अर्थात् हे वनमाले मुझे जाने दो, अभीष्ट कार्य के हो जाने पर मैं तुम्हें लेने के लिए अवश्य आऊँगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अगर मैं अपने वचनों को पूरा न करूँ तो जो दोषहिंसादि के करने से लगता है उसी दोष का मैं भागी होऊँ। सुनकर वनमाला लक्ष्मण जी से बोली—मुझे आपके आने में फिर भी संदेह है इसलिए आप यह प्रतिज्ञा करें कि—‘‘यदि मैं न आऊँ तो रात्रि भोजन के पाप का भोगने वाला होऊँ।’’ इस तरह पुराण ग्रंथों में भी रात्रि भोजन त्याग की महत्ता बताई गई है। हमें भी अपने स्वास्थ्य, धर्म और कुलरीति की रक्षा के लिए रात्रि भोजन त्याग अवश्य करना चाहिए।