-जीवन प्रकाश जैन, प्रबंध सम्पादक
महाराष्ट्र प्रान्त में नये रूप में उभरे ज्ञानतीर्थ-शिर्डी का नाम इतनी शीघ्रता से लोगों के मुँह पर आ जाएगा, इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। मैंने इस तीर्थ के उद्भव के विषय में जब ज्ञान किया तो पता चला कि इसके पीछे किनका समर्पित योगदान है।महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत एक कोपरगांव की संस्था है-अरिहंत महिला प्रतिष्ठान! शुरुआत में सु.श्री. विशल्याताई गंगवाल इस संस्था का तन्मयता के साथ देखभाल करती थी। प्रतिष्ठान की महिलाओं ने प्रकर्षता से अनुभव किया कि कोपरगांव-शिर्डी रोड पर हर धर्म का मंदिर बना हुआ है किन्तु से अंतर्राष्ट्रीय स्थान पर केवल जैनधर्म का मंदिर नहीं था। अपना जैनधर्म का झण्डा भी यहाँ लहराए, कुछ न कुछ यहाँ बने, इन भावनाओं से चिंता में थे।
एक दिन सु. श्री विशल्याताई गंगवाल, श्रीमती प्रेमाबाई जी बज और कुछ महिलाएँ नासिक के श्री राजेन्द्र कृमार पाटणी (राजाभाऊ जी पाटणी) के पास इस प्रोजेक्ट को लेकर आये और उनसे कहा कि आप केवल अपनी ओर से इंजीनियरिंग और आर्किटेक्ट्स की सर्विस दें। उन्होंने यह मंजूर कर लिया। यह बात सन् २००१ की है। इसके बाद सभी सदस्य ५-६ बार राजाभाऊ जी के पास आए और ‘आप ही प्रोजेक्ट आगे बढ़ावें’ ऐसा कहा। राजाभाऊ जी का हस्तिनापुर से विशेष संबंध सन् १९९४-१९९५ था। परमपूज्य ज्ञानमती माताजी को राजाभाऊ जी ने अपना मूल गुरु माना है। गणिनी ज्ञानमती भक्तमण्डल महाराष्ट्र के वे सक्रिय सदस्य हैं। उन्होंने अरिहंत महिला प्रतिष्ठान के श्रीमती विशल्याताई गंगवाल और प्रेमाबाई जी बज की इस बात को दिशा देने का मन बना लिया। उनके सामने सर्वप्रथम माताजी का चेहरा सामने आया। मन में यह विश्वास हो रहा था कि माताजी जरूर इस बात को योग्य महत्व देंगी। योगायोग से सन् २००२ में ज्ञानमती भक्तमण्डल की ओर से माताजी के उपदेश एवं प्रेरणा बने हुए प्रयाग तीर्थक्षेत्र पर राजाभाऊ पाटणी परिवार द्वारा पर्यूषण पर्व में ‘‘इन्द्रध्वज विधान’’ करने का निश्चित हुआ। तभी पाटणी जी ने मन में यह निश्चय कर लिया कि माताजी के सामने शिर्डी प्रोजेक्ट रखा जाये। उन्होंने अरिहंत महिला प्रतिष्ठान के प्रेमाबाई जी बज से संपर्क करके योजना बताई। उन्होंने भी पुत्र श्री ओमप्रकाश जी बज के साथ चर्चा करके उनको राजाभाऊ जी के साथ प्रयाग भेज दिया। माताजी के साथ प्रयाग में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी और क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी भी थे। उनके सामने ही पूज्य माताजी से चर्चा हुई। चंदनामती माताजी ने कहा, ‘‘बनाओ, बनाओ, पूरा हस्तिनापुर आपके साथ है।’’
भारतवर्ष में तीर्थों के विकास की शृँखला पूज्य माताजी के निर्देशन में अविरल चल रही है। एक पूरा होते-होते ही दूसरे की नींव पड़ जाती है किन्तु माताजी के नाम का कोई तीर्थ नहीं बना। स्वयं माताजी भी इस पक्ष में नहीं है, लेकिन भक्तों के स्नेह-भक्ति की जीत हुई और ‘‘ज्ञानतीर्थ’’ यह सार्थ नाम से यह तीर्थ बन रहा है। ‘‘पूरा हस्तिनापुर आपके साथ है’’। ये मार्मिक शब्द बेहद सही साबित हुए। यह छत्रछाया हमेशा ही प्रेरणा व बल प्रदान करती रही। पहले तो माताजी के आशीर्वाद से सावली विहीर नासिक रास्ते के कॉर्नर पर जगह का चयन हुआ। जमीन मालिक के साथ चर्चा करके एग्रीमेंट करना निश्चित हुआ, लेकिन उसे उस समय तीन लाख रुपये उसी दिन देना था। फिर परीक्षा की घड़ी आई। फिर माताजी का स्मरण और आशीर्वाद काम आये। उनके प्रभाव से श्री फूलचंद जी पाण्डे-कोपरगांव सामने आ गये। उन्होंने तुरंत ही तीन लाख रुपये दे दिये और एग्रीमेंट हो गया।
