भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग केवलमात्र अनुच्छेद २९ व ३० में हुआ है। इस व्यवस्था के अनुसार इस देश के नागरिकों का कोई एक वर्ग यदि अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति रखना है तो उसकी अक्षुण्णता को बनाकर रखने को उसे पूर्ण अधिकार है। किसी नागरिक को किसी भी शिक्षण संस्था में प्रवेश से जिसका संचालन राज्य द्वारा किया जाता है अथवा जो राज्य की आर्थिक सहायता से संचालित होता है, जाति, धर्म, भाषा व मूलवंश के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद ३० स्पष्ट करता है कि अल्पसंख्यक चाहे उनका आधार भाषा अथवा धर्म हो वे अपने विवेक के आधार पर शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व उनका संचालन शिक्षा के मापदण्डों को मानते हुए कर सकते हैं। इसका अभिप्राय है ऐसे अल्पसंख्यक अपने समाज के शिक्र्षािथयों को अपने द्वारा स्थापित स्कूलों में अपनी भाषा में शिक्षा देने का अधिकार रखते हैं। संसद ने सन् १९९२ में एक कानून पारित कर अल्पसंख्यकों के हितो की सुरक्षा की ओर कदम उठाया, इसको नाम दिया दी नेशनल कमीशन फार माइनोरिटीज एक्ट १९९२। इस कानून में अल्पसंख्यक को परिभाषित केवल यह कहकर किया कि अल्पसंख्यक वह समुदाय है जिसे केन्द्र सरकार अपनी विज्ञप्ति जो इस हेतु प्रकाशित हो, में नाम का उल्लेख कर करें। केन्द्र सरकार ने बौद्ध, मुस्लिम, सिख, इसाई, पारसी को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया, किन्तु जैनियों को नहीं किया। जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अथवा कानून द्वारा राज्य सरकार का अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार मान लिया तो कई राज्य सरकारों ने जैनों को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। जैन हिन्दू समझे जाने के साथ धर्म आधारित एक पंथ अथवा सम्प्रदाय है। श्रमण संस्कृति का आधार है, निवृत्ति मार्ग, आहिंसा, तपस्या ध्यान/वैदिक संस्कृति प्रवृत्ति मार्ग पर बल देकर ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानकर पूजा आदि पर जोर देती है। श्रमण संस्कृति में ईश्वर को कर्ता नहीं माना है। जैन आत्मवादी है। जैन चाहे वे दिगम्बर हो अथवा श्वेताम्बर मत को मानने वाले हो इनकी अपनी—अपनी र्धािमक क्रियाएं हैं, रीति—रिवाज, अनुष्ठान, पूजा—पद्धति, साधुओं की मर्यादाएं व विशिष्ट संस्कृति है, इन कारणों से जैन धर्म हिन्दू धर्म से भिन्न है।
देश के उच्च व सर्वोच्च न्यायलयों
देश के उच्च व सर्वोच्च न्यायलयों के निर्णय इसके साक्षी हैं कि वे हिन्दू धर्म से विभक्त नहीं हुए हैं। हिन्दू धर्म का आधार है—वेद। किन्तु जैन वेदों की अलौकिकता को स्वीकार नहीं करते। वे वेदों का सम्मान करते हैं किन्तु उनमें आस्था नहीं रखते। जैन के रीति—रिवाज, परम्पराओं, चिन्तन, दर्शन, हिन्दुओं से भिन्न हैं, कुछ परम्पराओं में समानता का निष्कर्ष जैनधर्म की के रीति—रिवाज, परम्पराओं, चिन्तन, दर्शन, हिन्दुओं से भिन्न हैं, कुछ परम्पराओं में समानता का निष्कर्ष जैनधर्म की निरपेक्षता का उदाहरण है। समस्त पुराण एक मह है कि ऋषभ पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम पुण्य भूमि भारत पड़ा है। जैनों ने धर्म के आधार पर अपने संवैधानिक अधिकार की मांग की थी और संवैधानिक अल्पसंख्यक का वर्गीकरण प्राप्त किया है, भारतीय होने के नाते वे हिन्दू हैं, किन्तु धर्म जैन है इसलिये यह कहना कि जैनियों को दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा हिन्दू धर्म एक और फूट है सर्वथा दुष्प्रचार हैं अब प्रश्न पैदा होता है कि अल्पसंख्यक घोषित होने से जैनों को क्या लाभ है ? अक्टूबर २००३ के सरिता के अंक में श्री भागचन्द जैन एडवोकेट और एक अन्य लेख में एक अन्य लेखक ने जैन अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभों की ओर ध्यान आर्किषत किया है। मैं उन्हें उद्धरित कर रहा हूँ। (१) जैन समाज के अल्पसंख्यक घोषित होने से संविधान के अनुच्छेद २९ व ३० के अनुसार जैन धर्म भाषा, संस्कृति की रक्षा संविधान के उपबंधों के अन्तर्गत हो सकेगी। (२) जैन समाज द्वारा स्थापित एवं संचालित शिक्षण संस्थाओं में पढाई करने व कराने के लिये जैन धर्मावलम्बियों को स्वतंत्र अधिकार प्राप्त होगा। (३) जैन धर्मावलम्बियों के र्धािमक संस्थाओं, मंदिरों, तीर्थ स्थानों व ट्रस्टों का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नहीं किया जा सकेगा। (४) जैन धर्मावलम्बियों द्वारा संचालित ट्रस्टों की सम्पत्ति को किराया नियंत्रण अधिनियम से भी मुक्ति प्राप्त करा सकेगे, जिससे मंदिर के मकान, दुकान आदि को आसानी से खाली कराया जा सके। (५) अल्पसंख्यक वित्त आयोग से बहुत कम ब्याज दर पर ऋण व्यवसाय व उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के लिए उपलब्ध हो सकेगा। (६) यदि भविष्य में केन्द्र एवं राज्य सरकारें अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में व राजनैतिक पदों पर एवं चुनाव में उम्मीदवार पर आरक्षण की सुविधा प्रदान करती है तो यह लाभ जैन धर्मावलम्बियों को भी प्राप्त हो सकेगा। (७) जैन धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित एवं संचालित शिक्षण संस्थाओं में जैन विद्र्यािथयों के लिये ५० प्रतिशत सीटें आरक्षित की जा सकेगी। (८) जैन धर्मावलम्बी अपनी प्राचीन संस्कृति, पुरातत्व का संरक्षण कर सकेगे। (९) जैन धर्मावलम्बियों को बहुसंख्यक समुदाय के द्वारा प्रताड़ित किये जाने की स्थिति में सरकार जैनत्व की रक्षा करेगी। (१०) जैन समुदाय द्वारा संचालित जिन संस्थाओं पर कानून की आड़ में बहुसंख्यकों ने कब्जा जमा रखा है उनसे मुक्ति मिलेगी। (११) जैन धर्मावम्बियों द्वारा पुण्यार्थ, प्राणी सेवार्थ, शिक्षार्थ हेतु दान से एकत्रित किया गया धन कर से मुक्त होगा। (१२) जैन धर्मवम्बियों द्वारा स्थापित एवं नियंत्रित संस्थाओं में जैन धर्म संबंधी प्रार्थना एवं स्तुति की जा सकेगी। (१३) जैन समाज के प्रतिभावान अथ्र्यिथयों को बेरोजगारी से मुक्ति मिल सकेगी। (१४) जैन मंदिरों और शिक्षण संस्थानों के प्रबंध की जिम्मेदारी जैनियों के हाथ में हो जायेगी। (१५) शिक्षण और अन्य संस्थान स्थापित करने और उनके संचालन में सरकारी हस्तक्षेप कम हो जायेगा। (१६) विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित कोिंचग कालेजों में अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को फीस नहीं देनी पड़ेगी। (१७) जैन धर्म के छात्रों को प्रशासनिक सेवाओं और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के प्रशिक्षण के लिये ५० लाख रुपये तक का अनुदान मिल सकेगा। (१८) जैन समाज को स्कूल, कालेज, छात्रावास, शोध या प्रशिक्षण संस्थान खोलने के लिए सरकार सभी सुविधाएं उपलब्ध करायेगी और रियायती दर पर जमीन देगी। मेरी राय में उपरोक्त रूप से मिलने वाले लाभों को हमें समझना होगा क्योंकि अधिकांश लाभ परोक्ष रूप में नहीं है। इनमें से कई लाभ ऐसे हैं जो सभी र्धािमक संस्थाओं को, सभी धर्मों के मंदिरों को पुरातत्व महत्व की इमारतों को प्राप्त है जिन्हें अल्पसंख्यक जैन समाज के साथ जोड़ना उचित नहीं है। यो मैं यह मानता हूँ कि जैन समाज की जैनों को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग का मुख्य आधार संवैधानिक अधिकारों की मांग का रहा है और विज्ञप्ति में भी सभी राज्य सरकारों ने स्पष्ट रूप से अनुच्छेद २९ व ३० का ही उल्लेख किया है। अपनी बात को अधिक स्पष्ट करते हुए मैं उपरोक्त कुछ लाभों की ओर ध्यान आर्किषत करना चाहूंगा—जैसे यह लाभ बताया गया है कि जैन धर्मावलम्बियों द्वारा संचालित ट्रस्टों