पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी , चन्दनामती माताजी एवं सम्पूर्ण आर्यिका संघ का मंगल विहार अयोध्या शाश्वत तीर्थ की ओर चल रहा है । आज १४ नवम्बर २०२२ को संघ बरेली ( उ०प्र०) पहुँच रहा है , कल १५ नवंबर को जैनधर्मशाला-बरेली में प्रवास रहेगा । दि० जैनसमाज के अध्यक्ष-महामंत्री आदि सभी भक्तगण निरंतर संघ की भक्ति में अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं ।महामंत्री श्री सतेन्द्र जैन एडवोकेट ने पत्रकारों का एक सम्मेलन भी आहूत किया , जिसमें लगभग ९० वर्षीय पूज्य ज्ञानमती माताजी के अयोध्या विहार को लेकर विशेष बातें बताई गईं कि जैनशासन के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने आज से करोड़ों साल पहले इस नगरी में जन्म लेकर इक्ष्वाकु वंश का नाम किया , पुन: उनके प्रथम पुत्र चक्रवर्ती भरत इस देश के प्रथम चक्रवर्ती कहलाए और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का “भारत” नाम पड़ा । आगे चलकर सूर्यवंश के चमकते सितारे के रूप में मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र के नाम से तो अयोध्या की आज वैदिकधर्मानुसार पहचान बन गई है ।
अयोध्या दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के यशस्वी पीठाधीश एवं अध्यक्ष स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी सहित पूरी तीर्थक्षेत्रकमेटी तन्मयता के साथ क्षेत्र विकास के कार्यों में जुटी हुई है । अयोध्या में सन् १९९३ से लगातार भगवन्तों की जन्मभूमि स्थल के टोंकों पर विशाल-विशाल मंदिरों का निर्माण तो पूर्ण हो ही चुका है , अब वहाँ भगवान भरत की ३१ फुट खड्गासन प्रतिमा विराजमान करने हेतु सुन्दर मंदिर-भगवान ऋषभदेव के १०१ मोक्षप्राप्त भगवान पुत्रों की प्रतिमाओं से समन्वित विशाल विश्वशान्ति जिनालय-तीस चौबीसी तीर्थंकर भगवन्तों की ७२० रत्नप्रतिमाओं का रत्नमंदिर -७२ फुट ऊँची तीनलोक रचना एवं भगवान के जन्म से पावन विशाल सर्वतोभद्र महल आदि खूब आकर्षक रचनाएँ अयोध्या की चतुर्थकालीन छवि को प्रदर्शित करने वाली निर्मित हो रही हैं ।