पश्यतु भव्य! संसारेऽस्मिन्, णमोकार मंत्र महिमा।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।।टेक.।।
एका सत्या कथा प्रसिद्धा, जिनशास्त्रेषु अद्यापि। जिनशास्त्रेषु अद्यापि…
सर्वे भव्या: तां शृण्वन्तु, मन: स्थिरीकृत्वा चापि। मन:स्थिरीकृत्वा चापि……
अयं अनादिनिधन: मंत्र:, णमोकार महामंत्र:।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।१।।
एकस्मिन् समये एकं, श्वानं कश्चित् तु हन्ति स्म। श्वानं कश्चित् तु…..
अर्धमृतो भूत्वा स: श्वान:, ग्रामस्य मार्गे न्यपतत्।। ग्रामस्य..
तस्मिन् समये कोऽपि न तस्य, मंत्रेण विना मित्र:।।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भवतु!।।२।।
कोऽपि नर: पादेन कोऽपि, पाषाणेन हत्वा गतवान्। पाषाणेन….
न हि दयां कुर्वन्तिस्म च, कोऽपि नर: दृष्ट्वा गतवान्।। कोऽपि नर:…
किंतु तस्य पुण्यस्य बलेन, महामंत्र: तं प्राप्नोत्।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।३।।
तस्मिन् दिवसे एव तत्र, राज्ञ: पुत्र: अपि आगच्छत। राज्ञ:……
स: जीवन्धर राजकुमार:, करुणाभावेन भरित:।। करुणाभावेन…..
तत्रैवातिष्ठत् सुकुमार:, पशुमपि मंत्रं अददत्।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।४।।
मंत्रं श्रुत्वा स: तिर्यञ्च:, महत् शान्तभावेन मृत:। महत् शांतभावेन….
च्युत्वा ततश्च पामरप्राणी, देवो भूत्वा स्मृतिं कृत:।। देवो भूत्वा…
पुनरागमत् स देव: अत्र, मंत्रं संंस्मरणार्थम्।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।५।।
राजकुमार: श्वानं नीत्वा, तत्रैवातिष्ठत् तावत्। तत्रैवातिष्ठत् ……..
नाम सुदर्शनयक्षेन्द्र: स:, देव: तं सविनयमनमत्।। देव: तं….
आनन्दाश्रुभि: सह अवदत्, हे राजन्! उपकारी।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।६।।
भवत: उपकारं भो देव! कदापि विस्मरिष्यामि न। कदापि…..
यदा मां स्मरिष्यसि त्वं, तदा आगमिष्यामि अहं।। तदा…..
बारंबारं प्रणम्य शिरसा, स: गतवान् स्वस्थाने।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।७।।
इदं अत्र तात्पर्यं यत्, मंत्रस्य महत्त्वमचिन्त्यं स्यात्। मंत्रस्य….
सर्वपापनाशक: अयं, सर्वस्वपुण्यदायक: स्वयं।। सर्वस्वपुण्यदायक:……
सर्वमंगलेषु च प्रथम:, अयमेव मंत्रराज:।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।८।।
सर्वे भव्या: अमुम् पठन्तु, जपन्तु त्रैकाल्येऽपि च। जपन्तु……
कथयति इदं ज्ञानमतिमाता, कुर्वन्तु जिनवरभक्तिं।। कुर्वन्तु….
शिष्येयं चन्दनामति: अपि, मंत्रोऽयं जपति।
न हि कर्तव्यं अविनयं अस्य, मंत्रस्य कदापि केनापि।। पश्यतु भव्य!।।९।।
अरे देखो रे! महिमा मंत्र की,
णमोकार की महिमा निराली है।।अरे….।।टेक.।।
एक कहानी सुन लो भाई, जैन रामायण में है आई।
अरे पशु भी बन गया देव रे, णमोकार की महिमा निराली है।।१।।
नगर महापुर में इक श्रेष्ठी, धर्म में उनकी बहुत रुची थी।
वे पद्मरुची चले घूमने, णमोकार की महिमा निराली है।।२।।
बूढ़ा बैल दिखा इक उनको, मरणासन्न देखकर उसको।
अरे मंत्र सुनाया कान में, णमोकार की महिमा निराली है।।३।।
बैल ने मंत्र सुना शान्ती से, निकले प्राण तभी उस तन से।
उसी नगरी में बना युवराज वह, णमोकार की महिमा निराली है।।४।।
राजा छत्रच्छाय की रानी, उनके पुत्र की सुनो कहानी।
हुए वृषभध्वज युवराज वे, णमोकार की महिमा निराली है।।५।।
एक बार युवराज नगर में, घूम रहे थे उसी जगह पे।
हुआ पूर्वजनम का ज्ञान रे, णमोकार की महिमा निराली है।।६।।
जान लिया मैं बैल था पहले, वहाँ बहुत दु:ख पाये मैंने।
महामंत्र सुना था अंत में, णमोकार की महिमा निराली है।।७।।
सोचा उसने वैâसे खोजूँ, बदला उपकारी का चुका दूँ।
मिला जिससे नरभव आज रे, णमोकार की महिमा निराली है।।८।।
उसने वहीं मंदिर बनवाया, सोच के उसमें चित्र बनाया।
उस चित्र में बैल व सेठ थे, णमोकार की महिमा निराली है।।९।।
कोतवाल इक वहाँ बिठाया, उसको चित्र का सार बताया।
कोई ध्यान से देखे तो बुलवाना, णमोकार की महिमा निराली है।।१०।।
इक दिन पद्मरुची वहाँ आये, चित्र देख मन में हरषाये।
इसे किसने बनाया बोल पड़े, णमोकार की महिमा निराली है।।११।।
बैल को मंत्र सुनाया था मैंने, किन्तु हमें देखा न किसी ने।
फिर वैâसे बना यह चित्र है, णमोकार की महिमा निराली है।।१२।।
कोतवाल सब देख रहा है, सेठ के भाव को समझ रहा है।
गया बतलाने फिर महल में, णमोकार की महिमा निराली है।।१३।।
राजकुमार तुरत ही आये, उपकारी से मिल हरषाये।
उनके पद किया प्रणाम रे, णमोकार की महिमा निराली है।।१४।।
बैल का जीव ही मैं हूँ भाई, आपने ही नरगति दिलवाई।
उपकार करूँ क्या आपका, णमोकार की महिमा निराली है।।१५।।
दोनों मित्र बने आपस में, श्रावक व्रत धारण किया मन में।
तब बैल बना सुग्रीव रे, णमोकार की महिमा निराली है।।१६।।
पद्मरुची फिर राम बन गये, मित्र से उनके नाम बन गये।
फिर मुक्त हुए संसार से, णमोकार की महिमा निराली है।।१७।।
कहे ‘चन्दनामति’ तुम सबसे, कथा पढ़ो यह रामायण से।
भव दुख से हो उद्धार रे, णमोकार की महिमा निराली है।।१८।।
Music-Kabhi Ram Banke…….
When open the eyes, Om Mantra recite,
Supreme Mantra is for all of us.
The power of Panch Parmeshthis,
is observed in Om Mantra.
Say nine times or hundred times,
Supreme Mantra is for all of us. (1)
This is short form of Namokar Mantra,
This is meditated by great persons.
We will also meditate, then will get supreme gate*,
Supreme Mantra is for all of us. (2)
This Mantra gives us happiness,
and gives enjoyment of Soul.
Says “Chandnamati”, wants Siddhagati,
Supreme Mantra is for all of us. (3)