की सम्पत्ति को किराया नियंत्रण अधिनियम से मुक्ति मिल सकेगी और मंदिर की सम्पत्ति को खाली कराया जा सकेगा। इस बाबत वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। प्रत्येक राज्यों में किराये के भवन/दुकान को खाली कराने के अपने—अपने अधिनियम हैं, प्रत्येक में यह प्रावधान है कि राज्य सरकार किन्हीं ऐसे परिसरों को जो किसी र्धािमक, पूर्त या शैक्षणिक न्यास के या ऐसे न्यासों के वर्ग के हों, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बिनिर्दिष्ट किया जा सकेगी, जिससे किराया/बेदखली अधिनियम उन पर लागू नहीं होगा। स्पष्ट है इसका संबंध अल्पसंख्यक का वर्गीकरण प्राप्त करने से नहीं है। यह लाभ तो सभी धर्मों के परिसरों को प्राप्त हो सकता। वर्तमान में यह लाभ नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी की परिसरों को अथवा नाथद्वारा टेम्पल बोर्ड को प्राप्त है, वक्फ प्रापर्टी को प्राप्त है। मेहता गोविन्दिंसह जी ट्रस्ट उदयपुर तथा जोधपुर के श्रीकृष्ण अन्नक्षेत्र को प्राप्त है। जैनों के तीर्थक्षेत्रों अतिशय क्षेत्रों आदि के लिये किराया नियंत्रण कानून से मुक्ति की मांग उठायी जा सकती है।
यह बताया गया है कि जैन
यह बताया गया है कि जैन धर्मावलम्बियों के र्धािमक संस्थाओं मंदिर तीर्थ स्थानों व ट्रस्टों का सरकारीकरण व अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। यह बात भी परोक्ष रूप से सही नहीं है। अधिग्रहण का कानून जब लागू होता है जब जमीन का अधिग्रहण सर्वाजनिक प्रयोजननार्थ किया जाता है, इन कानून में कोई अपवाद नहीं है। प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक व पुरातत्व महत्व के स्थानों का जो राष्ट्रीय महत्व के हैं, उनके सम्बन्ध प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय तथा पुरावशेष अधिनियम १९५८ तथा स्मारक संरक्षक अधिनियम १९०४ है। इनमें यह प्रावधान है कि यदि कोई संरक्षित स्मारकों को खतरा है तो केन्द्र सरकार उसे सुरक्षा प्रदान करने हेतु उसका अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य से कर सकती है तथा यदि केन्द्र सरकार यह धारणा रहती है कि संरक्षित क्षेत्र में कोई प्राचीन स्मारक राष्ट्रीय महत्व का है तो वह राज्य सरकार को उसे अधिग्रहण करने हेतु निर्देश दे सकती हैं स्पष्ट है ऐसा अधिकग्रहण किसी भी धर्म के स्थलों के बाबत जो उक्त अधिनियम की परिधि में आते हैं हो सकता है अर्थात् अल्पसंख्यक समाज की सम्पत्ति होने व न होने से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है। राजस्थान में राजस्थान स्मारक पुरात्वीय तथा पुरावशेश अधिनियम १९६१ है इसमें संरक्षित संस्मारक के हेतु अधिग्रहण व संरक्षण की व्यवस्था है। अब यह देखने का प्रयत्न करें कि अल्पसंख्यक आयोग के क्या कर्तव्य हैं। नेशनल कमीशन आफ माईनोरिटीज १९९२ में कमीशन के कई कार्य बताये हुए हैं, उनमें मुख्य हैं अल्पसंख्यक समाज की प्रगति का मूल्यांकन करना, इस संबंध में जो कानून संरक्षण हेतु बनें हैं उका क्रियान्वयन देखना। अल्पसंख्यकों के हित हेतु राज्य सरकार को सुझाव देना। अल्पसंख्यकों के प्रति यदि कोई भेदभाव का कृत्य अथवा हित विरुद्ध कार्यवाही किसी ने कही है तो उत्पीड़न के विरुद्ध उचित कार्यवाही करना। अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनके मानवाधिकारों की रक्षा करना। केन्द्र सरकार को समय—समय पर सुझाव देना। राजस्थान राज्य कमीशन फारमाईनोरिटीज अधिनियम २००१ में राज्य कमीशन को यही अधिकार अध्याय ३ में दिये हैं। नेशनल कमीशन ने समय—समय पर वैधानिक अनुसंशाएं जारी की हैं। जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं— (१) कमीशन ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दिनांक १२.९.