-गणिनी ज्ञानमती माता जी
ध्यानमेकाग्र्यचित्तं स्याद्, ध्याता प्रसन्नचित्तभाक्।
तीर्थकृद्भगवान् ध्येय:, फलं सौख्यमतीन्द्रियम्।।१।।
ध्यान का लक्षण है चित्त का एकाग्र होना, प्रसन्नमना भव्यात्मा ध्याता-ध्यान करने वाला है। तीर्थंकर भगवान ध्येय-ध्यान करने योग्य-ध्यान के विषय हैं और अतीन्द्रिय सुख-मोक्षसुख प्राप्त होना यह ध्यान का फल है। इस प्रकार ध्यान, ध्याता, ध्येय और ध्यान का फल इन चारों विषय को समझना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ ध्येय में तीर्थंकर भगवान को लिया है। इसमें उनसे संबंधित उनकी प्रतिमाएं, जिनमंदिर, पंचपरमेष्ठी आदि तथा ॐ, ह्रीं, अर्हं आदि बीजाक्षर सभी आ जाते हैं। यहाँ तीनलोक का ध्यान विवक्षित है उसमें सभी पूज्य-तीनलोक के नवदेवता आदि आ जायेंगे। तीनलोक का आकार बनाकर अर्थात् खड़े होकर दोनों पैर फैलाकर कमर पर हाथ रखकर खड़े आकार में तीनलोक का आकार बना लेवें। पुन: चिंतन करना प्रारंभ करें- == (१)
रज्जुश्चतुर्दशोत्तुंग:, पुरुषाकृतिवानयम्।
अस्मिन् लोके बिना ज्ञानात्, जीवा भ्राम्यन्त्यनादित:।।१।।
दोहा-
चौदह राजु उत्तुंग नभ, लोक पुरुष संठान।
तामें जीव अनादि तें, भरमत है बिन ज्ञान।।