तर्ज-मेरा नम्र प्रणाम है………..
कोटीकोटि प्रणाम है,
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।
जिसका सार ग्रहण कर मानव, पाता आगमज्ञान है।।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को,कोटी कोटि प्रणाम है।।टेक।।
दश अध्यायों में जीवादिक, सात तत्त्व बतलाये हैं।
श्री आचार्य उमास्वामी ने, सूत्र सरल समझाये हैं।।
मोक्ष आज नहिं किंतु मोक्ष-मारग का मिलता ज्ञान है।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।।१।।
प्रथम चार अध्यायों में ही, जीवतत्त्व का वर्णन है।
रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग का, करवाता दिग्दर्शन है।।
तीनलोक में चतुर्गती के, भ्रमण का करे बखान है।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।।२।।
तत्त्व अजीव का वर्णन है, पंचम अध्याय में सारभरा।
छठी और सप्तम में आश्रव, के द्वारा संसार कहा।।
बंध तत्व अष्टम अध्याय में, वर्णित जो दुखखान है।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।।३।।
संवर और निर्जरा का, वर्णन नवमीं अध्याय में।
तप संयम से कर्म निर्जरा, करो यही बस न्याय है।।
मोक्षतत्त्व के वर्णन में, दशवीं अध्याय प्रमाण है।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।।४।।
इसीलिए इसके पढ़ने से, इक उपवास का फल मिलता।
अर्थ ‘‘चंदनामती’’ अगर, समझें तो आत्मकमल खिलता।।
ग्रंथों का संक्षिप्त सार, इस ग्रंथ में ही विद्यमान है।
मोक्षशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र को, कोटी कोटि प्रणाम है।।५।।