२००१ को सिफारिश की है कि वह राष्ट्रीयकृत बैंक को निर्देशन दें कि अल्पसंख्यकों को ऋण की सुविधा प्रदान करें। (२) कमीशन में अपने पत्र दिनांक ०६.०६.२००१ के द्वारा र्आिकयोलोडिकल सर्वे आफ इंडिया को सिफारिश की है कि धार्मिक स्थलों/मंदिरों में जहाँ प्रवेश शुल्क लिया जाता है उसे माफ किया जावे। (३) कमीशन में दिनांक २१.०६.२००१ को सभी राज्य सरकारों से सिफारिश की है कि स्टेट में अपर हाउस के हेतु अल्पसंख्यकों के हेतु सीट रिजर्व करने हेतु कानूनी प्रावधान बनाया जावे। (४) कमीशन ने अपने पत्र दिनांक ३१.११.२०११ से रेलवे बोर्ड को सिफारिश की है कि मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के छात्रों को जो रेलवे फैयर के कंसेशन की सुविधा प्राप्त है वे मदरसों को भी उपलब्ध कराई जावे। यहाँ यह लिखना समीचीन होगा कि ऐसी सिफारिशें यदि केन्द्र सरकार के लिये हैं तो केन्द्र सरकार इन सिफारिशों को र्पािलयामेट में प्रस्तुत करेगी और स्वीकार करने अथवा न करने के बाबत सरकार पर्याप्त कारण बतायेगी। यदि ये सिफारिशें राज्य सरकार के लिये हैं तो राज्य सरकार उन्हें अपनी टिप्पणी के साथ विधानसभा में रखेगी। राजस्थान राज्य कमीशन फार माइनारिटीज एक्ट २००१ में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं है किन्तु यह अपेक्षा की गई है अल्पसंख्यकों के संबंध में पालिसी मैटर्स में सरकार कमीशन से सलाह लेगी।
उपरोक्त परिस्थितियों के संदर्भ
उपरोक्त परिस्थितियों के संदर्भ में ही हमें उन लाभ की ओर आर्किषत होना होगा जो ऊपर बताये हैं। हमार कर्तव्य है कि हम भ्रम पैदा न करें, न जनता की आकांक्षाओं को उभारें। राज्य के अल्पसंख्यक आयोग को अपने विधि सम्मत अधिकारों की प्राप्ति हेतु प्रतिवेदन द्वारा सुझाव दें और उनके द्वारा जारी की गई अनुशंषाओं को कार्यान्वित कराने का प्रयत्न करें तथा उपरोक्त कानून में जो संरक्षण दिये हैं उन्हें अन्य र्धािमक संस्थाओं, ट्रस्टों द्वारा जिस प्रकार प्राप्त किये हैं, उन्हें कानूनी प्रक्रिया के द्वारा प्राप्त करें क्योंकि अल्पसंख्यक को अलग से ये अधिकार नहीं है। केन्द्र अथवा अन्रू राज्यों के अल्पसंख्यक आयोग द्वारा अल्पसंख्याकों को जो अब तक लाभ प्राप्त हुए हैं वे जैन अल्पसंख्यकों को भी प्राप्त हों इस हेतु विवेकपूर्वक अपनी मांग उठायें। जैनों को अल्पसंख्यक घोषित किये जाने से संवैधानिक अधिकार जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९ व ३० में दिये हैं, प्राप्त हुए हैं जिसके अनुसार जैन धर्म और संस्कृति की रक्षा संविधान के अन्तर्गत हो सकेगी। जैन समाज द्वारा स्थापित एवं संचालित संस्थाओं में पढ़ाई करने व कराने के लिए उन्हें स्वतंत्र अधिकार प्राप्त होंगे। सरकार इन पर कोई अंकुश नहीं लगा सकती।, इन पर नियंत्रण के अधिकार का प्रयोग नहीं लगा सकती। अर्थात् सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहेगी। जैन शिक्षण संस्थाओं में ५० प्रतिशत सीटें जैन छात्रों के लिये आरक्षित रहेंगी। जैन शिक्षण संस्थाओं में जैन धर्म की शिक्षा पाठ्यक्रमों में शामिल हो सकेगी। जैन धर्म में राष्ट्र धर्म की क्षमता प्राप्त है। जैन धर्म सम्प्रदायवादी नहीं है। जैनों के अल्पसंख्यक घोषित होने का राजनैतिक पहलू किंचित मात्र भी नहीं है। अनुसूचित जाति या जनजाति अथवा पिछड़ी जाति को आर्थिक आधार पर संरक्षण देने को जो विचार धारा चल रही है, उससे जैन समाज का कोई विरोध नहीं है। जैन समाज को अपने लिये इस प्रकार के आरक्षण की कभी कोई मांग नहीं रही है। जैन समाज संतुष्ट है कि उन्हें अन्य धर्मों के समाज संरक्षण अथवा अधिकार प्राप्त है। अल्पसंख्यक आयोग जो भी सिफारिशें समय—समय पर यदि जैन अल्पसंख्यकों के हेतु अथवा सभी अल्पसंख्यकों को लिये करता है तो वे उनकी संतुष्टि के हेतु पर्याप्त होगी। वस्तुत: लाभ र्अिजत करने हेतु केवल संवैधानिक अधिकार की मांग की है।