जैन दर्शन में पुदगल के चार लक्षण है—वर्ण रस, गंध, स्पर्श। वर्ण के पाँच प्रकार जैनाचार्यों ने कहे हैं—काला, नीला, लाल, श्वेत। आधुनिक विज्ञान रंगों के सात प्रकार बताता है। बैजानी हपीनाल अर्थात् बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। मानव जीवन का रंगों से गहरा संबंध है। रंग, शरीर और मानसिक विचारों को भी प्रभावित करते हैं। लाल रंग का तरंग दैघ्र्य सबसे अधिक तथा बैंगन रंग की तरंग दैध्र्य सबसे अधिक तथा बैंगन रंग की तरंग दैध्र्य सबसे कम होती है, इसलिए लाल रंग एंटीसेप्टिक होता है।
लाल रंग — स्नायुमण्डल को स्फूर्ति देता है, आलस्य को दूर करता है। मनुष्य में ऋजुता, विनम्रता और धर्म प्रेम उत्पन्न करता है। एंटीसेप्टिक होने से सूक्ष्म जीवों से रक्षा करता है इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र का चिन्ह लाल होता है। जिनवाणी को ढंकने वाले कवर तथा छार आदि भी अधिकांशत: लाल बनाए जाते हैं।
पीला रंग — मनुष्य शक्ति का विकास कब्जा, यकृत, प्लीहा आदि रोगों को शांत करता है। पीले रंग से ज्ञान का अद्भुत विकास होता है। पीला रंग मनुष्य में शान्ति, क्रोध, मान, माया लोभ की अल्पज्ञता तथा इंद्रिय विजय का भाव उत्पन्न करता है। इसीलिए पीत लेश्या शुभ मानी जाती है और सभी धार्मिक आयोजनों में पीले / केशरिया वस्त्रों को प्रमुखता दी जाती है।
नीला रंग — यह स्नायविक दुर्बलता, धातुक्षय, स्वप्न दोष में लाभ पहुँचाता है। हृदय तथा मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। आमाशय संबंधी रोगों को दूर करता है। यह मनुष्यों में ईष्र्या, असहिष्णुता, रस लोलुपता और आसक्ति का भाव उत्पन्न करता है। इसलिए नील लेश्या अशुभ मानी जाती है।
बैंगनी रंग — यह रंग शरीर के तापमान को संतुलित करता है।
नारंगी रंग — दमा और वात संबंधी व्याधियों को दूर करने में उपयोगी है।
सफेद रंग —रक्त विकार को दूर कर, आरोग्यता प्रदान करता है। यह मनुष्य में गहरी शांति और जीतेन्द्रियता का भाव उत्पन्न करता है। अर्थात् शुक्ल लेश्या सबसे उत्तम लेश्या मानी जाती है।
काला रंग — मनुष्य में व्रकता, कुटिलता और दृष्टिकोण का विपर्यास उत्पन्न करता है। सामान्यत: कृष्ण वर्ण दीनता का सूचक है। किन्तु ऊष्मा का शोषक होने से बाहर से आने वाली रश्मियों को अपने में केन्द्रित कर लेता है। शरीर में कार्बन अर्थात् काले रंग की कमी से प्रतिरोध शक्ति घट जाती है। कृष्ण लेश्या सबसे निकृष्ट लेश्या मानी जाताी है। इसीलिए धार्मिक आयोजनों आदि में काले वस्त्र र्विजत होते हैं। जैनागम में तीर्थंकरों के तथा जैन ध्वज के भी रंग निर्धारित किये हैं—
शेषा: षोडश जन्म मृत्यु रहिता: संतप्त हेम प्रभा— स्ते संज्ञान दिवाकरा: सुरनुता: सिद्धि प्रयच्छन्तुन:।।
पद्मप्रभ तथा वासुपूज्य तीर्थंकर लाल रंग के हैं। मुनिसुव्रत तथा नेमिनाथ श्यात वर्ण के हैं, पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ हरे रंग के हैं। चंद्रप्रभ और पुष्पदंत तीर्थंकर श्वेत वर्ण के हैं। शेष १६ तीर्थंकर तपाए हुए सोने के समान पीत वर्ण के हैं। इसी प्रकार जैन ध्वज में अघातिया कर्मों के क्षय का प्रतीक पीत वर्ण, घातिया कर्म के क्षय का प्रतीक सफेद वर्ण तथा विश्वास का प्रतीक हरा वर्ण एवं साधना में लीन होने का प्रतीक कृष्ण (काला) वर्ण है।