टीनएजर श्रेया वैसे तो बचपन से ही गोलू मोलू थी लेकिन इधर दो तीन बरस में तो वो इतनी मोटी हो गई है कि मां को यह चिंता सताने लगी है कि इसका ब्याह वैâसे होगा। मोटे होने का कारण स्पष्ट है उसका अपने कम्प्यूटर और प्लेस्टेशन के साथ व्यस्त रहना। इस उम्र में जबकि उसे आउटडोर गेम्स खेलने चाहिए, वो घर की चारदीवारी में कैद कंप्यूटर क्लिक कर रही होती है। बैठे—बैठे बीच—बीच में कुछ स्नैक्स वगैरह भी खाती रहती है।कैलोरीज आखिर बर्न हों तो कैसे। चर्बी जमा होती रहती है और नतीजा है मोटापा। आज घर—घर में यही हाल है । बच्चे बड़े बूढ़े सब के हाथ में रिमोट कंट्रोल होता है जिससे बगैर किसी मेहनत के वे चैनल सर्पिंग करते रहते हैं। घंटों एक ही पोज में बैठे रहते हैं। वेक्यूम क्लीनर, वॉशिंग मशीन की बदौलत सफाई का काम आसान तो हो गया है लेकिन शारीरिक श्रम खत्म हो जाने से बीमारियां भी बढ़ी हैं। इसी को मद्देनजर रख जिम का क्ल्चर बहुत पापुलर हो गया है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला होता है। कुछ ही दिनों का शौक बन कर रह जाता है जिम जाना और जिम जाते भी हैं मगर न खाने में परहेज होगा, न कोई शारीरिक श्रम तो फायदा कुछ नहीं होगा। बच्चों में कार, मोटर साइकल, स्कूटर चलाने का शौक इतना बढ़ गया है कि अब वे पैदल चलने को बिल्कुल तैयार नहीं। जरा सी दूर भी जाना हो तो झट से कार या स्कूटर या मोटर बाइक निकाल लेंगे। साधारण साइकल चलाना तो उन्हें अपनी प्रेस्टिज के खिलाफ लगता है। एस्केलेटर, लिफ्ट आदि जहां बुजुर्गों के लिए वरदान हैं, जवान और बच्चों को जरूरी व्यायाम में महरूम कर देते हैं जबकि सभी जानते हैं कि सीढ़ियां चढ़ना उतरना एक बहुत अच्छा व्यायाम है। डाइटीशियन सारा मेहरा जो दिल्ली में अपनी क्लासेज चलाती हैं, कहती हैं कि यह तो अब सभी मानते हैं कि मोटापा आधुनिक जीवन शैली की देन है। फास्ट फूड आज बच्चों की पहली पसंद हैं। कोल्ड ड्रिंक्स इस कदर फैशन में हैं कि दुकानों पर इनसे भरे व्रेट इस बात के गवाह हैं कि उनकी कितनी बिक्री हो रही है । हाई केलोरी फूड माइनस फिजिकल वर्क से मोटापा तो बढ़ेगा ही। यह भी नहीं कि लोग भूख लगने पर ही खाते हों । रेस्त्रां में दोस्तों को कंपनी देने या आदतवश भी खाते हैं। परिणाम है ओवरवेट होना। इक्कीस वर्षीय मैनेजमेंट ग्रैजुएट राघव रामस्वामी ने हाल ही कुछ समय में १५ किलो वजन बढ़ा लिया है जबकि वे पहले ही अच्छे खासे तंदुरूस्त दिखते थे। कुछ भारी वजन होने के कारण वे वजन घटाना चाह रहे थे मगर हुआ उल्टा। कारण था आठ दस घंटे कंप्यूटर को देखते रहना और बीच—बीच में बोरियत दूर करने को कुछ चटपटा, कुछ मीठा खाते रहना । सन् २००६ में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि बैंगलोर में जहां साफ्टवेयर कंपनियों की भरमार है, वहां की टैक्नॉलोजी इंडस्ट्री के भीतर कार्यरत लोगों में ३२ प्रतिशत लोग ओवरवेट व मोटापे के मारे हैं । वेट मैनेजमेंट सलाहाकार डा. आलोक मेहरोत्रा के अनुसार स्वास्थ्यवद्र्धक खानपान और स्वस्थ जीवनशैली पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। देखा गया है टैक्नॉलोजी इन्डस्ट्री में काम करने वालों का कुछ समय के बाद ही वजन बढ़ना शुरू हो जाता है। यह एक चेतावनी समझी जानी चाहिए। आगे चलकर इससे दुनिया भर के रोग हो सकते हैं और ऐसा केवल विकसित देशों में ही नहीं बल्कि एशिया और भारत में भी हो रहा है। चेन्नई के एक सरकारी हॉस्पिटल में कार्यरत मनाली राघवन इसी संदर्भ में कहती हैं कि मोटापे की शुरूआत बचपन से ही हो रही है, कारण है वीडियो गैम्स। आज की शहरी सभ्यता और सीमेंट के वंâक्रीट जंगलों में बच्चों के खेलने के लिए जगह ही कहां होती है। नवें दसवें माले तक जाते फ्लैट्स जिनमें सोफा, पलंग, मेज कुर्सी टी.वी. कंप्यूटर, वॉशिंग मशीन और तमाम जरूरत की चीजों के बाद में बच्चों के पास टीवी सेट और कंप्यूटर से मनोरंजन करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह जाता। आई टी वंâपनी और कॉरपोरेट जगत में कार्यरत बड़े भी गेजेट्स और गिजमोज में तल्लीन तेजी से वजन बढ़ा रहे हैं।