उग्रतप, दीप्ततप, तप्ततप, महातप, घोरतप, घोरपराक्रम, अघोरब्रह्मचारित्व ये तप ऋद्धि के सात भेद हैं।
१. उग्रतप ऋद्धि के दो भेद हैं-उग्रोग्रतप, अवस्थित उग्रतप। दीक्षोपवास को आदि करके आमरणांत एक-एक अधिक उपवास को बढ़ाकर निर्वाह करना उग्रोग्रतप है। दीक्षार्थ एक उपवास करके पारणा करे और पुन: एक-एक दिन का अन्तर देकर उपवास करता जाये पुन: कुछ निमित्त पाकर वेला, तेला आदि के क्रम से नीचे न गिरकर उत्तरोत्तर आमरणांत उपवासों को बढ़ाते जाना अवस्थित उग्रतप ऋद्धि है।
२. दीप्त तप-जिसके प्रभाव से मन, वचन, काय से बलिष्ठ ऋषि की बहुत उपवासों द्वारा शरीर कान्ति सूर्यवत् दैदीप्यमान होती जाये।
३. तप्त तप-तप्त कड़ाही में गिरे हुए जलकणवत् खाया हुआ अन्न धातुओं सहित क्षीण हो जाये, मलमूत्र आदि न बने।
४. महातप-जिसके बल से मुनि चार प्रकार के सम्यग्ज्ञानों के बल से मंदरपंक्ति प्रमुख सब ही महान् उपवासों को कर लेवें।
५. घोरतप-जिसके बल से ज्वर, शूलादि रोगों से शरीर के अत्यन्त पीड़ित होने पर भी दुद्र्धर तपश्चरण हो जाये।
६. घोरपराक्रम-जिसके प्रभाव से तीनों लोकों के संहार करने की शक्ति से युक्त अनेकों अद्भुत कार्यों को करने की शक्ति से सहित हो जाते हैं।
७. अघोरब्रह्मचारित्व-जिसके प्रभाव से मुनि के क्षेत्र में चौरादि की बाधाएँ, कालमहामारी, महायुद्धादि नहीं होते हैं।