मानुषोत्तर पर्वत के बाहर जो असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं उनमें न तो मनुष्य उत्पन्न ही होते हैं और न वहाँ जा ही सकते हैं।
मानुषोत्तर पर्वत से परे (बाहर) आधा पुष्करद्वीप ८ लाख योजन का है। इस पुष्करार्ध में १२६४ सूर्य एवं इतने ही (१२६४) चन्द्रमा हैं। अर्थात्—मानुषोत्तर पर्वत से आगे ५०००० योजन की दूरी पर प्रथम वलय है। इस प्रथम वलय की सूची१ का विस्तार ४६००००० योजन है। उसकी परिधि १,४५,४६,४७७ योजन प्रमाण है।
इस प्रथम वलय में (अभ्यन्तर पुष्करार्ध से ७२ से दुगुने) १४४ सूर्य एवं १४४ चन्द्रमा हैं। इस प्रथम वलय की परिधि में १४४ का भाग देने से सूर्य से सूर्य का अन्तर प्राप्त होता है। यथा—१४५४६४७७ ´ १४४ · १०१०१७ योजन है। इसमें से सूर्य बिम्ब और चन्द्र बिम्ब के प्रमाण को कम कर देने पर उनका बिम्ब रहित अन्तर इस प्रकार प्राप्त होता है— ² १४४ · , १०१०१७ — · १०१०१६ योजन एक सूर्य बिम्ब से दूसरे सूर्य बिम्ब का अन्तर है।
इस प्रकार पुष्करार्ध में ८ वलय हैं। प्रथम वलय से १ लाख योजन जाकर दूसरा वलय है। इस दूसरे वलय में प्रथम वलय के १४४ से ४ सूर्य अधिक हैं। इसी प्रकार आगे के ६ वलयों में ४-४ सूर्य एवं ४-४ चन्द्र अधिक-अधिक होते गये हैं। जिस प्रकार प्रथम वलय से १ लाख योजन दूरी पर द्वितीय वलय है। उसी प्रकार १-१ लाख योजन दूरी पर आगे-आगे के वलय हैं। इस प्रकार क्रम से सूर्य, चन्द्रों की संख्या भी बढ़ती गई है। जिस प्रकार प्रथम वलय मानुषोत्तर पर्वत से ५० हजार योजन पर है उसी प्रकार अंतिम वलय से पुष्करार्ध की अंतिम वेदी ५० हजार योजन पर है बाकी मध्य के सभी वलय १-१ लाख योजन के अन्तर से हैं।
प्रथम वलय में १४४, दूसरे में १४८, तीसरे में १५२ इस प्रकार ४-४ बढ़ते हुये अंतिम वलय में १७२ सूर्य एवं १७२ चन्द्रमा हैं। इस प्रकार पुष्करार्ध के आठों वलयों के कुल मिलाकर १२६४ सूर्य एवं १२६४ चन्द्रमा हैं। ये गमन नहीं करते हैं, अपनी-अपनी जगह पर ही स्थित हैं। इसलिये वहाँ दिन-रात का भेद नहीं दिखाई देता है।
१. पुष्करार्ध के प्रथम वलय के इस ओर से बीच में जम्बूद्वीप आदि को करके उस ओर तक के पूरे माप को सूची व्यास कहते हैं। यथा—मानुषोत्तर पर्वत के इस ओर से उस ओर तक ४५ लाख एवं ५० हजार इधर व ५० हजार उधर का मिलाकर ४६ लाख होता है।