जैन साधू एवं साध्वियाँ –
भारत की धरती पर सदा- सदा से साधू- साध्वियों का जन्म होता रहा है
उनकी त्याग- तपस्या से देश का मस्तक सदैव गौरव से ऊँचा रहा है ।
जैन रामायण पद्मपुराण में आचार्य श्री रविषेण स्वामी ने कहा है –
यस्य देशं समाश्रित्य, साधवः कुर्वते तपः
। षष्ठमंशं नृपस्तस्य,लभते परिपालनात् ।।१ ।।
अर्थात् जिस देश का आश्रय लेकर साधुजन तपस्या करते हैं , उस देश के राजा को उनकी तपस्या का छठा भाग पुण्य स्वयमेव प्राप्त हो जाता है ।
, साधु- सन्तों की श्रंखला में अनगिनत साधुओं ने विभिन्न माध्यमों से समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाया है ।
उनमेंं से ही कतिपय प्राचीन एवं अर्वाचीन साधु- साध्वियों के परिचय यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।