सुमेरु पर्वत विदेह के मध्य में है। छह कुलाचल-सात क्षेत्रों की सीमा करते हैं। चार गजदंत मेरु की विदिशा में हैं। सोलह वक्षार विदेह क्षेत्र में हैं। बत्तीस विजयार्ध बत्तीस विदेह देश में हैं और दो विजयार्ध, भरत और ऐरावत में एक-एक हैं अत: चौंतीस वजयार्ध हैं। बत्तीस विदेह के ३२, भरत-ऐरावत के दो ऐसे चौंतीस वृषभाचल हैं। हैमवत, हरि तथा रम्यक और हैरण्यवत में एक-एक नाभिगिरि ऐसे चार नाभिगिरि हैं।सीता नदी के पूर्व-पश्चिम तट पर एक-एक ऐसे चार यमकगिरि हैं। देवकुरु-उत्तरकुरु में दो-दो तथा पूर्व-पश्चिम भद्रसाल में दो-दो ऐसे आठ दिग्गज पर्वत हैं। सीता-सीतोदा के बीच बीस सरोवरों में प्रत्येक सरोवर के दोनों तटों पर पाँच-पाँच होने से दो सौ कांचनगिरि हैं। विशेष—इनमें से सुमेरु के १६, कुलाचल के ६, गजदंत के ४, वक्षार के १६, विजयार्थ के ३४ ऐसे १६ + ६ + ४ + १६ + ३४ = ७६ ऐसे ७६ जिनमंदिरों में जंबू-शाल्मलि वृक्ष के २ मंदिर लेने से जंबूद्वीप के अकृत्रिम ७८ जिनमंदिर होते हैं। शेष पर्वतों के ऊपर देवभवनों में भी जिनमंदिर हैं, वे व्यंतर देवों के जिनमंदिर कहलाते हैं।