जिस बात या जिस चीज को जैसा देखा या सुना हो, वैसा ना कहना झूठ है तथा जिन वचनों से धर्म धर्मात्मा या किसी भी प्राणी का घात हो जावे, ऐसे सत्य वचन भी झूठ कहलाते हैं। इस पाप से लोग झूठ दगाबाज कहलाते हैं। पर्वत, नारद और वसु तीनों एक ही गुरु के पास पढ़े हुए थे। किसी समय पर्वत ने सभा में ‘अजैर्यष्टव्यं’ सूत्र का अर्थ बकरों से होम करना चाहिए, ऐसे कर दिया। उस समय नारद पंडित ने कहा कि गुरु जी ने बताया था कि अज-अर्थात् पुराने धान से होम करना चाहिए। पर्वत नहीं माना। तब वह न्याय के लिए राजा वसु की सभा में गया। राजा ने पर्वत की माता के कहने से पर्वत की बात का समर्थन कर दिया। सबके मना करने पर भी राजा नहीं माना, झूठ ही बोलता गया। बस! इस पाप से राजा का सिंहासन पृथ्वी में धंस गया और राजा मरकर नरक में चला गया इसलिए झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए।