कहा जाता है……हमारे कर्मों का फल हमें ही भुगतना होता है। हर व्यक्ति के जीवन में पुण्य एवं पाप कर्मों का उदय आता है या यूं कहें……अच्छे और बुरे कर्म हर व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालते हैं। यही ज्योतिष शास्त्री भी कहता है।
‘कर्म निर्णायक हैं सुख और दुख का पाप कर्म से दुख,
शुभ कर्म से सुख प्राप्त होता है और न किया हुआ कर्म कोई फल नहीं देता’
वेदव्यास ज्योतिषाचार्य सुदीप जी सोनी (अजमेर) से चर्चा के दौरान जानकारी मिली कि किस तरह ज्योतिष के माध्यम से हम अपने कर्मों को सुधार सकते हैं। अर्थात् र्धािमक क्रियाओं द्वारा पुण्य कर्मों का बंध कर, उदय में आने वाले पाप कर्मों से कुछ हद तक निजात पा सकते हैं। अधिकतर देखा जाता है यदि व्यक्ति पर कोई विपत्ति आती है तो वो नाना प्रकार के देवी देवताओं की शरण जाते हैं। हर कार्य जो कोई धर्म गुरु बता दे वो करते हैं, धन देकर करवाते हैं। पर क्या सही मायने में यह ही अशुभ कर्मों का काटने का माध्यम है ? कहा गया है
‘कर्मयोगी भाग्य का निर्माण स्वयं करते हैं।
कर्महीन ही भाग्य को कोसते हैं।’
सत्य ही है हम अपने बुरे कर्मों का ठेका किसी और को कैसे दे सकते हैं। आपका मानना है कि ज्योतिष विद्या कर्म सिद्धांत पर फलीभूत होती है। अर्थात् गर आपके जीवन में अशुभ कर्मों के उदय के कारण कुछ अमंगल होने की आशा है तो उसके लिये आपको ज्योतिष आगाह करता है। साथ ही विभिन्न ग्रह नक्षत्रों के अनुसार जैन धर्म में व्याप्त पूजा पाठ, अनुष्ठान एवं मंत्रों के जप का उल्लेख है जो कि हर मनुष्य को उचित समय में स्वयं निर्मल भाव से कार्य रूप में परिणत करना चाहिए। हमारे मंत्र राज्य ‘णमोकार मंत्र’ में ८४ लाख मंत्रों का समावेश है। और आधि व्याधि, बीमारी के उपचार के लिए मंत्रों का उल्लेख है। अगर आगम अनुसार विधि विधान पूर्वक इन मंत्रों का जप किया जाएं तो हम अपने जीवन में आमूलचूल परिवर्तन देख सकते हैं। यही नहीं भक्तामर जी का हर काव्य अपने आप में सिद्ध है। और चमत्कारिक है। उचित समय में सही मार्गदर्शन से आप अपना ज्योतिष स्वयं प्रभावकारी कर सकते हैं एवं जीवन में सुख शांति पा सकते हैं।