ऐतिहासिक तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुर अयोध्या के समान ही अत्यन्त प्राचीन एवं पवित्र माना जाता है। जिस प्रकार जैन पुराणों के अनुसार अयोध्या नगरी की रचना देवों ने की थी उसी प्रकार युग के प्रारंभ में हस्तिनापुर की रचना भी देवों द्वारा की गयी थी। अयोध्या में वर्तमान के पाँच तीर्थंकरों ने जन्म लिया तो हस्तिनापुर को शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ इन तीन तीर्थंकरों को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इतना ही नहीं, इन तीनों जिनवरों के चार-चार कल्याणक (गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान) हस्तिनापुर में इन्द्रों ने मनाए हैं ऐसा वर्णन जैन ग्रंथों में है।
आज से लगभग पौन पल्य ६६ लाख ८६ हजार ५२९ वर्ष पूर्व हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन की महारानी ऐरादेवी की पवित्र कुक्षि से ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिन सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ ने जन्म लिया था पुन: राजा सूरसेन की महारानी श्रीकांता ने वैशाख शुक्ला एकम तिथि में सत्रहवें तीर्थंकर कुन्थुनाथ को जन्म दिया तथा राजा सुदर्शन की महादेवी मित्रसेना के पवित्र गर्भ से मगशिर शु. १४ को १८वें तीर्थंकर भगवान अरहनाथ का जन्म हुआ था। इस प्रकार तीन बार यहाँ पर १५-१५ मास तक कुबेर ने अगणित रत्नों की वृष्टि की थी अत: रत्नगर्भा नाम से सार्थक यह भूमि प्राणिमात्र को रत्नत्रय धारण करने की प्रेरणा प्रदान करती है। ये तीनों तीर्थंकर चक्रवर्ती और कामदेव पदवी के धारक भी थे। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को एक वर्ष ३९ दिन के उपवास के पश्चात् हस्तिनापुर में ही युवराज श्रेयांस एवं राजा सोमप्रभ ने इक्षुरस का प्रथम आहार दिया था। उस समय भी वहाँ पर देवों द्वारा पंचाश्चर्य वृष्टि की गई थी एवं सम्राट् चक्रवर्ती भरत ने अयोध्या से हस्तिनापुर जाकर राजा श्रेयांस का सम्मान करके उन्हें ‘‘दानतीर्थ प्रवर्तक’’ की पदवी से अलंकृत किया था। पुराण ग्रंथों में वर्णन आता है कि भरत ने उस प्रथम आहार की स्मृति में हस्तिनापुर की धरती पर एक स्तूप का निर्माण करवाया था। आज तो उसका कोई अवशेष देखने को नहीं मिलता है किन्तु इससे यह ज्ञात होता है कि धर्मतीर्थ एवं दानतीर्थ की प्रशस्ति का उल्लेख उसमें अवश्य होगा। काल के थपेड़ों में वह इतिहास आज समाप्तप्राय हो गया किन्तु हस्तिनापुर एवं उसके आसपास में इक्षु-गन्ने की हरी-भरी खेती आज भी इस बात का परिचय कराती है कि कोड़ाकोड़ी वर्ष पूर्व भगवान के द्वारा आहार में लिया गया गन्ने का रस वास्तव में अक्षय हो गया है इसीलिए उस क्षेत्र में अनेक शुगर फैक्ट्री तथा क्रेशर गुड, खांड और चीनी बनाकर देश के विभिन्न नगरों में भेजते हैं।
इसी प्रकार से हस्तिनापुर की पावन वसुन्धरा पर रक्षाबन्धन कथानक, महाभारत का इतिहास, मनोवती की दर्शन प्रतिज्ञा की प्रारम्भिक कहानी, राजा अशोक व रोहिणी का कथानक आदि प्राचीन इतिहास प्रसिद्ध हुए हैं, जिनका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होता है और हस्तिनापुर नगरी की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है।
