ज्वलंत प्रश्न गिरती जनसंख्या बढ़ते मंदिर— औचित्य क्या ?
करूणेन्द्र कुमार जैन
पार्श्वनाथ व महावीर स्वामी के समय में भारतवर्ष की आबादी का दो तिहाई हिस्सा जैनधर्म का पालन करता था, ऐसा उल्लेख मिलता है। सम्राट अकबर के समय में हमारी आबादी पाँच करोड़ के आसपास थी। २०११ की जनगणना के आधार पर हम सिर्फ पचास लाख के आसपास ही रह गये हैं। हम कम हो रहे हैं, जिनालय व प्रतिमाओं की संख्या बाढ़ की तरह बढ़ रही है। हमारी गिरती आबादी का लाभ देशी व विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया। तिरूपति, बद्रीनाथ, तक्षशिला, गान्धार, गिरनार आदि सबकुछ हमसे छिन गया। इसी तरह से आबादी गिरेगी तो प्रतिमाओं और जिनालयों का क्या होगा ? शास्त्रोक्त बात है कि प्रत्येक दिन प्रत्येक प्रमिमा का अभिषेक व प्रक्षाल होना चाहिए। यह नियम भी बुरी तरह टूट रहा है । टी.वी. व इन्टरनेट के कारण देर रात्रि तक सोना फिर देर सुबह उठना। दुकानदार भागा दुकान कर तरफ , कर्मचारी भागा आफिस की तरफ। मंदिरों में सन्नाटा। महिलाओं की संख्या मिल जाती है। महाराष्ट्र व कर्नाटक में मंदिरों में मैने महिलाओं को भी अभिषेक करते हुए देखा है। क्यों न इसे पूरे देश में लागू किया जाए। इस नियम से प्रत्येक प्रतिमा का प्रतिदिन अभिषेक संभव हो जायेगा। श्री सम्मेद शिखरजी की तलहटी में २० साल के अंदर अनगिनत मंदिरों का निर्माण हुआ। आज पोजीशन यह है कि ऊपर की वंदना में जितना समय नहीं लगता, उससे अधिक समय तलहटी के मंदिरों के दर्शन में लग जाता है। क्या हम धर्म की परिभाषा मंदिर निर्माण व प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करवाना ही समझ बैठे हैं ? सामग्री चढ़ाने हेतु हमें इस तरह की मेजें व चौकी का निर्माण करवाना चाहिए कि सामग्री जमीन पर न गिरे। आज मंदिरों में सामग्री जमीन पर बिखरी पड़ी रहती है। जिस पर हमारे पैर पड़ते हैं, जिस देश में लोग भूखे मरते हों, एक समय का खाना भी नसीब न हो, वहीं हमारे जिनायतनों में सामग्री जमीन पर हो और हमारे पैरों से कुचल रही हो, चिन्तन कीजिए। सामग्री का एक दाना भी जमीन पर न गिरे ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। कुछ हिन्दू मित्र मेरी मर्जी के खिलाफ मुझे अमरकंटक ले गये। १८ अप्रैल २०१४ को मैं अमरकंटक में था। मृत्युंजय आश्रम में रुका । हमारे रूम में एक ऑटो वाला आया और बोला अमरकंटक के सभी प्वाइन्ट चार सौ रूपये में घुमा दूँगा। मैने उससे जानकारी ली कि क्या क्या प्वाइन्ट हैं अमरकंटक में ? सबसे पहले बोला कि यहाँ पर विश्व के सबसे बड़े जैन मंदिर का निर्माण हो रहा है जो चौदह साल से बन रहा है। ४१ हजार किलो की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित हो चुकी है। मैं बहुत प्रसन्न हुआ। ऑटो वाले से मैंने जानकारी ली कि यहाँ पर जैन लोगों की क्या आबादी है । तो बोला यहाँ जैन लोग नहीं रहते व आस पास के गाँवों में भी जैन लोग नहीं है। मैं मंदिर गया। निर्माण कार्य चल रहा था। सामने धर्मशाला व चैत्यालय था। सुबह के नौ बजे थे। चैत्यालय में गंधोदक नहीं था। ऐसा प्रतीत हुआ कि अभिषेक हुआ ही नहीं है। धर्मशाला में कुछ व्यक्ति दिखाई दिये लेकिन वे जैन नहीं थे। टैम्परेरी दुकान लगाने वाले थे। मन बहुत भारी हो गया। करोड़ों का खर्च उस जगह पर हो रहा है जहाँ दूर दूर तक कोई जैन समाज नहीं है। अज्ञानता के समुद्र में डूबे हुए लोगों के इस कार्य को देखकर मैं हैरान व चकित हो गया। लेशमात्र भी ज्ञान होता तो इस मंदिर का निर्माण मिथिलापुरी में हो रहा होता या भोंदल (भद्रिकापुरी) में। जहाँ आठ कल्याणक व दो कल्याणक हुए और आज तक मंदिर व धर्मशाला का निर्माण नहीं हुआ है। ज्ञान का अभाव नहीं है तो क्या है ? निर्वाण कल्याणक एवं सिद्धभूमियों की सुध होना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। श्वेताम्बरों ने भोंदल मे मंदिर व धर्मशाला का निर्माण करवा दिया। सीतामढ़ी (मिथिलापुरी) में कार्य प्रगति पर है । विमलशाह ने दिलवाड़ा में जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन तब जब माउण्ट आबू में जैन लोगों की अच्छी खासी आबादी थी। अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग समाप्त करके हमें मानवोचित कार्यों पर ध्यान देना चाहिए।