१. गजकुमार मुनि के सिर पर जलती हुई सिगड़ी रखी गई थी।
२. पाँचों पांडव मुनियों को लोहे के गर्म आभूषण पहनाये गये थे।
३. विष्णु कुमार मुनि ने सात सौ मुनियों का उपसर्ग दूर किया था।
४. समन्तभद्र आचार्य को भस्मक व्याधि का रोग हुआ था।
५. सुकुमाल मुनि को तीन दिन तक लोमड़ी खाती रही, महान उपसर्ग सहते रहे तथा आत्मध्यान पूर्वक देह त्याग कर सर्वार्थसिद्धि में देव हुए।
६. यशोधर मुनिराज के गले में राजा श्रेणिक ने मरा हुआ सर्प डाला था।
७. चन्द्रगुप्त मुनिराज को देवताओं ने मनुष्य का रूप बदलकर वन में आहार दिया था।
८. बाहुबलि स्वामी एक वर्ष तक कायोत्सर्ग खड्गासन में खड़े रहे, अन्त में केवलज्ञान को प्राप्त किया।
९. तीर्थंकर आदिनाथ मुनि अवस्था में छह मास पश्चात् आहार के लिए उठे और फिर छह मास तक उन्हें आहार विधि नहीं मिली।
१०. सुकौशल मुनिराज को व्याध्री ने भक्षण किया, जो पूर्व जन्म में उनकी माता थी।
११. भरत चक्रवर्ती ने भावों की विशुद्धि से एक मुहुर्त में केवल ज्ञान को प्राप्त किया।
१२. अनन्तवीर्य और बाहुबलि दोनों तीर्थंकर आदिनाथ से पहले मोक्ष गये।
१३. अकलंक स्वामी ने बौद्धों को धर्म विवाद में पराजित किया था।
१४. कुलभूषण देशभूषण का उपसर्ग राम-लक्ष्मण ने दूर किया था।
१५. जम्बूस्वामी विवाह की रात्रि में जम्बूस्वामी और उनकी चार नवविवाहिता स्त्रियों की चर्चा को सुनकर वहाँ चोरी करने आये विद्युतप्रभ चोर ने अपने पाँच-सौ चोरों के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली थी। साथ ही जम्बूस्वामी के माता-पिता और चारों कन्याओं ने भी दीक्षा ले ली थी।
१७. बाली मुनिराज ने बल ऋद्धि से कैलाश पर्वत को दबाया था।
१८. नेमिनाथ को बारात के समय पशुओं को बाड़े में बँधा हुआ देखकर वैरागय उत्पन्न हो गया था।
१९. नाग-नागिन को जलते देखकर पाश्र्वनाथ ने णमोकार मंत्र सुनाकर सम्बोधा था।
२०. बाल हनुमान के विमान से गिरने पर पत्थरशिला चूर-चूर हो गयी थी।
२१. कुलभूषण, देशभूषण को अनजाने में अपनी ही बहिन को विवाह की इच्छा से देखने से, गलती का पता चलने पर संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया था और दोनों तभी मुनि दीक्षा धारण करके जंगल में चले गये थे।
२२. राजा मधु को युद्ध में हाथी पर बैठे-बैठे वैराग्य उत्पन्न हो गया था, उन्होंने वहीं केशलोंच किया और मुनि दीक्षा धारण की।
२३.हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने इस युग के आदि में मुनि ऋषभनाथ को अक्षयतीज के दिन इक्षुरस का आहारदान दिया था।
२४. शील के प्रभाव से सेठ सुदर्शन की शूली सिंहासन में बदल गयी।
२५. धर्म के प्रभाव से श्री पाल ने समुद्र तैरकर पार किया था।
२६. दीवान अमर चन्द ने माँसाहारी सिंह को मिष्ठान खिलाये थे।
२७. निकलंक ने जिन धर्म के लिए अपने भाई अकलंक की जान बचाकर, अपने प्राण दिये और अकलंक देव ने चारों ओर जिन धर्म का डंका बजा दिया था।
२८. सर्वप्रथम मुनि पुष्पदंत और भूतबलि ने ग्रन्थों को लिपिबद्ध किया। उनके द्वारा सबसे पहले षट्खंडागम शास्त्र की रचना हुई।
२९. वङ्काजंघ राजा ने देव, शास्त्र और गुरु के अतिरिक्त अन्य किसी को नमस्कार नहीं किया।
३०. विजय सेठ ने शुक्ल पक्ष और उनकी सेठानी विजया ने कृष्ण पक्ष के ब्रह्मचर्य व्रतों का पालन किया और बाद में सेठ ने महाव्रत और सेठानी ने अणव्रत धारण किये।
३१. अन्जना को २२ वर्ष का पति वियोग रहा, वन में हनुमान ने जन्म लिया।
३२. णमोकार मंत्र पर अटूट श्रद्धा ने अंजन चोर को निरंजन बनने का अवसर प्रदान किया।
३३. अग्नि परीक्षा के बाद सीता जी के जीव ने पृथ्वीमति माताजी से आर्यिका के व्रत ग्रहण किये तथा ६६ वर्ष तक तप किया। अन्त समय में तैंतीस दिन तक चारों प्रकार के आहार त्याग कर मनुष्य गति से चयकर सोलहवें स्वर्ग में प्रतिन्द्र हुआ। भविष्यकाल में मोक्ष जायेगा।
३४. जीवंधर कुमार ने कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया, जिसके सुनने से कुत्ता मरकर देव हुआ।
३५. पद्मदन्त सेठ ने मरणासन्न बैल को णमोकार मंत्र सुनाया, जिससे वह राजकुमार हुआ। कुछ भव पश्चात् वे दोनों राम, सुग्रीव बनकर मोक्ष को चले गये।
३६. णमोकार मंत्र की अविनय से सुभौम चक्रवर्ती सातवें नरक गये।
३७. सेठ धनंजय की जिनभक्ति की लीनता से पुत्र का जहर उतर गया था।
३८. राजा वसु के हिंसात्मक वचन बोलने से सिंहासन धरती में धँस गया, वह मरकर नरक गया। उसका मित्र गुरुपुत्र पर्वत भी नरक गया।
३९. सती मैनासुन्दरी ने सिद्धचक्र का पाठ किया। पुण्योदय से उसके पति तथा सात सौ अन्य साथी कुष्ठियों का कुष्ठ रोग दूर हुआ।
४०. सोमासती के धर्म प्रभाव से सर्प श्री मणि का हार बन गया था।
४१. पूजन के भाव से मेढक मरकर देवगति में उत्पन्न हुआ तथा महावीर भगवान के समवशरण में गया।
४२. विदेह क्षेत्र में तीर्थंकर के २, ३ या ५ कल्याणक होते हैं।
४३. भरत, ऐरावत क्षेत्र में तीर्थंकरों के पाँचो कल्याणक होते हैं।