(मंगलचतुर्विंशतिका)
-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
-अनुष्टुप् छंद-
अयोध्या मंगलं कुर्या-दनन्ततीर्थकतर्¸णाम्।
शाश्वती जन्मभूमिर्या, प्रसिद्धा साधुभिर्नुता।।१।।
ऋषभोऽजिततीर्थेशोऽप्यभिनंदनतीर्थकृत्।
श्रीमान् सुमतिनाथश्चा – नन्तनाथजिनेश्वर:।।२।।
पंचतीर्थकृतां गर्भ – जन्मकल्याणकादिषु।
इन्द्रादिभि: सदा वंद्या वंद्यते वंदयिष्यते।।३।।
संप्रति कालदोषेण शेषास्तीर्थंकरा: पृथक्।
संजातास्ता अपिजन्म-भूमयो मंगलं भुवि।।४।।
श्रावस्ती मंगलं कुर्यात्, संभवनाथजन्मभू:।
तनुतान्मे मनःशुद्धिं, भव्यानां भवहारिणी।।५।।
कौशाम्बी मंगलं कुर्यात्, पद्मप्रभस्य जन्मभू:।
जिनसूर्यो मनोऽब्जं मे, प्रफुल्लीकुरुतादपि।।६।।
वाराणसी जगन्मान्या, मंगलं तनुतान्मम।
जन्मभूमि: सुरै: पूज्या, सुपार्श्वपार्श्वनाथयो:।।७।।
चन्द्रपुरी सुरैर्मान्या, मंगलं कुरुतात्सदा।
चन्द्रप्रभजिनेंद्रस्य, जन्मभूर्जन्मपावनी।।८।।
काकंदी मंगलं कुर्यात्, पुष्पदन्तस्य जन्मभू:।
आनंदं तनुताद् भूमौ, सर्वमंगलकारिणी।।९।।
मंगलं कुरुतान्नित्यं, जन्मभूर्भद्रकावती।
शीतलस्य जिनेंद्रस्य, मनो मे शीतलं क्रियात्।।१०।।
सिंहपुरी जगन्मान्या, मंगलं कुरुतान्मम।
श्रीश्रेयांसजिनेंद्रस्य, जन्मभूमि: शिवंकरा।।११।।
चंपापुरी जगद्वंद्या, मंगलं तनुताद् ध्रुवं।
वासुपूज्यजिनेंद्रस्य, जन्मभूमिर्नुतामरै:।।१२।।
सा कंपिलापुरी नित्यं, मंगलं कुरुतान्मम।
मच्चित्तं विमलीकुर्यात्, विमलेश्वरजन्मभू:।।१३।।
रत्नपुरी यतीन्द्राणां, मंगलं कुरुताच्च न:।
सद्धर्मवृद्धये भूयाद्, धर्मनाथस्य जन्मभू:।।१४।।
हस्तिनागपुरी नित्यं, मंगलं तनुतान्मम।
शांतिकुंथ्वरतीर्थेशां, जन्मभूमिर्जगन्नुता।।१५।।
या मिथिलापुरी शश्वत्, मंगलं कुरुतान्मम।
जन्मभूमि: प्रसिद्धाभूत्, मल्लिनाथनमीशयो:।।१६।।
मंगलं संततं कुर्यात्, राजगृही सुजन्मभू:।
मुनिसुव्रतनाथस्य, दद्यान्मे सुव्रतं त्वसौ।।१७।।
शौरीपुर्यर्द्धचक््रयाद्यै:, मान्या मे मंगलं क्रियात्।
इन्द्रादिभि: सदा वंद्या, नेमिनाथस्य जन्मभू:।।१८।।
या कुण्डलपुरी पूज्या, मंगलं कुरुताद् भुवि।
जन्मभूमि: प्रसिद्धास्ति, महावीरस्य संप्रति।।१९।।
राजधानीह सिद्धार्थ-भूपते: साधुभिर्नुता।
नंद्यावर्तं च प्रासादं, रत्नवृष्ट्या सुमंगलम्।।२०।।
चतुर्विंशतितीर्थेशां, षोडश जन्मभूमय:।
वंद्यास्ता मंगलं कुर्यु:, घ्नन्तु जन्मपरम्परां।।२१।।
दीक्षाज्ञानस्थलं पूज्यं, प्रयागश्चाहिच्छत्रकं।
संततं मंगलं कुर्यात्, पूर्णज्ञानर्द्धये भवेत् ।।२२।।
वैâलाशचंपापावोर्ज-यन्तसम्मेदशृंगिषु।
निर्वाणभूमयो यास्ता:, कुर्वन्तु मम मंगलम्।।२३।।
पंचकल्याणवैâ: पूज्या, भूमिसरोवराद्रय:।
तास्तान् ज्ञानमती याचे, दद्युः सिद्धिं च मे धु्रवम्।।२४।।