धीरे-धीरे ट्रस्टी बनाने का काम राजाभाऊ जी ने शुरू किया। हर ट्रस्टी से एक लाख रुपये लेना तय हुआ। इस काम में अभयकुमार जी कासलीवाल और विशेषत: जम्मनलाल जी कासलीवाल इन्होंने तन-मन-धन से यह प्रोजेक्ट खड़ा करने की ठान ली। इस प्रकार प्रोजेक्ट आगे बढ़ता गया। सन् २००४ में एक एकड़ जमीन खरीद ली गई। कुछ दिन बाद थोड़ी जमीन उससे ही और ली गई।सन् २००५ में माताजी के परमभक्त संघपति लाला श्री महावीर प्रसाद जैन-दिल्ली की ओर से भगवान पार्श्वनाथ की १५ फुट पद्मासन प्रतिमा शिर्डी पहुँच गई।समय बीतता गया। पूज्य माताजी से इस प्रोजेक्ट को हाथ में लेने की विनती बार-बार की जा रही थी किन्तु उन्होंने कहा हमें प्रथम मांगीतुंगी जी का प्रोजेक्ट पूरा करना है। फिर भी हम प्रयास करते रहेंगे। दोनों साथ-साथ चलेंगे।
सन् २०११ का पर्यूषण पर्व आ गया। राजाभाऊ जी परिवार के साथ हस्तिनापुर गये थे। वहाँ औरंगाबाद के श्री राजमल जी कासलीवाल के माध्यम से श्री सुभाषचंद जी केशरचंद जी साहू जी-जालना वालों से भेंट हुई। उनसे अतिथी भवन का शिलान्यास करने को कहा, उन्होंने मंजूर किया। माताजी की आज्ञा से कमल मंदिर की जिम्मेदारी भाई जी कर्मयोगी श्री रविन्द्र कुमार जी ने राजाभाऊ जी-पाटणी परिवार को दे दी। पाटणी परिवार ने भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।
उनके सुपुत्र इंजी. श्री महावीर कुमार पाटणी एवं आर्किटेक्ट, श्री संजय जी के निर्देशन में एक सुंदर कमल मंदिर आकार लेने जा रहा है। एक ऐसा तीर्थ जो कि न केवल जैनीभाई किन्तु हर भारतीय के लिए प्रेरणादायी होगा। शिर्डी में आने वाले जैन-अजैन हर यात्री इस तीर्थ के दर्शन करके जैनधर्म की महिमा जान सकेंगे।ज्ञानतीर्थ प्रोजेक्ट की नये उमंग से तैयारी शुरू हुई। सन् २०११ में ४ दिसम्बर को शिलान्यास का मुहूर्त निश्चित हुआ। जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के नये पीठाधीश स्वस्तिश्री रविन्द्रकीर्ति जी स्वामी जी के निर्देशन में ज्ञानतीर्थ स्थल पर बहुत ही भव्यता से ‘शिलान्यास समारोह’’ सम्पन्न हुआ। पारस चैनल के माध्यम से सीधा प्रसारण किया गया। सम्पूर्ण भारतवर्ष में ज्ञानतीर्थ परिचय को प्राप्त हुआ। आसपास के साधर्मी बंधुओं को ज्ञानतीर्थ साकार होता हुआ नजर आने लगा। भावनाएँ जुड़ती गईं। कारवां बढ़ता गया। माताजी एवं संघ की प्रेरणा और निर्देशन में दि. १५ मई २०१३ से २० मई २०१३ के शुभमुहूर्त पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं महामस्तकाभिषेक सम्पन्न होने जा रहा है।भविष्य में यह तीर्थ आकाश की ऊँचाइयों को छुए और इस तीर्थ के दर्शन करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करें, यही भगवान पार्श्वनाथ से मंगल प्रार्थना है।