सौधर्म इंद्र के गृहों के आगे ३६ योजन ऊँचे, १ योजन मोटाई से सहित वङ्कामय १२ धाराओं वाले ‘मानस्तम्भ’ होते हैं, इनकी प्रत्येक धारा का विस्तार १-१ कोस प्रमाण है। अर्थात् ये मानस्तम्भ बारह कोण संयुक्त गोल होते हैं। एक योजन चौड़े मानस्तंभ की परिधि १२ कोस (३ योजन) प्रमाण हो गई है। इसलिये इसमें १२ धारायें १-१ कोस चौड़ी हैं। इन मानस्तंभों में उत्तम रत्नमय करंडक-पिटारे हैं। प्रत्येक करंडक ५०० धनुष विस्तृत, एक कोस लम्बे हैं। मानस्तंभ ३६ योजन ऊँचा है उसमें नीचे से ५-३/४ योजन तक करंडक नहीं हैं एवं मध्य में २४ योजन की ऊँचाई तक करंडक हैं। पुन: ऊपर ६-१/४ योजन तक करंडक नहीं है अर्थात् ५-३/४±२४±६-१/४·३६ योजन के ऊँचे मानस्तंभ में पहले पौने छह योजन तक करंडक नहीं हैं। आगे २४ योजन तक हैं एवं उसके ऊपर सवा छह योजन तक नहीं हैं। रत्नमय सीकों के समूहों से लटकते हुये ये सब संख्यातों करंडक शक्रादि से पूज्य, अनादिनिधन, महारमणीय हैं।
ऐसे ही मानस्तम्भों में करंडक ईशान, सानत्कुमार और माहेन्द्र इंद्रों के भवनों में भी हैं।
सौधर्म इंद्र के मानस्तम्भों के पिटारों से भरत क्षेत्र के तीर्थंकर बालक के लिये दिव्य, आभरण, भूषण आदि आते हैं। ईशान इंद्र के मानस्तम्भों के पिटारों से इंद्र ऐरावतक्षेत्रवर्ती बालक तीर्थंकरों के लिये दिव्य वस्त्राभूषण आदि लाते हैं। सानत्कुमार के भवन गत मानस्तम्भों से पूर्व विदेहवर्ती तीर्थंकरों के वस्त्राभूषण आते हैं एवं माहेन्द्र इंद्र के भवनों के मानस्तम्भों से पश्चिम विदेहज तीर्थंकरों के लिए वस्त्र अलंकार आदि लाये जाते हैं।