सा ब्रह्मार्चित शंकर प्रभृतिभिर्दैवे, सदा वंदिता ।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा ।।
ज्ञान की देवी वीणा वादिनी, माँ शारदे, वाग्देवी आदि नामों से स्तुल्य सरस्वती माँ ज्ञान की मूर्ति हैं, जिनकी मुख मुद्रा, उनके वस्त्राभूषण, उनके अंग—प्रत्यंग तथा उनकी गरिमा का वर्णन सारांशत: उपरोक्त श्लोक में मिल जाता है। इस लेख के माध्यम से हम सरस्वती माता की इन्हीं विशेषताओं का प्रतीकात्मक अर्थ संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं—
१. शुभ्र हार—सरस्वती के गले में शुभ्र (श्वेत) हार है, जिसे अक्षमाला भी कहा जाता है। यह माला, माला के १०८ दानों का सूचक है जिसका जाप करने से पापों का प्रायश्चित होकर जन्म मरण के दु:खों से मुक्ति मिलती है।
२. शुभ्र मुख— सरस्वती का सुन्दर शुभ्र मुख ज्ञान के प्रकाशमान स्वरूप का प्रतीक है जो जन्म-जन्मांतर के अज्ञान अंधकार को दूर करता है।
३. शुभ्र वस्त्र— सरस्वती के श्वेत वस्त्र ज्ञान की उज्ज्वलता और निर्मलता के प्रतीक हैं।
४. वीणा—वीणा दिव्यध्वनि का प्रतीक है।
५. कमण्डलु— सरस्वती के हाथ में जो कमण्डलु है वह अपरिग्रह का प्रतीक है।
६. दण्ड (अंकुश)— सरस्वती के हाथ में शोभित दण्ड (अंकुश) आत्मानुशासन की शिक्षा देता है।
७. मस्तक पर अर्द्ध चंद्र— संसार ताप से बचाने के लिये ज्ञानरूपी चंद्रिका है।
८. चार हाथ— चार अनुयोगों के प्रतीक है।
९. पुस्तक— ‘कलुष भेद तम हर प्रकाश भर’ को सार्थक करने वाली पुस्तक जो सरस्वती के हाथों में शोभयमान है ज्ञान का प्रतीक है।
१०. हंस वाहन— हंस के समान जिनवाणी माता भी नीर—क्षीर विवेक स्वरूपी भेद विज्ञान करके सन्मार्ग पर ले जाती है।
११. मयूर वाहन— सरस्वती का वाहन मयूर भी माना जाता है जो कि दुष्ट कर्म रूपी शत्रुओं का नाश करने में समर्थ है।
१२. मुद्रिका— सरस्वती की मुद्रिका (अंगूठी) योग दिलाती है कि हमें ज्ञान से सदैव प्रेम करना चाहिए।
१३. मणिकुण्डल— मणिकुण्डल श्रुत—श्रवण के महत्व को प्रतिपादित करते हैं।
१४. काले घुंघराले बाल—सरस्वती के लहराते काले घुंघराले केश संसार से भय पैदा करते हैं अर्थात् संवेग भाव उत्पन्न करने के प्रतीक हैं।
१६. कंकण और किंकणिया – जिस प्रकार कंकण और किंकणियां की मधुर आवाज सभी को लुभाती है उसी प्रकार जिसके मुख में सरस्वती विराजित होती है उसकी आवाज कोयल सी मधुर होती है।
१७. केयूर— केयूर के हाथ की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार शास्त्र दान से हाथ की शोभा बढ़ती है।
१८. कमलासन— सरस्वती का साधन कमल के समान कीचड़ में रहकर भी निर्लिप्त रहता है वह संसार पंक में नहीं पड़ता।
१९. गजगामिनी— सरस्वती को गजगामिनी भी कहा जाता है, माना जाता है कि जिस प्रकार हाथी मदमस्त चाल से चलता है, उसी प्रकार ज्ञान के पथ पर चलने वाला निर्भीक होकर आनंद के साथ आगे बढ़ता जाता है।
२०. कांची—यह मध्यस्थ भाव के प्रतीक हैं जिसे धारण करने वाला निर्विकल्प दशा में पहुँच जाता है। इस तरह हमने संक्षेप में सरस्वती के अंग और आभूषणों के प्रतीकात्मक अर्थ को जाना। सरस्वती माँ की स्तुति करते हुए पंडित प्रवर बनारसीदासजी ने लिखा है—