मक्के की खेती संपूर्ण भारत में की जाती है । मक्के के दानों से पकौड़े और अन्य कई पकवान बनाए जाते हैं। मक्के के नर्म हरे भुट्टे सेंककर खाने से उसके दाने बड़े स्वादिष्ट लगते हैं और पौष्टिक भी होते हैं। मक्के का वानस्पतिक नाम …….. है। आदिवासी मक्के को एक पूर्ण आहार के तौर पर देखते हैं। कोई बीमार हो या कमजोरी से जूझ रहा हो या किसी को खून से जुड़ी समस्या हो आदिवासी मक्के का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। चलिए आज जानते हैं मक्के से जुड़े आदिवासियों के कुछ अनसुने हर्बल नुस्खों के बारे में।
१. टीबी के रोगियों के लिए आदिवासियों के अनुसार टीबी के रोग से पीड़ित व्यक्ति को मक्का की रोटी खिलाने से लाभ होता है। वैसे आदिवासी जानकर बुखार से निपटने के बाद व्यक्ति को मक्का जरूर खिलाते हैं। माना जाता है कि मक्का स्वयं एक पूर्ण आहार की तरह कार्य करता है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
२. खून बढ़ता है मक्के के दाने उबाल कर खाने से आमाशय मजबूत होता है। यह खून को बढ़ाने वाला (रक्त—वद्र्धक) भी होता है। कहा जाता है कि जिन्हें रक्त अल्पता (एनिमिया) की शिकायत हो एक महिने तक लगातार एक मक्का उबालकर खाएं तो समस्या का सम्पूर्ण निदान हो जाता है।
३. किडनी को बेहतर करता है।
४. बच्चे बिस्तर पर पेशाब नहीं करते हैं।
५. कफ में आराम
६. काली खांसी दूर होती है।
७. गुर्दे के रोग ठीक होते हैं।
८. गुर्दों की कमजोरी दूर होती हैं। ३. किडनी को बेहतर करता है। मक्कों की सफाई करके पीनें के पानी में उबाला जाए। मक्के के उबल जाने के बाद इस पानी की एक गिलास मात्रा में एक चम्मच चाशनी मिलाकर रखा जाए। पहले मक्के के उबले दानों को चबाया जाए और अंत में इस पानी को पिया जाए , तो यह किडनी और मूत्र तंत्र को बेहतर बनाता है। किडनी की सफाई के लिए यह उत्तम फार्मूला है। आदिवासियों के अनुसार ऐसा करने से पथरी होने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। ४. बच्चे बिस्तर में पेशाब नहीं करते पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार करीब २० ग्राम मक्के के दानों को कुचलकर एक गिलास पानी में खौलाया जाए और जब यह आधा शेष बचे तो इसमें एक चम्मच चीनी की चाशनी भी डाल दी जाए। इस मिश्रण को बच्चों को दिन में ३ बार देने से वे बिस्तर में पेशाब नहीं करते हैं। ५. कफ में आराम मक्का के भुट्टे को जलाकर उसकी राख तैयार कर ली जाए और इसे पीस लिया जाए। फिर इसमें अपने स्वाद के अनुसार सेंधा नमक डालकर दिन में ४ बार एक चम्मच फांकी लेने से कुकर खांसी, कफ और सर्दी में आराम मिलता है। ६. काली खांसी दूर होती है। डांग— गुजरात के आदिवासियों के अनुसार मक्का के दाने निकालने के बाद बचे मक्के को जलाकर राख कर ले और चुटकी भर राख को मिस्री के साथ मिलाकर दिन में २-३ बार लेने से काली खांसी दूर हो जाती है। हालांकि कुछ आदिवासी इस फॉर्मूले को दिल की कमजोरी दूर करने के लिए उपयोग में भी लाते हैं, लेकिन यहां मक्खन का प्रयोग किया जाता है। ७. गुर्दे के रोग ठीक होते हैं पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मक्के के भुट्टे बालियों (४० ग्राम) को आधा लीटर पानी में डालकर उबालें और जब यह आधा बचे, तो इसे छानकर पीने से गुर्दे के रोग ठीक हो जाते हैं। ८. गुर्दो की कमजोरी दूर होती है। ताजा मक्का के भुट्टे को पानी में उबाल लिया जाए और छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन और गुर्दों की कमजोरी भी दूर होती है।