-आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-तन डोले………(नागिन धुन)
जय तीन लोक के जिनबिम्बों की मंगल दीपप्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।
जिनबिम्बों के दर्शन से, सम्यग्दर्शन मिलता है।
घृतदीपक से आरति करके, मोहतिमिर भगता है।।प्रभू जी मोह……
जिनमंदिर की, जिनप्रतिमा की, शुभ मंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।१।।
वसु कोटि सुछप्पन लाख सतानवे, सहस चार सात इक्यासी।
तीन लोक के ये जिन मंदिर, शाश्वत हैं अविनाशी।।प्रभू जी शाश्वत……
उन जिनमंदिर जिनप्रतिमा की, शुभ मंंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।२।।
गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा प्यारी।
हस्तिनापुर में तीन लोक की, रचना बनी है न्यारी।।प्रभू जी रचना……
उसमें राजे सब जिनबिम्बों की, शुभ मंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।३।।
अधोलोक से सिद्धशिला तक, जितने भी मंदिर हैं।
उन सबकी ‘‘चंदनामती’’, स्वर्णिम छवि सुन्दर है।।प्रभू जी स्वर्णिम……
उन जिनमंदिर जिनप्रतिमा की, शुभ मंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।४।।