तर्ज—माई रे माई…………..
चौबिस जिन की पंचकल्याणक तीर्थ भूमियाँ प्यारी।
उन तीर्थों की मंगल आरति, आतम हित सुखकारी।।
बोलो जय, जय, जय, प्रभू की जय….।।टेक.।।
जिन आगम में माने केवल, दो ही शाश्वत तीरथ,
तीर्थ अयोध्या जन्मभूमि, सम्मेदशिखर मुक्तीथल।
कालदोषवश हुईं कल्याणक……..
कालदोषवश हुईं कल्याणक भूमी तेईस न्यारी।।उन….।।१।।
सोलह तीर्थ हुए तीर्थंकर, जन्मकल्याण से पावन,
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान चार, कल्याणक भी मनभावन।
पंचकल्याणक से पावन………..
पंचकल्याणक से पावन, चम्पापुरि की रज प्यारी ।।उन…।।२।।
तीर्थ प्रयाग में ऋषभदेव के दीक्षा, ज्ञानकल्याणक,
अहिच्छत्र तीरथ पर पार्श्व प्रभू का ज्ञानकल्याणक।
जृंभिका ग्राम में वीर को केवल……
जृंभिका ग्राम में वीर को, केवलज्ञान हुआ हितकारी।।उन…।।३।।
गिरि वैâलाश से आदिप्रभू, गिरनार से नेमी स्वामी,
चम्पापुर से वासुपूज्य, पावापुरि वीर से नामी।
बीस गए निर्वाण जहाँ………..
बीस गए निर्वाण जहाँ, सम्मेदशिखर मनहारी।।उन ….।।४।।
पंचकल्याणक से पावन, ये तेईस तीर्थ हमारे,
जिनसंस्कृति की अमिट धरोहर, रज कण सिर पर धारें।
आत्मा तीर्थ बनाऊं ‘इन्दू’……..
आत्मा तीर्थ बनाऊं ‘इन्दू’, इच्छा एक हमारी।। उन….।।५।।