तर्ज-छोटे-छोटे भाईयों के बड़े भैय्या……….
ज्ञानमती माताजी की ये शिष्या। चन्दनामति जी की रजत दीक्षा।।
आओ मनाएँ सब भाई-बहनों। दीक्षा जयंती का यह उत्सव।।
माँ मोहिनी की कन्या ये, जब से बनी आर्यिका है।
माधुरी से बनी चन्दनामति, चन्दन सी शीतलता है।।
कहते हैं, सब इनको कवियत्री,लेखनी है, इनकी सदा चलती।
गुरु मुख से जो ये सुनतीं।उनके पथ पर है चलतीं।
ज्ञानमती माताजी………… ज्ञानमती जी से ज्ञान लिया,
आत्मा का उद्धार किया। वर्णन हम नहीं कर सकते, जग को नहीं बता सकते।
आई है मात दीक्षा जयंती मिलकर खुशी मनाएंगे।
ढोल बजे बाजे शहनाईयां, झूम के आई मंगल घड़ियाँ।। ज्ञानमती माताजी………..
गणिनी ज्ञानमती जी से आर्यिका दीक्षा ली तुमने।
श्रावण शुक्ला ग्यारस में, गजपुर पावन तीरथ में।।
जोड़ी है इनकी देखो वैसी देखती ब्राह्मी व सुन्दरी मात जैसी।
‘दीपा’ तेरे पद में माता। सदा नवाती है माथा।।
ज्ञानमती माताजी की ये शिष्या। चन्दनामती जी की रजत दीक्षा।।