हस्तिनापुर की अर्वाचीन स्थिति- कहते हैं कि सन् १९४८ में भारत के प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उजड़े हुए हस्तिनापुर को पुनः बसाया था जो कि ‘‘हस्तिनापुर सेन्ट्रल टाउन’’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ आज लगभग २० हजार की जनसंख्या है एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, डाक व्यवस्था, आवागमन सुविधा आदि के समस्त साधन वहाँ सरकार की ओर से उपलब्ध हैं। टाउनेरिया की सक्रियता से हस्तिनापुर कस्बे की सारी जनता प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवनयापन करती है। यहाँ हिन्दू-मुसलमान, पंजाबी-बंगाली सभी जाति के लोग जातीय एकता के साथ अपने-अपने धर्म एवं ईश्वर की उपासना करते हैं।
तीर्थक्षेत्र की अवस्थिति- सेन्ट्रल टाउन से लगभग डेढ़किमी. दूर जैन तीर्थ क्षेत्र का अवस्थान है। मेरठ से रामराज जाती हुई मुख्य सड़क से बाई ओर लगभग ४०० वर्ष पुराना प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर है। वहाँ के परिसर में अन्य कई नये मंदिरों का निर्माण हुआ है तथा इस मंदिर के सामने एक श्वेताम्बर जैन मंदिर भी है। इनकी परम्परा के स्थानकवासी आम्नाय के स्थल भी वहाँ निर्मित हैं। मंदिर से जम्बूद्वीप के आगे जंगलों में चार तीर्थंकरों के जन्म की प्रतीक नसियाएं दिगम्बर जैन समाज की तथा एक श्वेताम्बर समाज की है, जहाँ भक्तगण श्रद्धापूर्वक दर्शन करने जाते हैं।
जम्बूद्वीप रचना तीर्थक्षेत्र की प्रगति का मुख्य कारण है- सन् १९७४ में जब से हस्तिनापुर की धरा पर परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ने जम्बूद्वीप रचना का शिलान्यास करवाया, तब से तो वहाँ की ख्याति देश-विदेश में फैल गई है। १०१ फुट ऊँचे सुमेरु पर्वत से समन्वित जम्बूद्वीप की रचना में विराजमान २०५ जिनबिम्ब जहाँ श्रद्धालुओं के पापक्षय में निमित्त हैं, वहीं गंगा-सिंधु आदि नदियाँ, हिमवन आदि पर्वत, भरत-ऐरावत आदि क्षेत्र, लवण समुद्र जनमानस के लिए मनोरंजन के साधन भी हैं। बिजली-फौव्वारों की तथा हरियाली की प्राकृतिक शोभा देखने हेतु दूर-दूर से लोग जाकर वहाँ स्वर्ग सुख जैसी अनुभूति करते हैं।
जम्बूद्वीप के उस परिसर में कमल मंदिर, ध्यानमंदिर, तीनमूर्ति मंदिर, शान्तिनाथ मंदिर, वासुपूज्य मंदिर, ॐ मंदिर, सहस्रकूट मंदिर, विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर, भगवान ऋषभदेव मंदिर, तेरहद्वीप मंदिर, नवग्रहशांति जिनमंदिर, चौबीस तीर्थंकर मंदिर, चंद्रप्रभु जिनमंदिर, भगवान शांतिनाथ समवसरण मंदिर, तीनमूर्ति मंदिर के शिखरों में स्थित नवदेवता मंदिर, समवसरण स्थान मंदिर, भगवान ऋषभदेव मंदिर, तीनलोक रचना, भगवान शांति-कुन्थु-अरहनाथ की ३१-३१ फुट उत्तुंग प्रतिमाओं से समन्वित विशाल जिनमंदिर, ऋषभदेव कीर्तिस्तंभ, ऐतिहासिक अष्टापद मंदिर, ज्ञानमती कला मंदिर, जम्बूद्वीप पुस्तकालय, णमोकार महामंत्र बैंक आदि हैं जो भक्तों को भक्ति और ध्यान- अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
मनोरंजन के साधन- जिनमंदिरों के अतिरिक्त इस परिसर में यात्रियों एवं विशेषकर बच्चों के मनोरंजन हेतु झूले, ट्रेन, ऐरावत हाथी, नौका विहार, हंसी के फौव्वारे आदि अनेक साधन हैं तथा हीरक जयंती एक्सप्रेस यहाँ का विशेष आकर्षण है। इसमें वर्तमान चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों की १६ जन्भूमियों का ज्यों का त्यों सचित्र विवरण है इसके साथ ही जम्बूद्वीप थियेटर में धार्मिक फिल्में दिखाई जाती हैं।
