प्राचीनकाल में दिगम्बर जैन साध संहनन के कारण वनवासी परिव्राजक होते थे। अतएव बस्तियों से निर्जन वन अथवा पहाड़ियों पर बनी प्राकृतिक गुफाएँ उनके अस्थायी आश्रय होते थे ।
इन गुफाओं का ईसा पूर्व दूसरी तीसरी शताब्दी में एक व्यवस्थित जैन अधिष्ठान के रूप में उपयोग किया जाता था। पाँचवीं से बारहवीं शताब्दी पर्यन्त गुफा स्थापत्य का स्वर्ण युग था।
उड़ीसा में खण्डगिरि-उदयगिरि के गुफा मंदिर, बिहार में राजगृही के सप्तपर्णी गुफा, कर्नाटक में श्रवणबेलगोलस्थ चन्द्रगिरि स्थित भद्रबाहु गुफा, सौराष्ट्र में जूनागढ़ की, कर्नाटक में बदामी, महाराष्ट्र में अजन्ता, एलोरा, एहोल, पटनी, नासिक, अंकई, धाराशिव (तेरापुर), गया में स्थित पचार हिल, बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी की गुफा, मध्यप्रदेश में विदिशा के निकट उदयगिरि की गुफाएँ तथा तमिलनाडु में कुलुमूलु एवं सितनवासन की उत्खनित गुफाएँ एवं गुफा मंदिर जैन गुफा स्थापत्य के
महत्त्वपूर्ण उदाहरण है |