ज्योतिष्क देवों के ५ भेद हैं—१. सूर्य, २. चन्द्रमा, ३. ग्रह, ४. नक्षत्र, ५. तारा।
इनके विमान चमकीले होने से इन्हें ज्योतिष्क देव कहते हैं। ये सभी विमान अर्धगोलक के सदृश हैं तथा मणिमय तोरणों से अलंकृत होते हुये निरन्तर देव-देवियों से एवं जिनमंदिरों से सुशोभित रहते हैं। अपने को जो सूर्य, चन्द्र, तारे आदि दिखाई देते हैं यह उनके विमानों का नीचे वाला गोलाकार भाग है।
ये सभी ज्योतिर्वासी देव मेरू पर्वत को ११२१ योजन अर्थात् ४४,८४,००० मील छोड़कर नित्य ही प्रदक्षिणा के क्रम से भ्रमण करते हैं। इनमें चन्द्रमा एवं सूर्य ग्रह ५१० योजन प्रमाण गमन क्षेत्र में स्थित परिधियों के क्रम से पृथक्-पृथक् गमन करते हैं। परन्तु नक्षत्र और तारे अपनी-अपनी एक परिधिरूप मार्ग में ही गमन करते हैं।