केवल सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं होता, ओम् का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुश—चीवर धारण करने से कोई तपस्वी नहीं होता। समतया श्रमणो भवति, ब्रह्मचर्येण ब्राह्मण:। ज्ञानेन च मुनिर्भवति, तपसा भवति तापस:।।
(प्रत्युत) वह समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है।