तीरथ करने चले सभी श्रीक्षेत्र हस्तिनापुरिवर को।
प्रभु के जन्म न्हवन से पावन श्रीसुमेरुगिरि वन्दन को।। टेक.।।
जम्बूद्वीप मध्य इक स्वर्णाचल मेरू कहलाता है।
सूर्यचन्द्र की प्रदक्षिणा रात्री-दिन भेद कराता है।।
जिन बालक के जन्म न्हवन से पावन उस गिरि अनुपम को।
प्रभु के जन्म न्हवन से पावन श्रीसुमेरुगिरि वन्दन को।।१।।
इस गिरि की चारों विदिशा में, गजदंताचल चार कहें।
सबमें जिनवर मंदिर जिनमें, चैत्य एक सौ आठ रहें।।
चैत्य वन्दना करने को, सब चले हस्तिनापुरिवर को।
प्रभु के जन्म न्हवन से पावन, श्रीसुमेरुगिरि वन्दन को।।२।।
हस्तिनापुर की पावन भू पर, यह रचना कृत्रिम पाई।
ज्ञानमती माताजी के शुभ, ध्यान की ज्योति ज्वलित आई।।
इक दिन ध्यान किया बाहूबलि, गोमटेश के चरणन को।
प्रभु के जन्म न्हवन से पावन, श्रीसुमेरुगिरि वन्दन को।।३।।
देश विदेशों के जिज्ञासू, शोध हेतु यहाँ आते हैं।
जैन शास्त्र का मर्म समझकर, कुछ नवीनता पाते हैं।।
‘चंदनामति’ इतिहास बताता, पावनता के कर्मन को।
प्रभु के जन्म न्हवन से पावन, श्रीसुमेरुगिरि वन्दन को।।४।।