आवासीय सुविधा आधुनिक परिप्रेक्ष्य में- हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र पर पहुँचने वाले प्रत्येक तीर्थयात्री के लिए जम्बूद्वीप स्थल पर लगभग २०० कमरे हैं जिनमें से अधिकतर डीलक्स फ्लैट और अनेक कोठियाँ भी आधुनिक सुविधायुक्त हर समय तैयार रहते हैं।
आवास सुविधा के साथ-साथ शुद्ध विशाल भोजनालय अपने अतिथियों की सुबह से शाम तक सेवा में तत्पर है। जगह-जगह पानी की सुविधा हेतु जलपरी, वाटरकूलर, हैण्डपम्प, नल आदि उपलब्ध हैं।
इन सबके अतिरिक्त वहाँ नित्य ही नवनिर्माण का कार्य चालू रहता है। सुन्दर पक्की सड़कें, हरे-हरे लॉन, पूâलों के उद्यान, झूले, नाव, खेल के मैदान, बच्चों की रेल, ऐरावत हाथी आदि परिसर की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। कभी-कभी बिजली न होने पर यात्री देर रात तक रुककर जम्बूद्वीप के लाइट-फौव्वारे की शोभा देखकर ही वापस जाने की इच्छा रखते हैं।
यहाँ की स्वच्छता सबको मोह लेती है- जम्बूद्वीप के प्रमुख द्वार तक प्रतिदिन दिल्ली और मेरठ की १०-१५ रोडवेज बसें सुबह से शाम तक यात्रियों को लाती और वहाँ से ले जाती हैं। वहाँ उतरकर कल्पवृक्ष द्वार में घुसते ही हर नर-नारी के मुँह से सर्वप्रथम यही निकलता है कि-‘‘ऐसा लगता है स्वर्ग में आ गए’’। पुनः वहाँ भ्रमण करने के पश्चात् वे लोग परिसर की स्वच्छता का गुणगान करते नहीं थकते हैं। पूरे स्थल पर कहीं कागज का एक टुकड़ा भी पड़ा नहीं दिखता जो वहाँ के सौन्दर्य में बाधक हो।
इन सबसे प्रभावित होकर ही उत्तरप्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने जम्बूद्वीप रचना के चित्र से हस्तिनापुर की पहचान बनाते हुए विभाग द्वारा प्रकाशित फोल्डर में लिखा है-
Jambudweep is the…….has today blossomed into a man-made heaven of unparallel superlatives and natural wonders.
क्षेत्र पर होने वाले महोत्सव- मेले-हस्तिनापुर तीर्थ पर वर्ष में दिगम्बर-श्वेताम्बर समाज के कई मेले आयोजित होते हैं जिनमें से कार्तिक पूर्णिमा का मेला सर्वप्रमुख है जिसमें जैन समाज से अतिरिक्त अजैन समाज भी भारी संख्या में पहुँचकर गंगा स्नान करता है इसलिए इस मेले को ‘‘गंगास्नान मेला’’ के नाम से भी जाना जाता है।
इसी प्रकार चैत्र कृष्णा एकम् (होली मेला), अक्षयतृतीया , ज्येष्ठ वदी चौदस ये हस्तिनापुर के प्रमुख मेले हैं तथा समय-समय पर अन्य आयोजन भी वहाँ होते ही रहते हैं। वर्तमान में हस्तिनापुर तीर्थ पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की तपःसाधना का केन्द्र बनकर संसार की दृष्टि में बस गया है। उनके पावन सानिध्य में केन्द्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के अनेक उच्चकोटि के राजनेता पधार चुके हैं यही कारण है कि मेरठ कमिश्नरी का प्रशासन जम्बूद्वीप के नाम से ही श्रद्धावनत है और वहाँ के लघु संकेत पर समस्त सुविधाएँ देने को तैयार रहता है।
सन् २००८ में मेरठ कमिश्नरी में प्रथम बार भारत की तत्कालीन प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने हस्तिनापुर में पधारकर ‘‘विश्वशांति वर्ष’’ का उद्घाटन करके पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
मैंने हस्तिनापुर तीर्थ का यह अति संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है, वास्तविक परिचय तो वहाँ साक्षात् पहुँचने वाले यात्रियों को स्वयमेव अनुभव में आता है। इस पावन तीर्थ भूमि को शत-शत नमन।