जैन धर्म की प्राचीनकाल से ही गौरवशाली परम्परा रही है। वैदिक समाज में व्याप्त कुरीतियों व विकृतियों को सुधारने के लिये जो संस्कृति विकसित हुई और एक धर्म के रूप में आबद्ध हुई, इसी प्राचीन निग्र्रंथ व श्रमण संस्कृति ने कालांतर में जैनधर्म के रूप में स्थापित होकर एक समृद्ध समाज की रचना की। भगवान ऋषभदेव से वद्र्धमान महावीर तक २४ तीर्थंकर हुए। २३वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ के समय तक उनके अनुयायी संगठित नहीं थे। २४वें तीर्थंकर महावीर ने जैन धर्म को एक सूत्र में आबद्ध किया। भगवान महावीर के समय से जैन धर्म का प्रचार प्रसार हुआ। वर्तमान मध्यप्रदेश के मालवा में भी बड़े पैमाने पर सिद्धक्षेत्र / अतिशय क्षेत्र स्थापित हुए। गुप्तकाल के बाद प्रतिहार, परमार, कच्छपाल व यज्जपाल शासकों के संरक्षण में बड़े पैमाने पर मंदिरों का निर्माण हुआ, जिसके अवशेष यत्र तत्र बिखरे हुए थे। जैन धर्म की विरासत की सुरक्षा के लिए दिगम्बर जैन मालवा प्रांतिक सभा बड़नगर द्वारा १९४४ ई. में जयिंसहपुरा उज्जैन के दिगम्बर जैन मंदिर परिसर में पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संग्रहालय के एक हॉल में प्रदर्शन किया गया और संग्रह निरंतर बढ़ता गया। इस प्रकार मंदिर की कला कृतियों सहित ५६० कलाकृतियों का संग्रह हो गया। पुराना संग्रहालय भवन जर्जर स्थिति में था। जहाँ कलाकृतियों का न तो व्यवस्थित प्रदर्शन संभव था और ना ही उनकी सुरक्षा। संग्रहालय के उन्नयन की योजना तैयार की गई जिसमें भारत सरकार के संस्कृति विभाग से प्राप्त अनुदान एवं मालवा प्रांतिक सभा के निजी स्रोतों से भव्य संग्रहालय का निर्माण व प्रदर्शन किया गया। संग्रहालय की प्रदर्शन योजना तैयार करने एवं प्रदर्शन कार्य में डॉ. अरविन्द कुमार जैन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। श्री जैन ने पुरातत्व विभाग के डॉ. रमेशचन्द्र यादव के मार्गदर्शन व परामर्श से संग्रहालय के समस्त कार्य निष्पादित किये। संग्रहालय के विकास कार्य के क्रियान्वयन में श्री अनिल गंगवाल का विशेष योगदान रहा। संग्रहालय में संग्रहीत कलाकृतियाँ मौसमी प्रभाव से क्षरित हो रही थीं। कई प्रतिमाएँ खण्डित अवस्था में थीं, और उनके अलग-अलग खण्डों का अभिज्ञान नहीं था। इन कलाकृतियों के संरक्षण और परिरक्षण का कार्य किया गया। भविष्य में र्मूितयों में किसी प्रकार का क्षरण या नुकसान न हो, उस दृष्टि से रासायनिक लेप भी लगवाया गया। इसी समय अलग-अलग खण्डों में विद्यमान प्रतिमाओं को जुड़वाया भी गया।
प्रदीपकुमार सिंह कासलीवाल सन्मतिवाणी २५ नवम्बर २०१४