं। इनका प्रत्येक श्रावक को त्याग करना चाहिए।
प्रश्न २३८ -माला में १०८ दाने क्यों जपे जाते हैं ?
उत्तर -१०८ पापों के निवारण हेतु माला में १०८ दाने जपे जाते हैं।
प्रश्न २३९ -१०८ पाप कौन से हैं ?
उत्तर -क्रोध, मान, माया, लोभ इन ४ कषायों को समरंभ, समारंभ, आरंभ इन तीन से गुणा करने पर ४x३=·१२ भेद हुए। १२ को मन, वचन, काय तीन से गुणा करने पर १२x३=·३६ भेद हुए पुन: ३६ को कृत, कारित, अनुमोदना से गुणा करने पर ३६x३=·१०८ प्रकार हुए। इनसे पापों का आस्रव होता है ।
==प्रश्न २४० -पुरुषार्थ के कितने भेद हैं ?
== उत्तर -४ भेद हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। प्रश्न २४१ -हिंसा के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर -४ भेद होते हैं-संकल्पीहिंसा, आरंभी हिंसा, उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा।
प्रश्न २४२ -संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं ?
उत्तर -अभिप्रायपूर्वक दोइन्द्रिय आदि जीवों को मारना ‘‘संकल्पी हिंसा’’ कहलाती है । जैसे-चमड़े का व्यापार करना, घर में चूहामार या मच्छर नाशक दवाई डालकर उन्हें मारना आदि।
प्रश्न २४३ -इस हिंसा का त्यागी कौन होता है ?
उत्तर -सम्यग्दृष्टि अणुव्रती श्रावक संकल्पी हिंसा का त्यागी होता है ।
प्रश्न २४४ -शेष तीन हिंसा क्या श्रावक के लिए क्षम्य हैं ?
उत्तर -हाँ, क्योंकि गृहस्थ क्रियाओं में आरंभी हिंसा तो होती है, खेती- व्यापार आदि में उद्योगी हिंसा संभावित है और धर्मविरोधी कार्य करने वाले से लड़ना विरोधी हिंसा है । जैसे-राम ने रावण के साथ युद्ध किया, क्षायिक सम्यग्दृष्टि भरत ने भी युद्ध किया। ये विरोधी हिंसा के कार्य हैं जिन्हें अणुव्रती श्रावक भी करते हैं।
प्रश्न २४५ -पंचसूना किन्हें कहते हैं ?
उत्तर -कूटना, पीसना, चूल्हा जलाना, पानी भरना, झाड़ू लगाना ये पाँच क्रियाएँ पंचसूना कहलाती हैं। गृहस्थ श्रावक-श्राविकाएँ इन्हें करते हैं।
प्रश्न २४६ -भगवान की तीन प्रदक्षिणा क्यो लगाते हैं ?
उत्तर -जन्म, जरा, मरण इन तीन रोगों की समाप्ति हेतु तथा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीन रत्नों की प्राप्ति हेतु तीन प्रदक्षिणा लगाई जाती हैं।
प्रश्न २४७ -अष्ट द्रव्यों से पूजन क्यों की जाती है ?
उत्तर -अष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए अष्ट द्रव्य से पूजन की जाती है ।
प्रश्न २४८ -वे अष्ट द्रव्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर -जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल ये अष्ट द्रव्य हैं। सबको एक में मिलाकर अघ्र्य बनता है ।
प्रश्न २४९ -दो प्रतिमाधारी श्रावक को कितने व्रत पालन करने होते हैं ?
उत्तर -१२ व्रतों का पालन दो प्रतिमाधारी श्रावक करता है ।
==प्रश्न २५० -१२ व्रत कौन-कौन से हैं ? == उत्तर -५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षाव्रत ये १२ व्रत होते हैं।
प्रश्न २५१ -तीन गुणव्रतों के एवं चार शिक्षाव्रतों के नाम क्या हैं ?
उत्तर -दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डविरतिव्रत ये तीन गुणव्रत आत्मा के गुणों की अभिवृद्धि करने वाले हैं। सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना ये चार शिक्षाव्रत मुनिव्रतों को धारण करने की शिक्षा देते हैं।
प्रश्न २५२ -वीतराग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जो अठारह दोषों से रहित सर्वगुणों से सहित आप्त-भगवान होते हैं उन्हें वीतराग कहते हैं।
प्रश्न २५३ -वे अठारह दोष कौन से हैं ?
उत्तर -भूख, प्यास, बुढ़ापा, आतंक, जन्म, मरण, भय, मद, राग,देष , मोह, रोग, चिन्ता, निद्रा, आश्चर्य, अरति, पसीना और खेद ये १८ दोष होते हैं जो कि प्रत्येक संसारी जीवों में होते हैं।
प्रश्न २५४ -चरणानुयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -जिन ग्रंथों में साधु एवं गृहस्थों के चारित्र, क्रिया आदि का वर्णन होता है वे चरणानुयोग के ग्रंथ कहे जाते हैं।
प्रश्न २५५ -चारित्र के कितने भेद हैं ?
उत्तर -दो भेद हैं-सकल चारित्र और विकल चारित्र।
प्रश्न २५६ -सकलचारित्र किसे कहते हैं तथा यह किनके होता है ?
उत्तर -महाव्रतरूप पूर्ण चारित्र को सकलचारित्र कहते हैं तथा यह सकलचारित्र मुनियों के होता है ।
प्रश्न २५७ -विकलचारित्र किसे कहते हैं और यह किनके होता है ?
उत्तर -अणुव्रतरूप एकदेश संयम पालन को विकलचारित्र कहते हैं और यह चारित्र गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं को क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं एवं ऐलक को होता है ।
प्रश्न २५८ -आर्यिकाओं के कौन सा चारित्र होता है ?
उत्तर -आचारसार ग्रंथों के अनुसार आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहा गया है उन्हें पुराणों में संयतिका शब्द से भी संबोधित किया गया है अत: उपचार से तो सकलचारित्र कहा जा सकता है किन्तु पंचमगुणस्थान की अपेक्षा उनके विकलचारित्र भी मान सकते हैं।
प्रश्न २५९ -श्रावक के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर -आठ मूलगुण होते हैं-मध, मांस, मधु ये तीन मकार तथा बड़, पीपल, पाकर, कठूमर और गूलर इन पाँच उदुम्बर फलों का त्याग अष्टमूलगुण कहलाते हैं।